एएमयू का ‘अल्पसंख्यक संस्थान’ का दर्जा बरकरार रहेगा
उत्तर प्रदेश में पहले मदरसा और अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, दोनों ही मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है। जिस तरह से दोनों ही मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अल्पसंख्यक समाज के हितों के खिलाफ फैसला सुनाया था उसने अल्पसंख्यक समाज को यह सोचने पर विवश किया है कि क्या उत्तर प्रदेश की न्यायपालिका का चेहरा भी सांप्रदायिक रंग से रंग रहा है। इस बात को तब और बाल मिल जाता है जब सुप्रीम कोर्ट को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ आदेश देना पड़ता है।
ताजा मामले में उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसख्यंक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुना दिया है। अदालत ने कहा कि एएमयू का ‘अल्पसंख्यक संस्थान’ का दर्जा बरकरार रहेगा। 7 जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है। इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2006 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से ही इनकर दिया था। एएमयू प्रशासन ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। इसके साथ ही तत्कालीन यूपीए सरकार ने भी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। इस बीच साल 2016 में राज्य सरकार ने याचिका वापस लेने का निर्णय लिया था।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्याल के अल्पसंख्यक दर्जा का मामला साल 1967 में सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था। मामले में 5 जजों की बेंच ने सुनवाई की थी। सुनवाई के दौरान विश्विद्याल प्रशासन ने अदालत के सामने यह तर्क दिया था कि सर सैयद अहमद खान ने एएमयू को बनाने के लिए एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने यूनिवर्सिटी बनाने के लिए चंदा इकट्ठा किया था। विश्विद्याल प्रशासन ने कहा कि अल्पसंख्यकों की कोशिशों से ही यूनिवर्सिटी का निर्माण हुआ, ऐसे में यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाना चाहए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सर सैयद अहमद खान और उनकी कमेटी ब्रिटिश सरकार के पास गई थी। ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाकर विश्विद्याल को मान्यता दी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे में यूनिवर्सिटी न तो मुस्लिम समुदाय ने बनाया न ही चलाया। ऐसे में एएमयू को अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी का दर्जा नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों के साथ ही एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा छीन लिया था।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एएमयू का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा छीनने के 13 साल बाद यानी साल 1981 में केंद्र सरकार ने एएमयू एक्ट के सेक्शन 2(1) में संशोधन किया और एमएयू के अल्पसंख्यक दर्जे को बहाल कर दिया। कानून में एएमयू को अल्पसंख्य दर्जा देने को लेकर पूरी व्यख्या की गई है। इसमें कहा गया है कि एएमयू से पहले मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की शुरुआत की गई थी। बाद में इसे चलाने वाली कमेटी द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्विविद्यालय बनाने के लिए योजना तैयार की गई। ऐसे में यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि एएमयू का ‘अल्पसंख्यक संस्थान’ का दर्जा बरकरार रहेगा। यह फैसला सुनाते हुए संविधान के अनुच्छेद 30 का जिक्र किया। कोर्ट ने कहा कि किसी भी धार्मिक समुदाय को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के साथ उसे चलाने का अधिकार है।
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