प्रतिरोध के नायक जी एन साईबाबा का निधन, बेकसूर होकर भी 9 साल रहे थे जेल में
नई दिल्ली। प्रतिरोध की एक बड़ी आवाज आज हमेशा के लिए चुप हो गई। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साई बाबा का निधन हो गया है। वह गाल ब्लैडर के इलाज के लिए हैदराबाद स्थित निम्स अस्पताल में भर्ती थे, जहां आपरेशन के दौरान स्थिति गंभीर हो गयी और उन्हें बचाया नहीं जा सका। वह 57 वर्ष के थे। साईबाबा को निम्स में 10 दिन पहले भर्ती कराया गया था।
साईंबाबा को संदिग्ध माओवादी संबंधों के आरोप में 2014 में गिरफ्तार किया गया था, ऐसे आरोप जो अभियोजन पक्ष साबित नहीं कर सका था। उन्हें इस साल 7 मार्च को जेल से रिहा किया गया था।
जेल से रिहा होने के बाद साई बाबा ने कहा था कि “मैं अपनी मां को उनकी मृत्यु से पहले आखिरी बार नहीं देख सका क्योंकि मुझे पैरोल से वंचित कर दिया गया था। यह बुनियादी मानवाधिकारों का खंडन है। जब मैं जेल में था, तब मेरी मां का निधन हो गया। जन्म से ही विकलांग होने के कारण, मेरी मां ने मुझे अत्यंत लाड़-प्यार से पाला। वह मुझे अपनी गोद में लेकर स्कूल ले जाती थीं ताकि मैं शिक्षा प्राप्त कर सकूं उन्होंने यह कहकर शुरुआत की कि ‘उन्हें अभी भी सलाखों के पीछे की ज़िंदगी का एहसास नहीं है, जहाँ वे इतने सालों से बंद हैं’।
उन्होंने कहा, “मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि मैं बाहर हूँ, मैं आज़ाद हूँ। सात साल तक अंडा सेल में, मैं सिर्फ़ ऊपर और चारों ओर जेल की दीवार ही देख सकता था।” उन्होंने कहा था कि जब वे जेल गए थे, तो वे जन्म से पोलियो के अलावा एक स्वस्थ व्यक्ति थे, लेकिन जेल ने उन्हें भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रूप से थका दिया है।
उन्होंने कहा, “मेरे शरीर का हर अंग और अंग अब गंभीर स्थिति में है। मैं अब खाना नहीं खा सकता और न ही पचा सकता। लंबे समय से दिल की बीमारी के अलावा, जेल के अंदर मुझे उच्च रक्तचाप, पैराप्लेजिया, रीढ़ की हड्डी में काइफोस्कोलियोसिस, कोशिका और तंत्रिका रोग, तीव्र अग्नाशयशोथ, पित्ताशय में पथरी और मस्तिष्क में सिस्ट हो गया है।”
साईबाबा ने कहा था, “जब कई बार मेरी हृदय गति इतनी कम हो गई कि डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि मैं बच नहीं पाऊँगा, तो जेल अधिकारियों ने मुझे इलाज नहीं दिया। इन वर्षों में कई बार मांसपेशियों के नुकसान के कारण मेरे हाथ और मांसपेशियाँ काम करना बंद कर चुकी हैं।” उन्होंने याद करते हुए कहा, “यह जानते हुए भी कि मुझे पोलियो है, जो मुख्य रूप से मेरे पैरों से जुड़ा है, मुझे मेरे पैरों से घसीटा गया और मेरे पैरों पर मारा गया। 10 साल बाद भी पैरों में सूजन देखी जा सकती है।”
उन्होंने आगे कहा, “जब मैंने विरोध में 10 दिनों तक अपनी दवाइयाँ और खाना छोड़ दिया तो मुझे सरकारी अस्पताल ले जाया गया। लेकिन कोई इलाज नहीं किया गया, वे मुझे केवल दर्द निवारक दवाएँ देते थे।” साईबाबा दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे, जहाँ उन्होंने 2003 में दाखिला लिया था। माओवादियों से संदिग्ध संबंधों के लिए महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद 2014 में उन्हें कॉलेज ने निलंबित कर दिया था। इस दौरान उन्होंने 9 साल से ज्यादा वक्त जेल में बिताया। कुछ महीनों पहले ही वह जेल से रिहा हुए थे। बांबे हाईकोर्ट ने उन्हें तमाम आरोपों से बाइज्जत बरी कर दिया था।
जस्टिस विनय जोशी और वाल्मीकि एसए मेनेज की खंडपीठ ने उनके आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया था और उनके समेत पांच और लोगों को सारे आरोपों से बरी कर दिया था। बेंच ने कहा कि वह सभी आरोपियों को छोड़ रही है क्योंकि सरकारी पक्ष उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं दे सका।
सीपीआई एमएल के महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि साईबाबा को इन स्थितियों तक पहुंचाने के लिए सत्ता जिम्मेदार है। प्रोफेसर साई ने जेल में रहने के दौरान अपनी मां को खो दिया। वह सिस्टम जो अनुराग ठाकुर और बृज भूषण शरण सिंह जैसों को खुला छोड़ देता है जो बिल्किस बानो के बलात्कारियों को देश के 75 वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रिहा कर देता है, जो राम रहीम को बार-बार पैरोल देता है, संजीव भट्ट को जेल में सड़ने और स्टैन स्वामी को मरने के लिए छोड़ देता है, जबकि साईबाबा अपने जेल जीवन के दौरान अंतहीन टार्चर का शिकार होते हैं और अपने प्यारे लोगों से एक-एक कर बिछुड़ते जाते हैं। ऐसे सिस्टम को खत्म करने की जरूरत है। भारत के संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य में कानून के शासन और न्याय की जरूरत है और उससे अलग कुछ नहीं।
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