संस्मरण- दीवाल पर टंगे हुए ईश्वर का सत्य
कुछ दिन पहले, मैं अपने एक पुराने मित्र, सेवानिवृत सीनियर क्लास वन अधिकारी से उनके घर पर विमारी हालत में उनसे मिलने गया। बहुत सारे देवी-देवताओं और भगवानो का एक पूरी दिवाल पर सजा हुआ जमावड़ा देखकर तथा उनकी दुखभरी जिन्दगी महसूस कर, बातचीत के दौरान, अनायास ही मेरे मुह से निकल गया कि, आप जिन्दगी भर नास्तिक ही रह गए, कभी कभार सही भगवान् को भी एक आध छण के लिए याद कर लिया करो, हो सकता है कुछ अच्छे दिन लौट आए।
मेरा दोस्त मुझे जानता था कि मैं तथाकथित हिन्दू भगवानों में आस्था और विश्वास नही रखता हूं। आश्चर्य से बोले यह तुम कह रहे हो! अरे मैं तो बचपन से लेकर आजतक, दुर्गा जी का भक्त रहा हूं।, पूरी लगन से पूजा -पाठ करते आ रहा हूं और मुझे, तुम नास्तिक कह रहे हो?
मैंने कहा, ‘हां, मै सही कह रहा हूं’।
आप को किसने कहा कि दुर्गा जी चमत्कारी देवी और पालनहार है? अभी तक तो उनके परिवार खानदान का पता नहीं चला है, यहां तक कि उनकी पैदाइश पर भी प्रश्न उठ रहे हैं? क्या आप ने विश्व के किसी महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धार्मिक या भारत के महान विचारक, विद्वान बाबा साहब के मुंख से कभी सुना है कि दुर्गा जी एक साक्षात पालनहार देवी हैं?
नहीं, कभी नही सुना। फिर किससे सुना? उत्तर था, बचपन में गांव के पंडित जी से।
मान लीजिए कि आप को भूख लगी है और किसी नें कह दिया कि, जाओ उस मकान के बाथरूम में खाना रखा हुआ है, लेकर खा लेना। आप वहां गए और बाथरूम में खाना ढूंढने में लग गए। निराशा हुई। आप को किसी चालाक धोखेबाज नें कह दिया और बिना सोचे-समझे, अंधभक्ति में आप नें मान लिया कि बाथरूम में खाना मिलेगा? तर्क तो आप को करना ही पड़ेगा, बुद्धि तो लगानी ही पड़ेगी, कि खाना बाथरूम में कैसे मिलेगा? पहले तो कहने वाले के विश्वास को आप को तोड़ना पड़ेगा और फिर किचेन में अपनी बुद्धि से खाना ढूंढना पड़ेगा, तभी आप की भूख मिटेगी। अन्यथा भूखे पेट रह जाओगे।
ऐसे ही पहले भगवान् को पूरे विश्व के परिप्रेक्ष्य में जानिए, समझिए, परखिए, महसूस कीजिए, तभी मानिए। अन्यथा आप किसी भी पत्थर-फोटो की अज्ञानता में पूजा -पाठ करते आ रहे हैं, तो आप सही मायने में नास्तिक ही हुए।
माफी चाहता हूं, सिर्फ आप ही नही, 98% हिन्दू अनजाने में नास्तिक ही होता है। बिना जानकारी लिए किसी की भी, जैसे गोबर के गौरी-गणेश, पेड़ पौधे, नदी-नाले, पशु-पक्षी और इनकी फोटो मूर्ति आदि तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की पूजा-पाठ करता रहता है, किसी से भी मनचाहा फल और सन्तुष्टि न मिलने पर, एक दूसरे को जिन्दगी भर बदलता रहता है। ऐसे ही जगह-जगह भटकता और ढूंढता रहता है। मरते समय तक उसे कभी मिलता भी नहीं है। यदि आजतक किसी एक को भी पूजा-पाठ करने से भगवान मिला हो और उसे मनचाहा फल दिया हो तो, उनमें से किसी एक का भी नाम बताइए। उनसे मैं मिलना चाहूंगा।
उनका प्रश्न था? फिर भगवान् कौन है और कहाँ है?
देखिए पूरे विश्व के महान विचारक, विद्वान, वैज्ञानिक और दार्शनिक लोगो नें किसी वस्तु, पदार्थ या इन्सान के रूप में भगवान् के अस्तित्व को नकारा है।
एक शक्ति, या ताकत जो प्रकृति या नेचर के रूप में है, जिससे पूरा ब्रह्मांड संचालित होता है। पृथ्वी और चंद्रमा द्वारा सूर्य की परिक्रमा में, यदि एक माइक्रो सेकंड का भी संतुलन बिगड़ जाए तो, पृथ्वी पर कोई जीव जन्तु, बनस्पति, यहां तक की तथाकथित आप के भगवान् भी नही बचेंगे। इसी शक्ति को गाड, ईश्वर या भगवान् के रूप में पूरे विश्व में माना गया है।
यही नहीं, यह भी ध्यान रखिए कि आजकल के सीसीटीवी कैमरे की तरह , वह शक्ति आप के हर अच्छे -बुरे, कर्मो की हर समय निगरानी रखती है और आप के अच्छे -बुरे कर्मो का परिणाम भी आप को मिलता है।
अब भाई साहब कुछ असमंजस में पड़ गए, मैंने उन्हें हिदायत देते हुए कहा कि, भगवान् के बारे में कुछ और जानकारी लेना है तो, हमारी लिखी पुस्तक मानवीय चेतना जो आनलाइन उपलब्ध है के ‘गाड, भगवान् और ईश्वर’ पाठ का अध्ययन कर लीजिएगा।
खुशी की बात यह है कि कुछ दिनों बाद पता चला कि, उन्होंने दुर्गा जी के साथ-साथ सभी दिवाल पर सजे भगवानों को जल-प्रवाह कर दिया और भगवान् नाम के भूत से मुक्त हो गए। उन्होंने मुझे शुक्रिया व आभार भी व्यक्त किया।
एक फरवरी 1951 को चंदौली, उत्तर प्रदेश में जन्म। मंडल अभियंता एमटीएनएल मुम्बई से सेवा निवृत्त, वर्तमान में नायगांव वसई में निवास कर रहे हैं।
टेलीफोन विभाग में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए, आप को भारत सरकार से संचार श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। नौकरी के साथ साथ सामाजिक कार्यों में इनकी लगन और निष्ठा शुरू से रही है। 1982 से मान्यवर कांशीराम जी के साथ बामसेफ में भी इन्होंने काम किया।
2015 से मिशन गर्व से कहो हम शूद्र हैं, के सफल संचालन के लिए इन्होंने अपना नाम शिवशंकर रामकमल सिंह से बदलकर शूद्र शिवशंकर सिंह यादव रख लिया। इन्हीं सामाजिक विषयों पर, इन्होंने अब तक सात पुस्तकें लिखी हैं। इस समय इनकी चार पुस्तकें मानवीय चेतना, गर्व से कहो हम शूद्र हैं, ब्राह्मणवाद का विकल्प शूद्रवाद और यादगार लम्हे, अमाजॉन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।