Чтобы войти на Кракен сайт, рекомендуется использовать Tor браузер и проверенную ссылку. Переходите по адресу bhr-q.com и будьте уверены в своей анонимности и безопасности.

अगर शिक्षा महँगी होगी तो कौन पढ़ पाएगा

अगर शिक्षा महँगी होगी तो कौन पढ़ पाएगा

चुनावी मौसम में सांसद, विधायक और मंत्री तक बड़े-बड़े वादे करते हैं। वोट के लिए जनता को हर संभव झांसा देते हैं। वादों के नाव पर नेता चुनावी वैतरनी तो पार कर जाते हैं, लेकिन जनता मंझधार में फंस कर रह जाती है। यहां तक कि समस्याओं के समाधान के लिए जनता अधिकारियों तक का चक्कर काटती रह जाती है। सूचना का अधिकार और लोक शिकायत निवारण अधिनियम का भी जनता को लाभ नहीं मिल पाता है। कैसा हो हमारा सांसद, हमारी समस्याओं का समाधान कैसे हो और क्या है वोटरों की समस्या? चुनाव होने के बाद राष्ट्रवाद, आतंकवाद पर प्रहार, भ्रष्टाचार मुक्त भारत और रोजगार जैसे राष्ट्रीय मुद्दे उठाने के  लिए जनता किसके दरवाजे पर जाए? ऐसे सवाल जनता को बौने बनाए रहते हैं। चुनावी सभाओं में  शिक्षा, स्वास्थ्य, जातिवाद, भ्रष्टाचार, अपराध और बेरोजगारी जैसे सदाबहार मुद्दों पर नेतागण  बेबाकी से अपनी राय तो रखते हैं, किंतु चुनाव होने के बाद सब धरे के धरे रह जाते हैं। लगातार बढ़ रहे अपराध, बेरोजगारी और शैक्षणिक गिरावट निरंतर बढ़्ती ही जा रही है किंतु शासन और प्रशासन मूकदर्शक बने जनता को चिढाते रहते हैं।  अशिक्षा, गरीबी, व भ्रष्टाचार तीनो क्षेत्रो में सरकार को काम करनें की महती आवश्यकता हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरंत बाद का समय था कि शिक्षा की अलख जगाने के लिए, गांव-गांव शिक्षक घूमते थे और ग्रामीणों से सीधा संवाद करते थे। गांव के छोटे-छोटे बच्चे उन्हें देखकर उनके पीछे-पीछे चलने लगते थे।  विदित हो कि शिक्षा एक व्यापक माध्यम है, जो छात्रों में सीखने के सभी अनुभवों का विकास करता है। शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली एक सामाजिक प्रक्रिया है। शिक्षा के ज़रिए, मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास होता है और उसके ज्ञान, कला-कौशल में वृद्धि होती है।  शिक्षा से व्यवहार में बदलाव आता है और व्यक्ति सभ्य, सुसंस्कृत, और योग्य नागरिक बनता है। शिक्षा के बिना मानव जीवन अधूरा होता है। शिक्षित व्यक्ति समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होता है।

बच्चों के लिए मुख्य रूप से तीन तरह की शिक्षा होती है – औपचारिक, अनौपचारिक, और गैर-औपचारिक। किंतु आजकल समाज के गरीब/निरीह और आर्थिक रूप से पिछ्ड़े समाज के लिए शिक्षा के दरवाजे जैसे निरंतर बन्द किए जा रहे हैं। सरकारी स्कूल बन्द किए जा रहे हैं और प्राइवेट स्कूल की संख्या बराबर बढ़ती  ही जा रही है। लोकतंत्र में कभी ऐसा भी होगा, किसी ने संभावना भी नहीं की होगी। लोकतंत्र को तो जनता का शासन कहा जाता है। लोकतंत्र सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें नागरिक सरकार में अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए पात्र होता है। इसके अलावा, यह नागरिक को कानून बनाने में अपनी आवाज़ उठाने का अधिकार देता है। जबकि दूसरी ओर, तानाशाही सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें पूरी शक्ति एक ही व्यक्ति यानी तानाशाह के हाथ में होती है। क्या ये मान लिया जाए  – हमारा देश तानाशाही शासन व्यवस्था की ओर अग्रसर है?

स्क्रीनशॉट 2024 10 05 133944

यूडीआईएसई (UDISE) की साल 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 50 हजार से अधिक सरकारी स्कूल बंद हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों की संख्या 2018-19 में 1,083,678 से गिरकर 2019-20 में 1,032,570 हो गई। यानी कि देशभर में 51,108 सरकारी स्कूल कम हुए हैं। अगर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार की बात करें तो उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों की संख्या में 26,074 स्कूलों की गिरावट देखी गई। साल 2018 में सितंबर में यहां स्कूलों की संख्या 163,142 थी जो सितंबर 2020 में घटकर 137,068 हो गई। जबकि मध्य प्रदेश में स्कूलों की संख्या में 22,904 स्कूलों की गिरावट देखी गई। यहां पर सितंबर 2018 में स्कूलों की संख्या 122,056 थी जो सितंबर 2020 में घटकर 99,152 हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक बिहार और बंगाल दो ऐसे राज्य हैं जहां सबसे ज्यादा प्राइवेट स्कूलों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी गई है। बता दें कि UDISE, स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट की एक यूनिट है जो हर साल स्कूलों से संबंधित डेटा उपलब्ध कराती है।

2014 मे BJP के सत्ता मे आने के बाद से पूरे देश मे 72000+ सरकारी स्कूल बंद किए गए है और 12000 प्राइवेट स्कूल खोले गए है। ये मानते है सरकारी स्कूल कभी ठीक नही हो सकते और इन्हे बंद कर देना चाहिए।भारत में कितने प्राइवेट स्कूल हैं? ये आंकड़े 2021-22 के हैं।  वहीं देश में कुल स्कूलों की संख्या पर नजर डालें तो राज्य शिक्षा मंत्री जयन्त चौधरी द्वारा संसद में दी गई जानकारी के मुताबिक, हमारे देश में 10,32,570 सरकारी और 337499 प्राइवेट स्कूल हैं। साल 2014 से अब तक देश में 61,361 सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं।  हालांकि, कुछ राज्यों में सरकारी स्कूलों की संख्या बढ़ी भी है।  जैसे, बंगाल में सरकारी स्कूलों की संख्या 82,876 से बढ़कर 83,379 हो गई है और बिहार में 72,590 से बढ़कर 75,555 हो गई है।  वहीं, हरियाणा सरकार ने कुछ स्कूलों को बंद करने का फ़ैसला किया है।  सरकार ने इन स्कूलों को बंद करने का तर्क दिया है कि इनमें पढ़ने वाले बच्चों की संख्या कम है या फिर स्कूल में बच्चों की संख्या महज़ 20 है या उससे कम। साल 2021-22 में हुई गणना के मुताबिक, भारत में कुल स्कूलों की संख्या 10,22,386 सरकारी और 3,35,844 प्राइवेट थी। 

स्क्रीनशॉट 2024 10 05 135154

अक्तूबर 2024 : डा. लक्षमण यादव के एक हालिया विडियो में सवाल उठाया है –  सरकारी स्कूल क्यों बंद किए जा रहे?  शिक्षा अगर महँगी होगी तो कौन पढ़ पाएगा? वीडियो में उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के बारे में बताया गया है। जिन बच्चों को उनकी क्लास में नहीं जाने दिया उनके बारे में स्कूल प्राधिकरण ने बताया कि ये वो बच्चे हैं जिनकी फीस नहीं भरी गई है। उनको आज  गेट से बाहर निकाल दिया है। एक निजी स्कूल का प्रशासक कई छात्रों को स्कूल में प्रवेश करने से रोकता है। वह उन्हें गेट के बाहर धूप में बैठाता है। वह उन्हें डांटता है और अपमानित करता है। इतना ही नहीं स्कूल प्रशासक उन बच्चों की वीडियो भी बनाता है और उसे वायरल कर देता है। वीडियो में  बच्चे अपना चेहरा छुपा रहे हैं। अगर आप 2024 के भारत की इस तस्वीर में थोड़े भी संवेदनशील हैं तो अंदर से हिल जाएंगे।  वह प्राइवेट स्कूल की फीस के लिए छात्रों को बाहर बैठा रहा है।

एक तरफ यह खबर कि 50 से कम छात्र होने पर सरकारी स्कूलों को  बंद कर दिया जाएगा, सुनने में बहुत तार्किक लगेगी, लेकिन इसके पीछे सरकार ने एक और नियम बनाया है, जिसके बारे में शायद आपको पता न हो। वो नियम इस नई शिक्षा नीति के माध्यम से स्कूलों में दाखिले का स्वरूप बदल दिया गया है। प्राथमिक विद्यालयों में 5 साल के बच्चों के दाखिले की अवधि अब 6 साल कर दी गई है। तो जब आप एडमिशन क्राइटेरिया बढ़ाएंगे तो इसका असर छात्रों के नामांकन पर भी पड़ेगा। और ये आपको बताया नहीं जाएगा। तो फिर स्कूल में छात्र दाखिला क्यों नहीं ले पा रहे हैं? या फिर संख्या क्यों कम होती जा रही है? सरकार को इसकी चिंता नहीं है। सरकार भी इसे एक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रही है कि अगर 50 से कम छात्र हैं तो स्कूल बंद कर दो। और इन बच्चों को बगल के स्कूल में भेज दो। अब यदि किसी स्कूल से 40-48 बच्चे बगल के स्कूल में भेज दिए जाएं, तो क्या वो 48 बच्चे वहां पढ़ेंगे? क्या स्कूल घर से दूर होगा? क्या दूसरे स्कूल में भेजे गए बच्चों के सामने कुछ और नई समस्याएं न होंगी? क्या आपके बच्चे स्कूल से और दूर नहीं हो जाएंगे?  ये नियम वो सरकार बना रही है जिसे आपने अपने बच्चों के लिए चुना है।

बजट 2024-25: शिक्षा के लिए अपर्याप्त आवंटन एनईपी लक्ष्यों को विफल करता है : एनईपी 2020 दस्तावेज़ में शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 6% आवंटित करने का आह्वान किया गया है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का 3% से भी कम खर्च करती हैं। इस पर सवाल उठता है – भारत गरीबों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास क्यों नहीं कर रहा है?  केंद्रीय बजट 2024-25 “अगली पीढ़ी के सुधारों” की थीम पर जोर देता है और चार प्रमुख समूहों पर प्रकाश डालता है: युवा (युवा), महिलाएँ (महिलाएँ), किसान (अन्नदाता), और गरीब (गरीब)। अगली पीढ़ी के लिए सुधारों पर विचार-विमर्श करते समय शिक्षा बजट का विश्लेषण शामिल करना महत्वपूर्ण है।

2024-25 के लिए शिक्षा के लिए अनुमानित बजट ₹1,25,638 करोड़ है। वित्त मंत्री ने अनुमान लगाया है कि भारत का नाममात्र जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) 2024-25 में 326.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा, जिसका अर्थ है कि केंद्र सरकार द्वारा जीडीपी का केवल 0.38% शिक्षा को आवंटित किया जाएगा। शिक्षा भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में आती है, जो दर्शाता है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें दोनों ही शिक्षा नीतियों को बनाने और लागू करने की जिम्मेदारी साझा करती हैं। पहले केवल राज्य सरकारों द्वारा प्रबंधित, यह बदलाव 1976 में भारतीय संविधान में 42वें संशोधन के कारण हुआ, जिसने शिक्षा को समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया।

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद में सामाजिक व्यय का हिस्सा 2017-18 में 6.7% से बढ़कर 2023-24 (बीई) में 7.8% हो गया। हालाँकि, सकल घरेलू उत्पाद में शिक्षा व्यय (ईई) का अनुपात अपरिवर्तित रहा, जो 2.8% से थोड़ा कम होकर 2.7% हो गया। इसके अतिरिक्त, कुल व्यय और सामाजिक सेवाओं में ईई का हिस्सा कम हो गया है। कुल व्यय में, ईई का हिस्सा 2017-18 में 10.7% से घटकर 2023-24 में 9.2% हो गया। इसी तरह, सामाजिक व्यय में इसका हिस्सा 42.4% से घटकर 35.3% हो गया, यानी 7.1 प्रतिशत अंकों की गिरावट। इस बजट में, उच्च शिक्षा विभाग को ₹47,619.77 करोड़ का आवंटन प्राप्त हुआ, जो पिछले वर्ष के बजट अनुमान की तुलना में ₹3,525.15 करोड़ (7.99%) की वृद्धि दर्शाता है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमानित 4.5% की मुद्रास्फीति दर के साथ, वास्तविक वृद्धि दर केवल 3.49% है।

यह आवंटन 2023-24 के लिए ₹57,244.48 करोड़ के संशोधित अनुमान से भी 16.81% कम है। पूंजीगत व्यय में ₹12.52 करोड़ से ₹11.06 करोड़ तक की पूर्ण गिरावट देखी गई। इसी तरह, स्कूली शिक्षा के लिए बजट में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है, 2024-25 के लिए ₹73,008.10 करोड़ का आवंटन किया गया है, जो 2023-24 के बजट अनुमान से 6.11% की वृद्धि (या वास्तविक रूप में 1.61%) और 2023-24 के संशोधित अनुमान की तुलना में मात्र 0.8% की वृद्धि दर्शाता है। शिक्षा मंत्रालय के लिए बजट आवंटन 2024-25 में ₹1.20 लाख करोड़ है, जो 2023-24 के संशोधित अनुमान की तुलना में 7.6% की कमी दर्शाता है, जो NEP (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनुकूल नहीं है। एक ओर, सरकार NEP को देश भर में लागू करने के लिए उत्सुक है, लेकिन दूसरी ओर, यह कम बजट आवंटन इसके सफल कार्यान्वयन के लिए आवश्यक प्रयासों को कमजोर करता है।

समग्र शिक्षा (SS) को स्कूल की प्रभावशीलता को बढ़ाने के व्यापक उद्देश्य से तैयार किया गया था, जिसका मूल्यांकन शिक्षा के लिए समान अवसरों और निष्पक्ष सीखने के परिणामों के संदर्भ में किया गया था। यह तीन पूर्व योजनाओं को एकीकृत करता है: सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए), और शिक्षक शिक्षा (टीई)। 2023-24 के बजट अनुमान की तुलना में इसके लिए आवंटन में केवल ₹146.53 करोड़ की वृद्धि हुई है। इसके अलावा, 2023-24 में एसएस के संशोधित अनुमान में लगभग ₹4,450 करोड़ की गिरावट आई है। कौशल भारत के लिए बजटीय आवंटन में 54.99% की वृद्धि हुई है, जो एक सकारात्मक विकास है। हालांकि, उम्मीद है कि इस आवंटन को पिछले वर्ष की तरह 23.92% तक संशोधित नहीं किया जाएगा। युवा तैयारी, कौशल विकास, आलोचनात्मक सोच और समावेशिता के एनईपी के उद्देश्यों को साकार करने के लिए, शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण निवेश किया जाना चाहिए। पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के बिना, ये महत्वपूर्ण उद्देश्य अधूरे, कमजोर होंगे।

हमारे देश में सामाजिक आंदोलनों के नारे होते थे कि बजट का दसवां हिस्सा शिक्षा पर खर्च होना चाहिए। सबको शिक्षा मिलनी चाहिए, सबको काम मिलना चाहिए, वरना नींद नहीं आएगी। जो सरकार सबको शिक्षा नहीं दे सकती। तो वो  निकम्मी है, ऐसी  सरकार बदलनी होगी। अच्छी शिक्षा के बाद वे बेहतर भविष्य और करियर के सपने देखते होंगे। समय बदल गया है और अब ये सपने सिर्फ अमीर, धनी लोग और राजनेता ही देखते हैं। इसीलिए वे अपने बच्चों को हजारों-लाखों रुपए देकर प्राइवेट स्कूल में दाखिला दिला रहे हैं। फिर उन्हें विदेश में प्राइवेट यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भेज रहे हैं। बड़े गर्व से ट्विटर पर, सोशल मीडिया पर लिखते हैं और शेयर करते हैं कि हमारे बेटे ने या हमारी बेटी ने फलां यूनिवर्सिटी से अमुक  डिग्री हासिल की और अब वो दुनिया के अमुक देश में करोड़ों रुपए के पैकेज पर काम करेगी। कुछ घंटे बीतते हैं और वही नेता आपके बच्चों के लिए कोई हिंदू-मुस्लिम मुद्दा लेकर आ जाता है या फिर कावड़ यात्रा पर फूल बरसाते हुए हेलीकॉप्टर का वीडियो शेयर कर देता है या धर्म को खतरे में बता देता है।

स्क्रीनशॉट 2024 10 05 135205

समाजवादी इस देश में नारे लगाते रहे कि रोटी-कपड़ा सस्ता होना चाहिए, दवा-शिक्षा मुफ़्त होनी चाहिए। तो शिक्षा-चिकित्सा मुफ़्त करने की बात कहाँ है? अस्पतालों में अंतहीन भीड़ है। अगर आप गरीब हैं तो आप लाचार और बेबस होकर अस्पतालों के चक्कर लगाएंगे और अपने लोगों को मरते, रोते और तड़पते देखेंगे। आप अपनी बदकिस्मती पर रोएंगे और फिर किसी धोखेबाज की शरण में चले जाएंगे। क्योंकि आपसे शिक्षा छीन ली गई है। यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि जो प्राइमरी स्कूल बचे हुए थे, उनको किस तरह से नष्ट किया जा रहा है, बर्बाद किया जा रहा है। आपको बहुत सी खबरें पढ़ने को मिलेंगी कि प्राइमरी स्कूल के बच्चे पहाड़ चढ़ना नहीं जानते, अंग्रेजी बोलना नहीं जानते। लेकिन इस देश के समाज की चिंता में आप कभी ये क्यों नहीं देखते कि जिस स्कूल में जाने के लिए सड़क नहीं है, सुरक्षित माहौल नहीं है, स्कूल में बिल्डिंग तक नहीं है, प्राइमरी स्कूल के जरूरी शिक्षक नहीं हैं। इस प्रकार गरीब, कमजोर, शोषित, किसान, मजदूर, दलित, विधवा, महिलाएं अब शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। इस देश में सबको शिक्षा मिलनी चाहिए। इसके लिए योजना बनाई जा रही थी कि प्राथमिक विद्यालय घर से कुछ किलोमीटर दूर होना चाहिए। हम गांव के आखिरी व्यक्ति तक स्कूल पहुंचाएंगे। और अब गांव के आखिरी व्यक्ति के स्कूल में अगर बच्चे कम होंगे तो सरकार उस स्कूल को बंद करके उन्हें दूर के स्कूल में पढ़ने के लिए मजबूर करेगी। यानि सरकार को इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि आपके बच्चे पढ़ते हैं या नहीं।

आपके सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं। कोई चिंतित कहाँ है? और दिल्ली यूनिवर्सिटी, जेएनयू, जामिया, के फंड में कटौती कर दी गई है। वे लोन ले रहे हैं। अगर आप लोन चुका देंगे तो अगली बार आपको लोन मिल जाएगा। अगर आप लोन नहीं चुकाएंगे तो सेल्फ फाइनेंस कोर्स आ जाएंगे। फीस महंगी होगी। और जो फीस दे सकते हैं, उन्हें पढ़ना चाहिए। जो फीस नहीं दे सकते, उनके लिए देश में धर्म पहले से ही खतरे में है। कोई पार्टी में शामिल हो जाए, तो धर्म बच जाएगा, लेकिन शिक्षा नहीं बचेगी, तो क्या होगा? आपके नेता तो हिंदू-मुसलमान करने में मशगूल हैं। बात-बात पर शस्त्र उठाने की बात करते हैं। जाहिर है कि सरकार को आपकी चिंता नहीं है। ऐसे में अगर आप इस शिक्षा व्यवस्था को नहीं बचाएंगे तो आपके बच्चों का भविष्य भी नहीं बचेगा। अगर आप बचा सकते हैं तो अपने बच्चों की कलम और किताब बचाइए। और शिक्षा की चिंता कीजिए ताकि आपके बच्चों का भविष्य बच जाए। अन्यथा आपके बच्चे शिक्षा से दूर होकर या तो बाबाओं के चक्कर में पड़कर पाखण्डी बन जाएंगे या फिर धार्मिक और रानजीति के फुसलाने पर  नुंडे-मवाली बनकर समाज के लिए कोढ़ बन जाएंगे जिसकी आग से हम स्वयं भी नहीं बच पाएंगे।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *