डरे हुये बादशाह ने फिर शुरू किया है घृणा का कारोबार
लोकतन्त्र में खतरनाक होता है किसी प्रधानमंत्री का बादशाह में बदल जाना, खतरनाक होता है प्रधानमंत्री से बादशाह में बदलने के बाद तानाशाह हो जाना पर सबसे ज्यादा खतरनाक होता है तानाशाह का डर जाना। जब प्रधानमंत्री से तानाशाह बने व्यक्ति पर सत्ता जाने का भय कायम हो जाता है तब वह देश में बिघटन और सामाजिक समरसता में फूट डालने के लिए घृणा की शाखा लगाना शुरू कर देता है।
तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया स्पीच इसी घृणा की बानगी है। जिसमें वह कांग्रेस पर हमला बोलने के क्रम में एक बार फिर से हिन्दू-मुस्लिम के बीच घृणा की दीवार ऊंची करने में लग गए हैं। वैसे तो हर चुनाव में वह किसी ना किसी रूप में हिन्दू-मुस्लिम विभेद को आगे लेकर जाते रहे हैं पर इस बार उन्हें शुरुआती उम्मीद थी की राम मंदिर निर्माण के उत्साह में हिन्दू जनता अपने निजी सरोकार के मुद्दे भूलकर उन्हें एकतरफा वोट करेगी, पर लोकसभा चुनाव में जनता आस्था और राजनीति को अलग रखकर, जब चुनाव को अपने भविष्य के दृष्टि से देखने लगी तो प्रधानमंत्री के मन में कहीं ना कहीं यह डर पैदा हो गया कि पिछले दस सालों से धर्म के सहारे चुनावी समर पार करती हुई एनडीए की नाव कहीं 2024 के भंवर में ना उलझ जाय।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ की चुनावी रैली में जिस तरह का बयान दिया है और उससे पहले भी वह राजस्थान की चुनावी रैली में भाषण देते हुये इसी विभेद और घृणा से भरी हुई भाषा का प्रयोग कर चुके हैं। नरेंद्र मोदी ने अलीगढ़ और राजस्थान की चुनावी रैली में कहा था कि सत्ता में आने पर कांग्रेस देश की संपत्ति लोगों से छीनकर घुसपैठियों और अधिक बच्चे पैदा करने वालों को बांट देगी। प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित किसी व्यक्ति द्वारा इस तरह का वक्तव्य देना निहायत ही गरिमाहीन है। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम के बीच घृणा को बढ़ाते हुये यहाँ तक कहा कि कांग्रेस अगर सरकार में वापस आएगी तो वह हमारी माताओं बहनो का मंगलसूत्र छीन लेगी। यह हमारी माता-बहन के रूप में हिन्दू महिलाओं की बात कर रहे थे।
उनके इस वक्तव्य से साफ जाहिर होता है कि वह भारतीय संविधान की गरिमा का भी सम्मान नहीं करते बल्कि संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना का उपहास उड़ाते हैं। इस तरह के घृणा फैलाने वाले भाषण पर चुनाव आयोग को कडा रुख अपनाना चाहिए। उनके इस भाषण की जितनी आलोचना की जाये कम है। पर दुर्भाग्यपूर्ण है की देश का अधिकतर मुख्यधारा का मीडिया उनके इस आपत्तीजनक भाषण को लेकर चुप है।
इस भाषण को सुनने के बाद इंडिया टुडे और टाइम पत्रिका में प्रकाशित उनका कवर फोटो बरबस याद आ जाता है जब सन 2002 में मई अंक में उनकी तस्वीर के साथ इंडिया टुडे ने लिखा था ‘घृणा के नायक’ या फिर अमेरिकी पत्रिका टाइम ने सन 2019 के मई अंक में उन्हें अपनी कवर पर छपते हुये लिखा था ‘इंडियाज़ डिवाइडर इन चीफ’ । फिलहाल कट्टर हिन्दुत्व के बल पर सत्ता की सवारी करने के बाद उनकी जुबान से झूठ भले ही खूब निकलता रहा हो पर धार्मिक घृणा मन में जितनी भी रही हो पर जुबान में कुछ कम हुई थी। 2024 के चुनाव में एक बार फिर वह अपने उसी पुराने रंग में रंगते नजर आ रहे हैं।
अपने चुनावी भाषण में वह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भाषण का जिक्र भी तोड़-मरोड़ कर इस तरह से कर रहे हैं जिससे हिन्दू समाज को मुस्लिम समाज के खिलाफ भड़का सकें। इतना ही उन्होंने कांग्रेस के घोषणा पत्र को भी मुस्लिम लीग का घोषणापत्र कहा है। यह महज शब्द भर नहीं हैं बल्कि यह वह टूल हैं जिनके नीचे प्रधानमंत्री अपनी असफलताओं को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं और देश की धर्मनिरपेक्ष विरासत को एक बार फिर से लहू-लुहान करना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री का इस तरह का भाषण पूरी तैयारी के साथ सामने आ रहा है। निःसन्देह खुद को दुनिया का सबसे बड़ा नेता बताने वाला नेता चुनावी मोड में डरा हुआ है। उसका खुद पर बना यकीन दरक रहा है। तमाम भक्त समूह का सामूहिक जयघोष भी उन्हें अब यह विश्वास नहीं दिला पा रहा है कि वह सत्ता में पुनर्वापसी कर रहे हैं। मंच पर भाजपा और एनडीए के नेता भले ही 400 पार का नारा दे रहे हैं पर कहीं ना कहीं भाजपा इस चुनाव में अपना आत्मविश्वास खो चुकी है। प्रधानमंत्री का यह डर खतरनाक हो सकता है। वह किसी भी कीमत पर हार नहीं चाहेंगे। जीत के लिए उनके पास हमेशा अपना गुजरात मॉडल रहा है। यह गुजरात मॉडल किसी विकास का मॉडल नहीं है बल्कि यह विभेद, घृणा और हिंसा का मॉडल है। इस मॉडल के दम पर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता की सीढ़ी चढ़े थे। इसी मॉडल के बल पर उन्होंने अपनी एक छवि निर्मित की थी।
फिलहाल मोदी का जादू जो 2014 से देश कि धर्म भीरु जनता के मन में बना था वह अब दरक रहा है। जिस कुर्सी पर वह पिछले दस साल से कायम हैं उस पर कहीं न कहीं बड़ा खतरा उन्हें दिख रहा होगा ऐसे में वह धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अनायास ही प्रधानमंत्री इस तरह की बयानबाजी नहीं करेंगे।
मोदी की इस तरह की बयानबाजी को लेकर चुनाव आयोग में भी शिकायतें की जा रही हैं। प्रधानमंत्री पर चुनाव आयोग किसी तरह की कार्यवाही करेगा इसकी उम्मीद करना वैसे तो बेमानी है पर इस तरह की अमर्यादित और विभेदपूर्ण टिप्पणी पर न्यूनतम अंकुश लगाकर वह अपनी शाख बचा सकता था पर स्थिति यह है सभी सरकारी संस्थाएं पिछले दस साल में भाजपा के टूल में बदल गई हैं।
प्रधानमंत्री के इस तरह के बयान को लेकर भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने तो यहां तक पोस्ट कर दिया कि, “यह साफ हो गया है कि कांग्रेस देश के गरीबों और हाशिए के लोगों की संपत्ति छीन लेगी और उन्हें अल्पसंख्यकों को बांट देगी।”
भाजपा अपनी इस तरह की धार्मिक विभेदकारी बयानबाजी से भले ही कांग्रेस या अन्य विपक्षी पार्टियों को चुनावी हार देने कि कोशिश करले पर प्रधानमंत्री की भाषा से यह तो स्पष्ट हो चुका है कि इस बार भाजपा को कहीं न कहीं बडी हार का डर सता रहा है।
इलेक्टोरल बॉन्ड के खुलासे के बाद मोदी के जादू का जिन्न वापस बोतल में घुस चुका है। पहले चरण का कम मतदान प्रतिशत भी भाजपा को डरा रहा है। यह चुनाव धार्मिक रंग से इतर यदि जनता के हित के मुद्दों पर फोकश रहा तो निश्चित रूप से भाजपा के लिए गहरे सदमे वाला चुनाव साबित हो सकता है।
दो दशक से पत्रकारिता, रंगमंच, साहित्य और सिनेमा से सम्बद्ध। न्याय तक के संपादक हैं।
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