डा. अंबेडकर के समर्थन और अपमान पर भाजपा का ड्रामा
न्यूज लांडरी यूट्यूब चैनल के अतुल चौरसिया हास्य और व्यंग्य के लहजे में देश को क्रिसमस और नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए कहते है कि इस क्रिसमस पर सनी लियोनी का भी जन्मदिन मनाया गया। उन्होंने इस व्यंग्य के पीछे का खुलासा किया कि छत्तीसगढ़ सरकार की ‘महतारी वंदन योजना’ के तहत हर महीने 1000 रुपए का लाभ लेने वाले लोगों को मिलने वाले मुनाफे में इसे शामिल किया गया है। बस्तर कलेक्टर की ओर से एक प्रेस रिलीज जारी की गई है, जिसमें यह जाहिर किया गया है कि सनी लियोनी के नाम पर ‘महतारी वंदन योजना’ चल रही थी। इस योजना का लाभ लेने के भाव से ‘सनी लियोनी’ के नाम से आईडी बनाई गई। लियोनी का नाम रजिस्टर्ड कराया गया। ज्ञात हो कि हर प्रांत की सरकार 1000 रुपए दे रही है। इस योजना के तहत महिलाओं को 1000-2000 रुपये दिए जाते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में सनी लियोनी का अकाउंट अब बंद हो जाएगा क्योंकि सरकार ने इस पर केस दर्ज कर दिया है। दरअसल यह एक जागरूकता अभियान है जो हमारी सरकारें भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाती हैं ताकि आपकी और हमारी आंखें लगातार खुली रहें।
यह भी कम नहीं कि देश में भाजपा अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम करने में जुटी है। भाजपा के लिए राम मनोहर अस्पताल, दिल्ली से आया ‘ICU पर्यटन सेवा बुलेटिन’ है। अपोलो अस्पताल के ICU में दरवाजे भी खुलें हैं, जहाँ प्रवेश वर्जित है। ज्ञात हो कि यहाँ भाजपा के वीर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी 14 दिसंबर से आईसीयू में भर्ती हैं। लेकिन भाजपा सरकार के किसी केंद्रीय मंत्री या विदेश मंत्री ने उनसे मिलने में रुचि नहीं दिखाई। भाजपा को 272 तक पहुंचाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी ने पूरा हफ्ता अस्पताल के आईसीयू में शांति से बिताया। वे भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। लाल कृष्ण आडवाणी की तबीयत खराब होने की खबर सामने आ रही है। उन्हें दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अब शायद राम मनोहर लोहिया अस्पताल के आईसीयू के दरवाजे खुलेंगे। यहां पर्यटन की अनुमति है।
इसके समर्थन में भाजपा के बड़े नेताओं और मंत्रियों ने एक गुमनाम नेता प्रताप सारंगी के कंधों पर पूरा ‘आईसीयू पर्यटन’ आयोजित कर दिया। सारंगी पिछली बार तब चर्चा में आए थे जब उन पर ऑस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेन्ट्ज़ और उनके छोटे बेटों की हत्या का आरोप लगा था। लोग कहते हैं कि सारंगी का मन बदल गया है। अब वे हारमोनियम बजाएंगे। इस घटना को समझने से पहले हमें ‘आईसीयू पर्यटन’ का विवरण पढ़ना होगा…आइए! भाजपा के एक ‘वीबीआईपी पर्यटन’ पर एक नजर डालते हैं। पता चला है कि इस मामले से जुड़े सभी वीडियो में आवाज़ गायब हो गई। जरा देखिये। 97 वर्षीय लौहपुरुष ‘सारंगी’ एक सप्ताह से ICU में थे। वैसे, आईसीयू में पर्यटन की अनुमति नहीं है लेकिन सारंगी को देखने वाले भाजपा के जूता-चप्पल पहने नेताओं और गोदी मीडिया के पत्रकारों के लिए ‘आईसीयू’ एक पर्यटन स्थल बना हुआ था ।
कमाल तो जब हो गया, तब अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने सारंगी के डिस्चार्ज होने के बारे में बताया कि इस बारे में इलाज करने वाले वरिष्ठ डॉक्टर तय करेंगे कि आगे क्या करना है। वे अभी भी निरीक्षण में हैं। लेकिन एएनआई वालों ने एक कदम आगे बढ़कर ‘सीनियर लीडर्स’ लिख दिया। जैसे एएनआई हमें बता रहा हो कि राम मनोहर लोहिया अस्पताल का दुनिया का पहला आईसीयू है, जहां सीनियर लीडरशिप डिस्चार्ज करने का फैसला करती है। सारंगी का मामला थोड़ा संवेदनशील है। वरिष्ठ नेतृत्व के समर्थन के बिना कुछ भी संभव नहीं है। और फिर अगले ही दिन सारंगी ने उसी कान की लकड़ी हटवा ली और चश्मा पहन लिया। जहाँ कल तक भारी रक्तस्राव की खबर थी। हम यह सोचने में अटके हुए हैं कि एक रात में यहाँ से यहाँ तक पहुँचने का चमत्कार कई चमत्कारों को समेटने वाला रहा है।
अब हम इस पर विस्तार से बात करते हैं। लेकिन पहले इस मामले को थोड़ा साफ कर लेते हैं। भाजपा ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने धक्का देकर उनका सिर फोड़ दिया। सारंगी ने खुद कहा कि राहुल को पिछे से धक्का किसी अन्य सांसद धक्का दिया। और मैं गिर गया। किंतु गोदी मीडिया के रिपोर्टर्स सारंगी से बार-बाए एक ही सवाल कर रहे थे।।।Who pushed you? Rahul Gandhi? Yes, Rahul Gandhi। Rahul Gandhi pushed you? Rahul Gandhi। Rahul Gandhi। लेकिन इस वीडियो के रिपोर्टर का पूरा ध्यान राहुल गांधी पर था। सारंगी के बयान पर नहीं। उनकी प्राथमिकता राहुल का नाम बुलवाना था। उन्होंने यह काम बखूबी किया। समय की नजाकत को देखते हुए सारंगी ने भी अपना सुर बदला और राहुल का नाम जपना शुरू कर दिया। अब पूरा देश सदमे में था।
उन्हें चिंता थी कि यह घटना संसद भवन में हुई है या कोप भवन में। सीसीटीवी फुटेज क्यों नहीं है? थोड़ी देर में कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया कि भाजपा के लोग उनके सांसदों को संसद भवन में घुसने से रोक रहे थे। इस प्रक्रिया में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खडगे को धक्का दिया और वो लड़खड़ा कर एक कोने में गिरते हुए बैठ गए। राहुल गांधी ने भी इसे स्वीकार किया और कहा,’ यह संसद का प्रवेश द्वार है। मैं अंदर जाने की कोशिश कर रहा था। भाजपा सांसद मुझे रोकने की कोशिश कर रहे थे। वे मुझे धक्का दे रहे थे, धमका रहे थे। तो यही हुआ।‘ लेकिन राहुल गांधी के इस बयान को भाजपा के आईटी सेल के कर्मचारियों ने बीच में ही रोक दिया।
अब इस कहानी की प्रस्तावना पर आते हैं। गृह मंत्री अमित शाह संविधान की 75वीं वर्षगांठ पर अपना आखिरी भाषण दे रहे थे। उनकी जुबान थोड़ी सख्त थी। उन्होंने मूँह बनाते हुए तल्ख वाणी में यकायक यह कह दिया कि अब अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर कहने का फैशन हो गया है। अगर भगवान का इतना नाम लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। हमने इस बयान की पृष्ठभूमि सुनी और पाया कि अमित शाह के शब्द वही थे, हालांकि इसमें अंबेडकर के अपमान की भावना साफ झलक रही थी। कहना न होगा कि अमित शाह के इस बयान में अम्बेडकर को बहुत ही कमतर आँकने का काम किया। फिर से सुनिए।।।अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर। अगर भगवान का इतना नाम ले लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। यह सुनकर अमित शाह के बयान का सीधा अर्थ यही लगाया जा सकता है कि अंबेडकर को छोड़ो और भगवान की पूजा करो, स्वर्ग मिलेगा। विपक्ष ने भी अमित शाह के बयान को इसी तरह से समझा। सत्ता पक्ष ने विपक्ष पर हमला किया और कहा कि वह सभी कानूनी विकल्पों पर विचार करेगी। संसद के अंदर और संसद के बाहर क्या कानूनी कार्रवाई हो सकती है, यह भाजपा सभी संभावनाओं को देखकर तय करेगी। अमित शाह का अपना अंदाज है, जब उनका मन करता है, मीडिया को प्रेस वार्ता करके भड़का देते हैं। और जब वह फंस जाता है, तो वह मीडिया के पास जाता है और उसे उसकी जिम्मेदारी याद दिलाता है।
इतना ही नहीं, अमित शाह ने एक्स (X) को निर्देश दिया कि उनका बयान हटा दिया जाए। लेकिन एक्स ने अमित शाह के इस आदेश को मानने से मना कर दिया। अब वापस संसद भवन की ओर चलते हैं। देखते है कि वहां क्या हुआ? संसद के शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन था। विपक्ष जहां अंबेडकर की तस्वीरों के साथ अमित शाह का विरोध कर रहा था। वहीं भाजपा सांसद भी अपनी योजना लेकर पहुंच गए। शायद योजना यह थी कि विपक्ष के सांसदों को संसद भवन के अंदर न आने दिया जाए। न तो वे अंदर जाएंगे और न ही देश को पता चलेगा कि अमित शाह ने आखिर कहा क्या था। खैर, आम लोगों को सबूत चाहिए। धूर्त एंकरों को नहीं।
देखिए X-हैंडल पर प्रस्तुत मोदी जी की स्वामी भक्ति के कुछ उदाहरण। कांग्रेस की अंबेडकर प्रेम कहानी। जब नेहरू खुद अपने भगवान को दो बार हराने के लिए युद्ध के मैदान में उतर गए। अमित शाह और नरेंद्र मोदी को हराने की कोशिश में बाबा साहब अंबेडकर का अध्याय उन्हें बुरी तरह बेनकाब करेगा। झूठे आख्यान से राजनीतिक सत्ता हासिल नहीं की जा सकती। और इसका सबसे ताजा उदाहरण गृह मंत्री अमित शाह का एक वीडियो है। जिसे कांग्रेस ने तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश की। आज कांग्रेस ने अमित शाह के भाषण को लेकर फिर झूठ बोला। दरअसल, राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस झूठ की दुकान बन गई है।“ यह कहानी निरानिरी झूठ के पैरों पर खड़ी है। इस प्रकार की बातें करना भाजपा की दो रुपए वाले ट्रोल ग्रुप की बाखूबी करने को बाध्य है। यदि भाजपा के ट्रोल ग्रुप को भूल जाएं तो क्या भाजपा ने संसद के शीत काल में जो धक्का-मुक्की के प्रचार में कौन सी कमी की थी। खुलकर आरोप लगाया गया कि संसद भवन में बीजेपी सांसद का सिर टूट गया। संसद में राहुल की कुश्ती? राहुल गांधी के खिलाफ एफ आई आर लिखाई गई और वह भी कुछ ऐसी धाराओं में जिनके तहत राहुल गांधी को 7 साल की जेल हो सकती है। यह भी प्रचारित किया गया कि राहुल ने बीजेपी की महिला सांसद को मुश्किल में डाल दिया? राहुल गांधी बेकाबू हो गए। भाजपा सांसद का सिर फूटा। संसद में जमकर हंगामा हुआ।
अंबेडकर को भगवान बनाने के मुद्दे पर तिहाल शिरोमणि सुधीर चौधरी का बयान सुनिए। सिर्फ विपक्ष ही नहीं, सत्ताधारी दल के लोग भी अंबेडकर को उसी आस्था से पूजते हैं। कांग्रेस का कहना है कि जो लोग इस तरह से झूठ बोलने वाले हैं। जो लोग इस तरह का झूठ फैलाना चाहते हैं और देश का माहौल खराब करना चाहते हैं। हमारी वर्तमान सरकार उनके प्रति बहुत नरम है। कांग्रेस पर हमले के दौरान, इन गोदी मीडिया के सभी एंकरों और एंकर्नियों इसे साबित करने के लिए बहुत प्रयास किया –“ कांग्रेस ने समय-समय पर अंबेडकर का अपमान कैसे किया? दूसरी तरफ, भाजपा ने यह साबित करने की भी कोशिश की कि कांग्रेस ने संविधान और अंबेडकर का अपमान नहीं किया है। राजनीति में चीजों का महत्व उसके चुनावी वोटों से तय होता है। उदाहर्णात राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भाजपा के तथाकथित सांसद की मिजाजपुर्सी करने के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की लाइन लगी रही, वहीं लालकृष्ण आडवाणी जो आईसीयू में भरती ,थेकिसी को उनमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। सारंगी के लिए लाइन तय हो चुकी है। आडवाणी का आज भाजपा के लिए कोई चुनावी महत्व नहीं है। इसी तरह गांधी और नेहरू का भी इस समय कोई चुनावी महत्व नहीं है। लेकिन अंबेडकर में अभी भी बहुत संभावनाएं बाकी हैं। अतीत को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखना जरूरी है। उदाहरण के लिए, अमित शाह ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि अंबेडकर ने नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। शाह ने सवाल उठाते है,’ आखिर देश के पहले मंत्रिमंडल से अंबेडकर ने इस्तीफा क्यों दिया? अंबेडकर ने कई बार कहा कि मैं अशिक्षित जातियों और नस्लों के व्यवहार से असंतुष्ट हूं। मैं सरकार की विदेश नीति से असंतुष्ट हूं। और मैं अनुच्छेद 370 से असंतुष्ट हूं। किंतु सत्य शाह जी के कथन के कतई विपरीत है। दरअसल अंबेडकर ने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि नेहरू हिंदू कोड बिल लाने में देरी कर रहे थे। इस पर आंबेडकर ने गुस्से में इस्तीफा दे दिया। यह जानना भी जरूरी है कि उसी समय आरएसएस और हिंदू महासभा के लोग आंबेडकर और नेहरू की मूर्ति जला रहे थे। 12 दिसंबर 1949 को आरएसएस के पदाधिकारियों ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अंबेडकर और नेहरू की मूर्तियां भी जला दी थी। क्योंकि आरएसएस हिंदू कोड बिल के खिलाफ था। हिंदू कोड बिल का उद्देश्य विवाह और मताधिकार जैसे मामलों में महिलाओं के अधिकारों को मजबूत करना था। लेकिन संसद में अमित शाह ने अंबेडकर के इस्तीफे को बिल्कुल अलग मोड़ दे दिया।
भाजपा ने असत्य प्रचार किया कि जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा चुनाव के दौरान अंबेडकर के खिलाफ प्रचार किया था। किंतु ये नहीं बताता कि बाबा साहेब अपनी पार्टी से चुनाव लड़ रहे थे कांग्रेस की ओर से नहीं। ऐसे में दो विपक्षी अपनी-अपनी जीत के लिए काम करेंगे ही। ज्ञात हो कि अंबेडकर सोशल पार्टी के साथ और नेहरू कांग्रेस के साथ दो अलग-अलग राजनीति कर रहे थे। अंबेडकर और नेहरू राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी थे। अंबेडकर कांग्रेस में नहीं थे कि आप कांग्रेस पर आरोप लगा सकें कि कांग्रेस ने अंबेडकर का हक मारा अथवा नेहरू ने अंबेडकर के अधिकार को मारा। मुंबई लोकसभा चुनाव में, जहाँ वे हार जाते हैं, आप पाते हैं कि नेहरू अंबेडकर के खिलाफ प्रचार करने गए थे। लेकिन नेहरू अपनी पार्टी कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे थे। लेकिन अमित शाह ने संसद में यह बात नहीं बताई। अमित शाह ने जो बातें छिपाईं, उनमें से एक यह भी थी कि पटेल मुंबई में चुनाव लड़ रहे थे। और उन्होंने मुंबई कांग्रेस को निर्देश दिया था कि अंबेडकर को किसी भी कीमत पर हराया जाए। उन्होंने कांग्रेस के ताकतवर दलित नेता का नाम चुनकर मैदान में उतारा था। लेकिन अमित शाह ने पटेल का नाम लेने की भी हिम्मत नहीं की। नेहरू-आंबेडकर के बीच के वैचारिक संबंध के विषय में दरअसल, अंबेडकर के संबंधों को देखने का एक और तरीका भी है। आजादी के उस दौर में नेता कितने लोकतांत्रिक और समावेशी थे। आप पाते हैं कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी होने के बावजूद कांग्रेस ने अंबेडकर को संविधान सभा में जगह दी। अंबेडकर नेहरू की कैबिनेट का हिस्सा बने। और जब उन्हें लगा कि उनकी राजनीति कांग्रेस की राजनीति से अलग है, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। यह 1947 से 1955 के बीच की राजनीतिक कहानी है।
अब हम इस सवाल पर आते हैं कि अंबेडकर और संविधान के खिलाफ बीजेपी, उसके पूर्ववर्ती जनसंघ और उसके मातृ संगठन आरएसएस का ऐतिहासिक दृष्टिकोण क्या था? अंबेडकर दरअसल आरएसएस, बीजेपी, सावरकर और हिंदुत्व के विरोधी हैं। आर एस एस के मुख्य आयोजक ने 2 नवंबर 1949 के अंक में हिंदू कोड बिल को हिंदुओं की आस्था पर सीधा हमला बताया था। दिसंबर 1949 में, आयोजक ने लिखा, “हम हिंदू कोड बिल का विरोध करते हैं।“ ऋषि अंबेडकर और महर्षि नेहरू समाज को बांट देंगे और हर परिवार को द्वेष, संदेह और बुराई से भर देंगे। आरएसएस के दूसरे प्रमुख एमएस गोलवलकर के विचार जानकर आप चौंक जाएंगे। कुछ लोगों ने संविधान का खुलकर विरोध किया है। गोलवलकर ने बंच ऑफ थॉट्स में लिखा था, “हमारा संविधान पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधानों का बोझ है। इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो हमारा हो।” हिंदुत्व के एक अन्य विचारक बीडी सावरकर ने भारत के संविधान और हिंदू कोड बिल के बारे में लिखा था। भारत के नए संविधान की सबसे बुरी बात यह है कि इसमें भारतीयता से जुड़ा कुछ भी नहीं है। मनुस्मृति वह धर्मग्रंथ है जो हमारे हिंदू राष्ट्र में वेदों के बाद सबसे अधिक पूजनीय है। यह प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज, विचार और व्यवहार का आधार रहा है। सावरकर अलग यात्रा पर थे। उन्होंने मनुस्मृति को संविधान से ऊपर रखा।
सावरकर और अंबेडकर के बीच टकराव की कहानी को कुछ इस प्रकार जाना जा सकता है। सावरकर ने 1930 से 1931 के बीच केसरी में प्रकाशित अपने लेखों में स्पष्ट किया कि वे जातिवाद के खिलाफ़ हैं, लेकिन चौपाई व्यवस्था दैवीय व्यवस्था है, इसलिए इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता। अंबेडकर सावरकर के विचारों से असहमत थे। 18 फरवरी 1933 को अंबेडकर ने सावरकर को लिखे पत्र में कहा, “आपका यह तर्क कि चौपाई शब्द योग्यता पर आधारित है, बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में आप इस अनावश्यक और शरारती शब्द श्रृंखला से छुटकारा पाने का साहस करेंग।” अंबेडकर के बारे में सावरकर की राय भी जानिए। सावरकर समग्र में प्रकाशित एक लेख के लेखक हैं। सावरकर लिखते हैं, कि बौद्ध धर्म स्वीकार करके आप असहाय हो जाएँगे। इस लेख में सावरकर लिखते हैं, अंबेडकर सावरकर के विचारों को शरारती कह रहे हैं। और सावरकर उन्हें शरारती कह रहे हैं।
अब आते हैं हाल की कुछ घटनाओं पर। वरिष्ठ पत्रकार करण थापर के साथ एक साक्षात्कार में आरएसएस के पूर्व सरसंघ चालक केएस सुदर्शन के जो विचार सामने आए। सुनिए उन्हें, ‘भारत के संविधान को इतने विस्तार से, इतनी स्पष्टता से, जितना पूर्व सरसंघ प्रमुख सुदर्शन ने किया, शायद ही किसी ने किया होगा। हम अल्पसंख्यक की अवधारणा को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। वे अल्पसंख्यक नहीं हैं। संविधान हम पर थोपा नहीं जा सकता। 1909 से ही पूरा संविधान हम पर थोपा गया है। मेरा कहने का मतलब है कि इसकी पूरी समीक्षा की जरूरत है। इसकी पूरी समीक्षा होनी चाहिए। ये विचार पूर्व सरसंघ प्रमुख के थे। वे आगे कहते है कि मैं ऐसी पार्टी से आता हूं जो अंबेडकर का कभी अपमान नहीं कर पाई। पहले जनसंघ और फिर भाजपा ने हमेशा अंबेडकर के सिद्धांतों पर चलने की कोशिश की है। लेकिन सुदर्शन देश के संविधान पर विश्वास नहीं करते। क्योंकि इसमें दुनिया के दूसरे देशों की बातें शामिल हैं। इसका अपना कुछ भी नहीं है। गोलवलकर भी यही कहते हैं। यानी भारत की संविधान सभा में बैठे 389 लोग, पर्याप्त भारतीय नहीं थे। तो क्या ये मान लिया जा कि वही सच्चे भारतीय होंगे, जिन्हें संघ का प्रमाण-पत्र मिलेगा।
थोड़ा और वर्तमान में लौटते हैं। भाजपा ने ऐसे लोगों को खुले दिल से सम्मान दिया है और लाभ पहुंचाया है जिन्होंने अंबेडकर को पानी पी-पीकर अपमानित किया है। उनमें से एक हैं अरुण शौरी। अरुण शौरी ने 1997 में वर्शिपिंग फाल्स गॉड नाम से एक किताब लिखी थी। शौरी इस किताब के पहले पन्ने पर लिखते हैं, “अंबेडकर जैसा देवता कोई और नहीं बना। संसद में सबसे ऊंची मूर्ति उनकी है। सेंट्रल हॉल में उनकी तस्वीर जीवन से भी बड़ी है। उनकी याद में राष्ट्रीय अवकाश बना हुआ है। भारत रत्न उन्हें दिया गया है। उनकी याद में डाक टिकट जारी किया गया है। उनके नाम पर यूनिवर्सिटी बनाई जा रही हैं। एक के बाद एक शहर में उनकी नीली सूट वाली मूर्तियाँ लगाई जा रही हैं। अधिकतर दिवस उनके नाम पर उत्सव मनाए जा रहे हैं। जब उनका जन्म हुआ, जब उन्हें बौद्ध धर्म की दीक्षा मिली आदि। उन्होंने गांधी को भी पीछे छोड़ दिया है।“ शौरी की इस पुस्तक के प्रकाशन के एक साल बाद, 1998 में, भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा। और एक बार नहीं, बल्कि दो बार। उन्हें केन्द्रीय मंत्री बनाया गया। जाहिर है, बीजेपी ने उन्हें सिर्फ़ अंबेडकर की आलोचना करने वाली किताब लिखने के लिए सम्मानित नहीं किया होगा। ज़रूर, शौरी ने बीजेपी के लिए कुछ और भी काम किए होंगे।हमारा कहना यह है कि अंबेडकर भाजपा की राजनीति के विरोधी हैं। क्योंकि अब डा. अम्बेडकर ही सबसे ज़्यादा चुनावी फ़ायदा देने वाले व्यक्ति हैं। इसीलिए लेफ्ट, राइट, सेंटर, हर कोई उनका नाम जप रहा है। अमित शाह के अम्बेडकर पर दिये गए बयान को उनकी खीज के रूप में लेना ही जाना चाहिए।
वरिष्ठ कवि/लेखक/आलोचक तेजपाल सिंह तेज एक बैंकर रहे हैं। वे साहित्यिक क्षेत्र में एक प्रमुख लेखक, कवि और ग़ज़लकार के रूप ख्याति लब्ध हैं। उनके जीवन में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिन्होंने उनको जीना सिखाया। उनके जीवन में अनेक ऐसे यादगार पल थे, जिनको शब्द देने का उनका ये एक अनूठा प्रयास है। उन्होंने एक दलित के रूप में समाज में व्याप्त गैर-बराबरी और भेदभाव को भी महसूस किया और उसे अपने साहित्य में भी उकेरा है। वह अपनी प्रोफेशनल मान्यताओं और सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा सजग रहे हैं। इस लेख में उन्होंने अपने जीवन के कुछ उन खट्टे-मीठे अनुभवों का उल्लेख किया है, जो अलग-अलग समय की अलग-अलग घटनाओं पर आधारित हैं। अब तक उनकी विविध विधाओं में लगभग तीन दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार (1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से भी आप सम्मानित किए जा चुके हैं। अगस्त 2009 में भारतीय स्टेट बैंक से उपप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर आजकल स्वतंत्र लेखन में रत हैं।