गांधी का सर्व सेवा संघ, बाकी तो सब उजड़ गया, बस प्रतिमा ही बाकी है..

 गांधी का सर्व सेवा संघ, बाकी तो सब उजड़ गया, बस प्रतिमा ही बाकी है..

आज उनके अनशन का 64वां दिन है। सर्व सेवा संघ के उसी स्वरूप को पुनः लाया जाय, अनशन की सीमा बीत जाने के बाद गांधीवादी नेता पूरे देश में घूम घूमकर सर्व सेवा संघ के पुराने स्वरूप को लौटाने और सरकार की नीतियों की पोल खोलने का काम करेंगे।

लोकतंत्र सेनानी और सर्वसेवा संघ के कार्यक्रम संयोजक रामधीरज याद करते हुए बताते हैं कि 12 अगस्त 2023 को सूरज उगा भी नहीं था कि तीन बुलडोजर सर्व सेवा संघ कैम्पस में घुस गए एक स्थानीय साथी ने फोन करके बताया कि भारी पुलिस फ़ोर्स बुलडोजर के साथ कैम्पस में खड़ी है लगता है कोई अनहोनी होने वाली है।  सूचना मिलते ही कई साथी पहुच गए। लेकिन वहा तैनात पुलिस फ़ोर्स ने साथियो को गिरप्तार कर लिया, बाकी लोगों को लाठी भाजकर भगा दिया। पुलिस ने विरोध कर रहे रामधीरज सहित 12 लोगों को गिरप्तार कर लिया और पुलिस लाइन में दिन भर बैठाये रखा हालांकि  देर रात सभी को छोड़ दिया गया।  

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संस्थान के बारे में जानकारी देते गांधीवादी नेता रामधीराज

रामधीराज आगे बताते हैं  इससे पहले 22 जुलाई को पुलिस ने जबरन सर्व सेवा संघ कैम्पस को खाली कराया था, तब प्रकाशन की और पुस्तकालय की सभी किताबों को सड़क पर फेंक दिया,  उस दिन बारिश भी हो रही थी, किताबें और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज खुले आसमान के नीचे बारिश में भीग रहे थे । पुस्तकालय की पुराने दुर्लभ पुस्तक भी भीग रही थी । कहते है कभी बख्तियार खिल्जी ने नालन्दा विश्वविद्यालय की पुस्तक को भी जला दिया था, आज वैसा ही काम आततायी मोदी सरकार ने किया । मोदी भाजपा सरकार ने यंग इंडिया, हरिजन, विनोवा प्रवचन, भूदान यज्ञ बुनियादी, यकीन, तरुन मन सरोदय, जगत आदि अनेक पत्रिकाओं के पुराने अंक संग्रहीत थे । तमाम लेखकों साहित्यकारों, की दुर्लभ पुस्तकें भी थी । पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, विनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण, आचार्य कृपलानी, डॉ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, एस0 एम0 जोशी, एश जगन्नाथं, राम चंद्रन, राधा कृष्णा, दादा धर्माधिकारी आदि सैकड़ो महत्वपूर्ण व्यक्तियों के पत्राचार एवं दुर्लभ फोटोग्राफ थे, वे सब नष्ट हो गए ।  सम्पूर्ण गाँधीवांगमय, नेहरुवांगमय, सुभाष चद्र बोस वांगमय, विनोवा भावे,सरदार पटेल, डॉ लोहिया, जयप्रकाश नारायण के दुर्लभ संग्रह भी गायब हो गए ।  गुन्नारमिरडल की एशियन ड्रामा, इवान इलिच की  डीस्कूलिन्ग सोसायटी, स्माल इज ब्यूटीफुल, एथिक्स ऑफ़ सत्याग्रह  जैसी महत्वपूर्ण कृतिया भी सत्ता की सनक की भेट चढ़ गयी ।  

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 आखिर किस आधार पर जिला प्रशासन ने सर्व सेवा संघ संस्थान को जमींदोज कर दिया? सवाल के जवाब में रामधीरज कहते है “सत्ता के इशारे पर यह सारा खेल हुआ। हमारे पास रेलवे से इस जमींन को रजिस्ट्री कराने का कागज भी है । जिला प्रशासन के पास भी इसका कागज है, वह चाहे तो देख सकता है। हमारे पास जो विनोवा जी की पुस्तकें थी, उसमें भी इस बात का जिक्र किया गया है। यही नहीं हमारे पास रेलवे से खरीदी गयी जमींन की रजिस्ट्री का कागज मौजूद है। उस समय तीन रजिस्ट्री हुई थी जिसका पैसा सस्थान ने रेलवे के नियमानुसार स्टेट बैंक में जमा किया। उस समय रेलवे में डिवीजनल इंजीनियर होते थे, उन्होंने आकर बाकायदा रजिस्ट्री की। रजिस्ट्री का वह कागजाद कोर्ट में रजिस्ट्रार के पास आया भी होगा। लेकिन प्रशासन उस कागज और रजिस्ट्री को फर्जी मान रहा है।”

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सर्व सेवा संघ के पास रजिस्ट्री का कागज जो जमीन रेलवे से खरीदी गयी थी

रामधीरज आगे बताते हुए कहते हैं “दरअसल इस जमींन पर अडानी की नजर है। वह गंगा के किनारे अपना एक फाइव स्टार होटल बनाना चाहता है। उसी की मंशा को पूरा करने के लिए इस संस्थान को ध्वस्त किया गया।”

अब जबकि सर्व सेवा संघ का अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो चुका है। संस्थान के गेट पर ताला लटक रहा है। संस्थान में केवल एक गांधी जी की प्रतिमा ही शेष बची है। गांधीवादी अब भी गांधी और विनोवा के इस संस्थान की लड़ाई जारी रखे हुए हैं। संस्थान के बाहर गांधीवादी नेता सौ दिनी आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। इस अनशन में  उत्तर प्रदेश के साथ ही बिहार,बंगाल,तमिलनाडु ,केरल,महाराष्ट्र समेत 16 राज्यों के लोग शामिल हो रहे हैं। रामधीरज कहते हैं – “इस संस्थान को पुनः खड़ा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए हमें जो भी करना पड़ेगा करेंगे लेकिन हार नहीं मानेंगे।”

अपनी आगे की रणनीति के सवाल पर रामधीरज बोले “जैसे ही सौ दिनों का अनशन खत्म होता है हम पूरे वाराणसी जिले का भ्रमण करेंगे और सरकार को बेनकाब करेंगे। उसके बाद बनारस से दिल्ली की पदयात्रा निकालेंगे। दिल्ली से होते हुए हमारी यात्रा पूर्वी भारत के अन्तिम छोर तक जाएगी। फिर वहां से होते हुए दक्षिण भारत और वहां से फिर कश्मीर तक जाने की हमारी योजना है। हमारी इस यात्रा में देश भर के गांधीवादी लोग शामिल होंगे।”

 सत्याग्रह में शामिल होने दक्षिण भारत के तमिलनाडु से आए पी.के.के. सम्बाथ से जब यह सवाल पूछा गया कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इस तरह से अनशन करने से क्या फायदा ? सवाल पर सम्बाथ बोले “हम लोग गांधीवादी हैं और अहिंसा के माध्यम से हम लोग अपनी बात को मनवाना जानते हैं। हम इस लड़ाई में यूं ही नहीं हार मानेंगे। जब तक हमें जीत नहीं मिल जाती है, तक हम सरकार से लड़ते रहेंगे। तमिलनाडु में भी हमने यहां की सरकार के इस फैसले का विरोध किया। हम यहां भी आकर सरकार के विरोध में खड़े हैं। आगे जब तक यह संस्थान अपने अस्तित्व में नहीं आ जाता, हम इसके लिए संघर्ष करते रहेंगे।

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तमिलनाडु से आए गांधीवादी नेता पी. के.संबाथ बाएँ से दूसरे

 तमिलनाडु के मदुरई से आए वी.मुरुगन सरकार द्वारा गांधी और विनोवा के संस्थान पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई की निंदा करते हुए कहते हैं “यह सरकार पूरी तरह से तानाशाही रवैये पर उतारू है। जहां चाह रही है वहां बुलडोजर चलवा दे रही है। जब मामला कोर्ट में चल रहा है तो कैसे सरकार ने इस संस्थान को ध्वस्त करवा दिया? इससे भी दुख की बात यह है कि इस  सरकार को कोर्ट का भी भय अब नहीं रह गया है। यह संस्थान नहीं गांधी, विनोवा और जयप्रकाश नारायण जैसी विभूतियों से जुड़ी एक धरोहर थी। दूसरे देशों में बड़ी बड़ी हस्तियों की धरोहर को किस तरह से संजोकर रखते हैं,यहां की सरकार को उनसे सीख लेनी चाहिए। विदेशों में जब मोदी जाते हैं तो गौतम बुद्ध,महात्मा गांधी जैसे लोगों का नाम लेकर अपनी इज्जत बचाते हैं और उसका उलट यहां पर काम करते हैं। उनका अस्तित्व खत्म करने पर तुले हुए हैं।”

तमिलनाडु से ही अनशन में आए गांधीवादी नेता वी मुरूगन प्रश्न पूछने वाले अंदाज में कहते हैं “सरकार ने किस आधार पर इस संस्थान को ध्वस्त कर दिया। जब रेलवे से यह जमींन विनोवा जी के समय में खरीदी गई थी। हमारे पास उसका प्रमाण भी है। इसका मतलब है इस देश में कानून का राज नहीं है। जब चाहो किसी का घर तोड़ दो। जब चाहो किसी संस्थान को खत्म कर दो। आखिर इस देश में चल क्या रहा है? कानून नाम की कोई चीज इस देश में है की नहीं?

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तमिलनाडु से आए गांधीवादी नेता वी मुरूगन सफ़ेद दाढ़ी में

धरने में शामिल प्रयागराज से आयी लवली यादव बोली “इस संस्थान में रखी एक से एक मूल्यवांन पुस्तकें ,पत्र पत्रिकाएं सब नष्ट हो गईं जो अब शायद ही कहीं पर मौजूद हों। कम से कम प्रशासन को इन पुस्तकों का तो खयाल रखना चाहिए था। उन्हें कहीं रखवा देना चाहिए था। जब प्रशासन यह कार्रवाई कर रहा था तो उस दौरान बारिश का मौसम था और बारिश भी हुई थी। ऐसे में बहुत सारी किताबें यूं ही नष्ट हो गई होंगी। खुले आसमान के नीचे रखे जाने के कारण बहुत सारी किताबें चोरी भी हुई होंगी क्योंकि उस समय यहां कोई देखने वाला नहीं था।

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अनशन पर बैठी प्रयागराज की लवली यादव

बहरहाल, सर्व सेवा संघ पर वाराणसी जिला प्रशासन की कार्रवाई को एक वर्ष बीत चुका है। संघ की जमींन पर जहां कभी पुस्तकालय, प्रकाशन विभाग और संघ के पदाधिकारियों के रहने का भवन और शोध करने वाले छात्रों का छात्रावास हुआ करता था उस स्थान पर एक गांधी की प्रतिमा के अलावा उबड़-खाबड़ जमींन ही बची हुई है। इस जमींन पर कुछ पेड़ पौधे है। इसके अलावा वहां पर अब सिर्फ झाड़ियां ही नजर आ रही हैं।

अब यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इस देश में संविधान से उपर आज की सरकारें हो गई हैं? जब चाहे किसी का घर तोड़ दें,जब चाहे किसी की जमींन ले ली। रेलवे से ली गई जमींन और उसकी रजिस्ट्री का कागज जब संस्थान ने जिला प्रशासन को दिखाया तो किस आधार पर जिले के अफसरों ने उस कागज को फर्जी बता दिया। उस कागज को फर्जी बताने का मतलब हो गया विनोवा भावे के व्यक्तित्व और उनकी ईमानदारी पर संदेह करना। लेकिन दुख की बात तो यह है कि जिला प्रशासन ने इस प्रकार का आरोप लगाकर सर्व सेवा संघ के अस्तित्व को पूरी तरह से खत्म कर दिया।

सर्व सेवा संघ के उसी पुराने स्वरूप को पुनः वापस लाने के लिए देश भर के गांधीवादी नेता एकजुट होकर शासन और जिला प्रशासन के खिलाफ गांधीवादी तरीके से सत्याग्रह कर रहे हैं। फिलहाल, गांधीवादियों और सरकार के इस द्वण्द में किसकी किसकी जीत होती है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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