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एक ही ज़िंदगी में दो बार उम्र कैद, बाहुबल की बुलंदी या फिर माफियागीरी का मातमी राग

एक ही ज़िंदगी में दो बार उम्र कैद, बाहुबल की बुलंदी या फिर माफियागीरी का मातमी राग

मुख्तार अंसारी कभी पूर्वाञ्चल में डर का पर्याय माने जाते थे। मर्जी के बिना आम तो क्या खास भी नहीं हिलते थे। उस दौर में उन्होंने गोरखपुर के योगी आदित्यनाथ को भी मऊ की मिट्टी से बैरंग लौटा दिया था। तब शायाद मुख्तार को यह अंदेशा भी नहीं रहा होगा कि जिस योगी को आज वह अपनी हनक से वापस लौटने को मजबूर कर रहे हैं वही योगी एक दिन प्रदेश की सियासत का बादशाह बन जाएगा और जिंदगी कि सच्ची कहानी सिनेमा की रील में तब्दील हो जाएगी।

बांदा जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी को जिले की एमपी/एमएलए कोर्ट की अदालत ने नौ महीने बाद ही दूसरी बार उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस बार मुख्तार को गाजीपुर के 33 वर्ष पुराने फर्जी असलहा लाइसेंस मामले में सजा सुनाने के साथ 2.02 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। यह मामला दिसंबर 1990 में गाजीपुर के मोहम्मदाबाद थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था।

इस सजा से पहले अदालत ने अवधेश राय हत्याकांड में 5 जून 2023 को मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

वैसे तो मुख्तार अट्ठारह साल से जेल में हैं पर सजा मिलने की शुरुआत पिछले 18 महीनों से शुरू हुई। इन 18 महीनों में  मुख्तार को आठ मामलों में सजा मिल चुकी है। इतना ही नहीं अभी भी मुख्तार के खिलाफ करीब 65 मुकदमे दर्ज हैं। मुख्तार 18 वर्षों से जेल में है।

एमपी एमएलए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश अवनीश गौतम की अदालत ने फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले में बुधवार को मुख्तार अंसारी को उम्रकैद की सजा सुनाते हुये कहा कि मुख्तार को अधिकतम दंड से असामाजिक तत्व हतोत्साहित होंगे। अदालत ने कहा कि जिलाधिकारी के फर्जी हस्ताक्षर से असलहे का लाइसेन्स प्राप्त करना अभियुक्त के आपराधिक मनोवृत्ति को सामने लाता है।

मुख्तार ने माफिया मुख्तार बनने  में एक लंबी यात्रा तय की है। मुख्तार कैसे पूर्वाञ्चल का सबसे बड़ा माफिया बना, नेता बना और अब शेष जिंदगी जेल में है।

उत्तर प्रदेश के बाहुबली  का पहला नाम मुख्तार का भले नहीं हो पर अगर सबसे ताकतवर बाहुबली के नाम की बात हो तो मुख्तार के नाम के आगे हर नाम बहुत ही छोटा हो जाता है। मऊ और गाजीपुर से शुरू हुई इस हनक के तेवर प्रदेश से बाहर दिल्ली और मुंबई तक अपनी धाक का डंका पीटते दिखते हैं। 

 जिस मुख्तार के नाम से पूर्वाञ्चल का मन और मान दोनों कांप जाता था,उसके बाहुबली बनने की कहानी भरपूर सिनेमैटिक है। बदले से शुरू हुई इस दास्तान में रोमांस, एक्शन, थ्रिल, सस्पेंस, राजनीतिक ड्रामा, अपहरण, फिरौती, रंगदारी जैसे वह हर मसाले मौजूद हैं जो अक्सर हिन्दी सिनेमा के विषय होते रहे हैं। अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए जब पहली बार मुख्तार ने जरायम की दुनिया में प्रवेश किया तो शायद मुख्तार को भी नहीं पता रहा होगा कि वह जिस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है उस रास्ते पर चला तो जा सकता है पर उससे कभी वापस  नहीं लौटा जा सकता और न ही इस रास्ते की कोई मंजिल होती है।

पैसे और पावर की तलाश में जिंदगी की सुबह-शाम किसी स्याह अंधेरे में डूबकर गुम हो जाएगी या फिर किसी बेगैरत वक्त में धूप के थपेड़ों से झुलस जाएगी। इसका पता तो शायद किसी माफिया ने आज तक जानना ही नहीं चाहा होगा। फिलहाल पूर्वाञ्चल में  डर का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुका मुख्तार भी आजकल धूप के उसी कठिन थपेड़ों से जूझ भी रहा है और झुलस भी रहा है। पाँच बार विधायक रह चुके मुख्तार के अपराध की सूची काफी लंबी है। 60 से ज्यादा  केस चल रहे हैं और पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश सरकार का टारगेट प्वाइंट भी बना हुआ है मुख्तार।

कभी मुख्तार की पावर के आगे पराजित होने वाले होने वाले योगी, मुख्यमंत्री बनकर ‘सेंटर ऑफ पावर’ बन गए तो मुख्तार जैसे “साइड पावर बाक्स’ का फ्यूज तो उड़ना ही था। अब जिंदगी जेल के हवाले है और एनकाउंटर का डर धड़कनों में गूंज रहा है।”

मुख्तार की पुरानी अदावत मुख्यमंत्री योगी से रही है। जब पहली बार दोनों आमने-सामने आए थे तो मुख्तार की ताकत बड़ी थी। योगी को पीछे हटना पड़ा था। यह कहना गलत नहीं होगा कि उस समय योगी अपमान का घूंट पीकर रह गए थे। वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता। वक्त बदला और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। कभी मुख्तार की पावर के आगे पराजित होने वाले होने वाले योगी, मुख्यमंत्री बनकर ‘सेंटर ऑफ पावर’ बन गए तो मुख्तार जैसे “साइड पावर बाक्स’ का फ्यूज तो उड़ना ही था। अब जिंदगी जेल के हवाले है और एनकाउंटर का डर धड़कनों में गूंज रहा है। कुछ बिल्लियाँ चूहों से तब तक खेलती हैं जब तक कि वह डर से मर नहीं जाता, मारती भी केवल तब हैं जब वह बिल्ली की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है। मुख्तार भी इस समय इस चूहे जैसी स्थिति में ही है।

मुख्तार किसी सड़क से उठ कर गुंडा नहीं बना था। वह एक सम्पन्न परिवार से था जहां, सम्मान था, शिक्षा थी और परिवार का साफ-सुथरा सामाजिक जीवन भी था। 30 जून को गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के मोहम्दाबाद में जन्में मुख्तार अंसारी के दादा आजादी से पहले इंडियन नेशनल काँग्रेस के अध्यक्ष रहे थे। नाना मोहम्मद उस्मान अंसारी सेना की सेवा करते हुए महावीर चक्र से सम्मानित थे तो परिवार से जुड़े और रिश्ते में चाचा हामिद अंसारी स्वतंत्र भारत में उपराष्ट्रपति थे।

मुख्तार अंसारी कालेज टाइम में क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी था।  उसका खेल देखने वाले कहते हैं कि अगर मुख्तार ने रास्ता न बदला होता तो यकीनन क्रिकेट में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करता। फिलहाल वह हो न सका और 1988 में मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर मुख्तार के अब्बू का  ठेकेदार सच्चिदानद राय से झगड़ा हो गया।  सच्चिदानंद राय से पिता के अपमान का बदला लेने के लिए मुख्तार ने स्थानीय स्तर के गुंडे साधू सिंह का हाथ थाम लिया और उन्हें अपना गुरु बना लिया। साधू सिंह ने मुख्तार की दोस्ती असलहों से कराई और असलहे के दम पर पावर हासिल करने का खेल भी सिखाया। असलहों से जान-पहचान बढ़ी तो मुख्तार का मन भी बढ़ा और सच्चिदानंद का कंगूरा मुख्तार ने गिरा दिया।

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मुख्तार को जेल ले जाती पुलिस

क्रिकेट खलने वाले मुख्तार के नाम हत्या का पहला मामला दर्ज हुआ। गुरु साधू सिंह ने पहले शिक्षा दी और अब बारी मुख्तार की थी गुरु दक्षिणा देने की। साधू सिंह ने मुख्तार से गुरुदक्षिणा में एक और हत्या मांग ली।  मुख्तार असमंजस में तो पड़ा पर कमजोर नहीं पड़ा और उसने गुरु को निराश ना करते हुए दूसरी घटना को अंजाम दे दिया। यह हत्या वाराणसी में कांस्टेबल राजेन्द्र सिंह की थी। बमुश्किल साल भर में ही मुख्तार कबूतर से बाज बन गया। 1991 में चंदौली में पुलिस ने मुख्तार को अपने शिकंजे में ले लिया पर पुलिस इस बात का अंदाज नहीं लगा पाई कि वह कबूतर पकड़ने जा रही है या बाज। गिरफ्तार करके पुलिस थाने भी नहीं पँहुच सकी थी कि मुख्तार ने नया कांड कर दिया। रास्ते में ही दो पुलिस वालों की हत्या करके फरार हो गया। अब मुख्तार अपराधी से माफिया बन चुका था, 24 घंटे के अंदर जो हवा चली उसने लोगों के सीने में आक्सीजन कम मुख्तार का डर ज्यादा भर दिया।

इस हनक के सहारे मुख्तार ने कारोबार में हाथ डाला। कोयला, शराब, ठेकेदारी और रंगदारी सब शुरू हुआ। जहां मुख्तार की नजर पड़ जाती वहाँ से भीड़ छंट जाती थी। अब किसी भी धंधे में मुख्तार का हाथ रोकने की कोशिश करने की किसी में हिम्मत नहीं थी। मुख्तार के सामने जब भी जिसने आने की हिम्मत की उसे रास्ते से हटाने में मुख्तार को जब जो जरूरी लगा उसने किया। अब मुख्तार की गैंग बढ़ रही थी तो पुलिस का डर भी बढ़ रहा था। मुख्तार को अपराध की ताकत भले ही बाद में समझ में आई थी पर राजनीति की ताकत वह पहले से जानता-समझता था। उसने समय की राजनीति को समझा और उत्तर प्रदेश की राजनीति में तेजी से आगे बढ़ती मायावती की पार्टी बसपा में शामिल हो गया। मऊ विधानसभा को मुख्तार ने अपना राजनैतिक क्षेत्र चुना और 1996 में विधानसभा का चुनाव लड़ा और 45.85% प्रतिशत वोट हासिल कर विधायक बन गया।

अब तक गैर प्रशासनिक क्षेत्र में मुख्तार की जो हनक थी वह विधायक बनते ही वह प्रशासनिक क्षेत्र में भी चलने लगी। 1996 में ही एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमले के मामले ने मुख्तार के साथ मुख्तार गैंग को भी ताकतवर गैंग के रूप में स्थापित कर दिया। 1997 में मुख्तार का नाम रूँगटा के अपहरण में सामने आया। पूर्वाञ्चल के सबसे बड़े कोयला व्यापारी के इस अपहरण ने हर तरफ मुख्तार के नाम का खौफ तो भरा ही पर इसी बीच मुख्तार के काले कोयले में आग लगाने का सपना लेकर पूर्वाञ्चल का एक और युवक मैदान में आ गया। दोनों एक दूसरे से बड़े होने के चलते अपराध और राजनीति में अपनी नींव मजबूत करने में लगे थे। बेहद खतरनाक अंदाज में पूरे पूर्वाञ्चल को दोनों अपने-अपने तरीके से अपने कब्जे में लेने की कोशिश में लगे हुए थे। दोनों गुटों की झड़प बढ़ती जा रही थी। एक दूसरे के मुंह में हाथ डालकर दोनों एक दूसरे का शिकार छीनने की पूरी कोशिश कर रहे थे।

बृजेश सिंह को मुख्तार का अंकुश पसंद नहीं आ रहा था। वह इस काले जंगल का अकेला बादशाह बनने का सपना देखने लगा था। 2002 में मुख्तार का किस्सा खत्म करने के इरादे से उसने मुख्तार के काफिले पर हमला बोल दिया। यह उत्तर प्रदेश की अब तक की सबसे बड़ी गैंगवार थी। मुख्तार बृजेश सिंह के हमले का जवाब देने में पीछे नहीं हटा। उसके तीन लोग मारे गए, पर वह खुद को बचाने में कामयाब तो रहा ही साथ ही साथ उसकी गैंग ने बृजेश गैंग पर पलटवार भी किया और नतीजे में बृजेश सिंह खुद ही बुरी तरह घायल हो गया। घायलावस्था में बृजेश को उसके साथी निकाल ले गए। खबर फैल गई कि बृजेश सिंह मारा गया।

2005 में जब कृष्णानन्द राय एक क्रिकेट टूर्नामेंट से वापस आ रहे थे तब पहले से घात  लगाकर बैठे मुख्तार गैंग के मुन्ना बजरंगी और अतीकुर्रहमान ने एक ऐसी जगह पर उन्हे घेर लिया जहां से गाड़ी को टर्न भी नहीं मार सकते थे। लगभग 6 एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग हुई। चार सौ से ज्यादा गोलियां चलीं। कृष्णानन्द के पास बचने का कोई मौका नहीं था। उनके साथ बैठे 7 और लोग भी इस हमले में मारे गए। पूरा पूर्वाञ्चल इस हमले से थर्रा गया। इस हमले के खिलाफ पूर्वाञ्चल में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए।

बृजेश सिंह कहाँ था? जिंदा था या मर चुका था इसकी कोई ठोस जानकारी किसी को नहीं थी, पर अब मुख्तार का मुकाबला करने वाला कोई नहीं था जिसका फायदा उठाकर मुख्तार ने तेजी से अपना साम्राज्य बढ़ाना जारी रखा। जिस तरह से मुख्तार के अपराध बढ़ रहे थे उससे मुख्तार की राजनीतिक सुप्रीमो मायावती को अपनी छवि पर दाग दिखने लगा था। उन्होंने 2002 के विधानसभा के चुनाव से पहले ही मुख्तार को हाथी से उतारकर पैदल कर दिया। मुख्तार ने मायावती की परवाह नहीं की। उसे अपनी ताकत का एहसास हो गया था उसने समाजवादी पार्टी की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखा जरूर पर मुलायम सिंह ने मुख्तार को अपना बगलगीर बनाना पसंद नहीं किया।  मजबूरन मुख्तार को निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरना पड़ा। मुख्तार निर्दलीय के रूप में न सिर्फ जीता  बल्कि पिछली बार से 1% ज्यादा वोट भी हासिल किया। मुख्तार को मऊ जीतने की जितनी खुशी थी, उससे ज्यादा आक्रोश भाई अफजाल अंसारी के मोहम्मदाबाद गाजीपुर से चुनाव हारने का था। यहाँ से अफजाल पहले भी जीत कर विधायक बन चुका था पर इस बार कृष्णानन्द राय से चुनाव हार गया था। कृष्णानन्द राय के समर्थन में वह हर आदमी खड़ा था जिससे मुख्तार की किसी तरह की अदावत थी और सबने मिलकर चुनाव को हिन्दू बनाम मुसलमान का रंग दे दिया था। चुनावी लड़ाई पर धार्मिक रंग चढ़ा तो बाजी अफजाल के हाथ से निकल गई।

क्रिकेट खलने वाले मुख्तार के नाम हत्या का पहला मामला दर्ज हुआ। गुरु साधू सिंह ने पहले शिक्षा दी और अब बारी मुख्तार की थी गुरु दक्षिणा देने की। साधू सिंह ने मुख्तार से गुरुदक्षिणा में एक और हत्या मांग ली।  मुख्तार असमंजस में तो पड़ा पर कमजोर नहीं पड़ा और उसने गुरु को निराश ना करते हुए दूसरी घटना को अंजाम दे दिया। यह हत्या वाराणसी में कांस्टेबल राजेन्द्र सिंह की थी।”

मुख्तार इस हार को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। 2005 में जब कृष्णानन्द राय एक क्रिकेट टूर्नामेंट से वापस आ रहे थे तब पहले से घात  लगाकर बैठे मुख्तार गैंग के मुन्ना बजरंगी और अतीकुर्रहमान ने एक ऐसी जगह पर उन्हे घेर लिया जहां से गाड़ी को टर्न भी नहीं मार सकते थे। लगभग 6 एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग हुई। चार सौ से ज्यादा गोलियां चलीं। कृष्णानन्द के पास बचने का कोई मौका नहीं था। उनके साथ बैठे 7 और लोग भी इस हमले में मारे गए। पूरा पूर्वाञ्चल इस हमले से थर्रा गया। इस हमले के खिलाफ पूर्वाञ्चल में सांप्रदायिक दंगे शुरू हो गए।

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हिन्दू बनाम मुस्लिम दंगे की आग में मुख्तार गैंग ने मऊ में भी जमकर आग लगाई। खुली गाड़ी में बैठकर मुख्तार दंगे की आग में जलते मऊ की सड़क पर घूम रहा था। उसके गुर्गे सरे आम हथियार लहराते हुए और जरूरत पड़ने पर फायर करते हुए सड़कों पर घूम रहे थे। इन्हीं दंगों के बीच मुख्तार की जिंदगी में योगी आदित्यनाथ की इंट्री हुई। योगी को समझ में आ गया था कि यह सही मौका है जब अपनी कट्टर हिन्दू पहचान को मजबूत किया जा सकता है। आनन -फानन में योगी गोरखपुर के मठ से सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ मऊ की तरफ चल पड़े। मऊ पँहुचते ही योगी के काफिले पर भी छोटा सा हमला हो गया। इस हमले में योगी को कोई नुकसान नहीं हुआ पर प्रशासन ने उन्हें रास्ते से ही वापस भेज दिया। तब से योगी की आँखों में किरकिरी कि तरह चुभता रहा था मुख्तार।

मऊ के इसी दंगे की वजह से, हिंसा भड़काने के आरोप में मुख्तार 2005 से ही जेल में है। 2017 तक जेल कभी भी मुख्तार के सपनों की कारा  नहीं बनी। राजनीति और अपराध के काले कारोबार दोनों ही वह वहाँ से संचालित करता रहा। 2007 में जेल से वापस निर्दलीय विधायक बना। वोट प्रतिशत कम होने के बजाय और बढ़ गया था। 2012 के चुनाव में भी जब उसे किसी पार्टी ने अपने साथ नहीं लिया तो उसने ‘कौमी एकता दल’ के नाम से खुद की ही पार्टी बना ली और एक बार फिर जीतने में कामयाब हुआ। चौथी बार के चुनाव में पहली बार उसका वोट प्रतिशत कम हुआ था। इस बार सूबे में सपा की सरकार बनी।  सरकार ने मुख्तार के साथ न दोस्ती आगे बढ़ाई और न किसी तरह से कोई अतिरिक्त  कार्यवाही की। 2017 के चुनाव से पूर्व उसने अपनी पार्टी का विलय बहुजन समाज पार्टी में कर लिया और एक बार फिर हाथी उसका साथी बन गया। 2017 में वह जीत जरूर गया था पर वोटों का प्रतिशत साफ बता रहा था कि मुख्तार का ग्राफ कम हो रहा है। दूसरी ओर योगी के मुख्यमन्त्री बनने से जांच एजेंसियां हरकत में आ गईं। मुख्तार और उसके परिवार को अब वह आग बुझती दिख रही थी जिससे वह कुछ भी जला सकने की ताकत रखते थे। इसी बीच मुख्तार पर पंजाब में अपहरण की धमकी का केस हो गया और मुख्तार उत्तर प्रदेश की जेल से पंजाब शिफ्ट हो गया। कहा जाता है कि यह मुख्तार का खुद का प्लान था क्योंकि योगी आदित्यनाथ की पुलिस उसके साथ कुछ भी कर सकती थी। 26 महीने तक पंजाब की रोपड़ जेल में रहने के बाद हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मुख्तार को बांदा जेल शिफ्ट करके तेज गति से मामलों की सुनवाई चल रही है।

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