सोशल मीडिया पर पत्र लिखकर चंपई सोरेन ने खेला विक्टम कार्ड

सोशल मीडिया पर पत्र लिखकर चंपई सोरेन ने खेला विक्टम कार्ड

राजनीति ही वह जगह है जहां एक चेहरे पर जाने कितने ही मुखौटे लोग लगाए रहते हैं। यह मुखौटे परिस्थित के अनुरूप बदलते रहते हैं। सत्ता की लालच में सिद्धांत बदल जाना अब आम बात बनती जा रही है। खास तौर पर 2014 के बाद भाजपा ने जिस तरह से ऑपरेशन लोटस का खेल शुरू किया उसने अभूतपूर्व तरीके से तमाम नेताओं को उस तराजू पर खड़ा कर दिया जहां वह सियासते अखाड़े में अपनी विचारधारा को बेंचते नजर आते हैं। इस खरीद फरोख्त के खेल में भाजपा आज बड़ी खिलाड़ी है। वह किसी भी विनिमय की शर्त पर नेताओं को अपने पाले में खींच कर खड़ा ही नहीं करती रही है बल्कि विपक्ष की कुर्सी से सत्ता तक की दूरी भी तय करती रही है।

हेमंत सोरेन की सत्ता भाजपा को कुछ वैसे ही चुभ रही है जैसे बिहार में महागठबंधन की या फिर महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी की सत्ता चुभ रही थी। वहाँ भाजपा अपना खेल खेलने में कामयाब रही थी पर झारखंड और दिल्ली की सरकार पर अब तक ऑपरेशन लोटस को सफलता नहीं मिल पाई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तो अब तक जेल में हैं । हेमंत सोरेन को भी गिरफ्तार किया गया था किन्तु वह जल्द ही जेल से बाहर आ गए। जेल जाने से पहले हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और अपने इस्तीफे के बाद उन्होंने अपने सबसे विश्वसनीय नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी। यह नेता चंपाई सोरेन थे।

हेमंत सोरेन जब जेल से वापस आए तो कायदे से चंपाई सोरेन को खुद ही सत्ता की कमान उन्हें सौंप देनी चाहिए थी पर तब तक सत्ता का मोह मुंह लग चुका था इसलिए वह इस्तीफा देना नाही चाहते थे पर पार्टी की ओर से बुलाई गई बैठक में उनसे इस्तीफा मांग लिया गया और हेमंत सोरेन एक बार फिर से विधायक दल के नेता चुने गए। फिलहाल इस घटना से चंपाई सोरेन के मुंह का स्वाद कसैला हो गया और वह इसे अपना अपमान समझ बैठे। फिलहाल अब वह अपने राजनीति का नया निकष तलाश रहे हैं। यह तलाश रहे हैं का उद्गार उन्हीं का है बाकी तो यह माना ही जा रहा है कि वह अब झारखंड में भाजपा के लिए नए प्रवेश द्वार बनने जा रहे हैं। फिलहाल जाने से पूर्व उन्होंने पत्र लिख कर खुद को पीड़ित बताया है –

जोहार साथियों, आज समाचार देखने के बाद, आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं।
किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे। इसी बीच, 31 जनवरी को, एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद, इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया। इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी।
जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था। झारखंड का बच्चा- बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया। इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।
क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया। पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा।
सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता? जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता? इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते। कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था।
बैठक के दौरान मुझ से इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था। पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया। मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि – “आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है।” इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं।

फिलहाल तो चंपाई सोरेन जेएमएम से अलग अब जो भी रास्ता चुनेंगे वह भाजपा के साथ ही आगे बढ़ेगा और कहीं न कहीं यह रास्ता चंपाई सोरेन के उस चेहरे को मुखौटे में बदल देगा जिसके सहारे अब तक वह राजनीति करते रहे हैं।

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