फिर से खीची जा रही है सवर्ण और अवर्ण भारत की विभाजक रेखा
सैकड़ो सालो से भारत में आम जनता दो भागों में बटी हुई थी। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन तीनो ने आपसी समझौता, विद्या, सम्पत्ति और ताकत का एक दूसरे का सहयोग करते हुए, शूद्रों का शोषण करने के लिए एक अपना अलग मनुस्मृति कानून बना लिया था । फिजिकल कर्म करके कुछ भी उत्पादन करना इनके लिए वर्जित था। यहां तक तक कि आपसी एकता और ताकत बनी रहे , इसलिए आपस में एक दूसरे की जाति और गोत्र मे शादी का नियम बनाया था। इनके शोषण और अत्याचार के कारण शूद्रों में विद्रोह न पैदा होने पाए, इसलिए उनको शिक्षा, सम्पत्ति और अस्त्र शस्त्र से वंचित कर दिया गया था। इनको कयी हजार टुकड़ों में बाटकर, ऊंच-नीच बनाकर अलग-थलग कर दिया था। फिर भविष्य मे एक न होने पाए, इसके लिए अलग-अलग नियम कानून का निर्माण किया।
इस तरह भारत सामाजिक राजनीतिक रूप से दो भागो में बट गया था। शोषण करने वाला और शोषित होने वाला समाज, जिसे आजकल हम लोग सवर्ण (ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य) और अवर्ण (शूद्र)के नाम से जानते पहचानते है।
राजपाट का आम जनता से कोई लेना देना नही होता था। राजाओं के साम्राज्य विस्तार में जब एक राजा हारता था तो, प्रजा जीते हुए राजा के साथ हो जाती थी। तुलसीदास ने भी इसको प्रमाणित किया है। कोई नृप होय हमें का हानी।
यही कारण था कि कोई भी विदेशी हमलावर आता, राजाओ को हराता और गुलाम बनाता चला गया। मुगलो-मुसलमानो के शासन काल मे मनुस्मृति का कानून कुछ ढीला पडने लगा। फिर अंग्रेजी हुकुमत में तो पूरी तरह ध्वस्त हो गया। शूद्रो को भी शिक्षा सम्पत्ति और हथियार रखने का अधिकार मिलने लगा। कुछ अवर्ण और सवर्ण आपस मे उठने बैठने और साथ में रहने लगे। अवर्ण और सवर्ण के बीच असमानता की खांई कुछ पटने लगी।
1947 में भारत अंग्रेजी शासन से स्वतंत्र हुआ। अंग्रेजी शासन से हमें राजशाही शासन नही, लोकतंत्रीप गणराज्य प्राप्त हुआ। 1950 में समता समानता और बंधुत्व पर आधारित संविधान बनते ही सवर्ण और अवर्ण की दीवार ध्वस्त हो गई।
सम्वैधानिक रूप से सवर्ण और अवर्ण के बीच की असमानता की खांई को पाटने की भरसक कोशिश की गई। कांग्रेस सरकार ने कुछ हद तक सफलता भी पायी।
इन्सान का एक मौलिक गुण होता है। गरीब से अमीर होने के सफर में सुखमय जीवन की अनुभूति प्राप्त होती है, लेकिन वहीं जब मान-सम्मान, शानो-शौकत, अमीरी और स्वच्छन्द ऐआसी अचानक छिन जाती है तो, वह उस इन्सान के लिए त्रासदी बन जाती है और जब वह उसे अपना अधिकार समझकर याद करने लगता है तो त्रासदी और भी वीभत्स हो जाती है, जिसे वह कभी भी नही भूल पाता है। एक अकेले की बात होती है तो वह अपनी गलती या मजबूरी समझकर भूल जाता है, लेकिन जब एक समूह या वर्ग की बात होती है, तब उसे वापस पाने की छटपटाहट तेज हो जाती है। तब वह एक संगठन या मोर्चा का रूप लेता है, वही हुआ भी, जिसे हमलोग आजकल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नाम से जानते है।
अंग्रेजों के शासन काल में ही अपना खोया हुआ मान सम्मान पाने के लिए इनके अंदर झटपटाहट शुरु हो गई थी। लोकतंत्रीय प्रणाली आने पर बहुमत में आने के लिए ब्राह्मण महासभा छोड़कर हिन्दू महासभा बना ली और अपने उद्येश्य ब्राह्मणवाद को फिर से प्रस्थापित करने के लिए 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर ली।
ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजों के साथ इनकी मिलीभगत थी, लेकिन उनकी इन्सानियत, न्यायवादी और मानवतावादी दृष्टिकोण के आगे ए सभी मनुवादी भीगी बिल्ली बने हुए थे। उन्होने तो अपने शासन काल में मनुस्मृति की धज्जी उडाते हुए, एक अपराधी ब्राह्मण को भी फांसी दे दी थी। उस समय देश भर में बहुत बड़ा भूचाल आ गया था।
स्वतन्त्रता के बाद कांग्रेस के शासनकाल में, मनुवादी स्लीपर सेल बनकर शासन प्रशासन और मीडिया में घुसपैठ कर पाए। कांग्रेस बटवारे के बाद बदहाल भारत को विकसित भारत बनाने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और औद्योगिकरण पर विशेष ध्यान देने लगी। इसी बीच पूरे देश में मनुवादियों के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संगठन बनने लगे। काफी संख्या में कांग्रेस के शासन प्रशासन में घुसपैठ भी कर लिए। अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए गलत या सही, सभी तरह के हथकंडे अपनाए जाने लगे। यहां तक कि, देश को छति पहुंचाते हुए, कयी जगहों पर बमब्लाष्ट तक कराये गये और शासन प्रशासन की मिलीभगत से दोष मुसलमानों पर मढा जाने लगा। इनका मकसद साफ था कि हिन्दुओं को एकजुट करने के लिए मुसलमानों और हिन्दुओं में नफरत फैलाई जाए। मिडिया के माध्यम से देशभक्त का चोला बराबर पहनते रहे। इनकी गतिविधियों पर कांग्रेस और उसके बाद आने वाली सभी राज्य सरकारें भी मूकदर्शक बनी रही। नतीजा यह निकला कि 2014 में अपनी बहुमत की सरकार बना ली।
भगवा मंडली के 10-11 सालों के क्रिया-कलापों का आंकलन करते हुए समीक्षा करेंगे और देखेंगे कि कैसे छुपे एजेंडे की तरह मनुस्मृति के आधार पर ही सवर्ण और अवर्ण के बीच में खांई पैदा कर रहे हैं।
शिक्षा व्यवस्था- कांग्रेस ने जो राइट टू एजुकेशन के माध्यम से शूद्रों को जो फ्री एजुकेशन दिया जा रहा था, उसे भगवा मंडली धीरे धीरे खत्म करने का प्रयास कर रही है। इससे 90% शूद्र समाज ही लाभान्वित हो रहा था। शिक्षा को निजीकरण करते हुए, मंहगीकरण इसलिए कर दिया जा रहा है कि, 90% सवर्ण समाज ही शिक्षा प्राप्त कर पाएगा तथा 90% अवर्ण समाज शिक्षा से बंचित हो जाएगा। शिक्षा जैसे महान काम को भी इनलोगों ने कलंकित कर दिया है। आगरा के एक कालेज में मैने देखा कि, क्षात्र के आई कार्ड पर जाति का कालम आ गया है और उसमें SC लिखा हुआ है।
इसे देखते ही अतीत की याद ताजा हो जाती है। 100-150 साल पहले दक्षिण भारत में, बचपन में ही अछूतों की पहचान के लिए, ललाट पर गोधन का टीका लगा दिया जाता था। आप ही तय कीजिए कि ऐसी घृणाजनक शिक्षा व्यवस्था से क्या यहां वैज्ञानिक सोच पैदा होगी।
संपत्ति- पिछले 50-60 सालों में कुछ 5-10% अवर्ण समाज भी छोटे मोटे उद्योग-धंधों से संम्पत्ति अर्जित कर रहा था, इससे मनुस्मृति के संविधान का उल्लंघन हो रहा था। इसलिए हिन्दू-धर्म की रक्षा के लिए भारत की सम्पत्ति को दो बेच रहे है और दो खरीद रहे है । इस तरह पूरे अर्थ तंत्र को निजीकरण करने की कोशिश हो रही है। यदि कोई शूद्र वहां नौकरी भी करेगा तो गले में जाति का टैग लगाना पड़ेगा। आप अंदाजा लगाइए, अवर्ण और सवर्ण समाज में दूरियां बढ़ेगी या घटेगी।
हवाई जहाज, बुलेट ट्रेन, बंदे भारत, लम्बी दूरी की ट्रेनों में जनरल और स्लीपर बोगी घटाकर, एसी बोगियां बढ़ाई जा रही है। मुम्बई की जीवन रेखा लोकल ट्रेन को भी एसी लोकल में बदला जा रहा है। आगे आने वाले दिनों में रिजर्वेशन फार्म में एक नया आधुनिक वैज्ञानिक पहचान आप की कैटेगरी जनरल SC, ST, OBC भरना अनिवार्य कर दिया जाएगा और रिजर्वेशन में जाति की प्राथमिकता कंप्यूटर में फिट कर दी जाएगी। क्या आप इन गाडियो में गले में पहचान लगाकर सफर कर पाएंगे। यकीन मानिए आप को मना नही किया जाएगा, लेकिन आप संपन्न होते हुए भी स्वयं सफर नही कर पाएगे। अभी हाल ही में एक लेडी को बंदे भारत की एक बोगी में घुसने पर अपमानित होना पड़ा है।
मुझसे किसी ने इन्टरव्यू में पूछा था कि,पता चला है कि, आप सक्षम होते हुए भी, ज्यादातर स्लीपर क्लास में सफर करते हैं। सही सुना है,आप ने, स्लीपर में 90% अपने लोग रहते है, कभी-कभार चर्चा में अच्छी-खासी बहस होते हुए मिशन का काम भी हो जाता है, जो एसी में पासिवल नही है।
जब सफर की इन परिस्थितियों का आकलन करते है तो, अनायास ही अतीत की यादे ताजा हो जाती है। जब अंग्रेजों ने भारत में रेल लाइन बिछाना शुरु किया था तो ब्राह्मणों ने जबरदस्त विरोध किया था। आम जनता को यह कहते हुए भडकाया गया था कि, बेधर्मी अंग्रेज धरती माता को लोहे से बाध रहे हैं, पृथ्वी पर अधर्म हो जाएगा। विरोध इतना तक पहुंच गया था कि दिन में बिछाई गई लाइन को रात को उखडवा देते थे। कही कही तो उखाडी गई लाइन पर देवी देवता की मूर्ती स्थापित कर देते थे। कभी-कभार पब्लिक का आक्रोश देखते हुए रास्ता बदलना पड़ जाता था। आज भी बहुत से जगहों पर रेलवे लाइन के बीच में या आजूबाजू मे देवी देवता या किसी भगवान का मंदिर मौजूद मिल जाता है। विरोध इसलिए था कि, एक ही सीट पर या एकही बोगी में ब्राह्मण अछूत के साथ नही बैठ सकता है, धर्म की रक्षा के लिए ब्राह्मणों के लिए सेपरेट बोगी चाहिए। उस समय अंग्रेजों नें डंडे मारकर थर्म को भ्रष्ट कर दिया था। लगता है बदला लेने की भावना शुरु हो गयी है।
हमें ऐसा दिखाई दे रहा है कि, मनुवादी संविधान में संशोधन किए बगैर ही अवर्ण और सवर्ण की खांई को चौडी करने में सफल हो जाएगे।
मेरा मानना है कि अगर अवर्ण और सवर्ण के बीच की खाई बढती है तो बेशक बढने दीजिए। शूद्र या बहुजन समाज का नुकसान तब ज्यादा होगा, जब आपस में बटे रहेगें। इससे निजात पाने के लिए एक ही विकल्प है, पूरे देश में ब्राह्मणवाद के खिलाफ शूद्रवाद की आवाज बुलंद कर दीजिए और इनसे भागिये नही, आमने सामने होकर डटकर मुकाबला कीजिए। यकीन मानिए और प्रमाण भी सामने आ रहे हैं, ब्राह्मणवाद घुटने टेक देगा। इस तरह अवर्ण और सवर्ण भारत बनाने वालो को मुहतोड जवाब दिया जा सकता है।
एक फरवरी 1951 को चंदौली, उत्तर प्रदेश में जन्म। मंडल अभियंता एमटीएनएल मुम्बई से सेवा निवृत्त, वर्तमान में नायगांव वसई में निवास कर रहे हैं।
टेलीफोन विभाग में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए, आप को भारत सरकार से संचार श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। नौकरी के साथ साथ सामाजिक कार्यों में इनकी लगन और निष्ठा शुरू से रही है। 1982 से मान्यवर कांशीराम जी के साथ बामसेफ में भी इन्होंने काम किया।
2015 से मिशन गर्व से कहो हम शूद्र हैं, के सफल संचालन के लिए इन्होंने अपना नाम शिवशंकर रामकमल सिंह से बदलकर शूद्र शिवशंकर सिंह यादव रख लिया। इन्हीं सामाजिक विषयों पर, इन्होंने अब तक सात पुस्तकें लिखी हैं। इस समय इनकी चार पुस्तकें मानवीय चेतना, गर्व से कहो हम शूद्र हैं, ब्राह्मणवाद का विकल्प शूद्रवाद और यादगार लम्हे, अमाजॉन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।