आर एस एस की विचारधारा के सामने गांधी सबसे बड़ी चुनौती और अवरोध है – मनीषा बनर्जी

आर एस एस की विचारधारा के सामने गांधी सबसे बड़ी चुनौती और अवरोध है – मनीषा बनर्जी

गांधी विरासत को बचाने के लिए वाराणसी स्थित राजघाट परिसर के सामने चल रहे सत्याग्रह का आज 75 वां दिन है। स्वतंत्रता आंदोलन में विकसित हुए लोकतांत्रिक भारत की विरासत और शासन की मार्गदर्शिका- संविधान को बचाने के लिए 11 सितंबर (विनोबा जयंती) से सर्व सेवा संघ के आह्वान पर “न्याय के दीप जलाएं -100 दिनी सत्याग्रह जारी है जो 19 दिसंबर 2024 को संपन्न होगा। सत्याग्रह आज सर्व धर्म प्रार्थना एवं गीता पाठ के साथ अपने 75 वें पायदान पर पहुँच गया है।

आज पर रूनी खातून एवं मनीषा बनर्जी उपवास पर बैठी हैं। ये दोनों महिलाएं शांति निकेतन से आई हैं।

शांतिनिकेतन, बीरभूम, पश्चिम बंगाल के पास एक गांव से आने वाली रुनी खातून का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे शांतिनिकेतन के आसपास के क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। गांधीजी के मार्ग पर चलते हुए, वे साम्प्रदायिक सौहार्द और न्याय के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।

लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान की कोर कमेटी सदस्य मनीषा बनर्जी का जन्म इलाहाबाद में हुआ और वह कोलकाता में पली-बढ़ी। वर्तमान में वह शांतिनिकेतन, बीरभूम, पश्चिम बंगाल में रहती हैं।

उन्होंने विश्व भारती से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर किया है और अब एक ग्रामीण कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं। 1989 में, जब वे विश्व भारती में छात्रा थीं, भागलपुर दंगों के बाद उन्होंने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार गौर किशोर घोष के साथ मिलकर दोनो समुदायों के बीच शांति और सौहार्द स्थापित करने का प्रयास किया। इस दौरान वे जयप्रकाश नारायण के अनुयायियों के संपर्क में आईं। यह घटना साम्प्रदायिकता और नफरत के खिलाफ काम करने और धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और सभी मानवाधिकारों के लिए प्रयास करने की प्रेरणा बनी। उन्होंने गांधी, रवींद्रनाथ और नारीवादी शिक्षिका रुकैया सखावत हुसैन के विचारों को अपने मार्गदर्शक के रूप में चुना।

कोरोना महामारी के दौरान, उन्होंने युवाओं के साथ मिलकर सामुदायिक रसोई चलाई, ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सीय सहायता प्रदान की। उन्होंने “ऑक्सीजन ऑन व्हील्स” नामक महिला समूह का गठन किया, जो घर-घर जाकर ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करता था। इस प्रयास को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने उन बच्चों के लिए एक खुला सामुदायिक शिक्षा केंद्र शुरू किया, जो स्कूल बंद होने के कारण शिक्षा से वंचित हो गए थे। पिछले दो वर्षों में “चलोमान पाठशाला” का यह विचार एक सफल पहल बन गया है, और इस मॉडल को अन्य स्थानों, खासकर आदिवासी क्षेत्रों में अपनाया गया है।

मनीषा नियमित रूप से सामाजिक मुद्दों पर लेख लिखती हैं, खासतौर पर शिक्षा और महिला सशक्तिकरण पर जोर देते हुए। उन्होंने अमर्त्य सेन की प्रतीचि ट्रस्ट के साथ काम किया है।

वे विश्व भारती के पूर्व कुलपति डा विद्युत चक्रवर्ती (जो आरएसएस से सहानुभूति रखते थे) द्वारा रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शुरू की गई 108 वर्षीय महिला संगठन अलापिनी महिला समिति को उनके कार्यालय से बेदखल करने के खिलाफ आंदोलन में भी सक्रिय रही हैं।

वर्तमान में मनीषा अपनी बेटी मेघना और विविध समुदायों के विद्यार्थियों के विस्तारित परिवार के साथ शांतिनिकेतन में रहती हैं।

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मनीषा बनर्जी मानती हैं कि केंद्र की वर्तमान भाजपा सरकार जिस आर एस एस की विचारधारा से संचालित है, गांधी उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती और अवरोध है। इसलिए यह सरकार गांधी संस्थाओं को चुन-चुन कर खत्म करने में लगी हुई है। रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांतिनिकेतन में 1915 में महात्मा गांधी जिस मकान में ठहरे थे, उस भवन को भी सील कर दिया गया है। लेकिन गांधी के विचार को खत्म करना असंभव है क्योंकि ये शाश्वत मूल्य हैं और जब तक इंसान इस पृथ्वी पर है तब तक इन मूल्यों की जरूरत बनी रहेगी। सत्याग्रह इन मूल्यों को मजबूत बनाता है।

सत्याग्रह स्थल पर बांग्ला पुस्तक सेवाग्राम का लोकार्पण किया गया। इस पुस्तक में सेवाग्राम से संबंधित संस्मरणों का बांग्ला अनुवाद का संकलन शिवाजी आदक द्वारा किया गया है। इसमें डॉ अभय बंग,अरुण गांधी, श्रीमन नारायण तथा इ स्टेनली जॉन्स के संस्मरण शामिल है। आज ही सत्याग्रह स्थल पर सर्वोदय डायरी 25 का भी लोकार्पण हुआ।

आज सत्याग्रह में उपवासकर्ता रूनी खातून और मनीषा बनर्जी के अलावा रामधीरज, विद्याधर, राजेंद्र यादव, राधे सिंह, प्रवीण वर्मा, शक्ति कुमार, तारकेश्वर सिंह, सुरेंद्र नारायण सिंह, उमेश मिश्रा, सागर शर्मा, झारखंड से मानिक चंद बेसरा, मुकुंद मुकद्दर, विश्वनाथ, अरविंद अंजुम तथा पश्चिम बंगाल से सिद्धार्थ मित्रा, गोपाल मांडी, अरविंद पूर्वे, रेलवे सलाहकार मंडल के पूर्व सदस्य ईश्वर चंद्र त्रिपाठी आदि शामिल रहे।

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