न्यायिक अंधियारे में लोकतंत्र
इससे पूर्व कि सत्ता और न्याय के अमूर्त गठजोड पर बात की जाय यह जानना जरूरी है कि भारत की न्याय व्यवस्था में जजों की नियुक्ति का आधार और शिक्षा का स्तर क्या रहा है। बता दें कि भारत के निवृत्तवान मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (डीवाई चंद्रचूड़) के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भी देश के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। डीवाई चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ भारत के 16वें मुख्य न्यायाधीश थे। उन्होंने 22 फ़रवरी, 1978 से 11 जुलाई, 1985 तक देश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम किया। डीवाई चंद्रचूड़ के पिता एक बेहद प्रखर व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। उन्हें इस पद पर पहुंचने में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा था। डीवाई चंद्रचूड़ और उनके पिता, दोनों ही व्याभिचार से जुड़े एक मामले में शामिल रह चुके हैं। साल 1985 में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाई वी चंद्रचूड़ ने धारा 497 की वैधता को बरकरार रखा था। 33 साल बाद, उनके बेटे डीवाई चंद्रचूड़ ने इस फ़ैसले को पलट दिया। उनके पिता वाई वी चंद्रचूड़ भारत के 16वें मुख्य न्यायाधीश थे। उनकी मां प्रभा चंद्रचूड़ ऑल इंडिया रेडियो की गायिका थीं। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने 1979 में दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र और गणित में डिग्री हासिल की, उसके बाद 1982 में दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
मामला मास्टर ऑफ रोस्टर का था, यानी कौन सा जज किस केस की सुनवाई करेगा। चारों जजों ने तत्कालीन सी जे आई दीपक मिश्रा से बात की, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट से सी जे आई के पद से रिटायर होने के बाद जस्टिस सी जे आई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में उन्हें जो व्यवस्था मिली, वह बेहतर थी। यदि ऐसा था तो क्या सुप्रीम कोर्ट में मास्टर ऑफ रोस्टर का सवाल ही नहीं उठता? क्या केसों की रजिस्ट्री में कोई दिक्कत नहीं है? क्या CJI सी जे आई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी पर कोई सवाल नहीं उठाया है? क्या सी जे आई चंद्रचूड़ का निजी व्यवहार न्यायपालिका के पक्ष में है? इन सभी मुद्दों पर जनवरी 2018 में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले चार जजों में से एक जस्टिस मदन बी लोकुर ने पूर्व CJI सी जे आई चंद्रचूड़ की विरासत का पोस्टमार्टम किया है। जी हाँ, उन्होंने पोस्टमार्टम किया है। यह वीडियो जस्टिस मदन बी लोकुर के वरिष्ठ पत्रकार करण थापर को दिए गए इंटरव्यू पर आधारित है। और ‘लोकहित इंडिया’ (यूट्यूब चैनल) द्वारा प्रस्तुत वीडियो में CJI सी जे आई चंद्रचूड़ की छह बड़ी गलतियों के बारे में बात की गई है। ये गलतियाँ हमने नहीं बल्कि जस्टिस मदन बी लोकुर ने बताईं हैं ।
‘लोकहित इंडिया’ (यूट्यूब चैनल) की कोशिश है कि पिछले दो सालों में CJI जस्टिस सी जे आई चंद्रचूड़ ने जिस तरह से काम किया है। यहाँ देश के जाने-माने लोग, संविधान और कानून के जानकार क्या कह रहे हैं, क्या सोच रहे हैं, और क्या वो लोग जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में क्या चल रहा है। शायद नहीं तभी तो इस प्रकार के सवाल बार-बार उठाए जाते रहे हैं। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट के अधिकतर वकील और जज इंग्लिश में इंटरव्यू देते हैं। इसलिए ‘लोकहित इंडिया’ (यूट्यूब चैनल) ने यहाँ सुप्रीम कोर्ट और वकीलों की बातों को हिंदी में बताने की कोशिश की है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा कि जनवरी 2018 में हमने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि मास्टर ऑफ रोस्टर के तौर पर CJI कुछ केस कुछ विशेष जजों के पास भेज रहे हैं। CJI सी जे आई चंद्रचूड़ के समय में ऐसा हुआ है। CJI सी जे आई चंद्रचूड़ के समय में कुछ विशेष मामले मास्टर ऑफ रोस्टर के द्वारा विशेष बेंच के पास जा रहे थे। और CJI सी जे आई चंद्रचूड़ के समय में इस व्यवस्था पर सवाल उठाए गए थे। सुप्रीम कोर्ट के जज और वकील लगातार इस प्रकार के सवाल उठाते रहे। कहा गया कि CJI सी जे आई चंद्रचूड़ के समय में केसों की रजिस्ट्री में काफी दिक्कत थी। दो साल तक वकीलों ने शिकायत की कि केस दर्ज नहीं हो रहे हैं। और जजों ने कोर्ट में खुलकर कहा कि निर्देश देने के बावजूद केस दर्ज नहीं किए गए। इंटरव्यू में सीनियर जजों में से एक जस्टिस संजय किशन कौल का नाम लेते हुए कहा कि जस्टिस कौल की बेंच में केस दर्ज होने वाला था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। और इस पर खुद जस्टिस कौल ने कहा कि केस की रजिस्ट्री पर कुछ न कहा जाए तो बेहतर होगा
एक सवाल पर जस्टिस लोकुर ने कहा कि अगर आप जस्टिस किशन कौल के मामले को देखें तो केस के असाइनमेंट में व्यक्तिगत संलिप्तता है। सुप्रीम कोर्ट के एक नेता और प्रशासक के तौर पर चीफ जस्टिस सी जे आई चंद्रचूड़ फेल रहे क्योंकि उन्होंने जजों से बात नहीं की। उन्होंने केस में सबको साथ नहीं लिया और ना ही उन्होंने मास्टर ऑफ रोस्टर से चर्चा करने के बारे में सोचा कि आखिर इसका हल निकाला जाए। पिछले सीजेआई के बड़े फैसलों पर बात करते हुए जस्टिस लोकुर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जिस तरह से कोर्ट ने मोदी सरकार का साथ दिया, उसमें कई सवाल हैं।
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पहला सवाल यह था कि क्या किसी राज्य को केंद्रीकृत राज्य में बदला जा सकता है? उन्होंने कहा कि मान लीजिए महाराष्ट्र में चुनाव होने वाले हैं और अचानक केंद्र सरकार प्रशासनिक कारणों से राज्य को केंद्रीकृत राज्य के तौर पर तीन हिस्सों में बांटने का फैसला करती है। ऐसे में सवाल यह होगा कि क्या सरकार ऐसा कर सकती है और क्या संविधान इसकी इजाजत देता है। उन्होंने कहा कि यह बहुत अहम सवाल है और जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 पर फैसला सुनाया तो सीजेआई सी जे आई चंद्रचूड़ ने इन सवालों का जवाब नहीं दिया। कोर्ट ने कहा कि वे सही समय का इंतजार करेंगे और उन्हें सरकार पर भरोसा है। जस्टिस लोकुर ने सवाल उठायाकि कोर्ट के सामने सवाल था लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया। क्या कोर्ट यह कह सकता है कि हम इस सवाल का जवाब बाद में देंगे? इसका मतलब है कि आपने कोई समाधान नहीं निकाला और अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी।यह CJI सी जे आई चंद्रचूड़ की सबसे बड़ी गलती है।
जस्टिस लोकुर ने इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में सवाल उठाते हुए कहा कि CJI ने कई सवालों के जवाब नहीं दिए। इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में कई सेल कंपनियां घाटे में थीं। लेकिन उन्होंने एक खास पार्टी को करोड़ों का चंदा दिया, एक ने 500 करोड़ का चंदा दिया और एक ने 1000 करोड़ का चंदा दिया। तो ये पैसा कहां से आया? पैसा कहां से आ रहा है? इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में जस्टिस लोकुर ने कहा कि कोर्ट ने पहले मामले में कुछ नहीं कहा।लेकिन जब मामला फिर से कोर्ट में लाया गया तो कोर्ट को कहना पड़ा कि इस मामले को सीबीआई इनकम टैक्स को सौंपा जा सकता था, लेकिन कोर्ट ने इसकी परवाह नहीं की। जस्टिस लोकुर ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि सीजेआई ने ऐसा क्यों किया। पूर्व जज ने कहा कि ऑपरेशन तो सफल रहा लेकिन मरीज की मौत हो गई।
इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में भी यही हुआ। कोर्ट ने इस योजना को असंवैधानिक घोषित तो कर दिया किंतु असंवैधानिक दानदाताओं के बारे में कुछ भी कहने से बचा गया। कानूनी भाषा में कहें तो कोर्ट ने इस योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया, लेकिन उस पर अमल नहीं किया। सवाल यह है कि क्या सी जे आई सी जे आई चंद्रचूड़ ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उन पर राजनीतिक दबाव था। उन्हें पता था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी और नरेंद्र मोदी को हुआ है और वे सत्ता में हैं।
हाल ही में टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए इंटरव्यू में सीजेआई सी जे आई चंद्रचूड़ ने कहा कि निजी समूह भी न्यायपालिका पर दबाव डालते हैं। अब तक, जनता यही मानती थी कि न्यायालय सरकार के दबाव में है। लेकिन सीजेआई ने साफ किया कि निजी समूह भी दबाव डालते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में जस्टिस लोकुर ने कहा कि पिछले 10 सालों में मनी लॉन्ड्रिंग के कई मामले कोर्ट में आए हैं। इस मामले में इलेक्टोरल बॉन्ड की समस्या सिर्फ़ सरकार को बेनकाब करना नहीं था, बल्कि यह भी पता लगाना था कि पैसा कहां से आ रहा है। क्या ये पैसे मनी लॉन्ड्रिंग से आए थे? क्या मोदी सरकार को आपत्ति होगी अगर मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल लोगों का पर्दाफाश हो जाए? क्या कोई पार्टी मुश्किल में पड़ जाएगी? क्या कोई खास नेता मुश्किल में पड़ जाएगा? क्या जनता को पता नहीं होना चाहिए कि पैसे कहां से आ रहे हैं? जस्टिस लोकुर ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट किसी कानून का पर्दाफाश करता है तो उसे उसका पालन भी करना चाहिए। ये बहुत जरूरी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा नहीं किया। जस्टिस लोकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को तय करना चाहिए था कि ये कानून वैध है या नहीं।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई न करके गलती की है। उन्होंने कहा कि पूरा देश जानना चाहता है कि सीएए वैध है या नहीं। यह सिर्फ एक वर्ग का मामला नहीं है। पूरा देश जानना चाहता था कि सीएए कितना कानूनी है। जस्टिस लोकुर ने अयोध्या मामले की कमियों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि संवैधानिक समिति ने एक बहुत महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज किया। याद रहे कि जस्टिस सी जे आई चंद्रचूड़ अयोध्या मामले का अहम हिस्सा थे। उन्होंने हाल ही में कहा था कि उन्होंने फैसला लिखने के लिए ईश्वर से मार्गदर्शन लिया था। जस्टिस लोकुर ने कहा कि अयोध्या पीठ को यह ध्यान रखना था कि बाबरी मस्जिद का विध्वंस मानवीय भूल नहीं थी। यह एक सोची-समझी योजना थी। अदालत को यह बात ध्यान में रखनी थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फैसला देखने के बाद यह बात समझ में आती है कि अयोध्या मामले के जज इस तथ्य को भूल गए या फिर उन्होंने इसे नजरअंदाज करने का फैसला किया। जस्टिस लोकुर ने कहा कि संविधान समिति ने बहुत बड़ी गलती की है। उन्होंने कहा कि सभी को यह याद रखना चाहिए कि संविधान सर्वोच्च है।
किसी को इसका गलत अर्थ नहीं निकाल चाहिए। अगर कोई जज इसका गलत अर्थ निकालता है, तो वह बहुत बड़ी गलती कर रहा है। जस्टिस लोकुर ने सी जे आई चंद्रचूड़ के सीजेआई रहने के दौरान भी पोस्टमार्टम किया था। उन्होंने कहा कि उमर खालिद, भीमाकुरेगांव मामला और सरजील इमाम का मामला भी मास्टर ऑफ रोस्टर का मुद्दा है। इन दोनों मामलों को विशेष बेंच को भेजा गया। इसका नतीजा सभी देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सभी जज बराबर हैं। फिर एक स्पेशल केस को स्पेशल बेंच को क्यों दिया गया? क्या इसके पीछे कोई वजह है? इसे संयोग नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि ऐसा सिर्फ एक बेंच के साथ नहीं हुआ। इस प्रक्रिया में बेंच के कई मामले थे। उन्होंने कहा कि सी जे आई चंद्रचूड़ ने चीफ जस्टिस रहते हुए इन मामलों की पहचान नहीं की। आप अर्नब गोस्वामी का मामला देख लीजिए। सी जे आई चंद्रचूड़ ने दावा किया कि उन्होंने इस केस की ए से जेड तक सुनवाई की। लेकिन वे यू भूल गए। सी जे आई चंद्रचूड़ ने अर्नब गोस्वामी का केस सुना। अब सवाल यह है कि अर्नब गोस्वामी का केस सी जे आई चंद्रचूड़ तक कैसे पहुंचा? उमर खालिद का केस उनके रिटायर होने तक उनके पास क्यों नहीं पहुंचा? क्या वे अपना रास्ता भूल गए? वे रोस्टर के मास्टर थे। उन्हें चुनना था कि कौन सा केस सुनना है।
क्या इसके पीछे कोई विशेष कारण रहा है? जस्टिस लोकुर ने कहा कि ये सवाल बार-बार आते रहे और उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। सी जे आई चंद्रचूड़ ने जवाब नहीं दिया। चंडीगढ़ मेयर चुनाव और महाराष्ट्र के मामले में, दोनों मामलों में कोई फॉलो-अप नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट को चंडीगढ़ मेयर के मामले में कार्रवाई करनी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट को महाराष्ट्र सरकार के मामले में भी कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। जस्टिस लोकुर ने कहा कि कोर्ट को महाराष्ट्र में नए चुनाव पर विचार करना चाहिए था। क्या कोई तीसरा विकल्प था? कोर्ट ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया है। उन्हें बहाल नहीं किया जा सकता। लेकिन क्या आपने देखा कि उन्होंने किन परिस्थितियों में इस्तीफा दिया? दोनों ही मामलों में CJI सी जे आई चंद्रचूड़ अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहे। रिटायरमेंट के बाद जस्टिस लोकुर ने कहा कि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन भविष्य में क्या होगा? अगर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से रिटायर होने वाला हर जज इंटरव्यू देने लगे तो क्या होगा? जरा सोचिए इस प्रकार की मनोदशा का परिणामक्या होगा? ये कहा जा सकता है कि भारत में खुली अदालत है। लेकिन आपको यह भी देखना होगा कि कुछ चीजें ऐसी हैं जो आप जज के तौर पर नहीं कर सकते। इस माने में सी जे आई चंद्रचूड़ को इंटरव्यू देना और मीडिया से बात करना परंपरा का उल्लंघन है।उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव चल रहे हैं और दोनों राज्यों के चीफ जस्टिस मीडिया में आकर अपनी पार्टी की तरफ से बयान देने लगे हैं। इसका क्या नतीजा होगा? नेपाल की क्या स्थिति होगी? अयोध्या मामले में जस्टिस लोकुर ने कहा कि हर कोई भगवान से प्रार्थना करता है। लेकिन ये सब सार्वजनिक रूप से कहने का क्या मतलब है? इसके पीछे क्या मकसद है?
क्या प्रधानमंत्री को पूजा के लिए अपने घर बुलाना सीजेआई की गंभीर गलती नहीं है? इस सवाल पर जस्टिस लोकुर ने कहा कि सीजेआई सी जे आई चंद्रचूड़ ने बहुत बड़ी गलती की है और इसमें कोई शक नहीं है।लेकिन ये मामला यहीं खत्म नहीं होता है। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में सीजेआई सी जे आई चंद्रचूड़ ने कहा कि पीएम मोदी से उनकी मुलाकात एक साधारण मुलाकात थी और कोई डील नहीं हुई। इस पर जस्टिस लोकुर ने कहा कि जब उन्होंने कुछ किया ही नहीं है तो पूर्व सीजेआई सफाई क्यों दे रहे हैं? उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मुलाकात की है। लेकिन चीफ जस्टिस का पीएम से मिलना और उसे जनता से साझा करना सार्वजनिक कार्यक्रम की श्रेणी में नहीं आता। पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने पूछा है कि क्या भारत के CJI अगली बार प्रधानमंत्री को डिनर पर बुलाएंगे? क्या वो उनके साथ मूवी देखने जाएंगे? क्या प्रधानमंत्री को बर्थडे पार्टी में बुलाया जाएगा? ये सब सवाल हैं। क्योंकि पूर्व CJI ने एक परंपरा शुरू की है। कोई नहीं जानता कि अगला CJI क्या करेगा?
राजनीतिक विचारक प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में पूर्व CJI सी जे आई चंद्रचूड़ की विरासत पर लिखा है कि डीवाई सी जे आई चंद्रचूड़ मोदी युग के जज थे। उन्होंने नागरिकों की स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों का अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल किया। उन्होंने खुद कहा है कि एक जज के तौर पर उन्होंने ए से जेड तक जमानत दी, बजाय इसके कि इसकी कानूनी प्रक्रिया को लगातार और अंधाधुंध तरीके से अंजाम दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट लोकतंत्र की ढाल है और लोकतंत्र पूरी तरह तब ढाल बन जाता है जब लोग बोलना, लिखना, सुनना और पढ़ना बंद कर देते हैं। इस परिस्थिति में लोकतन्त्र को बचाने यानि कि संविधान को बचाने की पूरी जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट की है। अब यदि सुप्रीम कोर्ट ही न्याय प्रणाली को निभाने में ढुलमुल रवैया अपनाने पर उतर आए तो लोकतंत्र का क्या होगा? क्या ऐसे में लोकतंत्र का तानाशाही का शिकार नहीं हो जाएगा?
चलते-चलते यह भी जान लें कि कौन हैं जस्टिस संजीव खन्ना कौन हैं जो बनेंगे अगले CJI के रूप में जस्टिस चंद्रचूड़ की जगह लेंगे। जस्टिस चंद्रचूड़ के बाद जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। उनका कार्यकाल करीब 6 महीने का होगा। जस्टिस संजीव खन्ना 13 मई 2025 तक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कुर्सी पर रहेंगे।
कौन हैं जस्टिस संजीव खन्ना?
14 मई 1960 को जन्में जस्टिस संजीव खन्ना (Who is Justice Sanjiv Khanna) मूल रूप से दिल्ली के ही रहने वाले हैं। उनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई दिल्ली के मशहूर मॉडर्न स्कूल से हुई। फिर साल 1980 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इसके बाद डीयू के कैंपस लॉ सेंटर में लॉ में एडमिशन ले लिया। वकालत की पढ़ाई के बाद जस्टिस खन्ना ने साल 1983 में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में रजिस्ट्रेशन कराया और प्रैक्टिस शुरू की। शुरुआती दिनों में तीस हजारी कोर्ट और साकेत कोर्ट में प्रैक्टिस किया करते थे। फिर दिल्ली हाई कोर्ट शिफ्ट हो गए। पब्लिक लॉ से लेकर डायरेक्ट टैक्स और इनकम टैक्स के विशेषज्ञ माने जाने वाले जस्टिस संजीव खन्ना ने दिल्ली सरकार के पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के तौर पर भी तमाम मुकदमे लड़े। इसके अलावा इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से भी 7 साल तक स्टैंडिंग काउंसिल के तौर पर काम किया। साल 2004 में उन्हें दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट में अपना स्टैंडिंग काउंसिल अप्वॉइंट किया।
वकील से पहुंचे जज की कुर्सी तक
जस्टिस संजीव खन्ना को 24 जून 2005 को पहली बार दिल्ली हाई कोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया। फिर अगले साल 20 फरवरी 2006 को उन्हें परमानेंट जज नियुक्त कर दिया गया। करीब 13 साल हाईकोर्ट में बिताने के बाद 12 दिसंबर 2018 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई वाले सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Collegium) कॉलेजियम ने जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफारिश की और केंद्र सरकार ने इसे मंजूर कर लिया। इसके बाद 18 जनवरी 2019 को वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कभी भी मुख्य न्यायाधीश के रूप में किसी उच्च न्यायालय का नेतृत्व नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत होने से पहले वह दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।
पिता और चाचा दोनों रह चुके हैं जज
जस्टिस संजीव खन्ना के पिता जस्टिस देवराज खन्ना भी जज थे। वह दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे। इसके अलावा उनके चाचा जस्टिस हंसराज खन्ना भी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहे हैं। जस्टिस हंसराज खन्ना ने ‘ADM जबलपुर VS शिवाकांत शुक्ला’ केस में बहुमत से अलग फैसला दिया था। इस मुकदमे को हैबियस कॉर्पस केस के नाम से भी जानते हैं। जस्टिस संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर अपना पहला दिन उसी कोर्ट रूम से शुरू किया, जहां से उनके चाचा, दिवंगत न्यायमूर्ति एच।आर। खन्ना आखिरी बार सेवानिवृत्त हुए थे। यह एक दुर्लभ संयोग था।
जस्टिस संजीव खन्ना के मशहूर फैसले
सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस संजीव खन्ना 22 मई 2023 तक 354 से ज्यादा बेंच का हिस्सा रहे थे। जबकि 93 जजमेंट सुनाए थे। जस्टिस संजीव खन्ना के कई जजमेंट मशहूर रहे हैं। 2024 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्डम को असंवैधानिक घोषित किया। जस्टिस खन्ना भी इस बेंच का हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि अगर डोनेशन बैंकिंग चैनल के माध्यम से किया जाता है, तो दानदाताओं की गोपनीयता का अधिकार नहीं बनता। उन्होंने आर्टिकल 370 पर भी मशहूर फैसला दिया। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 विषम संघवाद की एक विशेषता थी और यह संप्रभुता का संकेत नहीं था। इसके हटाने से संघीय ढांचे पर कोई असर नहीं पड़ता। यथोक्त के आलोक में आपने देखा होगा कि जस्टिस संजीव खन्ना ने किस प्रकार छलांग मारकर सुप्रीम कोर्ट के सी जे आई बनने का गौरव प्राप्त किया है। अब यह देखना शेष है कि उनके कार्यकाल में न्याय प्रणाली को किस हद तक निभाया जाएगा। उनके मशहूर फैसलों को तो देखकर उन्नत भविष्य की आशा की जा सकती है।
वरिष्ठ कवि/लेखक/आलोचक तेजपाल सिंह तेज एक बैंकर रहे हैं। वे साहित्यिक क्षेत्र में एक प्रमुख लेखक, कवि और ग़ज़लकार के रूप ख्यातिलब्ध है। उनके जीवन में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिन्होंने उनको जीना सिखाया। उनके जीवन में अनेक यादगार पल थे, जिनको शब्द देने का उनका ये एक अनूठा प्रयास है। उन्होंने एक दलित के रूप में समाज में व्याप्त गैर-बराबरी और भेदभाव को भी महसूस किया और उसे अपने साहित्य में भी उकेरा है। वह अपनी प्रोफेशनल मान्यताओं और सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा सजग रहे हैं। इस लेख में उन्होंने अपने जीवन के कुछ उन दिनों को याद किया है, जब वो दिल्ली में नौकरी के लिए संघर्षरत थे। अब तक उनकी दो दर्जन से भी ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार (1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से भी आप सम्मानित किए जा चुके हैं। अगस्त 2009 में भारतीय स्टेट बैंक से उपप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर आजकल स्वतंत्र लेखन में रत हैं।