सृष्टि की रचना और भगवान की उत्पत्ति

सृष्टि की रचना और भगवान की उत्पत्ति

यह वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध हो गया है कि ब्रह्मांड की रचना के समय पृथ्वी भी अस्तित्व में आई। हजारों-करोड़ वर्षों की बात है। पृथ्वी भी आग की तरह दहकते हुए गोले की तरह थी। धीरे-धीरे आग बुझने के कारण भाप बनती गई और कई सालों तक वर्षा होती रही। इतनी बारिश हुई कि, पृथ्वी के चार भागों में से तीन भागों पर चारों तरफ पानी-पानी ही हो गया। इसके कारण सबसे पहले समुद्र, नदी, पहाड़, झील आदि अस्तित्व में आए। पृथ्वी के वायुमंडल तथा हवा, प्रकाश, पानी, मिट्टी होने के कारण सबसे पहले पानी में जीव पैदा हुए तथा पृथ्वी पर भी लाखों तरह के कीड़े-मकोड़े तथा कई प्रकार की वनस्पतियां भी पैदा हुईं। इन्हीं जीवों का विस्तार कई हजार करोड़ वर्षों तक चलते-चलते, जमीन व पानी में रहने वाले जीव प्राणी पैदा हुए। एक-दूसरे के संक्रमण संबंधों के कारणों का विस्तार होता चला गया। कुछ जीव पानी और जमीन पर भी रहने वाले पैदा हुए। फिर जमीन पर चार पैर वाले जानवर विकसित होते-होते, क्रमश: बंदर, बनमानुस, आदिम मानव, फिर मानव जाति आदि, पृथ्वी पर पैदा हुए। ऐसे ही बदलाव होते हुए, आज भी सभी प्रकार के लाखों-करोड़ों कीड़े-मकोड़े, जीव-जंतु, पेड़-पौधे, तरह-तरह की वनस्पतियां, जल और जमीन पर पैदा होते चले आ रहे हैं।

आज भी आप जाड़े के दिनों में महीनों तक स्नान मत कीजिए, आपके शरीर के बालों में जूं एवं शरीर के कपड़ों में चिल्लर (जीव) आप पैदा कर देते हैं। गटर में, नाली में या जमीन पर गंदगी करके छोड़ दीजिए, तीसरे-चौथे दिन जीव पैदा हो जाते हैं। इस तरह जल-थल में लाखों-करोड़ों जीव-जंतु पैदा होते हैं, हो रहे हैं और होते रहेंगे।

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होमो हिबिलस मानव करीब बीस-पच्चीस लाख साल पूर्व हुआ। माना जा रहा है कि आज का होमो सेपियंस मानव तकरीबन 70 हजार साल पहले अस्तित्व में आया। हम उसकी 2800वीं पीढ़ी हैं लेकिन यह एक अलग ही विषय है।

वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि सृष्टि की रचना सबसे पहले पानी द्वारा हुई थी। हमें सही जानकारी न होने के कारण पहले लोग पृथ्वी को दो भागों में बांटा हुआ मानते थे, जैसे आकाश-पाताल, लोक-परलोक, जिसे हम आज वैज्ञानिक युग में पृथ्वी को दो भू-भाग में देखते हैं। कोलंबस की नयी दुनिया की खोज के पहले, कोई भी एक-दूसरे भू-भाग को नहीं जानता था। जमीन से सटे न होने के कारण, कई वर्षों तक किसी भी तरह से दोनों भू-भागों से आने-जाने या मिलने-जुलने का कोई साधन नहीं था। सवाल उठाना और उठना दोनों लाजमी है कि ऐसी कौन-सी चमत्कारी शक्ति, देवी-देवता या तथाकथित भगवान था, जिसने हजारों किलोमीटर दूर दोनों द्वीपों पर एक समान सृष्टि की रचना की।

   यह सवाल पूछने पर अधिकतर लोगों को कोई जवाब नहीं सूझता है। बताने पर कि समुद्री पानी ही ऐसा चमत्कार हैं जिससे दोनों भू-भाग जुड़े हुए थे, इसलिए दोनों भूभागों पर एक समान तरीके से सृष्टि की रचना समुद्री पानी से हुई है।

चंद्रमा पर कोई हवा-पानी नहीं है, इसलिए वहां जीव पैदा नहीं हो सकता है। इसलिए आज सिद्ध होता है कि सृष्टि की रचना में किसी भी प्रकार के तथाकथित भगवान या गॉड का योगदान नहीं है। यदि होता तो वे चंद्रमा पर भी जीवन पैदा कर सकते थे। ब्रह्मांड के सौर्यमंडल परिवार में यदि, पृथ्वी की या किसी की भी गति एक माइक्रो सेकंड के लिए रुक जाएगी तो पृथ्वी पर तथाकथित भगवानों के साथ-साथ कोई नहीं बचेगा। यही यथार्थ शक्ति है और प्रकृति के द्वारा दिया हुआ वरदान है, जिसे पूरे विश्व में इस नेचर (प्रकृति) को ही गॉड या भगवान के रूप में माना गया है।

हजारों-करोड़ वर्षों से पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदा आती रहती थी, जैसे भूकंप, ज्वालामुखी, बवंडर, आंधी-तूफान, समुद्री आपदा तथा तरह-तरह की महामारी वाली बीमारियां आदि। इन सबकी सही जानकारी न होने के कारण लोगों में तरह-तरह के संशय पैदा होते रहते थे। अज्ञानता के कारण लोगों ने कई रूपों में भय के कारण भगवान की कल्पना की। उससे बचने के सही उपाय ना होने के कारण कुछ दुष्ट लोगों ने भोले-भाले इन्सानों के दिमाग में तरह-तरह के डर-लालच और आडम्बर पैदा कर दिया गया। इसी बहाने पूजा-पाठ का ढकोसला, तिलक लगाने और पैसा कमाने की तरह-तरह की दुकानें खोल दी गई।

कुछ तथाकथित षड्यंत्रकारी, चालाक लोगों ने स्वार्थ की भावना से भोले-भाले लोगों का शोषण करने के उद्देश्य से सिर्फ इन्सान के दिमाग में जहरीला कचरा आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, भाग्य-भगवान, पूर्व जन्म या पुनर्जन्म आदि पाखंड और आडम्बर पैदा कर दिया। लोगों के मन में काल्पनिक भय पैदा कर दिया। मानवीय दुखों से निजात पाने और मनवांछित फलप्राप्ति के लिए तरह-तरह के भगवान, देवी-देवता आदि पैदा किए गए। विचित्र विडंबना है कि दक्षिण भारत का भगवान है, तो काला भगवान और वही यदि उत्तर भारत का है तो गोरा भगवान बन जाता है। उन्होंने इन्हीं काल्पनिक भगवानों की पूजा पाठ किया और करवाया तथा अपनी कई पुश्तों के लिए अय्याशी और हराम की कमाई खाने के लिए दान-दक्षिणा का आविष्कार किया। जनता के दिलो-दिमाग में इन्हीं भगवानों का भय पैदा किया गया है।

हमारे इस मिशन गर्व से कहो हम शूद्र हैं… का मुख्य मक़सद भी इसी भय से लोगों को मुक्ति दिलाना और सच का सामना कराना है। सृष्टि की रचना के अनुसार, जानवर, (गाय- बैल, भैंस-बकरी आदि) और मनुष्य, (नर-नारी आदि) दोनों में क्या आपको कोई अंतर दिखता है? सोचिए! समझिए! दोनों पैदा होते हैं, बड़े होते हैं, घूमते-फिरते हैं, सभी क्रिया कर्म अपने आप करते हैं, सेक्स करते हैं, बच्चा पैदा करते हैं, बच्चों से प्यार करते हैं, बच्चों के लिए खाने-पीने का प्रबंध करते हैं, देखभाल करते हैं, बुढ़ापा आता है और दोनों अंत में मर जाते हैं। दोनों में अंतर सिर्फ बुद्धि-विवेक का है। वैसे कहीं-कहीं कुछ गुणों में जानवर, इंसानों से बाजी मार लेता है। जैसे कुत्ता खोजबीन में, चिड़िया-पक्षी आंखों से देखने और अपने बच्चों की परवरिश बिना दूसरों की सहायता एवं बिना डॉक्टर या अस्पताल के कर लेते हैं। जानवरों में ऐसे बहुत से गुण हैं जो इंसानों को मालूम ही नहीं है।

अंतर है तो सिर्फ सोचने-समझने व उसके अनुसार कार्य करने और करवाने का गुण, जो दूसरे प्राणियों में नहीं पाया जाता है। इसका मतलब प्रकृति ने आज के वैज्ञानिक युग में मानव को सुपर कंप्यूटर की तरह जानवर से ज्यादा मेमोरी वाला दिमाग दे दिया है। तो  इसका मतलब यह नहीं कि, ईश्वर (प्रकृति) द्वारा दिए हुए दूसरे प्राणियों पर आप अत्याचार करें, उसकी बलि चढ़ाए, उसे काटकर, पका कर खा जाएं। गाय या भैंस के बच्चे को बांधकर, बलपूर्वक जबरदस्ती उसके दूध को हजम कर जाएं।

लेकिन यहां भी विरोधाभास है कि नेचर या प्रकृति ने ही कुछ प्राणियों के लिए, एक-जीव दूसरे जीव का भोजन है ऐसा वरदान भी दिया है।

कल्पना कीजिए! आपने गाय को आगे से गर्दन में और पीछे के दोनों पैरों को बांध दिया है। ज्यों ही बछड़े को दूध का स्वाद आता है, त्योंही आप ने उसकी मुलायम गर्दन को मरोड़ते हुए उसे भी रस्सी से बांध दिया है। अब निश्चिंत होकर आप उसका दूध निकाल रहे हैं। आप उस समय यह भी कल्पना कीजिए! कि गाय और गाय का मासूम बच्चा आपके बारे में क्या सोचता होगा? शायद, अपने मन में, आपके बारे में, यही सोचता होगा कि कहां से प्रकृति ने यह राक्षस पृथ्वी पर पैदा कर दिया है? लेकिन फिर भी अहंकारी इंसान, अपने आपको क्या-क्या और कितना महान सोचता है।

यदि पैदा होने के तीन-चार साल के बाद, चार-पांच बच्चों को ऐसी जगह छोड़ दिया जाए जहां जीवन के संसाधन हो, लेकिन कोई अन्य इंसान न हो। ये सभी बच्चे सामाजिकता और परिवार से दूर हों । ऐसे में बड़े होने के बाद उन बच्चों की प्रवृत्ति एक जानवर जैसी हो जाएगी। उनकी अपनी अलग भाषा बन जाएगी। क्या उनका कोई भगवान, धर्म, जाति, संप्रदाय, आस्था-विश्वास होगा? क्या उनमें कोई मां-बाप, भाई-बहन आदि का रिस्ता होगा? जवाब होगा – नहीं और यही सत्य है। यह सभी हम अपने बच्चों में पैदा करते हैं।

इसका प्रमाण आज भी भारत में मौजूद हैं, अंडमान निकोबार  के सेंटिनल द्वीप पर आज भी सभी लोग नंगे रहते हैं, यहां की तथाकथित धार्मिक, जातिवादी संस्कृति और सभ्यता उनमें नहीं है। उनकी अपनी अलग देश-दुनियां है। जो भी वहां जाता है, उसे वहां के लोग मार डालते हैं। इसलिए उस द्वीप  पर किसी को भी जाने की मनाही है।

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सिद्धम आश्रम

दुसरा एक प्रमाण है, केरल में 150 साल पुराना, करीब 150-200 एकड़  में बसा हुआ सिद्धम आश्रम है, उस आश्रम में सभी नर-नारी कोई भी कपड़ा नही पहन सकता है, वहां  किसी तरह का मां-बाप, भाई-बहन आदि का कोई रिस्ता नही रहता है। यदि आप वहां आश्रम देखने जाएगे तो, कपड़े उतारकर नंगे ही अंदर जाना होगा। उनका खुद का अपना नियम कानून है, जिसे सभी को मानना अनिवार्य है।

समाज में जो भ्रष्टाचार, अत्याचार, दुराचार है, उसे बढ़ाने में  तथाकथित सभी धर्मों के संस्कार ही ज्यादा जिम्मेदार हैं। हिंदू धर्म की मान्यता है कि अलग-अलग तीर्थ कर दर्शन करने, आरती-पूजा करने, चढ़ावा-दान-दक्षिणा देने से सभी पाप माफ हो जाते हैं। सभी धर्मों में माफ करने की परंपरा अलग-अलग रूपों में पाई जाती है। उसे धार्मिक अनुष्ठान के रूप में करते हैं। अत्याचार और भ्रष्टाचार की आज की भयावह स्थिति सिर्फ इन भगवानों और देवी-देवताओं के माफ करने के कारण ही है। धार्मिक स्थलों पर किसी तरह का चढ़ावा कानूनन अपराध है। यदि ऐसा बोर्ड लगा दिया जाए और सख्ती से पालन किया जाए तो, मैं गारंटी देता हूं कि पुजारी और चमत्कार करने वाले भगवान, दोनों वहां से भाग जाएंगे।

यदि आप सच्चे इंसान हैं तो क्यों नहीं मन्नत मांगते हैं कि- हे ईश्वर! आज दिन भर में, जो भी अपराध अनजाने में मुझसे हुआ है, उसकी सजा मुझे आज रात 12:00 बजे तक दे देना। बुढ़ापे के लिए उधार मत रखना।

षड्यन्त्र  के तहत बेइमानों ने धार्मिक मान्यताओं को सुरक्षित रखने के लिए धर्म पुस्तकों में भी लिख दिया है कि आप धर्म  और भगवान पर तर्क नहीं कर सकते, यदि किया तो अधर्म और पाप के भागी होंगे।

लेकिन वहीं, आज के वैज्ञानिक युग में जो तर्क नहीं करेगा, वह धर्मांध है, जो तर्क नहीं कर सकता, वह मूर्ख है और जो तर्क करने का साहस नहीं कर सकता, वह दास या गुलाम है।

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