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दुश्चक्र में महंत – मठ पर महल का मंसूबा पाल रहे हैं माफिया

दुश्चक्र में महंत – मठ पर महल का मंसूबा पाल रहे हैं माफिया

संत कबीर की मूलगादी पीठ कबीरचौरा एक बार फिर सुर्खियों में है। मठ के महंत विवेकदास पर यह आरोप लगा कि वे मठ की जमीन को रेवड़ियों के भाव बेच रहे हैं वहीं दूसरी तरफ महंत विवेकदास का कहना है कि कुछ भू-माफिया मठ के विचारदास और संतोष मिश्रा के साथ मिलकर सारनाथ, लोहता और शिवपुर के साथ ही मगहर की कुछ ज़मीनों को बेच डाली । जब मुझे इस बात की जानकारी हुई तो मैंने मठ की जमीन को माफियाओं से मुक्त कराई।   

इस बारे में कबीरचौरा मठ के महंत विवेकदास जी आगे कहते हैं, इस मठ की जमींन को बेचने का काम विचारदास ने किया। विचारदास को मैंने मगहर स्थित मठ की देखभाल के लिए भेजा था। उसने वहां पर रहते हुए खुद को मठ का महंत घोषित कर लिया। सद्गुरू रघुवर ट्रस्ट बनाकर मगहर की कई जमीनों को बेच दिया। सारनाथ की 10 बीघा जमींन के अलावा लोहता के बखरिया गांव की 3 बीघा जमींन, मगहर के सिंहापार की जमींन के अलावा कई और जमींने विचारदास बेच दिया, जिसके कारण उसे कई बार 75/13 के जुर्म में जेल भी हो चुकी हैं। लेकिन वह आदमी अपनी आदत से बाज नहीं आ रहा है।

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महंत विवेकदास आगे कहते हैं, मैंने अपने जिस शिष्य पर विश्वास किया उन सभी ने मेरे विश्वास को तोड़ा। दो-तीन साल पहले मैंने गोविन्ददास को लहरताला मठ की देखभाल के लिए वहां भेज दिया तो उसने भी वहां पर एक ट्रस्ट बनाकर खुद को महंत घोषित कर लिया। विवेकदास जी सवाल पूछने वाले अंदाज में कहते हैं, आखिर किस तरह से ये लोग खुद को महंत घोषित कर ले रहे हैं ? कबीर मठ में एक समय में एक ही महंत होता रहा है। उसी की देखरेख में देश और विदेशों में जितने भी मठ हैं, चलते हैं। हां, उनकी देखभाल के लिए महंत जिसे नियुक्त करते हैं, वहीं उसकी देखभाल करते हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं हो गया कि देखभाल करने वाला व्यक्ति एक ट्रस्ट बनाकर खुद को महंत घोषित कर ले और मठ की जमींन को बेचने लगे। यह मठ की परंपरा के खिलाफ है। मठ के महंत जिस व्यक्ति को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते है वही आगे चलकर महंत बनता है। जिस समय महंत की गद्दी दूसरे को सौपी जाती है तो उस समय मठ के जितने भी संत और आचार्य हैं वे आते हैं। सभी की उपस्थिति में नए महंत की गद्दी की चादर सौंपी जाती है। उसी दिन से वह महंत बन जाता है। हमारे पूर्व के महंत गंगाशरण दास ने भी इसी प्रक्रिया के तरह मुझे महंत बनाए थे।  

दरअसल, बूढ़े हो चुके महंत विवेकदास की उदारता का लाभ उठाते हुए मठ में रहने वाले उनके शिष्यों जिसमें विचारदास, गोविन्ददास, सन्तोष मिश्रा कुछ भू-माफियाओं से जा मिले हैं। ये लोग फर्जी तरीके से मठ की जमींन को भू-माफियाओं के नाम करने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहे हैं। महंत विवेकदास जी कहते हैं ये तीनों भू-माफियाओं से मिले हुए हैं। इनका एक काकश है जिसमें इन तीनों के अलावा कुछ भू-माफिया और पत्रकार भी हैं। इनका आपस में व्यापार खूब फल फूल रहा है। दुख इस बात का है कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ भी उनके इस कृत्य में शामिल है जो अपनी लेखनी से इन लोगों की मदद कर रहा है। मठ की जमींन को हथियाने की मंशा से इन्होंने एक महिला से मुझपर यौनशोषण का आरोप लगवाकर जेल में डलवा दिया।

लेकिन मजेदार बात तो यह है कि जिस महिला ने मठ के महंत विवेकदास पर यौनशोषण का आरोप लगाया उसका पता ही फर्जी निकला। जब पुलिस उस महिला (मंजू )को खोजती हुई उसके निवास स्थान शिवपुर वाराणसी और गाजीपुर पहुंची तो पुलिस को उस नाम की कोई महिला ही नहीं मिली। बाद में जब किसी तरह से पुलिस ने उस महिला को खोज निकाला तो वह कबीर मठ का रास्ता तक नहीं बता सकी।

विवेकदास कहते हैं, मुझे सिर्फ फंसाने के लिए यह सारा षडयंत्र रचा गया था। जब मैं जेल में रहूंगा तो ये लोग अपनी मनमानी करेंगे। ये लोग मठ की जमींन को आसानी से बेच सकेंगे। इसी कड़ी में मेरे जेल में रहने के दौरान विचारदास अपने कुछ लोगों के साथ 7 मई 2024 को कबीरचौरा मठ पर कब्जा करने की नीयत से आया। लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाया।

हालांकि विवेकदास जी इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि उन्होंने अपने महंत पद पर रहते हुए दो जमींनों को बेचा। इन दो जमींनों को बेचने का काम  उनके पूर्व के महंत गंगा शरणदास के प्रस्ताव के बाद हुआ। मुझे अगर यहाँ से पैसा कमाना होता तो कबीर संग्रहालय में एक से एक बेशकीमती चीजें जिसके बारे में किसी को पता तक नहीं था । लेकिन उसे मैंने कभी बेचा नहीं। विवेकदास जी याद करते हुए कहते हैं एक घड़ी जो कूड़े में मिली थी जो देखने में समान्य सी लगती थी जब उस घड़ी को कानपुर ले गया तो मुझे उसकी कीमत 5 करोड़ मिल रही थी । उसके बाद वही घड़ी मैं स्विटिजरलैंड ले गया तो मुझे उसकी कीमत 25 करोड़ मिल रही थी लेकिन उस घड़ी को मैंने नहीं बेचा। आज भी वह घड़ी कबीर संग्रहालय में पड़ी हुई है ।

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महंत विवेकदास जी कहते हैं, उस समय मठ के पास पैसे नहीं थे। मठ को उस समय पैसे की सख्त जरूरत आन पड़ी थी, इसलिए ऐसा कदम सभी की सहमति से उठाया गया था। यह फैसला मेरा अकेला नहीं था।

आज मठ बडे़ ही नाजुक दौर से गुजर रहा है। एक तरफ भू-माफिया मठ की जमींन को कब्जाने के लिए रोज नए नए हथकंडे अपना रहे हैं। गलत तरीके से जमीनों की रजिस्ट्री करवा ले रहे हैं। बाद में जब इसकी जानकारी विवेकदास जी को होती है तो बीमारी के इस दौर में वे कोर्ट कचहरी का चक्कर लगाने लगते हैं । जमींन को बचाने के लिए कोर्ट कचहरी में मठ का बहुत सारा पैसा बर्बाद हो रहा है। हालत यह हो गई है कि मठ के महंत विवेकदास जी का इलाज पैसे के चलते नहीं हो पा रहा है। मठ के ही एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बाबा को डाक्टरों को दिखाना है लेकिन इतने पैसे भी नहीं हैं कि बाबा का इलाज कराया जा सके।

आप अपना इलाज क्यों नहीं करवा रहे हैं बाबा जी ? सवाल पर विवेकदास जी आज जाएंगे, कल जाएंगे, दिखा देंगे डाक्टर को , कहकर बात को टाल दिए। लेकिन उनकी मजबूरियां उनकी आंखों में साफ झलक रही थी। पैसे के अभाव की पीड़ा को वे लोक लॉज के डर से कह नहीं पाए।

इस बीच चन्दौली के सपा सांसद वीरेन्द्र सिंह ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर कबीर मठ की जमींन को बेचने का आरोप लगाया। उन्होंने अपने पत्र में प्रधानमंत्री से कबीर की विरासत को बचाने की गुहार भी लगाई है। वीरेन्द्र सिंह के पत्र की बाबत कबीर मठ के महंत विवेकदास जी कहते हैं वह तो खुद ही बहुत बड़ा भू-माफिया है। वह खुद लोगों की जमींन हड़पने में लगा हुआ है। मुझ पर आरोप लगाने से पहले वीरेन्द्र सिंह पहले खुद अपने गिरेबान में झांककर देखें।

वाराणसी में कबीर मठ को लेकर कौन कौन सी योजनाएं आपके प्रयासों से शुरू की जानी हैं? सवाल के जवाब में विवेकदास जी कहते हैं कबीर मठ के पीछे कबीर म्यूजियम का प्रस्ताव हमने सरकार के पास भेजा था, जिसका पैसा पास हो चुका है। शीघ्र ही इसका भी काम शुरू होगा। सारनाथ में जिस जमींन को विचारदास ने भू- माफियाओं को बेच दिया था उस जमींन पर हम कबीर विद्यापीठ बनाने जा रहे हैं।

देखा जाय तो विवेकदास जी ने कबीर की थाती को बचाने और उसे आगे ले जाने के लिए अथक परिश्रम किया। देश ही नहीं विदेशों में भी कबीर का झंडा बुलंद किया। मठ स्थापित किए। मठ के लिए लोगों से जमींन मांगी। लेकिन आज उनके कुछ शिष्य (विचारदास,गोविन्ददास और संतोषदास) कुछ भू- माफियाओं से मिलकर कबीर की विरासत को बेचने में लगे हुए हैं। विवेकदास जी कहते हैं, जब तक इन बूढ़ी हड्डियों में थोड़ी सी भी ताकत है मैं अन्तिम दम तक कबीर की विरासत को बचाने का प्रयास करूंगा, चाहे इसे बचाते हुए मेरी जान ही क्यूं न चली जाए।

इस बारे में जब विचारदास जी से उनके दिए गए नम्बर पर सम्पर्क करने का प्रयास किया गया तो वह नम्बर किसी और व्यक्ति का निकला।

बहरहाल, जो भी हो कबीर मठ के महंत का विवेकदास का मन कबीर की वाणी की ही तरह निर्मल और स्वच्छ भी है। जब से इन्होंने कबीर मठ (मूलगादी)को संभाला, इन्होंने इसका विस्तार ही किया। कबीर की विरासत को बचाने और संजोए रखने के लिए ये दृढ़ हैं। यही नही, वे कबीर के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए खुद रात रात पर जागकर आज 70 साल की उम्र में भी किताबें लिख रहे हैं। पूछने पर कहते हैं, मेरे जिस्म का एक एक कतरा कबीर साहब के विचारों को  देश दुनिया में फैलाने में खत्म हो जाए तो इससे बढ़कर मेरे लिए और क्या हो सकता है। मुझे अपनी परवाह नहीं। मैं तो कबीर साहब का एक अदना सा भक्त हूं जो उनके विचारों को फैलाता रहूंगा। इसके लिए मुझे जिस किसी से भी लड़ना होगा लडूंगा चाहे वे भू- माफिया हो या कोई और। 

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