सामाजिक न्याय की आधी लड़ाई, आर्थिक बजट में पूर्ण हकदारी…
डॉ.अनूप श्रमिक
क्या है अनुसूचित जाति एवं जनजातीय उप योजना की पृष्ठभूमि ?
भारत में अनुसूचित जाति एवम् अनुसूचित जनजाति वर्ग आर्थिक एवम सामाजिक दोनों तरह से कमजोर वर्ग है। इनकी आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिये 1974-75 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना अवधि में भारत सरकार ने आदिवासी उप-योजना (TSP) की नीति शुरू की और बाद में सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग ने भी विकास के लिए 1980 से अनुसूचित जाति उप योजना (SCSP) के लिए “विशेष केंद्रीय सहायता (SCA) केंद्र प्रायोजित योजना को लागू किया।
फिर 2011 की जनगणना में अनुसूचित जातियों की कुल आबादी का 16.6 प्रतिशत एवम् अनुसूचित जनजाति की 7.5 प्रतिशत आबादी पायी गयी। इन समुदायों के लोग पूरे देश में फैले हुए हैं, जबकि उनमें से अधिकांश अर्थात् 76.4 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। भेदभाव और शोषण से अनुसूचित जाति के लोगों को बचाने के लिये सामाजिक-आर्थिक विकास और संरक्षण योजना की शुरुआत की गयी।
SCSP/TSP अनुसूचित जाति एवम् अनुसूचित जनजाति का संवैधानिक अधिकार
SCSP भारत के संविधान के (अनुच्छेद 14) की अनुसूची में शामिल अनुसूचित जाति के लोगों के कल्याण के लिए एक विशेष प्रावधान है। जिसमें समानता के अधिकार के बारे में बताया गया है जिसमें स्थिति और अवसर की समानता शामिल है और यह (अनुच्छेद 38) में आगे कहता है कि राज्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देगा और आय में असमानताओं को कम करेगा और न केवल व्यक्तियों, बल्कि लोगों के समूहों के बीच भी असमानता को खत्म करने का प्रयास करेगा। इसलिए SCSP (शेड्यूल कास्ट सब प्लान)और TSP( ट्राइबल सब प्लान)कानून ऐतिहासिक रूप से हाशिए वाले समूहों को सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए संविधान की भावना का पूरी तरह से प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
SCSP/TSP योजना के उद्देश्य क्या है?
- योजना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न आय सृजन योजनाओं, कौशल विकास और बुनियादी ढांचे के विकास के माध्यम से कमजोर वर्ग की आय को बढ़ाना है।
- अनुसूचित जाति एवम् अनुसूचित जनजाति की आबादी के बीच गरीबी को कम करने और उन्हें गरीबी रेखा से ऊपर लाना है।
SCSP/TSP योजना के घटक
- केवल उन योजनाओं को SCSP/TSP के तहत शामिल किया जाना चाहिए जो अनुसूचित जाति के व्यक्तियों या परिवारों को प्रत्यक्ष लाभ सुनिश्चित करते हैं।
- अनुसूचित जाति की आबादी / आदिवासी बस्तियों और गांवों के बहुमत वाले अनुसूचित जाति के निवास स्थान / गांवों को सीधे लाभ पहुंचाने वाली क्षेत्र की तैयार योजनाओं के लिए खर्च को SCSP और TSP में शामिल किया जा सकता है।
- अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लाभ के लिए विभिन्न कार्यक्रमों में, प्राथमिक जैसी बुनियादी न्यूनतम सेवाएं प्रदान करने के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पेयजल, पोषण, ग्रामीण आवास और ग्रामीण लिंक रोड।
- कृषि गतिविधियों जैसे सिंचाई, पशुपालन, डेयरी विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण, आदि को विकसित करने की योजनाएँ जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी को आजीविका का स्रोत प्रदान करती हैं, को शामिल किया जाना चाहिए।
5- भूमिहीन लोगों को आवास कृषि हेतु भूमि,छोटे एवं बड़े उद्योगों के लिए अनुदान,छात्रों के लिए प्राइमरी से लेकर हायर एजुकेशन एवं विदेश में अध्यन हेतु आर्थिक मदत के अलावा स्वास्थ्य एवं अन्य स्वालंबन हेतु आर्थिक मदत पहुंचाना उद्देश्य है।
SCSP और TSP के तहत लागू विभिन्न विकास योजनाओं के प्रभाव का मूल्यांकन, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर केंद्रीय मंत्रालयों/ विभागों द्वारा नियमित रूप से किया जाना चाहिए। देश में अनुसूचित जाति (SC) और ST को उनके विकास के लिए उपलब्ध योजनाओं / कार्यक्रमों के बारे में जानकारी का प्रसार अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की नोडल समर्पित इकाई की जिम्मेदारी होगी, जो कार्यान्वित की गई योजनाओं का पालन सुनिश्चित कर सकती हैं और बनाई गई परिसंपत्तियों पर उचित अभिलेखों का रखरखाव कर सकती हैं। मंत्रालय में SCSP और TSP के तहत इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों द्वारा विशेष घटक योजना और जनजातीय उप योजना के तहत योजनाएं / कार्यक्रम तैयार करने के लिए दिशा निर्देश हैं। उदाहरण :- - राज्य सरकार को विशेष रूप से कृषि, शिक्षा (प्राथमिक, मध्य, तकनीकी और उच्चतर), स्वास्थ्य और सेवा क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सामान्य जनसंख्या, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए सभी विकास संकेतकों पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए।
ii. माननीय मंत्री, समाज कल्याण / आदिवासी कल्याण की अध्यक्षता में SCP / TSP के लिए राज्य स्तरीय निरीक्षण समिति का गठन किया गया जिसमें प्रधान सचिव / सचिव, समाज कल्याण/आदिवासी कल्याण के साथ सदस्य सचिव के रूप में किया जाना चाहिए।
iii. SCP/TSP के लिए एक जिला स्तरीय निरीक्षण समिति का गठन जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में सभी जिला स्तरीय अधिकारियों के साथ उसके सदस्यों के रूप में भी किया जाना चाहिए।
iv. यह सुझाव दिया गया था कि ब्लॉक स्तरीय समिति का गठन राष्ट्रपति, ब्लॉक समिति की अध्यक्षता में भी किया जा सकता है जहां बीडीओ और अन्य इसके सदस्य होंगे। SCP / TSP योजनाओं / कार्यक्रमों का निरीक्षण हर महीने इन समितियों द्वारा किया जाना चाहिए और तिमाही प्रदर्शन की समीक्षा की जानी चाहिए।
केन्द्रीय बजट में अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय की उपेक्षा, संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन है
इसी वर्ष लोकसभा चुनाव के बाद, 23 जुलाई को एनडीए 3.0 सरकार ने सम्पूर्ण बजट 48 लाख 20 हजार 512 करोड़ का पेश किया जिसमें अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए किए गए आवंटन में एससी के लिए 4% और एसटी के लिए 1.3% की बढ़ोत्तरी की गई थी लेकिन अब पेश किया गया पूर्ण बजट न सिर्फ इस वित्त वर्ष की बल्कि अगले चार वर्षों के एससी-एसटी बजट की और इन समुदायों के सामने पेश आने वाली बजटीय चुनौतियों की संभावित तस्वीर प्रस्तुत करता है। हमारा विश्लेषण एससी और एसटी बजटों के तहत शामिल की गई योजनाओं और उनके आवंटन के स्वरूप और प्रभावशालिता पर रोशनी डालने की कोशिश करता है।
सत्तारूढ़ पार्टी जिस लोकप्रिय मत के साथ जीत कर वापस आई है उसके पीछे सामाजिक-आर्थिक न्याय और एससी तथा एसटी समुदायों के समावेशी विकास के ज़रिए दलितों और आदिवासियों तथा बाकी की आबादी के बीच के अंतर को दूर करने का वादा है। इस वित्त वर्ष के बजट में कोई प्रतिबद्धता दिखाई नहीं देती है। इस बजट में कई अप्रत्याशित घोषणाएं की गई हैं जिन्हें समझना और ज़मीनी वास्तविकता के आईने में देखना बहुत ज़रूरी है।
इसबार, अनुसूचित जाति कल्याण आवंटन (AWSC) और अनुसूचित जनजाति कल्याण आवंटन (AWST) के अंतर्गत क्रमशः एससी के लिए 275 और एसटी के लिए 281 योजनाओं को शामिल किया गया है। लेकिन, अगर इन आंकड़ों को एससी और एसटी समुदायों में मौजूद गरीबी के पैमाने और वित्त मंत्रालय द्वारा जारी की गए दिशानिर्देशों के संदर्भ में रख कर देखा जाए तो यह साफ़ हो जाता है कि यह योजनाएं एससी/एसटी समुदायों और बाकी की आबादी के बीच विकास के अंतर को पूरा कर पाने के लिए अपर्याप्त हैं। एससी और एसटी, दोनों बजटों में लक्षित योजनाओं का अनुपात 83 है जिनके लिए कुल 87,921.86 करोड़ रुपये (30%) आवंटित किए गए हैं जबकि
202,479.35 करोड़ रुपये (70%) गैर-लक्षित योजनाओं के लिए दिए गए हैं जिनसे एससी/एसटी समुदायों को कोई लाभ नहीं होता है। यह असल में आम योजनाएं हैं जिन्हें एससी या एसटी बजट योजनाओं को नकाब पहनाने की कोशिश की गई है। इन्हें एससी या एसटी समुदायों को फायदा पहुंचाने वाली योजनाओं का दर्जा देना गलत होगा।
इस वर्ष के बजट में कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं को पर्याप्त आवंटन न देकर व्यवस्थित रूप से कमज़ोर बनाया गया है। जैसे, मेट्रिक-पश्चात छात्रवृत्ति योजना, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी), बंधुआ मज़दूरों का पुनर्वास, सफाई कर्मचारियों के लिए स्वयं उद्योग, एससी के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप, केंद्रीय विद्यालय संगठन, नवोदय विद्यालय समिति, इग्नू मुक्त विश्वविद्यालय, स्वैच्छिक संगठनों को अनुदान, भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण, इत्यादि ऐसी कुछ योजनाएं हैं जिनका लाभ सीधे तौर पर समुदायों तक पहुंचता है लेकिन इनके लिए पर्याप्त आवंटन नहीं किया गया है।
गैर-लक्षित योजनाओं के लिए (स्टेटमेंट 10ए और 10 बी के तहत) बड़ी मात्रा में आवंटन किए जाने का रुझान पहले जैसा ही बना हुआ है। अच्छी योजनाओं का बजट लगातार घटाया जा रहा है जबकि गैर-जरूरी योजनाओं का बजट बढ़ता जा रहा है। इस वर्ष, एससी के लिए 275 योजनाओं में से 237 गैर-लक्षित योजनाएं थी जिनके तहत समुदाय को सीधा लाभ पहुंचाने की कोई प्रक्रिया तय नहीं की गई है। इसी तरह, अनुसूचित जनजाति के लिए शामिल की गई कुल 281 योजनाओं में से सिर्फ 45 योजनाएं ही समुदाय को सीधा लाभ पहुंचा सकती है, जबकि बाकी की योजनाएं आम योजनाएं हैं। यही नहीं, इन योजनाओं के तहत एससी और एसटी समुदायों के सतत विकास की कोई स्पष्ट रूपरेखा तय नहीं की गई है।
अनुसूचित जाति के लिए कुल आवंटन 1,65,493 करोड़ रुपये और अनुसूचित जनजाति के लिए कुल आवंटन 1,24,909 करोड़ रुपये है जो लगभग अंतरिम बजट जितना ही है, सिर्फ अनुसूचित जनजाति बजट को 1,21,023 करोड़ रुपये से थोड़ा बढ़ाया गया है।
गैर-लक्षित योजनाओं के लिए आवंटन किए जाने का रुझान पहले की तरह जारी है और सिर्फ 3.2% (46,195 करोड़ रुपये) ही सीधे तौर पर एससी को, 2.9% (41,730 करोड़ रुपये) ही सीधे तौर पर एसटी तक पहुंचेंगे।
बजटीय राशि के उपयोग का विश्लेषण – बजट की विश्वसनीयता
बजट विश्वसनीयता का अर्थ है कि हर वित्त वर्ष के अंत में सरकार मंजूर किए गए बजट का कितना हिस्सा खर्च कर पाती है। यानी, बजट विश्वसनीयता मंजूर किए गए बजट और उपयोग किए गए बजट के बीच का अंतर मापने का काम करती है। अगर यह अंतर 10% के अंदर है तो बजट को विश्वसनीय कहा जा सकता है। जहाँ तक दलित बजट (अनुसूचित जाति कल्याण आवंटन) और आदिवासी बजट (अनुसूचित जनजाति कल्याण आवंटन) का सवाल है, बजट विश्वसनीयता का मुद्दा नया नहीं है।
वित्त वर्ष 2019-20 के बजट के स्टेटमेंट 10ए के अनुसार कुल आवंटित बजट 81,341 करोड़ रुपये था जबकि उपयोग किया गया बजट 65,197 करोड़ रुपये था, यानी 20% बजटीय राशि खर्च नहीं की जा सकी। यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 14% था। इतने बड़े स्तर पर बजटीय राशि का खर्च न किया जाना, बजट विश्वसनीयता के सिद्धांत के विपरीत है। इसी तरह, वित्त वर्ष 2019-20 में, अनुसूचित जनजाति कल्याण आवंटन के तहत 11% बजटीय राशि खर्च नहीं की गई। यह भारत की सर्वोच्च ऑडिट एजेंसी भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) द्वारा स्टेटमेंट 10ए और 10 बी में उपलब्ध कराए गए वास्तविक खर्च के आंकड़े हैं जिन्हें विश्वसनीय माना जा सकता है।
अगर योजना-वार बजटीय राशि के उपयोग को देखें तो गहरे विश्लेषण से मालूम होता है कि कई योजनाओं के तहत आवंटित बजट का पूरा इस्तेमाल नहीं होरहा है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विभाग-वार आवंटन से जुड़ी हाल के दिशानिर्देशों के अनुसार, इन दोनों समुदायों के लिए तय की गई योजनओं पर सरकार द्वारा खर्च वित्त मंत्रालय और वित्तीय सलाहकार की अनुमति के साथ ही किया जाना चाहिए ताकि इनका सीधा लाभ इन समुदायों को पहुंचे। अगला चुनौतीपूर्ण पहलू यह है कि ऐसी कई लक्षित योजनाएं हैं जिनके लिए किया गया बजट आवंटन और उसका इस्तेमाल अन्य गैर-लक्षित तथा सामान्य योजनाओं के मुकाबले काफी कम है, जो इन समुदायों के लिए चिंता का विषय है। पिछले पांच वर्षों के दौरान, यानी वित्त वर्ष 2017-18 से 2021-22 के दौरान, “राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त और विकास निगम” जैसी महत्वपूर्ण योजना के लिए एससी के लिए कुल आवंटन 725.6 करोड़ रुपये था जबकि इसमें से सिर्फ 280.2 करोड़ रुपये का इस्तेमाल किया गया, यानी 61.4% राशि का इस्तेमाल नहीं हुआ।
कुछ सामान्य योजनाएं हैं, जैसे “जल जीवन मिशन/ राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन-सामान्य कार्यक्रम”, जिसके लिए कुल बजटीय आवंटन 18,603.6 करोड़ रुपये था और इस्तेमाल 16,296.2 करोड़ रुपये का हुआ, यानी 87.6% बजटीय राशि का उपयोग किया गया। कुछ गैर-लक्षित योजनाओं के तहत 100% बजटीय राशि का इस्तेमाल किया गया है; जैसे “देशी यूरिया के लिए यूरिया सब्सिडी भुगतान” नाम की योजना के लिए कुल आवंटन 5,211.3 करोड़ रुपये था और 8712.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए, यानि 167% बजटीय राशि का इस्तेमाल हुआ। यूरिया सब्सिडी के तहत दो योजनाएं हैं – देशी यूरिया के लिए यूरिया सब्सिडी भुगतान और यूरिया के आयात के लिए सब्सिडी भुगतान – और यहाँ प्रस्तुत किए गए अनुमानित और वास्तविक खर्च के आंकड़े दोनों योजनाओं के आंकड़ों को जोड़ कर पेश किए गए हैं।
पुनः ये बताते हुए कि वर्ष 2024-25 का केंद्रीय बजट 48,20,512 करोड़ रुपये है, जिसमें से 1,65,493 करोड़ रुपये (3.43%) अनुसूचित जाति के लिए और 1,32,214 करोड़ रुपये (2.74%) अनुसूचित जनजाति के लिए आवंटित किए गए हैं, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की योजनाओं के अनुसार उन्हें क्रमशः 7,95,384 और 3,95,281 करोड़ रुपये आवंटित करना चाहिए था । केंद्रीय बजट ने जनसंख्या के अनुसार बजट आवंटित करने में बड़ी असफलता दिखाई दी है और इससे स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की समाजिक सुरक्षा एवं विकास की चिंता नहीं है |
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए योजनाओं के नाम पर सरकार कॉर्पोरेट जगत का हित कर रही हैं। इस केंद्रीय बजट में, केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं की जगह अन्य क्षेत्रों में पैसे आवंटित कर दिए हैं (जैसे दूरसंचार, सेमीकंडक्टर, लार्ज स्केल इंडस्ट्रीज, परिवहन उद्योग, उर्वरक आयात, रासायनिक उत्पादन आदि) और अनुसूचित जाति उपयोजना एवं अनुसूचित जन जाती योजना की मूल आत्मा के साथ खिलवाड़ किया है।
हम निचे दिए गए कुछ उदाहरण के माध्यम से यह दर्शाना चाहते हैं की मौजूदा केंद्र सरकार ने कैसे अनुसूचित जाति उपयोजना एवं अनुसूचित जन जाती योजना के बजट को अनुचित रूप से अन्य गैर जरूरी कामों में आवंटित किया है और भारतीय संविधान का उल्लंघन किया है।
जिसमे अनुसूचितजाति/जनजाति के बजट से कभी हजारों लाखों करोड़ रुपए प्रयागराज कुंभ में,मेट्रो ट्रेन निर्माण में, गौ साला, गौ सेवा केंद्र निर्माण में,बिहार में पुलिस थानों के निर्माण आदि अन्य मदो में बजट को खर्च किया जा रहा है।
जबकि देश के पांच राज्यों में एससी एसटी सब प्लान को को कानूनी दर्जा बनाया जा चुका है। जिसमे तेलांगना सरकार द्वारा लगभग 17 हजार एकड़ जमीन स्पेशल कंपोनेंट प्लान के बजट से खरीद कर हजारों भूमिहीन दलित आदिवासी परिवारों को बाटा गया है वही एससीपी के बजट से ही हजारों परिवारों को रोजगार हेतु अरबो रुपए अनुदा दिए गए हैं।एवम स्वास्थ,शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं हेतु बजट खर्च किया गया है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 46 में कहा गया है: राज्य यानि सरकार समाज के कमजोर वर्गों के, विशेष रूप से, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के शैक्षिक और आर्थिक हितों की रक्षा करेगा और उन्हें सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार का शोषण से बचाएगा”।
अनुच्छेद 46 के कारण ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति विशेष घटक/उप योजना या अन्य लाभ प्रदान किये जाते हैं।
लेकिन दुखद पहलू यह है कि आजादी के 77 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के हितों की अनवरत अनदेखी की जा रही है। अभी तक केंद्र सरकार में अनुसूचित जाति के लिए कोई समर्पित मंत्रालय नहीं है। वर्तमान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय अनुसूचित जातियों, पिछड़ी जातियों के कल्याण को जोड़ता है।
अतः एससी एसटी के सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव हेतु सरकार ठोस बदलाव करने की जरूरत लेकिन इस सरकार में ऐसा होना संभव नहीं है ऐसे में दलित आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता एवं एससी एसटी समाज के प्रतिनिधि नेता प्रमुख बदलाव हेतु संघर्ष करने की जरूरत है जिसमें सरकार पर दबाव बनाते हुए प्रमुख सुझावों को शामिल करवाना होगा।
•दलित एवं आदिवासी बजट को अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) और जनजाति उपयोजना (टीएसपी) के अनुसार बजट आवंटित करें और दलित आदिवासियों के अधिकार को सुनिश्चित करे।
•राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति विकास नीधि कानून बनाया जाए।
•अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में बजट का प्रावधान सुनिश्चित किया जाए।
•अनुसूचित जाति कल्याण के लिए एक समर्पित मंत्रालय की स्थापना की जाए।
•इसी सत्र के बजट से एससी एसटी के छात्रों को उच्च शिक्षा में जीरो बजट में दाखिला करवाए एवम सभी को छात्रवृति देने की गारंटी करें।
•तेलांगना राज्य के तर्ज पर उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश के भूमिहीन दलित आदिवासियों को स्पेशल कंपोनेंट प्लान के बजट से भूमि आवंटन कराया जाए
•शहरी गरीब दलित, आदिवासियों,खासकर सफाईकर्मी परिवारों को इस बजट से निजी आवास उपलब्ध कराई जाए
•स्पेशल कंपोनेंट प्लान बजट से देश भर में एससी एसटी के लिए निजी उद्योग,कारखानों का निर्माण के लिए अनुदान दिया जाए ताकि देश के लाखो बेरोजगार एससी एसटी युवाओं को रोजगार मिल सके।
•अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति विशेष घटक/उप योजना के बजट को तमाम मंत्रालयो के माध्यम से आवंटन ना कर के अनुसूचित जाति के लिए नए मंत्रालय द्वारा एक जगह से आवंटन किया जाए।
•एससी एसटी विशेष घटक/उप योजना के निगरानी के लिए एससी एसटी पीओए एक्ट की तर्ज पर राज्य,जिला एवम ब्लॉक स्तर पर निगरानी कमेटी बनाई जाए जिसके सदस्य एससी,एसटी नागरिक समाज के लोगो को नामित किया जाए
एससी एसटी के बजट की लड़ाई सामाजिक न्याय की आधी लड़ाई है। आज आजादी के 77 साल बाद भारत के गांव गांव में इतनी जागरूकता तो फैल गई है कि देश का दलित आदिवासी एससी एसटी एक्ट हमारे सुरक्षा का अधिकार है ये जान चुका है। हम ये भी जान चुके हैं कि आरक्षण हमारा संवैधानिक अधिकार है। गांव-गांव तक ये भी जानकारी हो चुकी है कि पट्टे की जमीनों पर भूमिहीन दलित आदिवासी समाज का अधिकार है। लेकिन जो हमारे आर्थिक अधिकार की लड़ाई है अफसोस की हमारे ग्रामीण या शहरी बहुजन समाज के अधिकतर पढ़े लिखे जागरूक समाज के लोगों तक आर्थिक बजट के अधिकार की जानकारी नहीं पहुंच सकी है इसके लिए जरूरत है कि गांव/कस्बों मोहल्लों तक इस विषय पर जागरूकता अभियान चलाया जाए ताकि हम 5 किलो राशन के झुनझुने से बाहर निकल कर अपने आर्थिक अधिकार की लड़ाई संयुक्त होकर लड़ सके ताकि हमारी आने वाली नस्लें स्वास्थ,शिक्षा,रोजगार, आदि बुनियादी जरूरतों के लिए महरूम ना रहें।
डॉ.अनूप श्रमिक
(नेशनल अलाइंस फॉर सोशल जस्टिस)
डॉ. अनूप श्रमिक लंबे समय से सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। पूर्वाञ्चल के दलित जीवन की वंचना और त्रासदी को संघर्ष के परचम तक ले जाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।