कोई नीति नहीं है बिहार में पुल-पुलियों के रखरखाव को लेकर

कोई नीति नहीं है बिहार में पुल-पुलियों के रखरखाव को लेकर

बिहार में यह समय सिर्फ राजनीति में मूल्यों के ध्वस्त होने का समय नहीं है बल्कि राजनीति के साये में हुए निर्माण के ध्वस्त होने का भी समय है। जिस तरह से पिछले 11 महीने से बिहार में राजनीतिक संबंध सेतु कमजोर बुनियाद की कहानी में धराशाई हुए हैं। जिस तरह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वैचारिक विखंडन हुआ है अब उसी तरह से बिहार में पुल-पुलिया गिरने या क्षतिग्रस्त होने का सिलसिला शुरू हो गया है।   है। पिछले 11 दिनों के अंदर पांच पुल गिर चुके हैं।

हालांकि सरकार पुल के टूटने या धराशायी होने की घटना की जांच कराने की बात जरूर कर रही है। पुलों के गिरने से सिर्फ ईंट पत्थर नहीं गिरता है बल्कि सरकार की शाख भी गिरती है। इस शाख को बचाने के लिए अब सरकार ने भी करवट बदली और अब पुल की कमजोरी को जानने और नए पुल मजबूत बने, इसके लिए सभी ग्रामीण पुलों की स्ट्रक्चरल ऑडिट कराने जा रही है। यह गिरना साफ दिखाता है कि निर्माण में अनदेखी की गई है। निर्माण में अनदेखी के पीछे सीधा स कारण उस लागत में सेंध लगाने से होता है जिस लागत से पुल का निर्माण किया गया है।

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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत साफ तौर पर पश्चिम बंगाल के एक पल गिरने पर कहा था कि पल का गिरना act of fraud है। अब यह फ्राड अयोध्या से लेकर दिल्ली बिहार हर जगह खूब फला फूला दिखता है। उत्तर प्रदेश के अयोध्या में तो राम पथ में ही बड़ा-बड़ा होल  या फिर प्रधानमंत्री के शब्दों में कहें तो बड़ा एक्ट ऑफ फ्रॉड हो गया है। फिलहाल मोदी जी के लिए पल में होल होने से पहले अयोध्या की राजनीति में भी होल हो गया। अयोध्या में बने मंदिर के दम प्रधानमंत्री को उम्मीद थी की राम भरोसे देश जीत लेंगे पर राम को जैसे सत्ता अब तक ठगती रही थी कुछ इसी तरह राम के लोगों ने राजनीति को इस बार खुद को ठगा महसूस करने पर विवश कर दिया और अयोध्या में राम को लाने का दावा करने वालों को अयोध्या से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

राजनीति में निर्माण से सीमेंट चुराना कोई नई बात नही है पर इस सीमेंट चुराने के खेल में इतनी सुचिता तो दिखानी ही चाहिए की धन की लूट हो पर जान माल को सुरक्षित रखा जा सके। दिल्ली में एयरपोर्ट की छत गिरने से दुखद तरीके से एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई है क्या प्रधान मंत्री इस एक्ट ऑफ फ्रॉड में मारे व्यक्ति की मृत्यु को तंत्र द्वारा कि गई हत्या के रूप में देखेंगे। बहुत हद तक नहीं। रेलवे  या निर्माण के ध्वस्त होने से मरने वाले लोग दरअसल किसी घटना का शिकार नहीं होते हैं बल्कि सरकार के तंत्र द्वारा बरती गई लापरवाही या लूट पाट की वजह से तैयार की गई स्थिति द्वारा की गई हत्या का शिकार होते हैं।

ऐसा नहीं कि बिहार में पुल धराशायी या टूटने की घटना इसी सरकार में हो रही है। प्रदेश में सरकार महागठबंधन की रही हो या एनडीए की, पुल गिरते रहे हैं और विपक्ष सरकार पर सवाल उठाता रहा है।  जानकारी के मुताबिक बिहार में पुल-पुलियों के रखरखाव को लेकर कोई नीति नहीं है, जिस कारण पुराने पुलों की मॉनिटरिंग नहीं हो पाती है और बन रहे पुल-पुलियों में निर्माण सामग्री में गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखा जाता है।  हालांकि सरकार अब इस मामले को लेकर सचेत दिख रही है। ग्रामीण कार्य विभाग ने अब पुल-पुलियों की ऑडिट करवाने का निर्णय लिया है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर विभागीय अभियंताओं और अधिकारियों की तैनाती होगी। विभागीय ऐप के माध्यम से हर दिन ऑडिट से जुटाई गई जानकारी मुख्यालय भेजी जाएगी। इस आधार पर मुख्यालय स्तर से मॉनिटरिंग होगी। 

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सभी आंकड़े इकट्ठा होने के बाद इसकी दोबारा जांच की भी व्यवस्था की जायेगी। जुटाई गई तमाम जानकारियों के आधार पर पुल का ग्रेड तैयार होगा और इसके बाद पुल के मरम्मत या पूरी तरह से पुनर्निर्माण पर विचार किया जाएगा।  गौरतलब है कि 18 जून को अररिया के सिकटी प्रखंड के बकरा नदी पर उद्घाटन के लिए तैयार पुल अचानक भरभराकर गिर गया। इस मामले को लेकर पथ निर्माण विभाग ने तत्काल कई इंजीनियरों को निलंबित कर दिया और एक जांच दल का गठन कर जांच की जिम्मेदारी दे दी।  पुल-पुलिया गिरने को लेकर प्रदेश में राजनीति भी खूब होती रही है। आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले दो सालों में प्रदेश में नौ छोटे-बड़े पुल ध्वस्त या क्षतिग्रस्त हुए हैं।  पिछले 11 दिनों में सीवान, अररिया, पूर्वी चंपारण, किशनगंज में पुल गिरने के बाद शुक्रवार को मधुबनी के भुतही बलान नदी पर बन रहे एक निर्माणाधीन पुल का गर्डर गिर गया।

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