रिजर्वेशन के आपसी झगड़े के बजाय नये मौकों की तलाश करनी पड़ेगी
एक कहावत प्रचलित है कि जहां धुंआ होता है, वहीं आग लगती है। आखिर आरक्षण और उससे संबंधित क्रीमी लेयर या आर्थिक आधार पर बर्गीकरण का सवाल कोर्ट में बार बार क्यों जाता है? और कौन लेकर जा रहा है ? हमारे लोग ही है। यदि कोर्ट में जा रहा है तो फैसला भी आयेगा ही, स्वाभाविक है, ऐसे सामाजिक विषय पर कोर्ट के फैसले से, पक्ष या विपक्ष दोनो तैयार होगें और न चाहते हुए भी आमने सामने आही जाएगें। फिर सामाजिक बंटवारे और उससे राजनीतिक फायदे नुकसान की गणित शास्त्र शुरु हो जाएगी। बेहतर होता कि रिजर्वेशन का मैटर आपसी भाई चारे से आपस में सुलझा लेते, कोर्ट में जाने की नौबत ही नहीं आती।
खुद को शूद्र समझने और शूद्र मिशन चलाने से करीब करीब सभी जाति या समुदाय के लोग सोशल मीडिया के माध्यम से मुझसे जुड़े हुए है। पक्ष और विपक्ष दोनो प्रतिक्रियाएँ खूब मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से, किसको कितना रिजर्वेशन का फायदा नुकसान होगा , यह तो बाद में पता चलेगी लेकिन राजनीतिक नुकसान तो अभी से दिखाई देने लगा है।
इसी आपसी झगड़े के बीच चुपचाप डायरेक्ट आईएएस भर्ती का फरमान भी जारी हो गया, इस पर हाय-तौबा नही मचेगा और भारत बंद का कोई एलान भी नही करेगा।
रिजर्वेशन लागू होने के बाद अबतक के सामाजिक सुधार और बदलाव पर कुछ प्रकाश डालते है। पहले महाराष्ट्र से ही शुरु करते हैं। यहां पर फुले दम्पति, शाहूजी महाराज और फिर बाबा साहब अम्बेडकर के योगदान से शिक्षा के महत्व को बहुत पहले ही लोग समझ गए थे।
यहां जनजाति (ST) में पक्ष या विपक्ष, समर्थन या विरोध इस तरह की कोई प्रतिक्रिया देखने को नही मिल रही है। जो जितना शिक्षित होगा, उतना रिजर्वेशन का फायदा लेगा, यह आम धारणा है।
हां SC की कुछ जातियो में आरक्षण को लेकर पहले से ही राजनीतिक लोग वाद-विवाद चलते आ रहे है। जो स्वाभाविक है और सामाजिक तौर पर दिखाई भी देता है। सेडुल काष्ट में बहुत जातियां है, लेकिन मुख्य रूप से चार जातियां ही राजनीतिक पटल पर दिखाई देती हैं। चमार, डोर, मातंग और महार (बौद्ध)।
बाबासाहेब के एक आह्वान पर सिर्फ महार अपने पुश्तैनी धंधे को लात मारते हुए, शहरों की ओर कूच कर गए, जो भी नौकरी धंधा मिला, उसे किया और अपने बच्चों को शिक्षित किया। परिणामस्वरूप सरकारी नौकरी हो या प्राइवेट हर जगह मिल जायेगें, इन्जीनियर, डाक्टर, वकील यहां तक कि विदेशो में भी यही जाति छाई हुई है। माना जाता है कि ब्राह्मणों के बाद दूसरे स्थान पर इन्ही का बर्चस्व सभी क्षेत्र में है।
वहीं पर चमार डोर और मातंग मनुवादी षणयंत्र का शिकार होकर हिन्दू बने रह गए, पुश्तैनी धंधे अपनाते हुए शिक्षा पर ज्यादा ध्यान नही दिया, स्वाभाविक है रिजर्वेशन के माध्यम से नौकरी में महार से ज्यादा पिछड़ गए । राजनीतिक हवा भी खूब दी जाती है लेकिन इसका असर सामाजिक तौर पर, क्रीमी लेयर या एक दूसरे की हकमारी जैसे वाद-विवाद नही के बराबर है। कारण बुद्धिजीवी अपनी गलती को समझता है और यही नही ए तीनों हिन्दू जातियां शूरु से ही महाराष्ट्र की राजनीतिक भागीदारी में सरकार के साथ हमेशा से रही है, जब कि बौद्ध महार अपोजिशन में ही बराबर रहा है। इसलिए ए जातियां अपनी दयनीय स्थिति के लिए सरकार के अलावा किसी और पर दोष भी नही लगा सकते है।
मैने यह भी देखा है कि बहुत से शिक्षित और सम्पन्न महार रिजर्वेशन का परित्याग कर दिया है। कुछ स्वाभिमानी बौद्ध रिजर्वेशन से नौकरी करना, अपनी तौहीन समझता है। हमारे MTNL में साथी रहे सुरवसे साहब ने अपने तीनो बच्चों को रिजर्वेशन की सुविधा नही लेने दिया। दोनो लड़के विदेश में अच्छी नौकरी कर रहे है और लड़की भी अच्छी पढाई कर प्राइवेट जाब कर रही है। मेरी जानकारी में एक बंजारा समाज के नाइक साहब ने IAS सेवानिवृत्त होने के बाद बच्चो के लिए खुद का स्कूल खोला है।
यहां पर अति पिछड़ी जाति जिनका पहले स्थाई बसेरा नही होता था, जिन्हे घुमक्कड़ जाति समझा जाता था, जिसमे मुख्य रूप से अहीर गडेरी धनगर बंजारा आदि को 3% रिजर्वेशन देकर नेमोटिक ट्राइबल कैटिगरी बनाई गई है । इनमें भी आपस में रिजर्वेशन को लेकर कोई वाद-विवाद नही है, धारणा वही है जो जितना पढ़ेगा, उतनी नौकरी पाएगा।
ऐसी स्थिति उत्तर भारत या बिहार में नही हैं, वहां पर शिक्षा का महत्व विशेष रूप से शहर-शहरात से दूर गांव गिराव में बहुत देर से समझ में आया। ST की संख्या इन प्रदेशो, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार में बहुत कम है और अबतक की सरकारों की ढुलमुल रवैए के कारण उनकी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक हालात अभी भी दयनीय है। राजनीतिक रूप में भी भागीदारी नगण्य है। इनका तो पूरा कोटा भरने का सवाल ही नही उठता है, इसलिए इनमें रिजर्वेशन को लेकर पक्ष और विपक्ष, समर्थन या विरोध का सवाल ही खड़ा नही होता है।
उत्तर भारत में SC में ही रिजर्वेशन को लेकर हापतौब और माथापच्ची खूब चल रही है। भंगी या बाल्मीकि या अन्य कुछ ज्यादा पिछड़ी जातियां एक तरफ हैं, तो दूसरी तरफ शहरी चमार या जाटव, जो राजनीतिक आर्थिक या शैक्षणिक रूप से कुछ संपन्न हो गए है, रिजर्वेशन को लेकर, समर्थन या विरोध में आमने सामने हैं।
मै कुछ जमीनी धरातल पर कुछ प्रमाण और तथ्य रखना चाहुंगा। हमारे गांव अदसंड़ चंदौली उत्तर प्रदेश और बिहार के बॉर्डर पर स्थित है। स्वतन्त्रता के बाद यादव समाज में अपने खानदान का पहला लड़का जो स्कूल जाना शुरु किया। हमारे गांव मे करीब 100 परिवार चमार के है। आजतक रिजर्वेशन का न तो शिक्षा मे नही नौकरी में कोई सुविधा मिली है। एक दो लडके कैसे भी ग्रेजुएट हो गए हैं।लेकिन एक भी यहां तक की चतुर्थ श्रेणी मे भी सरकारी नौकरी में नही है। अभी आज ही हमारे गांव के भूतपूर्व प्रधान पांचू चमार से जानकारी लिया तो उनका कहना है कि हमारे गांव और आसपास की बात छोड़िए, पूरे चंदौली जिले में हो सकता है ढूंढने पर एक या दो क्लास वन, टू या त्री में चमार अधिकारी मिल जाए। आप बताइए यहां का चमार किसका हक खा रहा है।
और वहीं, कई चमार जाटव आर्थिक सामाजिक संपन्न परिवारो को देखा है, बाप, फिर बेटा, चाचा, भतीजा, भाई बहन, पतोहू सभी कही न कही सरकारी नौकरी में सेट हों गये है। अच्छी बात है, स्वागत भी होना चाहिए, लेकिन कही कही एक जिले से ज्यादा एक ही परिवार सरकारी नौकरी में है। हमे लगता है ऐसे कुछ परिवार ही वाद-विवाद का कारण बने हुए है। इन्ही को देखकर कहा जाता है चमार और जाटव ने हमारा हक खा लिया है। जब की हकीकत कुछ और ही है।
हर इन्सान सामाजिक रूप से स्वार्थी और लालची प्राणी होता है, इसे कोई झुठला नही सकता। मान लीजिए SC में एक ही IAS को इन्टव्यू में सेलेक्ट करना है, दो चमार जाति के उम्मीदवार हैं एक IAS का बेटा है और दूसरा गांव गिराव का गरीब मजदूर का बेटा है। अंदाज लगाइए, किसका चयन होगा।
यह सही है कि संविधान के अनुसार SC,ST रिजर्वेशन में क्रीमी लेयर या वर्गीकरण विभाजन का प्रावधान नही है, आखिर कब-तक ऐसे ही चलता रहेगा? क्या 100- 500 सालों तक चलते रहना चाहिए? आप शैक्षणिक आर्थिक राजनीतिक रूप से सवर्णो को टक्कर देने मे सक्षम हो गये हैं, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री बनाने तक का स्वाभिमान रखते हैं तो सामाजिक रूप से 50-60 सालों में स्तर क्यों नही ऊंचा हो रहा है? आप को कौन रोक रहा है? हमें लगता है कहीं न कहीं रिजर्वेशन ही बाधा बना हुआ है। IAS बनने के बाद भी सामाजिक हीन भावना दिलो-दिमाग से नही जा रही है, इसलिए अगले जनरेशन के लिए भी रिजर्वेशन की जरूरत आप को पडती है।
एक सुझाव है, जहां भी आप की पोस्टिंग होती है, आप की जाति का अन्य लोगों द्वारा पता लगाने से पहले ही, आप अपनी आफिस में चेयर के पीछे दीवार पर बाबा साहब की फोटो के साथ एक बैनर लगा दीजिए। कुछ दिनों में ही आप का सामाजिक स्तर भी ऊंचा हो जाएगा। सामाजिक स्तर ऊंचा होते ही आप रिजर्वेशन से बाहर अपने आप हो जाएगें।छुआ-छूत गरीबी, असमानतावादी विकट परिस्थितियों को झेलते हुए, इमानदारी से, बिना किसी पैरवी, सिपारस के संवैधानिक रूप से यहां तक कंपिटीशन से पहुचां हूं। मुझे इसका गर्व है। (जाति के साथ पूरा नाम)
एक सुझाव और है कि जो परिवार क्लास वन आफिसर होने के बाद, यदि आर्थिक रूप से संपन्न हो गया है तो, भरसक अपने बच्चों को वकालत, डाक्टर, सीए या फिर विदेशो मे उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करें। व्यापार या छोटे-मोटे कल कारखाने की तरफ भी ले जाने की कोशिश करे, जिससे और लोगो को रोजगार का अवसर प्राइवेट में मिल सके। रिजर्वेशन का दायरा दिनों दिन काम होता जा रहा है। आपसी रिजर्वेशन के झगड़े के बजाय नये रोजगार और प्राइवेट नौकरी जैसे मौको की तलाश करनी पड़ेगी।
एक फरवरी 1951 को चंदौली, उत्तर प्रदेश में जन्म। मंडल अभियंता एमटीएनएल मुम्बई से सेवा निवृत्त, वर्तमान में नायगांव वसई में निवास कर रहे हैं।
टेलीफोन विभाग में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए, आप को भारत सरकार से संचार श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। नौकरी के साथ साथ सामाजिक कार्यों में इनकी लगन और निष्ठा शुरू से रही है। 1982 से मान्यवर कांशीराम जी के साथ बामसेफ में भी इन्होंने काम किया।
2015 से मिशन गर्व से कहो हम शूद्र हैं, के सफल संचालन के लिए इन्होंने अपना नाम शिवशंकर रामकमल सिंह से बदलकर शूद्र शिवशंकर सिंह यादव रख लिया। इन्हीं सामाजिक विषयों पर, इन्होंने अब तक सात पुस्तकें लिखी हैं। इस समय इनकी चार पुस्तकें मानवीय चेतना, गर्व से कहो हम शूद्र हैं, ब्राह्मणवाद का विकल्प शूद्रवाद और यादगार लम्हे, अमाजॉन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।