असमानता – अमीरों को शिक्षा के अधिक अवसर
प्राइवेट कॉलेज, यूनिवर्सिटी में गरीब आदमी पढ़ ही नहीं सकता
आम चुनाव 2024 में क्या-क्या नहीं हुआ… चुनाव आयोग ने भाजपा की एक इकाई की तरह अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। सत्ता पक्ष नें चुनाव प्रचार में आदर्श चुनाव संहिता की बखिया उधेड़ कर रख दी किंतु चुनाव आयोग टाँग पर टाँग रखकर सब कुछ मूकदर्शक बना देखता रहा। चुनाव आचार संहिता का उलंघन यदि पी एम मोदी जी ने किया तो चुनाव आयोग ने नोटिस भाजपा अध्य्क्ष जे पी नड्डा जी को जारी किया गया। कुल मिलाकर इस प्रकार का पंगू चुनाव आयोग हमने पहले कभी नहीं देखा। इतना ही नहीं सत्ता पक्ष ने विपक्ष के प्रति जो जहर समाज के बीच उड़ेला, वो सदियों तक समेटने में नहीं आ पाएगा। सामप्रदायिक घिर्णा चर्म सीमा तक फैलाई गई, किंतु भला हो जनता का जिसने इस बार सामाजिक सौहार्द को उतना नहीं बिगड़्ने दिया, जितना सत्ता पक्ष का इरादा था। खैर! अब चुनाव से आगे की बात करते हैं।
ये बात आज सीधे-सीधे कही गई है कि गए दिनों में जिस तरह से पूरी बात को दाएं-बाएं कर दिया जाता था बातचीत की परंपरा को जिस तरह से मोदी जी ने खत्म किया। कहना गलत न होगा कि लोगसभा अध्यक्ष के चुनाव के बाद विपक्ष भी उसी तरह से नजर आया, जैसे गए वर्षों में सत्तापक्ष और अध्यक्ष नजर आते थे। किसी को इस बात की परवाह ही नहीं रही कि आज बधाई देने का दिन है। हाँ! बधाई तो दी गई किंतु भविष्य के प्रति विश्वास बनाए रखने की बात भी अध्यक्ष महोदय के सामने रख दी गई। पहले दिन से ही ओम बिरला को बताया गया कि आप क्या हैं और आपको कैसे रहना होगा।
अब आते हैं हमारे आज के विषय पर, इस देश में सबसे बड़ा जो भेदभाव है उसकी प्रमुख दो शाखाएं हैं। लेकिन एक के बारे में बात की जाएगी। अगर कोई व्यक्ति जाति के नाम पर भेदभाव करता है, जाति पर टिप्पणी करता है, तो आप क्या करते हैं? आप उसका विरोध कर सकते हैं। इस देश में इसके खिलाफ कानून भी है और इसके खिलाफ सामाजिक राय भी है। अगर कोई व्यक्ति धर्म के नाम पर किसी के साथ भेदभाव करता है, धर्म पर टिप्पणी करता है या किसी भी तरह से धर्म के खिलाफ भेदभाव करता है, तो आप उसे गलत बताते हैं। अगर कोई व्यक्ति लिंग के नाम पर किसी पुरुष के साथ भेदभाव करता है, तो वह गलत है।
शिक्षित और अशिक्षित के बीच समाज के रवैये का भेदभाव। शिक्षित होने से आप अधिक कुशल बन सकते हैं। यह अधिक सम्मानजनक क्यों होता जा रहा है? यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। और ये सवाल लगातार उठ भी रहा है। लेकिन मैं आपको ये क्यों बता रहा हूँ? मैं आपको ये इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए बता रहा हूँ कि इस देश में ये भेदभाव दूसरे भेदभाव से पैदा हो रहा है। इस देश में ये व्यवस्था पहले से ही बन रही है, या बन चुकी है। या फिर लगातार बनाने की प्रक्रिया 15-20 सालों से चल रही है। शिक्षा के इस भेदभाव को कौन झेलेगा? यह भी तय होना शुरू हो गया है। भारत में अमीर लोग अब शिक्षा के मामले में इस देश के विशेषाधिकार प्राप्त नागरिक हैं।
इस देश में ऐसे लोग हैं जिन्हें सामान्य से ऊपर एक्स्ट्रा ट्रीटमेंट मिल रहा है। या यूँ कहें कि जिन्हें विशेष ट्रीटमेंट मिल रहा है। इस देश में शिक्षा को लेकर अमीर लोगों को विशेष अधिकार प्राप्त हैं। भारत में सभी को शिक्षा पर समान अधिकार नहीं है। हमारे संविधान में शिक्षा को अधिकार माना गया है। भारत में शिक्षा का अधिकार है। इसके बावजूद इस अधिकार को समाज के आर्थिक/सामाजिक रूप से निचले तबके से छीना जाता रहा है। कैसे छीना गया? इस बात को समझने के लिए चलिए! आगे बढ़ते हैं। अभी हाल ही में NEET के पेपर लीक हुए थे। NEET टेस्ट एक ऐसा टेस्ट है जो विगत में PMT के नाम से अलग-अलग राज्यों का होता था।….. CPMT भी होता था। अब वर्तमान सरकार ने इसे ‘एक देश, एक टेस्ट’ के रूप में संचालित करने का निर्णय लिया। मोदी ने सब कुछ एक जगह कर दिया। तो अब NEET परीक्षा के पीछे उद्देश्य यह है कि जो लोग पढ़ने में तेज हैं, उन्हें सस्ते कॉलेजों में दाखिला मिले। यानी आम आदमी को एक विशेषाधिकार दिया गया ताकि उसे उस विशेषाधिकार से बचा कर रखा जा सके। अगर आप NEET में 20% अंक लाते हैं, तो आप देश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने के योग्य हो जाते हैं। लेकिन इस देश में दो तरह के मेडिकल कॉलेज हैं। एक वो मेडिकल कॉलेज जो गरीबों के लिए बने हैं। दूसरे वो जो अमीरों के लिए बने हैं। इस देश में दो तरह के कॉलेज और यूनिवर्सिटी हैं। एक वो जहां अगर आप पढ़ने जाते हैं तो एमबीबीएस की पढ़ाई की फीस 30,000 रुपए से शुरू होती है। यह सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। यह मेडिकल कॉलेज गरीबों के लिए हैं ताकि इस देश के गरीब, सामान्य लोग, गरीब भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। यह अधिकार इस देश के लोगों को दिया गया। कुछ अन्य कॉलेज ऐसे भी हैं जिनकी एमबीबीएस की फीस 750,000 रुपये से शुरू होती है। यह फीस करोड़ों तक जाती है।
अब NEET का पेपर लीक हो गया, इसका मतलब क्या है? पेपर लीक होने का मतलब ये है कि देश में करीब 52-53% मेडिकल कॉलेज ऐसे हैं, जिनमें आम आदमी पढ़ सकता है। मैं, आप यानी हर कोई पढ़ सकता है। आम गरीब आदमी का बच्चा पढ़ सकता है जो करीब-करीब 50% मेडिकल कॉलेज हैं । लेकिन इन 50% कॉलेजों में अमीरों व गरीबों को भी कोई आरक्षण नहीं है। तो जैसे जाति के नाम पर भेदभाव होता है, वैसे ही शिक्षा में भी भेदभाव होता है। और वो विश्वास गरीब और अमीर के बीच का भय है। जो चीज मनुष्य को सम्मान देती है, वही शिक्षा है। और उस शिक्षा को पाने के लिए हर किसी का आपका सम्मान होना चाहिए। किंतु समाज में सदैव अमीर लोगों का सम्मान किया जाता है। अगर आप अमीर आदमी हैं, तो आपके पास शिक्षा पाने के अधिक अवसर हैं। आप बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। आपको बेहतरीन कॉलेज मिल सकता है। अगर विदेशियों की शिक्षा को अलग रखा जाए तो भारत में सामान्य व्यक्ति को, यानी भारत की 90-95% आबादी को, सिर्फ 53% मेडिकल कॉलेज ही उपलब्ध हैं।
इस NEET के आंकड़ों के अनुसार, यदि आप इंजीनियरिंग में जाते हैं, तो वहां भी वही स्थिति है और बाकी जगहों पर भी वही स्थिति है। विश्वविद्यालयों में करीब 51-51.5% सरकारी हैं और सरकारी खर्च आम आदमी वहन कर सकता है। वैसे तो इस देश की 60-70% आबादी के अधिक लोगों ने विश्व असमानता पर एक रिपोर्ट बनाई थी। हमारी 60-70% आबादी को उन सरकारी मेडिकल मानकों में पढ़ने की हकीकत भी नहीं है। तो क्या हुआ? आज पैसे के आधार पर हमारे देश में सीधा वितरण या आरक्षण हो गया।
अमीर आदमी की आधी शिक्षा सुरक्षित हो जाती है। इस देश की आधी आबादी की शिक्षा के लिए संरक्षण किया गया है। जो प्राइवेट कॉलेज हैं, प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं, गरीब आदमी उनमें पढ़ नहीं सकता, क्योंकि उसके पास उतना पैसा नहीं है। इस देश में शिक्षा का विकास बहुत तेजी से हुआ। और आज जब NEET की परीक्षा होती है, तो जो बच्चे NEET की परीक्षा में प्रतियोगिता के लिए इच्छुक हैं, उन सभी बच्चों का लक्ष्य अपनी योग्यता के अनुसार, अपनी योग्यता के अनुसार सरकारी कॉलेज में प्रवेश लेना होता है। इस देश की सरकार लोगों को शिक्षित करने वाली थी। किंतु शिक्षा के बजट में कोई बढ़ोत्तर होने के बदले शिक्षा में बजट कटौती ही की जाती रही है। जो शिक्षा दी जाने वाली थी, जो शिक्षा के लिए सुविधा देने वाली थी, वो सुविधा देने के बजाय उद्यमिता को, अमीर लोगों को, अपने निजी अनुभवों को लूटने का अवसर दे दिया। या देश में ज्ञान की सुविधा है, वह सुविधा अमीरों के लिए संरक्षित कर दी गई है। अगर आपके पास करोड़ों रुपए हैं, तो आप करोड़ों रुपए से एमडी आदि की पढ़ाई कर पाएंगे। अन्यथा आप अपने बच्चों को डॉक्टर नहीं बना पाओगे तो आप नीट में जाओगे। इसके अलावा ये गरीब वर्ग के लोग, वो लोग जो इस देश के सामान्य नागरिक हैं, जो 53% मेडिकल सपनों में अपने लक्ष्य तलाश रहे हैं और प्रतिस्पर्धा दे रहे हैं, उन बच्चों का हक, जो आपने आधा ले लिया, अब बाकी को भी ले रहे हैं। आखिर वो गरीबों के हक को क्यों लूट रहे हो? क्या है इस धोखाधड़ी के कारण।
ये धोखा कुछ भी नहीं है। एक संस्था, एनटीए, इस देश में इस तरह से परीक्षा चला रही है कि अमीर लोग, गरीबों के लिए बने बाकी 53% कॉलेज में भी पैसे की खातिर प्रवेश पा सकते हैं। योग्यता के लिए उनके प्रवेश पर कोई रोक नहीं है। वे पैसे के लिए प्रवेश कर सकते हैं और वहां से वे गरीबों की जगहें लूट सकते हैं। जैसा कि विदित है… शिक्षा सम्मान देती है, और अगर शिक्षा नहीं है, तो इस देश में अपमान ही अपमान है। हमारे देश के प्रधान मंत्री, हमारे देश के पहले शिक्षा मंत्री, जो मोदी के शासन में थे, मानव संसाधन विकास मंत्री, उनकी डिग्री के लिए उपहास किया जाता है। चौथे राजा की कहानियाँ प्रचलित होती हैं। तो आप मानते हैं कि एक आबादी के पास आर्थिक शक्तियां नहीं हैं, इसलिए उसे उस काम की ओर धकेला जा रहा है जो उसका अपमान कर रहा है। मामला उच्च शिक्षा का ही नहीं है, मामला सिर्फ़ मेडिकल कॉलेज का भी नहीं है, अब बड़े कॉलेज, इस देश की सारी यूनिवर्सिटी चाहे डीयू हो, जेएनयू हो, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी हो, बनारस यूनिवर्सिटी हो, और भी अवैध यूनिवर्सिटी हैं, अवैध का तो पता नहीं, लेकिन जो सामने आई है वह प्रवेश भी केंद्रीकृत हो गया, और ’एक देश, एक प्रवेश’ हो गया।
पहले तो शिक्षा मंत्री बेशर्मी से कह रहे थे कि कोई लीकेज नहीं हुआ, ये नहीं हुआ, वो नहीं हुआ। उसके बाद वह सारी बातें मान लीं। फिर उन्होंने निर्देश देने प्रारम्भ कर दिए। इस देश में ऐसी परीक्षा होनी चाहिए, ऐसी शिक्षा होनी चाहिए, वगैरह-वगैरह। इस देश ने माफ़ी नहीं मांगी कि मैं झूठ बोल रहा था। 2020-21 में उच्च शिक्षा में जो नामांकन हुआ, उसमें से 48% नामांकन निजी कॉलेज, निजी विश्वविद्यालय और अन्य कालेज में हुआ। यानी 48% शिक्षा, वो 10%, 5% जनसंख्या, उसके लिए आरक्षण कर दिया गया है। वो 10%, 5%, कितना, इसका आंकड़ा कुछ इस प्रकार है। यहां तक आने के लिए 50% की जो प्रतिस्पर्धा चल रही है जिसमें गरीबों की पढ़ाई बेकार जा रही है, अगर ये भी ईमानदारी से कहें तो शिक्षा इतनी कठिन कर दी गई है कि स्कूल की शिक्षा भी आम आदमी की दौड़ से बाहर हो गई है। यहाँ दो तरह के विद्यार्थी हैं। एक गरीब, जो और भी गरीब है, इस देश में समान अधिकार मिलने चाहिए, उसकी कहीं कोई जांच नहीं होती कि सरकार शिक्षा के अधिकार पर काम कर रही है या नहीं। 2021-22 का आंकड़ा बता रहा है कि 32% प्राइवेट अनएडेड स्कूल हैं। अगर आप एडेड स्कूल को भी जोड़ लेंगे तो बहुत हो जाएगा। शिक्षा विभाग और सरकार के स्कूल, अगर आप शिक्षा विभाग और सरकार के स्कूल को भी जोड़ लें तो ये करीब-करीब 68% है। शिक्षा के गिरते स्तर की खामियों को परखना सरकार का काम है। लेकिन इसे दूसरे तरीके से देखिए तो आप पाएंगे कि इस देश का सामान्य नागरिक, सामान्य गरीब, जिसका शिक्षा पर अधिकार है, जिसके लिए इस देश की सरकार शिक्षा पर खर्च नहीं कर रही है। उस शिक्षा का खर्च, उस खर्च में से भी, सरकार ने गरीबों के लिए जो व्यवस्था बनाई है, कॉलेज बनाए हैं, उसमें से भी अमीर लोगों को घसीटा जा रहा है।
इस देश की 10% आबादी, इस देश के 60-70% संसाधन, हम शिक्षा की बात कर रहे हैं, वो लूट लेंगे। दूसरे माइक्रोचिप की बात नहीं कर रहा हूँ, हाल ही में खबर आई थी कि एक अमेरिकी कंपनी को माइक्रोचिप बनाने के लिए सरकार ने बहुत बड़ी सब्सिडी दी है और ये सवाल सरकार के ही साथी श्री देवगोड़ा ने उठाया था। श्री छोटेवाले देवगोड़ा जी। और उसमें उन्होंने बताया कि किस तरह सरकार ने एक व्यक्ति को रोजगार देकर सैकड़ों करोड़ रुपए की सब्सिडी दी है। ऐसी स्थिति में, इस देश में, सारा पैसा और संसाधन अमीरों पर खर्च हो रहे हैं।
आपको वो रिपोर्ट याद होगी जब ये कहा गया था कि इस देश में 1% लोगों के पास 40% संपत्ति पर कब्ज़ा है। ये स्थिति तब है जब भारत में सरकारी लोगों की शिक्षा पर पैसा खर्च नहीं कर रही है। ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि भारत सरकार शिक्षा पर बहुत कम खर्च करती है। शिक्षा पर आधारित मात्र 2.7% खर्च हो रहा है। नॉर्वे में यह 6.38% है। न्यूजीलैंड में यह 6.31% है। ब्रिटेन में यह 6.23% है। अमेरिका में यह 6.09% है। ऑस्ट्रेलिया में यह 5.09% है। फ्रांस में यह 5.02% है। जर्मनी में यह 4.02% है। जापान में यह 4.08% है। यह शिक्षा पर खर्च नहीं है। हम दुनिया भर में अमीरों के लिए सब्सिडी की कहानियाँ सुनते हैं। उस खर्च में भी अमीरों के लिए दरवाज़े खोले जा रहे हैं। जो प्रतिभाशाली विद्यार्थी सरकारी स्कूलों में जा रहे हैं, उन्हें समान अवसर नहीं मिल रहे हैं। बहुत सारी समस्याएं हैं। उनके पास स्कूल जाने का साधन नहीं है। कोई पैदल जा रहा है। कोई साइकिल से जा रहा है। कोई किसी तरह से जा रहा है। और जब वे प्रतियोगिता में बैठते हैं तो अमीर लोग पैसे फेंकते हैं और अपनी सीटें खरीदते हैं।
यथोक्त के आलोक में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि गरीब और अमीर के बीच की खाई निरंतर बढ़ती जा रही है। इसका मूल कारण ग़रीबों के बीच शिक्षा की कमी ही रही है। और वर्तमान में तो सरकार दिन-प्रति-दिन गरीबों की शिक्षा पर पूरी तरह किनारे कर दिया है जिसका प्रमाण है सरकारी स्कूलों को बंद करके उन्हें निजी हाथों में सौंपकर शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण को समाप्त करने की दिशा में कार्य करना आज की सरकार का मूल काम हो गया है। सरकार की नीतियों के अनुसार धन के मालिक धन बनाने और अधिक नौकरियां पैदा करने के लिए पूंजी में निवेश कर रहे हैं। वे सरकार से कम कर और सीमित विनियमन जैसी नीतियों की वकालत करते हैं, जो व्यापार मालिकों को अधिक कुशलता से माल का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसका मतलब है कि अमीर और अमीर हो रहे हैं धनी देशों में, एक कारक जो समय के साथ तेजी से स्पष्ट हो गया है वह है गरीबी में असमानता की भूमिका। लिंग, आयु, जातीयता, सामाजिक समूह और विकलांगता हर समाज में कमाई की क्षमता को काफी हद तक प्रभावित करती है। गरीबी के आंकड़ों में इन समूहों का प्रतिनिधित्व अधिक है क्योंकि कई लोग समाज के हाशिये पर संघर्ष करते हैं। यह भी स्पष्ट है कि गरीबी की स्थिति से पूंजी का मालिक बनना बहुत मुश्किल है। जिन देशों में मध्यम और उच्च आय अर्जित करने वाले लोगों का बड़ा हिस्सा है, वहां समाज के गरीब समूह खुद को आवास, स्वास्थ्य सेवा, ऊर्जा और परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए बढ़ी हुई कीमतों से जूझते हुए पाते हैं। अत्यधिक गरीबी के विपरीत, जो ग्रामीण लोगों को प्रभावित करती है और शहरों की ओर पलायन को प्रोत्साहित करती है, अमीर देशों में अक्सर शहरी गरीब ही जीवन जीने के लिए सबसे कठिन संघर्ष करते हैं।
यह भी कि गरीबी मानवता पर एक अभिशाप है तो अमीरी अमीरों के लिए वरदान है। पुन: प्रेषित है कि गरीबी मानवता के लिए अभिशाप है क्योंकि इसका व्यक्तियों और समाजों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। यह लोगों को अभाव के चक्र में फंसा देती है, जिससे उन्हें भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी बुनियादी मानवीय ज़रूरतें नहीं मिल पातीं। गरीबी के कारण व्यापक पीड़ा, कुपोषण और रोके जा सकने वाली मौतें होती हैं। यह अवसरों तक पहुँच को सीमित करती है, व्यक्तिगत विकास और क्षमता में बाधा डालती है। इसके अलावा, गरीबी सामाजिक असमानताओं को बनाए रखती है, जिससे अशांति और राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है। गरीबी से मुक्ति पाने के लिए इसके मूल कारणों को दूर करने, सहायता प्रणाली प्रदान करने और हाशिए पर पड़े समुदायों को सशक्त बनाने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता होती है। केवल गरीबी को मिटाकर ही हम सभी के लिए अधिक न्यायपूर्ण और दयालु दुनिया बना सकते हैं। किंतु सरकार और पूंजीपतियों के गठजोड़ के चलते ऐसा होना संभव नहीं लगता।
विदित हो कि गरीबी मानवता के इसलिए अभिशाप है क्योंकि यह व्यक्तियों को उनके बुनियादी मानवाधिकारों और सम्मान से वंचित करती है। यह सामाजिक असमानताओं को कायम रखती है, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को सीमित करती है, आर्थिक विकास में बाधा डालती है और भावी पीढ़ियों के लिए गरीबी के दुष्चक्र को जन्म देती है। गरीबी व्यक्तियों और समाज की समग्र क्षमता और कल्याण को कमज़ोर करती है। अशिक्षा गरीबों के विकास में आर्थिक कारक गरीबी को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नौकरी के अवसरों की कमी, कम वेतन और आय असमानता गरीबी के चक्र में योगदान करती है, जिससे व्यक्तियों के लिए अपनी परिस्थितियों से बाहर निकलना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। यहाँ यह सोचना ही होगा कि गरीबी से लड़ने में सरकारें क्या भूमिका निभाती हैं। विकसित राष्ट्र विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन में किस प्रकार सहायता कर सकते हैं? गरीबी के चक्र को तोड़ने में शिक्षा का क्या महत्व है? जाहिर है कि गरीबी का भावी पीढ़ियों पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव अवश्य ही पड़ता है, इसमें किसी शंका की गुंजाइश नहीं है।
वरिष्ठ कवि तेजपाल सिंह तेज एक बैंकर रहे हैं। वे साहित्यिक क्षेत्र में एक प्रमुख लेखक, कवि और ग़ज़लकार के रूप ख्यातिलब्ध है। उनके जीवन में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिन्होंने उनको जीना सिखाया। इनमें बचपन में दूसरों के बाग में घुसकर अमरूद तोड़ना हो या मनीराम भैया से भाभी को लेकर किया हुआ मजाक हो, वह उनके जीवन के ख़ुशनुमा पल थे। एक दलित के रूप में उन्होंने छूआछूत और भेदभाव को भी महसूस किया और उसे अपने साहित्य में भी उकेरा है। वह अपनी प्रोफेशनल मान्यताओं और सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा सजग रहे हैं। इस लेख में उन्होंने उन्हीं दिनों को याद किया है कि किस तरह उन्होंने गाँव के शरारती बच्चे से अधिकारी तक की अपनी यात्रा की। अगस्त 2009 में भारतीय स्टेट बैंक से उपप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर आजकल स्वतंत्र लेखन में रत हैं