हार से पहले हताश दिख रही है हिटलरी हुकूमत
आम चुनाव 2024 : बीजेपी की पेशानी पर अभी से दिखने लगी है बौखलाहट की झलक
इससे पूर्व मैं आज के मूल मुद्दे पर आऊं यह बता दूं कि बाबा साहेब अम्बेडकर ने भारत को “वास्तव में तानाशाही” बनते हुए “रूप में” लोकतंत्र बने रहने के प्रति आगाह किया था। संविधान सभा में आखिरी भाषण देते हुए डॉ. भीमराव आंबेडकर ने तीन चेतावनियां दी थीं, उनमें से आखिरी चेतावनी मौजूदा हालात में बेहद प्रासंगिक है। उन्होंने कहा था कि राजनीति में नायक-पूजा, भक्ति तानाशाही का निश्चित रास्ता है। “ यह सावधानी किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत के मामले में कहीं अधिक आवश्यक है। भारत में, भक्ति या जिसे भक्ति या नायक-पूजा का मार्ग कहा जा सकता है, उसकी राजनीति में दुनिया के किसी भी अन्य देश की राजनीति में निभाई जाने वाली भूमिका के बराबर नहीं है। धर्म में भक्ति आत्मा की मुक्ति का मार्ग हो सकती है। लेकिन राजनीति में, भक्ति या नायक-पूजा पतन और अंततः तानाशाही का एक निश्चित मार्ग है। ”
संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर के अंतिम भाषण की तीसरी चेतावनी राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र में न बदल पाने से जुड़ी है। वे कहते हैं- ‘26 जनवरी 1950 को हम अंतर्विरोधों से भरे एक जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमारे पास समानता होगी जबकि सामाजिक और आर्थिक जीवन असमानता से भरा होगा। राजनीति में हम ‘एक मनुष्य एक वोट’ और ‘एक वोट एक मूल्य’ के सिद्धांत पर चल रहे होंगे लेकिन अपने सामाजिक और राजनीतिक ढांचों के चलते जीवन में ‘एक मनुष्य एक मूल्य’ के सिद्धांत का अनुसरण हम नहीं कर पाएंगे। इस हकीकत को अगर हम ज्यादा समय तक नकारते रहे तो हमारा राजनीतिक लोकतंत्र संकट में पड़ जाएगा।’ इस दृष्टि से अब यदि मोदी जी के नित्य बिगड़ते बोलों पर ध्यान दिया जाए तो लोकशाही में राजशाही के दर्शन हो जाते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं।
आम चुनाव 2024 – विकास से नफरत की ओर बढ़ती भाजपा
भारत में दो प्रथम के दो चरण के चुनाव हो चुके हैं। देश का हर शख्स सोच रहा है कि 4 जून को क्या होगा। कौन से दल की नई सरकार आएगी? क्या मोदी तीसरी बार चुने जायेंगे? ये वो सवाल हैं जो लोगों के मन में हैं और इस सरकार के पिछले 10 वर्षों का काम-धाम और अनुभव सबको पता है। अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय होती है। इस सवालों के जवाब भी सबके अपने अपने होंगे। उपरोक्त सवालों के जवाब यदि ऐसे लोगों से यह जानने की कोशिश ज्यादा करनी चाहिए जो राजनीतिक नहीं हैं, अलग-अलग क्षेत्रों के लोग हैं, अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग हैं, अलग-अलग पेशे के लोग हैं, वे वर्तमान स्थिति को कैसे देखते हैं और देश के भविष्य को कैसे देखते हैं? विष्णु नागर जी के अनुसार यह एक बात तो जनता के बीच स्पष्ट रूप से जन्म ले रही है कि 2024 के आमचुनाव में मोदी जी द्वारा अपनाई जा रही कार्य प्रणाली से जो बात सामने आती हैं वो कुछ इस प्रकार है- आज भारत के आम चुनावों के प्रचार-प्रसार के जरिए एक तानाशाह की ‘बौखलाट’ स्पष्ट रूप से दिखने लगी है। लोगों से बातचीत और सोशल मीडिया पर साफ-साफ देखा जा सकता है कि लोगों की निराशा स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। उनमें परिवर्तन की चाहत दिख रही है। लेकिन उसमें से कितना राजनीतिक बदलाव के तौर पर देखा जाएगा या नहीं, यह भविष्य की बात है।
आज की पत्रकारिता की बात करें तो मेरे विचार से आम तौर पर पत्रकार जो गलती करते हैं वह यह है कि वे सबसे गरीब वर्ग, सबसे निर्णायक वर्ग, जिसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, तक नहीं पहुंच पाते। उदाहरण के लिए, यदि आप रायपुर शहर में जाएं तो नदी के किनारे रहने वाले मजदूरों, किसानों और अन्य लोगों की क्या राय है? वे किस तरह की चीज़ें देख रहे हैं? वे इस पर ध्यान नहीं देते। आजकल देखा जा रहा है कि उन्हें जो कोई भी मिल जाता है तो वे उससे ही बात करते हैं। इसलिए कई बार उनकी पत्रकारिता में सही बात सामने नहीं आ पाती। तो मुझे लगता है एक नजरिया अभी भी है कि मोदी जी ने कोरोना के बाद पिछले 4-5 साल से 5 किलो अनाज देना शुरू किया है तो गरीबों को लगता है कि ये उनके लिए बहुत बड़ा आशीर्वाद है। प्रतिक्रियात्मक दृष्टि से देखा जाय तो इस प्रकार अनाज का वितरण गरीब को और गरीब तथा अमीर को और अमीर बनाए रखने की प्रक्रिया है।
इस बात के आधार पर भूखी-प्यासी गरीब जनता को सोचना चाहिए कि यह राजनीतिक लोगों का काम है, या सामाजिक कार्यकर्ताओं का। इस दृष्टि से पत्रकारों का काम लोगों को यह समझाना चाहिए कि सरकार ने उन पर कोई उपकार नहीं किया है।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ यही सरकार ऐसा करती है, कोई भी सरकार ऐसा करती है। हो सकता है कि वो एक रुपया प्रति किलो लेते हों, लेकिन मुफ्त में भी तो दे सकते थे। तो इसमें कोई एहसान नहीं है, न वो राजा हैं, न हम उनकी प्रजा हैं, जिन्हें 5 किलो अनाज दिया गया है। यह तो सरकारा का लोकतांत्रिक कर्तव्य होता है। तो इस धारणा को मिटाने के लिए हमारे सभी राजनीतिक दलों को, हमारे सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को, हम सभी को, उनको ये समझाना होगा कि ये कोई बहुत बड़ा अहसान नहीं है जो उन्होंने आप पर किया है, वो राजा नहीं हैं। विष्णु नागर जी कहते है कि आज मुझे बहुत दर्द हुआ, कि हमने 2014 से पहले कभी कांग्रेस के विकल्प के रूप में किसी को नहीं देखा था। उनके पास जो भी विकल्प था। लेकिन अभी जो परिस्थितियां आई हैं, उसमें, आज की तारीख में, आप इसे स्थायी विकल्प के तौर पर कह सकते हैं कि आपके पास कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं है। आज की स्थिति में कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
वैसे भी आज की तारीख में कांग्रेस के लोग जो कह रहे हैं, राहुल गांधी जो कह रहे हैं, मुझे लगता है कि वही सबसे सही बात है। वो आकर क्या करेंगे, क्या नहीं करेंगे? अगर साझा सरकार बनती है तो जो फैसले उन्होंने खुद लिए हैं, जो फैसले उन्होंने बहुत सोच समझकर लिए हैं, जो फैसले उन्होंने कई लोगों से बात करने के बाद लिए हैं, क्या वो उन चीजों को लागू कर पाएंगे? या नहीं, या वह इरादा रहेगा या नहीं, ये अलग बातें हैं। लेकिन आज की तारीख में जो भी चिंतक है, जो सही तरीके से सोचता है, वो जानता है कि इस देश के लिए, भारत के लोगों के लिए, मोदी शासन सबसे खतरनाक है। इससे देश टूट जायेगा। इससे लोगों की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होंगी। और देश में लगातार जो आर्थिक असमानता की बात बार-बार की जा रही है, उसे कभी ख़त्म नहीं किया जा सकता।
मोदी जी यह सब जानते हैं, समझते हैं, उनका तर्क है कि मैं जो 5 किलो अनाज लोगों को दे रहा हूं, उससे लोग हमेशा मेरे आभारी रहेंगे और मुझे वोट देते रहेंगे… इस भ्रम को तोड़ना बहुत जरूरी है। 2019 और 2024 के चुनाव में आपके अनुसार मुख्य अंतर क्या है? क्या लोगों को अधिक गुस्सा आया? हां गुस्सा बहुत था। या ताना शाह की छवि धीरे-धीरे उभरी? देखिए, अब तक क्या होता था, लोग सोचते थे कि समस्याओं के लिए मोदी जिम्मेदार हैं। 2014 में, मोदी के सभी वादे, उस समय धार्मिक समुदाय में उतने सफल नहीं हुए। अगर किसी व्यक्ति को 15 लाख रुपये मिलते हैं, तो यह किसी को भी मिल सकता है, यहां तक कि आपको और मुझे भी, अगर मुझे 15 लाख रुपये मिलते हैं, तो क्यों? अगर आप 15 लाख रुपये दे देते, जो असंभव काम था तो लोग मोदी को 50 साल के लिए जिता देते। तो मोदी जी वो सब काम किये, जिससे लोगों ने उन्हें वोट दिया। किंतु नोटबंदी के फैसले के कारण लोग इतने हैरान-परेशान हो गए। इसके उलट, अडानी, अंबानी, जितने भी बड़े अमीर लोग हैं, उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई।
अगर आपको याद हो तो बीजेपी के जिन दफ्तरों के पास बहुत पैसा था, उन्होंने जमीनें और दूसरी चीजें खरीदीं, ताकि उनके पास जो काला धन था, वह पैसा सफेद धन में बदल जाए। तो बहुत सारे लोगों तक ये अलर्ट पहुंच गया कि ऐसा होने वाला है। लेकिन इसके बावजूद इसे आम लोगों के लिए गुप्त रखा गया। और उन्होंने 4 घंटे का नोटिस दिया। और उसके बाद हम जैसे लोग भी चिंतित थे। आम गरीब लोग भी बहुत परेशान थे। सभी को एक लाइन में खड़ा होना पड़ा। यह उनकी आजीविका के बारे में था। अगर मैं सरकारी नौकरी या प्राइवेट नौकरी भी कर रहा हूं तो एक दिन की छुट्टी ले सकता हूं। लेकिन जो दिहाड़ी पर काम कर रहा है, उसकी एक दिन की आजीविका चली गयी। किसान आंदोलन इतना बड़ा था और ऐसा लग रहा था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाएगा किंतु ऐसा नहीं हुआ। इसी दौर में जमीन की राजनीति के साथ-साथ शाहीन बाग आंदोलन को बीजेपी द्वारा कुचलना तो एक ओर, सरकार द्वारा जाने कितने ही ऐसे जनविरोधी काम किए गए जिनकी वजह से बीजेपी की मंशा साफ झलकती है।
सरकार के स्तर पर घोटालों की बात की जाए तो घोटाला तो घोटाला है, और झूठ तो झूठ है। यह बाहर से सफेद है, लेकिन अंदर से काला है। और कालापन इतना ज्यादा है कि आप उसमें समाते ही चले जाते हैं, और उसमें समाते ही चले जाते हैं, और आपको उसका कोई दूसरा छोर नजर ही नहीं आता। पिछले 10 सालों में मोदी सरकार के कार्यकाल में एक से बढ़कर एक बड़े घोटाले हुए हैं। कभी जासूसी कांड, कभी राफेल घोटाला, कभी आयुष्मान घोटाला, कभी शौचालय निर्माण घोटाला, कभी पीएम केयर फंड घोटाला, तो कभी चुनावी बांड घोटाला। जैसे अलग-अलग राज्यों और जिलों में वीआईपी दफ्तर बनाना, चुनाव लड़ना, जोरदार प्रचार करना, पैसा कमाना, विधायिकाएं खरीदना, किसी पार्टी को तोड़ना और जासूसी करना. जब आप इन सभी खर्चों को देखेंगे और इसके साथ ही जब आप बीजेपी की पिछले 10 सालों की आय की तुलना करेंगे तो आपको यकीन नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी राजनीति के जरिए भ्रष्टाचार खत्म करने नहीं आए हैं बल्कि वह एक संगठित भ्रष्टाचार को इस आत्मविश्वास के साथ अंजाम दे रहे हैं कि किसी को कुछ नहीं पता है।
इसके अलावा और भी बहुत कुछ है, कितने नाम लें? अगर किसी गांव में, किसी परिवार में अचानक बड़ी चीजें होने लगें, जैसे किसी का बड़ा घर बनने लगे, नई कारें आने लगें, मकान बदलने लगे तो यह चर्चा का विषय बन जाता है। लोग पूछने लगते हैं कि इतनी आमदनी कहां से हुई? इतना पैसा कहां से आ रहा है? कि सबकुछ अचानक से बदलने लगा है। और यह सवाल तब और गंभीर हो जाता है जब परिवार का बंपर खर्च उनकी आमदनी के बारे में बहुत कम बताता है। एक गांव में लोग आपस में चर्चा करते हैं। फिर सरकार द्वारा किए जा रहे खर्चों पर सवाल खड़ा न हो, यह कैसे हो सकता हूँ। वहां किसी मीडिया की जरूरत नहीं है। लेकिन जब मामला पूरे देश का हो, दुनिया की सबसे बड़ी तथाकथित पार्टी का हो और आमदनी 10 पैसे, खर्च हजारों में हो तो मीडिया को इन मुद्दों पर चर्चा करने की जरूरत है। लेकिन सबसे चिंताजनक बात ये है कि पिछले 10 साल में जो सबसे बड़ा घोटाला हुआ है वो है मीडिया घोटाला। यानी बीजेपी और मोदी सरकार ने मिलकर सबसे बड़ा मीडिया घोटाला किया है। वे मुंह में एक पतली सी पाइप डालते हैं और उस पाइप से वही आवाज निकलती है, जो सरकार चाहती है। इसी प्रकार ई डी, सी. बी आई. आयकर विभाग जैसी जाँच एजेंसियों का विपक्षी राजनीतिक दलों के खिलाफ प्रयोग करना, विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं को किसी न किसी सच्चे-झूटे मामलों में फंसाकर जेल में डाल देना आदि मोदी जी के ऐसे कार्य हैं जो मोदी जी की राजनीतिक विचारधारा, उन्हें एक तानाशाह के तौर पर सिद्ध करने के लिए काफी है।
उल्लेखनीय है कि बीजेपी महज सत्ता चाहती है। मोदी जी के आज के भाष्णों को सुनकर ऐसा लग रहा है कि मोदी जी के मन में यह सवाल उठ रहा है कि यदि उनकी सत्ता चली गईं तो उनका क्या होगा? और वह फिर वापस आएगी अथवा नहीं? मोदी जी को यह याद रखना चाहिए कि जब पिछले प्रधानमंत्री को हटा दिया तो वो आराम से अपने घर में बैठ गए। लेकिन मोदी जी में सबसे पहले सत्ता की भूख है। दूसरी बात, इस आदमी ने, इस देश के साथ बहुत अन्याय किया है, अपनी पार्टी के लोगों पर अत्याचार किया है, उन्हें कुचल दिया है। उनकी आवाज़ ने, और सभी स्तरों पर, उनकी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता से लोगों को इतना परेशान किया है। इतना ही नहीं एक-दो साल पहले जब अमित शाह की एक रैली थी, शायद जयपुर या राजस्थान में, तो वहां उन्हें लोगों द्वारा काले झंडे दिखाए जाने का डर सता रहा था। इस कारण से जो भी लोग उस रैली में आये उनके अंडरवियर का भी निरीक्षण किया गया कि कहीं किसी ने काला अंडरवियर न पहन रखा हो। अब जो सरकार अपनी जनता से इतनी डरती है, जिसे विरोध पसंद नहीं है, जो आलोचना बर्दाश्त नहीं करती, जो मानती है कि ठीक है, अब चुनाव हो रहे हैं, वो कर रहे हैं मुझे हटाने की कोशिश की जा रही है। भाई चुनाव तो होता ही इसलिए हैं कि जो सत्ता में होते हैं, जनता उन्हें वापस लाना चाहती है या नहीं, विपक्ष उन्हें हटाने की कोशिश कर रहा है और आप सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसमें क्या डरना? यह परिवर्तन की एक प्रक्रिया है।
बड़े ही दुख की बात है कि बीजेपी ने चुनाव प्रक्रिया की भी बखिया उधेड़्ने का काम किया है। विदित हो कि लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को चुनाव से पहले ही एक सीट मिल गई है। ये तो आपने सुना ही होगा. इसके साथ ही मोदी की गारंटी का असली चेहरा भी देश की जनता के सामने आ गया है. और अब सूरत का यह खेल इंदौर तक आ पहुचा है। खजुराओं का मामला भी कुछ ऐसा ही है। और भी बहुत सी ऐसी कहानियां है जो लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी की भाषणों की कथित कौशल कला यह स्वत: ही सिद्ध कर देती है कि बीजीपी में चुनाव जीतने की ऐसी बौखलाहट है जो स्पष्टरूप से देखने को मिलती है।
वरिष्ठ कवि तेजपाल सिंह तेज एक बैंकर रहे हैं। वे साहित्यिक क्षेत्र में एक प्रमुख लेखक, कवि और ग़ज़लकार के रूप ख्यातिलब्ध है। उनके जीवन में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिन्होंने उनको जीना सिखाया। इनमें बचपन में दूसरों के बाग में घुसकर अमरूद तोड़ना हो या मनीराम भैया से भाभी को लेकर किया हुआ मजाक हो, वह उनके जीवन के ख़ुशनुमा पल थे। एक दलित के रूप में उन्होंने छूआछूत और भेदभाव को भी महसूस किया और उसे अपने साहित्य में भी उकेरा है। वह अपनी प्रोफेशनल मान्यताओं और सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा सजग रहे हैं। इस लेख में उन्होंने उन्हीं दिनों को याद किया है कि किस तरह उन्होंने गाँव के शरारती बच्चे से अधिकारी तक की अपनी यात्रा की। अगस्त 2009 में भारतीय स्टेट बैंक से उपप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर आजकल स्वतंत्र लेखन में रत हैं