मजधार में मल्लाह – मजबूती से थामें हैं पतवार, फिर भी नावों का डूबता कारोबार
वाराणसी। गंगा में क्रूज (बड़ी नाव) के चलाए जाने के बाद से निषाद समाज के लोगों का रोष बढ़ता जा रहा है। नाविकों के मुताबिक क्रूज के आने से इनकी रोजी रोटी प्रभावित हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी में आने के बाद निषाद समाज के लोगों की आय को दोगुनी करने की बात तो की थी लेकिन उसके उलट देखा जाय तो आज निषाद समाज के लोगों की आय दोगुनी तो नहीं हुई हां उनकी आजीविका पर संकट जरूर आ गया है।
माँ गंगा निषादराज सेवा समिति के राष्ट्रीय सचिव हरिश्चन्द्र निषाद इस बाबत कहते हैं जब पहली बार अलकनंदा क्रूज आया तो हमने उसका विरोध शुरू कर दिया। 2019 में विदेशी मेहमान जब काशी में भ्रमण के लिए आ रहे थे तो उस दौरान हमने क्रूज का विरोध किया तो जिला प्रशासन ने हमें आश्वस्त किया कि वे हमारी मांगों पर विचार करेंगे । लेकिन आज हमारी मांगों पर विचार करने को कौन कहे एक क्रूज से चार चलने लगे हैं। इससे हमारी रोजी रोटी प्रभावित ही नहीं हो रही है हालात भूखो मरने की आ गयी है। जब बाहर से लोग आते हैं तो हमारी छोटी नावों पर कम बैठना पसंद करते हैं।
हरिश्चन्द्र सवाल पूछने वाले अंदाज में कहते हैं, प्रधानमंत्री क्या इसी तरह से हमारी आय दोगुनी कर रहे थे। क्या यही दोगुनी आय करने का तरीका है?
यही नहीं हरिश्चन्द्र सरकार की आगे की रणनीति का खुलासा करते हुए कहते हैं कि सरकार आने वाले समय में सभी घाटों को किराये पर देने की योजना में है। इस तरह से आने वाले समय में दुकानदार अपने अपने घाट की वसूली इन नाविकों से मनमाने ढंग से वसूल करेंगे। इससे निषाद समाज के लोगों का शोषण और बढ़ेगा। यही नहीं जो घाट अभी तक नगर निगम की सूची में नहीं जोड़ा गया था उसे भी जोड़ा जा रहा है। इस प्रकार से अब वाराणसी में अब कुल 85 घाट हो गए। योगी सरकार सभी घाटों का व्यवसायीकरण करने जा रही है। इससे निषाद समाज के लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
मां गंगा राज निषाद समिति के अध्यक्ष विनोद निषाद भी गंगा में क्रूज चलने का विरोध करते हुए कहते हैं इससे हमारी रोजी रोटी पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। जब मोदी जी वाराणसी आए थे तो उन्होंने कहा था न तो मुझे किसी ने भेजा है] न ही मैं अपने से आया हूं, मुझे तो गंगा मां ने बुलाया है। जब मां गंगा ने बुलाया है तो मां के लिए कुछ करना भी तो चाहिए। आज गंगा का जल आचमन के लायक नहीं रह गया है । यह जल विषैला हो चुका है। यही नहीं गंगा में नाव चलाकर अपनी रोजी रोटी चलाने वाले निषाद समाज के लोगों पर भी संकट आ गया है। गंगा में बड़े बड़े क्रूज चलने लगे हैं। यह सीधे तौर पर हमारे मुंह से निवाला छिनने जैसा है। कुछ लोग सरकार के लोगों से मिलकर अपनी क्रूज चलवा रहे हैं।
एक क्रूज क्षमता पर 200-250 लोगों की होती है। इस समय गंगा में चार क्रूज चल रहे हैं। ऐसे में देखा जाय तो घाट पर गंगा भ्रमण के लिए आने वाले अधिकांश लोग तो इसी पर सवार हो जाएंगे फिर छोटी नावों पर बैठने के लिए कौन रहेगा ?
सरकार से मांग करते हुए विनोद निषाद कहते हैं गंगा में क्रूज बंद होना चाहिए। इससे गंगा में नाव चलाने वाले छोटे बड़े लोगों की रोजी रोटी चलती रहेगी। गंगा का बड़े पैमाने पर होने वाला व्यवसायीकरण बंद हो और परंम्परिक रूप से जो लोग नाव चलाकर अपना परिवार पाल रहे थे उनकी आजीविका सुचारू रूप से चलती रहे।
घाट पर नाव चलाकर अपने परिवार का पेट पालने वाले राजेश साहनी गंगा में चल रही क्रूज का विरोध करते हुए कहते हैं, गंगा में ऐसे ही क्रूज चलता रहा तो निषाद समाज के लिए और मुश्किलें बढ़ सकती हैं। एक तो वैसे ही पहले से गंगा में अधिक नावें चलने लगी हैं। ट्रैफिक जाम होने वाली स्थिति आ गई है ऐसे में भारी क्रूज के आने से हमारी मुश्किलें और बढ़ जायेंगी। हमारी नाव पर 300 मांगने पर लोग कहते हैं कि एक हजार देकर हम क्रूज पर नहीं घुमेंगे। इस तरह से हमारा ग्राहक क्रूज पर चला जाता है। इससे हमारी आय कम हो रही है और निरंतर घटती जा रही है।
इसी प्रकार से नाविक अजीत साहनी गंगा में चल रही क्रूज का विरोध करते हुए कहते हैं गंगा में क्रूज बंद होनी चाहिए। एक नाव ही तो हमारी आय का जरिया है।
देखा जाय तो सरकार के काम पर प्रश्न खड़ा करते हुए विनोद निषाद कहते हैं गंगा इतनी विषैली हो गई हैं सरकार हजारों करोड़ रूपया खर्च करके क्या की ? गंगा पहले से ज्यादा दूषित हो गई हैं । सरकार को तमाम प्रकार के नालों को गंगा में गिरने से रोकना होगा। गंगा की गहराई कम हो गई है और सरकार ने 2002 से ही बालू खनन पर रोक लगा दिया है । इसे फिर से चालू करना चाहिए। गंगा खुद अपनी गहराई ठीक कर लेंगी। तमाम प्रकार की मछलिया गायब हो गई हैं गंगा के गहरी होने वे पुनः आने लगेंगी। लेकिन सबसे पहले कानपुर की चमड़ा फैक्ट्री से गिरने वाले पानी को रोकना होगा। यही नहीं तमाम बांधों के जरिए रोके गए पानी को छोड़ना होगा।
वाराणसी के मल्लाह] जो गंगा नदी के किनारे बसे इस ऐतिहासिक शहर के प्रमुख समुदायों में से एक हैं] सदियों से नदी के साथ जुड़े जीवन और कार्यों का हिस्सा रहे हैं। उनकी जीवनशैली और संघर्ष इस बात की झलक देते हैं कि किस प्रकार वे अपनी परंपराओं और रोज़मर्रा के जीवन में नदी पर निर्भर रहे हैं। उनके जीवन में कई तरह की त्रासदियाँ और चुनौतियाँ रही हैं, जिन्हें यहां विस्तार से समझा जा सकता है।
आर्थिक संघर्ष
मल्लाह समुदाय का मुख्य व्यवसाय नाव चलाना और मछली पकड़ना रहा है। गंगा के घाटों पर पर्यटकों को नाव की सवारी कराना उनकी आय का प्रमुख स्रोत है। हालांकि, आधुनिक समय में बढ़ते पर्यटन उद्योग में बड़े व्यवसायियों और बिचौलियों के हावी हो जाने से उनका मुनाफा घटा है। साथ ही,नदी की स्थिति बिगड़ने और जल प्रदूषण के कारण मछली पकड़ने के काम में भी कमी आई है।
प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएँ
गंगा नदी में औद्योगिक और घरेलू कचरे के प्रवाह ने जल को प्रदूषित कर दिया है। इससे न केवल उनका व्यवसाय प्रभावित हुआ है, बल्कि उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ा है। पानी से संबंधित बीमारियां जैसे त्वचा संक्रमण, पेट के रोग] और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं मल्लाहों और उनके परिवारों में आम हैं।
सामाजिक बहिष्करण
मल्लाह समुदाय को भारत में पारंपरिक रूप से एक निम्न जाति के रूप में देखा गया है। इसके कारण उन्हें लंबे समय तक सामाजिक बहिष्करण और भेदभाव का सामना करना पड़ा। हालांकि, अब हालात बदल रहे हैं, लेकिन उनका आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण अभी भी एक चुनौती बना हुआ है।
शिक्षा और विकास की कमी
मल्लाह समुदाय में शिक्षा का स्तर अपेक्षाकृत कम है। उनके बच्चों को पढ़ाई छोड़कर कम उम्र में ही काम पर लगना पड़ता है, जिससे उनकी स्थिति में सुधार नहीं हो पाता। इस समुदाय में गरीबी और अशिक्षा का चक्र लगातार चलता रहता है।
संस्कृति और परंपराओं का संघर्ष
मल्लाहों की अपनी विशिष्ट संस्कृति और परंपराएं हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। हालांकि] आधुनिकता और शहरीकरण के कारण उनकी परंपराओं को बचाए रखना कठिन होता जा रहा है। साथ ही, गंगा की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को पर्यटन के माध्यम से भुनाने की प्रक्रिया में उनकी पारंपरिक भूमिकाओं को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
समाधान और संभावनाएँ
सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा उन्हें शिक्षा] स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार के अवसर प्रदान किए जाएं।
गंगा को स्वच्छ बनाने के प्रयासों में उन्हें सक्रिय रूप से शामिल किया जाए।
नाविक समुदाय के लिए विशेष योजनाएं और सब्सिडी दी जाएं।
सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं ताकि उन्हें मुख्यधारा में लाया जा सके।
वाराणसी के मल्लाहों की जीवनगाथा संघर्षों और परंपराओं का मिश्रण है। उनकी समस्याओं का समाधान न केवल उनके जीवन को बेहतर बनाएगा, बल्कि गंगा और वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करेगा।
डॉ राहुल यादव न्याय तक के सह संपादक हैं। पिछले 20 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं । दलित, पिछड़े और वंचित समाज की आवाज को मुख्यधारा में शामिल कराने के लिए, पत्रकारिता के माध्यम से सतत सक्रिय रहे हैं।