प्रयागराज : सरकार की दमन की कोशिशों के बीच छात्र आंदोलन हुआ तेज, अखिलेश यादव ने किया छात्रों का समर्थन
चौथे दिन भी आंदोलन जारी, छात्र पीछे हटने को नहीं हैं तैयार, कहा ना हटेंगे ना बटेंगे, आयोग ने बुलाई बैठक
प्रयागराज। सड़कों पर आज सुबह अराजक दृश्य देखने को मिले, जब उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग कार्यालय के बाहर प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने पुलिस के साथ झड़प की और बैरिकेड तोड़ दिए। छात्र मांग कर रहे हैं कि प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) और समीक्षा तथा सहायक समीक्षा अधिकारी पदों पर भर्ती के लिए परीक्षाएं एक ही पाली में आयोजित की जाएं। लोक सेवा निकाय ने पहले घोषणा की थी कि पीसीएस (प्रारंभिक) 7 और 8 दिसंबर को दो पालियों में आयोजित की जाएगी आरओ/एआरओ परीक्षा 22 और 23 दिसंबर को दो पालियों में आयोजित की जाएगी ।
पिछली असफलताओं का हवाला देते हुए, कुछ उम्मीदवारों का कहना है कि नियमितता और पारदर्शिता की कमी के कारण उन्हें सिस्टम पर भरोसा नहीं है। पीएससी प्रारंभिक परीक्षा मार्च 2024 में होनी थी, जिसे दिसंबर 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया गया। इसके अलावा, आरओ/एआरओ परीक्षा का पेपर फरवरी 2024 में लीक हो गया और बाद में रद्द कर दिया गया। उसके बाद तारीख दिसंबर 2024 में तय होने से पहले टलती रही। ऐसी स्थिति में, हम प्रारूप में बदलाव लाने के आयोग के फैसले पर कैसे भरोसा कर सकते हैं? एक शिफ्ट की परीक्षा में पेपर लीक होने की संभावना बहुत कम होती है। प्रयागराज के एक अन्य उम्मीदवार अंगेश गौतम ने कहा, “अगर मांगें नहीं मानी गईं तो विरोध एक बड़े अनिश्चितकालीन आंदोलन में बदल जाएगा।” दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने जवाब दिया कि उम्मीदवारों की मांग के जवाब में सुधार किए गए थे ।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने एक बयान में कहा है कि सामान्यीकरण प्रणाली नई नहीं थी क्योंकि इसका व्यापक रूप से देश भर में प्रतिष्ठित भर्ती निकायों द्वारा उपयोग किया जा रहा था। इसने तर्क दिया कि जब एक ही भर्ती अधिसूचना के लिए कई दिनों या शिफ्टों में परीक्षा आयोजित की जाती है, तो परिणामों के मूल्यांकन में स्कोर सामान्यीकरण प्रक्रिया आवश्यक होती है क्योंकि प्रत्येक शिफ्ट/दिन में पेपर का कठिनाई स्तर भिन्न होता है। परीक्षाओं की अखंडता और गुणवत्ता बनाए रखने के लिए, 5 लाख से अधिक उम्मीदवारों के होने पर कई शिफ्टों में परीक्षा आयोजित करना आवश्यक है। जब एक ही विज्ञापन के लिए कई दिनों या शिफ्टों में परीक्षा आयोजित की जाती है, तो परिणामों के मूल्यांकन के लिए सामान्यीकरण प्रक्रिया आवश्यक होती है।
प्रदर्शन मेन शामिल एक प्रतियोगी ने कहा, “आयोग का कहना है कि वह इन परीक्षाओं को केवल 41 जिलों के सरकारी स्कूलों में ही आयोजित कर सकता है, क्योंकि उसके पास सीमित संख्या में केंद्र हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आयोग के पास केवल एक ही जिम्मेदारी है और वह उसमें भी विफल रहा है। सभी जिलों में एक ही दिन में परीक्षा क्यों नहीं आयोजित की जा सकती?”
इससे पहले, आयोग के कार्यालय में तोड़फोड़ के बाद 12 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अभिषेक भारती ने कहा कि कुछ “असामाजिक तत्व” प्रदर्शनकारियों में घुस आए थे और उन्हें भड़का रहे थे। “हमने उन्हें हिरासत में लिया है और कार्रवाई कर रहे हैं। हमने किसी भी महिला छात्र को हिरासत में नहीं लिया है। यह एक झूठी खबर है,” उन्होंने कहा।
इस विरोध प्रदर्शन ने राजनीतिक विवाद को जन्म दिया है, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है। योगी आदित्यनाथ सरकार की आलोचना करते हुए अखिलेश यादव ने कहा उप्र की अहंकार से भरी भाजपा सरकार लाख कोशिशों के बाद भी आख़िर में इलाहाबाद के जुझारू आंदोलनकारी युवक-युवतियों के सामने हारेगी और दिखावा ये करेगी कि सब गलती उप्र लोक सेवा आयोग के अधिकारियों की है।
देश-प्रदेश चलाने के लिए जो प्रतिभावान युवा IAS/PCS या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में अभ्यर्थी बनते हैं, उनमें इतनी अधिक समझ होती है कि वो ये बात आसानी से समझ सकें कि इस खेल के पीछे असल में कौन है। भाजपा के चेहरे से एक के बाद एक मुखौटे उतर रहे हैं और भाजपा का ‘नौकरी विरोधी’ चेहरा अभ्यर्थियों के सामने बेनक़ाब होता जा रहा है। अच्छा हो कि भाजपा नाटक करना छोड़ दे। भाजपा युवाओं के भविष्य को अपने भ्रष्टाचार से दूर रखे।
जब भाजपा जाएगी
तब नौकरी आएगी!
तो वही कांग्रेस पार्टी की ओर से X पर जारी बयान मेन कहा गया है कि यूपी के इलाहाबाद में BJP सरकार छात्रों के आंदोलन को कुचलने में लगी है। पुलिस को भेजकर छात्रों के साथ जैसा बर्ताव करवाया गया वो बिलकुल सही नहीं। ये बेहद शर्मनाक है।छात्रों की मांग जायज है, उन्हें सुनना चाहिए और उनकी बात माननी चाहिए।
डॉ राहुल यादव न्याय तक के मुख्य संवाददाता हैं । पिछले 20 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं । दलित, पिछड़े और वंचित समाज की आवाज को मुख्यधारा में शामिल कराने के पत्रकारिता के माध्यम से सतत सक्रिय रहे हैं।