नहीं समझे तो आगे हैं गुलामी के दिन
फिल्म समीक्षाः ऐ वतन मेरे वतन
हर फिल्म अपने अंदाज में कुछ न कुछ कहती है। अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने वाले आजादी के दीवानों का इतिहास अमर है। ऐसे ही पुराने पन्नों में से यह फिल्म गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी उषा मेहता का जूनून सामने लाती है। 1942 के दौर में जब महात्मा गांधी ने करो या मरो का नारा दिया था, तब बंबई में एक सरकारी जज की बेटी उषा मेहता कांग्रेस से जुड़ गई। अंग्रेजों ने जब देश में कांग्रेस को बैन कर दिया और रेडियो पर भी बैन लगा दिया, ताकि लोगों तक आजादी का आह्वान न पहुंचे, तब उषा मेहता आगे आईं। उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर, डॉ. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में ‘कांग्रेस रेडियो’ की आवाज मुखर की। वह अंग्रेजों के लिए सिरदर्द बन गईं। फिर क्या हुआ?
निर्देशक कन्नन अय्यर की यह फिल्म उषा मेहता की बायोपिक के रूप में सामने आने के साथ-साथ, हमें भविष्य के खतरों के प्रति भी सचेत करती है। क्या होगा अगर हमारे आपसी संवाद और संचार के माध्यमों को सरकार अपने नियंत्रण में ले लेगी? क्या होगा अगर सरकार आपकी आवाज कहीं पहुंचने ही नहीं देगी। ओटीटी प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम पर आई इस फिल्म में सारा अली खान, इमरान हाशमी और स्पर्श श्रीवास्तव अहम भूमिकाओं में हैं। फिल्म को आने वाले संभावित खतरे को समझने के लिए देखा जाना चाहिए।
रवि बुले हिन्दी साहित्य के ख्यातिलब्ध कथाकार, फिल्म निर्देशक और फिल्म समीक्षक हैं।
आईने सपने और बसंत सेना तथा यूं न होता तो क्या होता इनके चर्चित कहानी संग्रह तथा दलाल की बीवी इनका बहुपठित उपन्यास है । फिल्म आखेट के निर्देशक के रूप में इन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। मराठी भाषा के कुछ महत्वपूर्ण साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी आपने किया है।