राम नहीं ब्राह्मण श्रेष्ठता की स्थापना का ग्रंथ है राम चरित मानस
शूद्र विरोधी तुलसीदास के रास्ते पर मोहन भागवत ही नहीं और भी हैं नाम
यह विचार कब और क्यों आया? जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ साहब ने अपने पैतृक गांव पुणे की खेड़ तालुका में लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि, रामजन्म भूमि -बाबरी मस्जिद का समाधान निकालने के लिए भगवान से प्रार्थना की थी। उन्होंने कहा था कि अगर किसी का विश्वास हो तो भगवान रास्ता निकाल ही लेता है। महोदय जी आप के मुख से यह बात सुनकर, संविधान और कानून में विश्वास रखने वाले लोगों का आप के ऊपर से विश्वास उठ गया है।
फिर सोचने लगा कि, बाबरी जजमेंट जो मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में फैसला दिया गया था। इतने सालों बाद सेवानिवृत्त के समय , आप आज इस तरह की असंवैधानिक बातें क्यों कर रहे हैं? क्या कहने से पहले इसके परिणाम के बारे में आप ने कुछ सोचा नहीं? क्या आप का विवेक मर चुका है? मुझे तो ऐसा लगता है कि, यह वक्तव्य आप के मुख से किसी के द्वारा दबाव में कहलवाया गया है। यदि ऐसा नहीं है और आप ने अपने विवेक से यह बात कही है तो, सच में आप ब्राह्मणवादी मानसिकता से ग्रसित इन्सान है!
मुख्य विषय पर आते हैं–
मुगलों मुसलमानों के शासनकाल में कुछ हदतक छुआ-छूत मिटने लगे थे, आपसी भाईचारा कायम होने लगा था। मनुस्मृति का प्रभाव कम होने लगा था। ब्राह्मणवादी अत्याचार से तंग आकर लोग स्वेच्छा से हिन्दू धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म अपनाना शुरू कर दिया था। अकबर बादशाह के शासनकाल में तो हिन्दू -मुस्लिम की आपसी भाईचारा और शादी विवाह भी बड़े पैमाने पर शान शौख से हो रहे थे। अकबर के दरबार की शान शौख में हिफाजा देने वाले नवरत्नों में हिन्दू ही थे। बादशाह अकबर को उस समय के क्षत्रिय राजपूत राजे महाराजे अपनी बहन बेटी देने में गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। यहां तक कि शादी सुदा अक़बर को एक के बाद एक क्षत्रिय राजाओं ने सात बेटियां दे दिया था। उस समय तो हिन्दू धर्म को कोई खतरा भी नहीं था।
लेकिन उस समय ब्राह्मण धर्म के ठेकेदारों को मुस्लिम भाई-चारा तथा देवी देवता और भगवान की मूर्ति पूजा के विरोध के परिप्रेक्ष्य में ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद के पतन का खतरा दिखाई देने लगा था।
इस परिस्थिति से उबरने के लिए धर्म के ठेकेदारों द्वारा उस समय पंडित तुलसीदास जी को जिम्मेदारी सौंपी गई और कहा गया कि ठेठ अवधी जन-मानस की हिंदी भाषा में श्री राम के चरित्र का वर्णन, राम को भगवान के रूप में पेश करते हुए ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद के गिरते महत्व को फिर से स्थापित करने की कोशिश करिए।
साहित्य लेखन में यदि कोई प्रतिबंध है तो स्वभावतया कलम गलत दिशा में चली ही जाएगी। रामचरितमानस के साथ भी ऐसा हुआ।
तुलसीदास जी ने अपना फर्ज निभाया और रामचरितमानस लिखा भी। उसका प्रचार भी जनमानस में इस तरह से किया गया कि लोग इस धर्म ग्रंथ को लिखने में खुद भगवान राम से प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला है। यहां तक कि त्रेता युग के राम को कलियुग में साक्षात अवतरित करा दिया गया था।
राजघाट पर बनत पूल, भयी संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन रगड़े, तिलक देत रघुबीर।।
सत्य में तुलसीदास ने ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को फिर से मजबूत करने के नशे में राम के चरित्र को भी कलंकित कर दिया है। राम एक क्षत्रिय राजा थे, लेकिन क्षत्रिय समाज, उनके खानदान, परिवार का वर्णन नहीं के बराबर है। यदि वर्णन है तो, आप किसी भी पन्ना को पलटिए, हर जगह सिर्फ शूद्र की बुराई और ब्राह्मण की बड़ाई नजर आएगी। सवाल है कि क्षत्रिय राजा की जीवनी में ब्राह्मण और शूद्र का वर्णन क्यों? यहां इस विषय पर कुछ ज्यादा लिखना उचित नहीं समझता हूं।
इस विषय पर मेरा बहुत चर्चित लेख तुलसी के राम भगवान, पुरुषोत्तम या साधारण इन्सान हमारी पुस्तक मानवीय चेतना में भी प्रकाशित है, जो अमाजोन या फ्लिपकार्ट पर आनलाइन उपलब्ध है।
इस काव्य को लिखने और शहरी दूर-दराज, गांव-गांव तक प्रचार प्रसार होने के बाद , तुलसीदास उस जमाने के महान कवि बना दिए गये। उनको आसमान की उंचाई तक पहुंचा दिया गया था। उनके मंदिरों में पूजा और उनकी जयंती तक धूमधाम से मनाई जाने लगी थी।
लेकिन हम सभी 20वीं- 21वीं सदी के विज्ञान की भौतिकवादी उपयोगिता और उसके प्रगतिशील विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए शुक्रगुजार हैं। सबसे बड़ी बात यह देश किसी धर्म-कर्म पर नहीं बल्कि भारत के वैज्ञानिक सोच एवं समता, समानता और बंधुत्व आधारित भारतीय संविधान से चल रहा है। आज उसी तुलसीदास को कोई नहीं पूछ रहा है, बल्कि उनको हिन्दू समाज का पथभ्रष्टक कहा जाने लगा है। अब बहुत कुछ उनके बारे में नकारात्मक लिखा जाने लगा है।
आज फिर से धर्म के ठेकेदारों को हमारी और आपकी मूर्खता के कारण, बहुत सालों के बाद ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को फिर से मजबूत करने का मौका मिला है। अब उनको भी अकबर के शासनकाल की धार्मिक स्थिति नजर आने लगी है। अब तो धर्म ही खतरे में पड़ गया है। देश की प्रगति और देशवासियों की खुशहाली की अब कोई चिंता नहीं है, विदेशों में नाम बदनाम हो जाए, उसकी भी कोई परवाह नहीं है, सिर्फ ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद को वर्चस्व को फिर से मजबूत करना है, सिर्फ अब देश के लिए यही पहली और अंतिम प्राथमिकता है। इसी उद्देश्य के लिए देश के पूरे शासन प्रशासन को काम पर लगा दिया गया है।
हिन्दू धर्म, ब्राह्मण धर्म या आजकल चर्चा में है सनातन धर्म, इस की प्रगति या पतन का एक ही आधार स्तम्भ है, भगवान या देवी – देवता में आस्था, इसकी मान्यता होगी तो मंदिर रहेगा, मंदिर होगा तो, ब्राह्मण पंडित पुजारी रहेगा। लोग उनसे पूजा पाठ करवाएंगे, भरण-पोषण के लिए दान दक्षिणा भी देंगे। उसके पैर भी पूजेंगे, उनको उच्च बनाएंगे, और खूद उससे नींच बनते और पूरे परिवार को नींच बनाते चले जाएंगे। यही तो अंतिम और आखिरी लक्ष्य है।
इसी लक्ष्य को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कई मोर्चों पर काम चल रहा है।
1)- सबसे पहले नेशनल मीडिया को गुलाम बना कर गोदी मिडिया बना दिया गया। मीडिया पत्रकारों ने अपनी नैतिकता, इन्सानियत, मानवता को ताक पर रखते हुए सरकार की गुलामी करने में लग गए, यानि अंधविश्वास , पाखंड, इश्वरी चमत्कार, जातियों में उच्चता की भावना और ब्राह्मण सबसे उच्च आदि इस तरह का प्रचार करने में लग गए।
2)- हिन्दू धर्म में एक प्रचलित परम्परा है कि, जब एक सम्पन्न, प्रतिष्ठित, तथाकथित विद्वान किसी भी पाखंडी परम्परा या इश्वरी चमत्कार को मानने लगता है तो, उसका देखा-देखी जनमानस भी उसी का अनुसरण करने लगता है। ज्यादातर पाखंडी बाबाओं का प्रचार प्रसार ऐसे सम्मानित लोगों को पैसे का प्रलोभन देकर बुलाया जाता है और उसका प्रचार प्रसार भी खूब किया जाता है। इस तरह पाखंडियों की दुकान फलने-फूलने लगती है। इस समय पूरे देश में सैकडों पाखंडी कथावाचक के द्वारा भोले भाले इन्सान विशेष रूप से औरतों को मानसिक गुलाम भक्त बनाया जा रहा हैं।
4)- शिक्षा से प्रबुद्ध होने, वैज्ञानिक तर्कशक्ति विकसित होने, जातियों में छुआ-छूत, ऊंच-नीच की भावना को नकारने की प्रवृत्ति हर इंसान में जागृति हो रही है, इसलिए अब ब्राह्मणों का मान-सम्मान घट रहा है और जनमानस में पांव लगी पंडित जी का प्रचलन विलुप्त हो रहा है। इससे निजात पाने के लिए भूतपूर्व राष्ट्रपति माननीय रामनाथ कोविद को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। पूरे देश को एक वीडियो दिखाया गया, जहां राष्ट्रपति महोदय खड़े हैं और कुर्सी पर बैठे हुए एक ब्राह्मण का पैर छूने को उनको कहा जा रहा है। मंदिर के गर्भगृह में घुसने नहीं दिया गया, बाहर सीढ़ियों पर बैठ कर पूजा अर्चना करते दिखाई दिए। इसी कड़ी में मौजूद राष्ट्रपति महोदया मुर्मू जी का भी शुद्धिकरण और मंदिर में बैरिकेडिंग लगाकर दूर से ही मूर्ति पूजा करने दिया गया है। यह सभी कृत्यों को वीडियो बनाकर पूरे देश में प्रचार प्रसार किया गया। जब कि हमारे देश के राष्ट्रपति को प्रथम नागरिक और पद और गरिमा में सर्वश्रेष्ठ की मान्यता है।
5)- इसी परिप्रेक्ष्य में अपने धर्मशास्त्रों में लिखे अनर्गल, कपोल-कल्पित असत्य बातों को साबित करने के लिए, कभी कोई नेता, मंत्री उल्टा सीधा वक्तव्य, जैसे गाय पवित्र है और हमारी माता है, उसका गोबर और मूत्र भी पवित्र है, गणेश की हाथी की मुड़ी को उस समय की विज्ञान की प्लास्टिक सर्जरी, संजय की दूरदृष्टी को टेलीविजन, यहां तक कि दावा है कि पुस्पक विमान बनाने तक का ज्ञान भी इनके वेदों पुराणों में था।
लेकिन अफशोस इन महान विद्वानों को लैट्रिन बनाने तक का ज्ञान नहीं हो पाया था। अपने मल-मूत्र अपने घर में जमा करके रखते थे और इसको बाहर फेंकने के लिए इन्सानों की एक जाति बना दिया। पुष्पक विमान बनाने का दावा करते हैं लेकिन बैलगाड़ी बनाने का हुनर नहीं था। अपने को ढोने के लिए डोली ढोने वाली एक कहार जाति बनाई। हर काम के लिए मशीन नहीं जाति बनाई, फिर भी शर्म नहीं आई।
इसी रिसर्च को आगे बढ़ाते हुए, मुझे ऐसा लगता है कि, मोदीजी जी को मुख्य न्यायाधीश के घर जाने को कहा गया। दोनों मिलकर गणपति बप्पा की पूजा की, वीडियो बनाकर पूरे जनमानस को दिखा कर, भगवान के अस्तित्व और ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को बनाए रखने की कोशिश की गई है।
जहां तक मेरा मानना है कि धर्म निरपेक्ष देश में आस्था विश्वास, पूजा पाठ हर इन्सान का व्यक्तिगत मामला है। घर की चहारदीवारी में ही शोभा देता है। इसका प्रचार प्रसार आस्था नहीं, ढोंग और पाखण्ड फैलाने का षडयंत्र है और संविधान विरोधी कृत्य है।
एक फरवरी 1951 को चंदौली, उत्तर प्रदेश में जन्म। मंडल अभियंता एमटीएनएल मुम्बई से सेवा निवृत्त, वर्तमान में नायगांव वसई में निवास कर रहे हैं।
टेलीफोन विभाग में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए, आप को भारत सरकार से संचार श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। नौकरी के साथ साथ सामाजिक कार्यों में इनकी लगन और निष्ठा शुरू से रही है। 1982 से मान्यवर कांशीराम जी के साथ बामसेफ में भी इन्होंने काम किया।
2015 से मिशन गर्व से कहो हम शूद्र हैं, के सफल संचालन के लिए इन्होंने अपना नाम शिवशंकर रामकमल सिंह से बदलकर शूद्र शिवशंकर सिंह यादव रख लिया। इन्हीं सामाजिक विषयों पर, इन्होंने अब तक सात पुस्तकें लिखी हैं। इस समय इनकी चार पुस्तकें मानवीय चेतना, गर्व से कहो हम शूद्र हैं, ब्राह्मणवाद का विकल्प शूद्रवाद और यादगार लम्हे, अमाजॉन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।