सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले सत्ता के भूखे हैं – रामजनम
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस केे अवसर पर वाराणसी के कचहरी स्थित अम्बेडकर पार्क में साझा संस्कृति मंच, पूर्वांचल बहुजन मोर्चा और नेशनल अलाइंस फॉर सोशल जस्टिस के संयुक्त तत्वावधान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में आए अधिकांश वक्ताओं ने देश में मानवाधिकार की हनन की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की। अवसर पर उपस्थित वक्ताओं ने कहा गया कि दुनिया भर में हो रहे हमलों युद्ध सांप्रदायिक हिंसा के कारण मानवाधिकारों पर हो रहे दमन और उनके मानसिक प्रताड़ना पर हम सब चिंतित हैं। इजराइल द्वारा लगातार फिलीस्तीनी लोगों पर किए जा रहे पिछले एक वर्ष से अधिक हमले,यूक्रेन पर हमले, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले एवम् भारत में मणिपुर, सम्भल सहित देश भर में हो रहे अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों एवं महिलाओं पर हो रही हिंसा के खिलाफ भारत सहित विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा और शांति की अपील। भारत में मानवाधिकारों के हनन और उनकी मानसिक प्रताड़ना बंद हो । मणिपुर,सम्भल सहित में हो रहे हिंसा पर रोक लगाई जाए और सरकार अपनी जवाबदेही तय करे।
कार्यक्रम में बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम कुमार नट ने कहा कि पिछले काफी समय से नट घुमंतू समुदाय यानी नट के साथ ही धरिकार के साथ लगातार काम कर रहा हूं । इस समुदाय की आज बहुत पिड़ाएं हैं। यह पीड़ा जो 1871 से चली आ रही है। उस समय तो हमारी एफआईआर तक लिखी जाती थी। उस समय हमें इतनी भी आजादी नहीं थी कि हम स्वतंत्र होकर घूम सकें। जब हमें अपने कबीले से कहीं जाना होता था तो हमें उसकी सूचना देकर ही जाना होगा। उससे भी बड़ी बात तो यह थी कि जब हमारी मां – बहनों के साथ बलात्कार की घटनाएं होती थीं तो उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती थी। लेकिन 1992 के आयंगर की रिपोर्ट की रिफारिश के बाद इसमें थोड़ा बदलाव जरूर हुआ लेकिन वह संतोषजनक नहीं है। आज नट,बहेलिया, गड़ेरिया लोहार जैसी तमाम जातियों को आदतन अपराधी कहा जाता है। यह मानवाधिकार का बहुत बड़ा उल्लंघन है।
कार्यक्रम में बोलते हुए किसान नेता रामजनम ने कहा आज जब हम अपने चारो तरफ देख रहे हैं तो हम यही पा रहे हैं कि हमारे चारो तरफ मानवाधिकार का घोर उल्लंघन हो रहा है। आज मानवीय संवेदनाएं इतनी कमजोर कैसे हो जा रही है, यह एक बड़ा सवाल है। इसी दुनिया में लोगों ने मिलकर बहुत से असंभव काम किए हैं लेकिन आज ऐसी स्थिति क्यों बन गई है कि लोग एक दूसरे फूटी आंखों नहीं देख रहे हैं। धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश हो रही है। इसके पीछे का मूल कारण क्या है? तो जहां तक मुझे समझ में आता है इस प्रकार की सोच के पीछे का कारण सत्ता पर काबिज रहने के साथ ही राजनीति में स्थापित होने की मानसिकता है। इसके पीछे एक ताकत है। यह ताकत हमारे देश के साथ ही दुनिया की भी है। दुनिया में आज नफरत की फसल लहलहा रही है । सत्ता में काबिज लोग उस फसल को काट रहे हैं और हम तमाशबिन बने हुए हैं। हमारे आसपास अल्पसंख्यकों की जो स्थिति बनी हुई है वह बड़ी ही दयनीय है। उन्हें पूजा पाठ करने से रोका जा रहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता फादर आनन्द ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज भारत में मानवाधिकार हनन की घटनाएं बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं जो एक चिंता का विषय है। पूरे देश में जहां दक्षिणपंथी विचारधारा बढ़ गयी है वहां पर मानवाधिकार उल्लंघन के मामले ज्यादा हो रहे हैं।
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता संजीव सिंह ने इस अवसर पर कहा लोगों को आपस में लड़ाकर आपसी भाईचारे को खत्म करने की साजिश रही जा रही है। मणिपुर जल रहा है लेकिन वहाँ के मुख्यमंत्री का इस्तीफा तक नहीं लिया गया। उन्हें हटाया तक नहीं गया।
अनूप श्रमिक ने अपने संबोधन में कहा आज पूरे देश में सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने की लगातार कोशिश की जा रही है। देश को साम्प्रदायिका की आग में झोकने की साजिश हो रही है। भारत में मानवाधिकार की स्थिति ठीक नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता मानसिक तनाव और उत्पीड़न के शिकार हैं। युवा पीढ़ी आत्महत्या कर रही है अवसाद में है। सवाल पुछने वाले अंदाज में कहा पिछले एक दशक में कहा गयी भारत की गायब हुई 40 लाख बेटियां?
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रेमप्रकाश ने कहा आज हमारे देश में सामाजिक सौहार्द को खराब करने की लगातार कोशिश हो रही है। अभी इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधिश का एक बयान सामने आया, जिसमें वे कह रहे हैं कि यह हिन्दुस्तान है और यह देश यहां रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही चलेगा।
कार्यक्रम का संचालन जागृति राही ने किया। धन्यवाद डॉ अनूप ने दिया। सभा में रामधीराज, राजेंद्र चौधरी फादर जयंत, वल्लभ, रौशन, इंदु, विद्याधर, सुशील, महेन्द्र, दिलिपकुमार, निहाल गांधी जोखन यादव ने सहभागिता की।
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डॉ राहुल यादव न्याय तक के सह संपादक हैं। पिछले 20 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं । दलित, पिछड़े और वंचित समाज की आवाज को मुख्यधारा में शामिल कराने के लिए, पत्रकारिता के माध्यम से सतत सक्रिय रहे हैं।