बिहार भूमि सर्वे की समस्या: पुरखों की जमीन के कागजात गायब, बढ़ी बुजुर्गों की पूछ ताछ
बिहार जमीन सर्वे पुरखों के जमीन फाइल गायब आपको बताते हैं कि बिहार के अलग-अलग जिले में इस समय जमीन सर्वे का काम बहुत तेजी से चल रहा है जो कि इस सर्वे के समय जमीन के फाइल की खोज में आम लोग बहुत ज्यादा परेशान हो रहा है खास करके वह लोग जिनका जमीन पुरखों के नाम पर है अब पुराना जमीन का रिकॉर्ड गायब हो गया है लेकिन इसका नतीजा यह है कि सर्वे के समय फाइल के खोजबीन के लिए लोग जगह-जगह भटक रहा है हालात इतने खराब हो गए हैं कि गांव के जो बुजुर्ग है उनकी पूछताछ अचानक बढ़ रही है।
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आपके बिहार में जमीन के सर्विस से जुड़े बहुत सारी परेशानियां बढ़ती जा रही है जयपुर को की जमीन है वह फाइल गायब हो गई है जिससे क्यों की चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई है कई गांव में तो लोगों को अपने हिस्से की जमीन के मिल पा रही है ऐसे न केवल कहासुनी बढ़ रहा है बल्कि भविष्य में संपत्ति को लेकर भी बहुत सारी दिक्कतें आ रही है इस स्थिति में सुधार की जरूरत है ताकि बुजुर्गों और उनके परिवारों को उनकी जमीन का हक सही ढंग से मिल सके और उन्हें कानूनी सुरक्षा भी मिल सके।
जमीन के पुराने रिकॉर्ड की तलाश में जुटे किसान
आपको बता दें की मधुबनी जिले के किसान दीपक की कहानी अभी कुछ ऐसे ही है दीपक अपनी पुश्तैनी जमीन पर कब्जा कर लिए हैं लेकिन जब तक शर्मा के लिए फाइल की बारी आए तो उन्हें पता चलता है कि जो उनके पुरखों की जमीन है उसका रिकॉर्ड कहीं नहीं मिल रहा है उनका करना याद था कि उन्होंने राजा कर्मियों से लेकर के जिला अभिलेख घर तक हर जगह को फाइल की खोज के लेकिन अब तक कुछ भी उनके पास नहीं आया उनके जमीन के जमाबंदी उनके दादा या पर दादा के नाम पर चल रहा था लेकिन अब उनके पिता के मृत्यु के बाद यह काम उनके ऊपर आ गया था। और पिछले कुछ दिनों से जमीन के पेपर की खोज में है ताकि सही समय पर सर्वे में पेपर को दिखा सके।
पुराने खतियान से पहचान में आ रही समस्या
नाजीपुर गांव में रहने वाले एक अनिल कुमार भी ऐसे ही परेशानी का सामना कर रहे थे जिनका जमीन उनके दादा या पर दवा के नाम पर था लेकिन समय के साथ आसपास की जमीन के जो मालिक है और लंबाई चौड़ाई में नाम बदल गया है पुराने खतौनी में भी जमीन के जो सीमा और मालिकाना दर्द है उनका आपकी हालत में कोई भी मिल नहीं है ऐसे में जमीन की पहचान और फाइल के मिलन में बहुत मुश्किल आ रही है पागल करता है कि मैं बाहर नौकरी करते हैं इस वजह से ज्यादा समय की छुट्टी लेकर अपने पुश्तैनी गांव में रहकर इस काम को पूरा नहीं कर सकते हैं यह कहते हैं कि मेरे लिए मुमकिन नहीं है।
अभिलेखागार में भी दस्तावेज़ों की कमी
आपके बिहार के कई जिला में जमीन के पुराने रिकॉर्ड ना तो राजस्व कर्मचारियों के पास और ना ही जिला अभिलेखागार में सुरक्षित है मधुबनी के राय का प्रखंड के किसान सुमन का यह कहना है कि उनके गांव के खतौनी अभिलेखों में नहीं मिल रहा है जब राजस्व कर्मचारी और जिला अभिलेखागार में फाइल की प्राप्ति नहीं है तो ऐसे में जमीन के मालिक के पास कोई भी ऑप्शन नहीं बचता है जिससे कि इस में दरभंगा या फिर अन्य प्रमुख केदो से अभिलेख को सर्च करवाए।
दरभंगा में दस्तावेज़ों की भीड़ और परेशानी
आपको बता दे की दरभंगा जिले अभिलेखागार मैं भी इतनी जल्दी भी बढ़ गई है कि वहां पर जमीन से जुड़े पेपर हो ताकि करने में भी 15 दिन से ज्यादा का समय लग जा रहा है हरलाखी खीरहर क्योंकि सामने और बासोपट्टी के बाबुल ने बताया है कि दरभंगा में फाइल को दाखिल करने के लिए बहुत बड़ी कारों में लग रहा लगना पड़ रहा है एक छोटा सा काम भी करवाने में बहुत ज्यादा समय लग रहा है इस परिस्थितियों में जमीन के असली फाइल को इकट्ठा करना और उन्हें सर्वे में पेश करना बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है।
बुजुर्गों की बढ़ी पूछ-परख
जमीन सर्वे के समय सबसे दिलचस्प बात यह है कि आपके गांव में बुजुर्गों की पूछ बहुत ज्यादा अचानक से बढ़ गई है जैसे-जैसे सर्वे का काम आगे बढ़ता जा रहा है लोग अपनी पुस्तक की जो जमीन है उसकी जानकारी को इकट्ठा करने के लिए बुजुर्गों की हेल्प लेनी पड़ रही है कई सारे ऐसे गांव भी है जहां कुछ पुराने लोग बचे हैं जो कि गांव के पूर्वजों के नाम और उनके जमाने की जमीन की लंबाई चौड़ाई के बारे में विस्तार से जानते हैं बाबूबरही के इस्तेमाल में महेश चंद्र करना यह है कि पुराने खतौनी में अब जमीन के मालिक का नाम पहचाना और भी मुश्किल हो गया है ऐसे में जिस भी बुजुर्ग की उम्र 80 या फिर उससे ज्यादा है वह लोग उनसे वंश तालिका को तैयार करवाने में हेल्प ले रहे हैं।
बिना दाखिल-खारिज के जमीन के मालिक बदलने की समस्या
खास सर्वे के समय एक और समस्या सामने आई है जो की bihar dakhil kharij और जमाबंदी के ही जमीन के कई ऐसे मालिक बदलने से राम गांव के किसान सौखी ने बताया है कि उन्होंने कुछ समय पहले ही अपने जमीन की रजिस्ट्री करवाई है लेकिन फिर भी दाखिल खारिज के लिए गए तो पता चलता है की जमीन के जो पुराने मालिक है उन्होंने भी सही तरीके से जमाबंदी को नहीं करवाया था इसी वजह से अब जो असली मालिक है उनकी पहचान करने में बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है बिना सही मलिक का पता चले दाखिल खारिज की प्रक्रिया को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है आगे बढ़ेगा ही नहीं।
समस्या का समाधान कैसे हो?
आपको बताना बहुत जरूरी है कि बिहार में इस समय भूमि का जो सर्व है उसकी यह प्रक्रिया न सिर्फ सरकारी काम के लिए जरूरी है बल्कि आप लोगों के लिए भी और आपके अधिकारों के लिए भी सुरक्षा का एक अहम हिस्सा है लेकिन फिर भी जिस तरह से रिकॉर्ड गायब हो रहे हैं या फिर कई वीडियो से फाइल में ही सही तरीके से दाखिल खारिज और जमाबंदी ही नहीं हुआ है उससे क्या है की किसानों को बहुत बड़ी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
सरकार तो चाहती है कि अभिलेखागारों में भी सुधार लाया जाए और जमीन के पुराने जो भी रिकॉर्ड्स है जैसे – bihar bhulekh, bihar bhu naksha, khatuani आदि उसको डिजिटाइजेशन की और ले जाया जाए ताकि आगे भविष्य में ऐसी समस्याएं ना हो वही लोगों को चाहिए जो कि इस समय अपने जमीन के फाइल को सही तरीके से अपडेट करवाए ताकि आने वाली पीढ़ी में किसी भी तरह के दिक्कत का सामना न करना पड़े।