अनुशासन की कोई एक परिभाषा नहीं है… यह समय सापेक्ष बदलती रहती है
आज की तारीख में यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि लोकतंत्र में सरकार खुलकर कब्बडी खेल रही है। सरकार अपनी मर्जी के हिसाब से आस्था के नाम पर नागरिकों की आस्था की ऐसी की तैसी करने में भाव से देश के हित के लिए बनाए गए संविधान में निहित जनभावना की अनदेखी कर रही है। और अप्रत्यक्ष रूप से संविधान के नाम पर देश को ही गाली देती हुई लगती है। यह बात अलग है कि सरकार ऊपरी तौर से संविधान की जयजयकार करने का काम कर रही है।
सरकार की गरीब और निरीह समाज के प्रति उपेक्षा का भाव और अमीरों के प्रति स्नेह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है… यथा 100 रुपए के कर्जदार को सजा और करोड़ों के चोरों को देश से बाइज्जत विदेशों में विचरण करने की छूट इस सरकार से पहले की सरकारों की कार्यकाल में कभी नहीं मिली। कमाल तो ये है कि सारे के सारे आर्थिक भगोड़े केवल और केवल गुजराज के ही रहे हैं। और सरकार यानि कि मोदी जी उन्हें बाइज्जत देश में वापिस लाने का प्रसाद बाँटते नहीं अधा रहे हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ सबको हर तरह की स्वतंत्रता प्राप्त है। परन्तु हमारे देश में इसी प्रकार के भ्रष्टाचार का फैलाव दिन-भर-दिन बढ़ रहा है। लोग इसी स्वतंत्रता और हमारे देश के लचीले कानूनों की वजह से नहीं अपितु सरकारी पैरोकारों से अच्छे संबंधों के चलते का लाभ उठाते रहे हैं। ये बात भी कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हेराफेरी का व्यवसाय कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है।
बजरिये न्यूज़ लॉन्चर अशोक वानखेड़े जी बताते है कि भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, जो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का आयोजन करता है, न सिर्फ़ आयोजन करता है, बल्कि पुरस्कार भी वितरित करता है। इस साल के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता, कोरियोग्राफर, नृत्य निर्देशक या डांस मास्टर, आप उन्हें हिंदी में नृत्य प्रशिक्षक कह सकते हैं, जॉनी मॉन्स्टर, जिन्हें पुरस्कार विजेता घोषित किया गया था किंतु नाबालिग असिस्टेंट से रेप के आरोपी जानी मास्टर से बेस्ट कोरियोग्राफर का नेशनल अवॉर्ड वापिस ले लिया गया है। जानी के खिलाफ उनकी असिस्टेंट रही लड़की ने 15 सितंबर को तेलंगाना के साइबराबाद रायदुर्गम पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करवाई थी। मिनिस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग ने को इसकी जानकारी दी। न्यूज़ लॉन्चर में अशोक वानखेड़े ने अपने एक कार्यक्रम में इस सत्य का खुलासा किया है। स्त्री-2 कोरियोग्राफर जानी मास्टर को असिस्टेंट ने यौन शोषण के मामले में तेलंगाना पुलिस ने गोवा से गिरफ्तार किया था। उनकी असिस्टेंट रही लड़की ने 15 सितंबर को तेलंगाना के साइबराबाद रायदुर्गम पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करवाई थी। जानी मास्टर को साल 2022 में रिलीज हुई धनुष की फिल्म ‘तिरुचित्रम्बालम’ के गाने ‘मेघम करुकथा’ का डांस कोरियोग्राफ करने के लिए नेशनल अवॉर्ड दिया गया था। इस गाने को उन्होंने सतीश कृष्णन के साथ कोरियोग्राफ किया था। उन्होंने स्त्री-2 के गाने ‘आई नहीं’ और पुष्पा के गाने ‘श्रीवल्ली’ को भी कोरियाग्राफ किया है।
असिस्टेंट का आरोप था कि जब 16 साल की थी, तब उन्होंने चेन्नई, मुंबई और हैदराबाद में अलग-अलग प्रोजेक्ट्स की शूटिंग के दौरान उसका यौन शोषण किया। साथ ही हैदराबाद स्थित अपने घर पर भी उसे कई बार एब्यूज किया। लड़की ने अपनी शिकायत में बताया कि साल 2017 में एक इवेंट में उसकी मुलाकात जानी मास्टर से हुई थी। दो साल बाद जानी ने उसे अपनी असिस्टेंट कोरियोग्राफर की जॉब ऑफर की, जो उसने मंजूर कर ली। इसके बाद मुंबई में हुए एक शो के दौरान जानी ने होटल में उसे सेक्शुअली हैरेस किया। लड़की का आरोप है कि इसके बाद जानी लगातार डरा-धमकाकर उसका शोषण करते रहे। वे उस पर लगातार शादी का दबाव बना रहे थे। इतना ही नहीं, वे एक बार उसे अपने घर भी ले गए जहां जानी और उनकी पत्नी (आयशा) ने उसके साथ मारपीट की। यह मामला सबसे पहले तेलंगाना वुमन सेफ्टी विंग (WSW) की डीजी शिखा गोयल ने उठाया था। उन्होंने ही पीड़ित को पुलिस कम्प्लेन करने का सुझाव दिया था। जानी इससे पहले भी 2015 में एक विवाद के चलते छह महीनों के लिए जेल जा चुके हैं। पुलिस ने 15 सितंबर को POCSO में केस दर्ज किया और 19 सितंबर को जानी को गोवा से अरेस्ट किया गया। 20 सितंबर को उन्हें कोर्ट में पेश किया गया। इसके बाद से वह हैदराबाद की चंचलगुडा सेंट्रल जेल में बंद हैं।
सेरेमनी के लिए बेल ली, मिनिस्ट्री ने कहा- प्रोग्राम में न आएं
जानी ने 8 अक्टूबर को होने वाली नेशनल अवॉर्ड सेरेमनी के लिए बेल मांगी थी। कोर्ट ने कोरियोग्राफर को 6 से 10 अक्टूबर तक की बेल दी है। इसी बीच मिनिस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग के नेशनल फिल्म अवॉर्ड सेल ने जानी का अवॉर्ड सेरेमनी में इन्विटेशन सस्पेंड करने का ऐलान कर दिया। जानी ने अब तक राम चरण, जूनियर एनटीआर, चिरंजीवी, विजय, धनुष और पवन कल्याण समेत कई बड़े सेलेब्स के साथ काम किया है। पवन कल्याण ने अपनी पार्टी से दूर रहने को कहा सेक्शुअल हैरेसमेंट के आरोप लगने के बाद जानी को तेलुगु फिल्म चेंबर ऑफ कॉमर्स से सस्पेंड कर दिया गया है। इसके साथ ही उन्हें वर्कर्स यूनियन से भी हटा दिया गया है। जॉनी मॉन्स्टर का असली नाम शेख जॉनी बाशा है।
सरकार का यह कदम एक स्वस्थ्य परंपरा कें रूप में देखी जा सकती है लेकिन यह भी अपेक्षा करनी चाहिए कि अगर आपने फिल्म इंडस्ट्री के लिए यह परंपरा शुरू की है, तो इस परंपरा के तहत सांसद, नगर पालिका के पार्षद, अधिकारी, चाहे वो आईएएस हों या आईपीएस, बड़े-बड़े बिजनेसमैन, जब उन पर ऐसे आरोप लगते हैं, तो उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए। उनसे अवॉर्ड वापस ले लेना चाहिए। अगर ऐसे आरोप किसी एमपी, एमपी या एमपीपी पर लगे हैं तो उन्हें भी लोकसभा और विधायी चुनावो मे भाग लेने से रोका जाना चाहिए। यह भी कि अगर ऐसे आरोप किसी आईएएस अधिकारी पर लगे हैं तो आईएएस बनने की प्रक्रिया को भी खारिज कर देना चाहिए। आईपीएस, आईआरएस, जो भी हो, सिविल सेवाओं में चयन को खारिज कर देना चाहिए।
मगर ऐसे दागी नेताओ को हमारे देश के लिए आदर्श माना जाता है। अभी हाल ही में ADR, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की 2024 की एक रिपोर्ट आई है। एडीआर एक विश्लेषणात्मक संगठन है। जब भी कोई सांसद या सांसद चुनाव से लड़ता है तो वह चुनाव आयोग के सामने अपना हलफनामा देता है। उस हलफनामे में यह महत्वपूर्ण होता है कि उसके खिलाफ क्या केस हैं, किन धाराओं में केस चल रहे हैं, कौन से मामले किस स्तर पर हैं, यह सारी जानकारी चुनाव आयोग को देनी देनी होती है। लेकिन सवाल तो ये है कि ऐसे दागी नेताओं को बजरिए चुनाव संसद में जाने का अवसर क्यों प्रदान किया जाता है। ऐसे सांसदों/विधायकों से समाज हित में काम करने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है।
18वीं लोकसभा में आए दागी सांसद
ADR द्वारा किए गए एक विश्लेशण के अनुसार वर्तमान में यानी 2024 में हमारे देश में 18वीं लोकसभा में नए चुने गए 543 सांसदों में से 46% यानी 251 पर क्रिमिनल केस दर्ज हैं। इनमें से 27 सांसदों को अलग-अलग अदालतों से दोषी करार दिया जा चुका है। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक दागी सांसदों का यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इससे पहले 2019 में क्रिमिनल केस वाले 233 (43%) सांसद लोकसभा पहुंचे थे। नए चुने गए 251 सांसदों में से 170 पर बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे केस हैं। भाजपा के 63, कांग्रेस के 32 और सपा के 17 सांसदों पर गंभीर अपराध दर्ज हैं। लिस्ट में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के 7, DMK के 6, तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के 5 और शिवसेना के 4 सांसदों के नाम हैं।
तीन सांसद, जिन पर सबसे ज्यादा केस
संसद पहुंचने वाले सबसे दागी सांसदों की बात करें तो केरल की इडुक्की सीट से कांग्रेस के डीन कुरियाकोस का नाम सबसे ऊपर है। डीन ने 1.33 लाख वोट से जीत हासिल की है। उन पर करीब 88 मामले दर्ज हैं। इस लिस्ट में दूसरा नाम कांग्रेस के शफी परम्बिल का और तीसरा नाम BJP के एतेला राजेन्द्र का है।
महिलाओं के खिलाफ अपराध में शामिल 15 सांसद
2024 का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे सांसदों में से 15 ने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से जुड़े मामलों की घोषणा की है। इनमें से 2 पर IPC की धारा 376 के तहत बलात्कार का आरोप है। इनके अलावा, 4 सांसदों ने अपहरण से जुड़े मामले डिक्लेयर किए हैं। 43 ने अभद्र भाषा से जुड़े मामले अपने चुनावी हलफनामे में लिखे थे। चुनाव प्रक्रिया खत्म होने के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार, चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू ने गुरुवार शाम को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लोकसभा चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों की लिस्ट सौंपी। एक बार सूची राष्ट्रपति को सौंपे जाने के बाद 18वीं लोकसभा के गठन की औपचारिक प्रक्रिया पूरी करली गई।
लोकसभा के लगभग आधे सांसदों पर आपराधिक आरोप
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के प्रतिनिधियों के अनुसार, 18वीं लोकसभा में 251 (46 प्रतिशत) सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। संदर्भ के लिए, यह निचले सदन में साधारण बहुमत से केवल 21 कम है। संक्षेप में कहें तो 4 जून को आए लोकसभा के फैसले ने भारत में चुनावों के बारे में कई व्यापक धारणाओं को बदल दिया। लेकिन जो नहीं बदला, वह है दागी रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को चुनने का चलन। दरअसल, यह और भी बढ़ गया है। एडीआर ने कहा कि आपराधिक इतिहास वाले उम्मीदवारों के जीतने की संभावना 15.3 प्रतिशत अधिक थी, जबकि साफ रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों के लिए यह 4.4 प्रतिशत थी।
पार्टियों ने अधिक अपराधी उतारे
2024 में भाजपा के 240 सांसदों में से 39 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें से 26 प्रतिशत पर गंभीर आपराधिक आरोप थे। कांग्रेस के 99 सांसदों में से 49 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे (32 प्रतिशत पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं)। एडीआर ने कहा कि आपराधिक इतिहास वाले उम्मीदवारों के जीतने की संभावना 15.3 प्रतिशत अधिक थी, जबकि साफ रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों के लिए यह 4.4 प्रतिशत थी। यह भी कि सबसे अधिक मामले वाले सांसद और मंत्री केरल के इडुक्की से कांग्रेस के प्रतिनिधि डीन कुरियाकोस पर सबसे ज़्यादा आपराधिक मामले दर्ज थे – 88, जिनमें से 23 उनके खिलाफ़ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत गंभीर मामले थे। उन्हें 18 मामलों में दोषी ठहराया गया था। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में शामिल मंत्रियों में से 39 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से दो मंत्री शांतनु ठाकुर और सुकांत मजूमदार पर हत्या के प्रयास के लिए आईपीसी की धारा 307 के तहत आरोप हैं। गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार पर 42 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिससे वे सबसे अधिक आपराधिक मामलों वाले मंत्री बन गए हैं। क्या ऐसे सांसदों से जनहित में काम करने उम्मीद की जा सकती है?
सवाल यह है कि जब हम लगातार यह बात करते हैं कि जब सरकार महिलाओं के खिलाफ अत्याचार करती है तो सरकार को कड़ा फैसला लेना चाहिए। लेकिन हमारी सरकार जिसे जुबानी जमाखर्च कहते हैं, वह जुमला करके चली जाती है। मास्टर को अवार्ड से वंचित करना एक अच्छा कदम है। जब तक आरोप सिद्ध नहीं हो जाता, तब हम किसी पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। तो जो जगह आप इन नेताओं को देते हैं, वो जगह आप जानी बाबू को क्यों नहीं देते? मैं फिर से जोर देकर कहना चाहता हूं, उन सभी लोगों के लिए, अंध भक्तों के लिए, जानी बाबू को बचाने का हमारा कोई इरादा नहीं है। लेकिन क्या यही परंपरा हमें संसद में भी लागू करनी चाहिए? फिर कहीं जाकर सांसद और विधायक , अगर ये लोग ऐसा करने लगे तो बाकी लोग क्या करेंगे? लेकिन वो लोकसभा/विधान सभाओं में जाने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं। जब हम किसी अपराधी की बात करते हैं, राजनीति में क्यों, तो अक्सर राजनीतिक दल कहता है कि उस पर आरोप है। इतना कहा और मामला समाप्त, हमारे देश में यह सबसे बड़ी विडम्बना है। जहाँ एक ऐसे व्यक्ति को जिसने यदि केवल किसी के 100/200 रुपये चुराने का आरोप है, उसे बिना आरोप सिद्ध हुए ही न्याय में देरी के चलते वर्षों के लिए जेल में डाल दिया जाता है, फिर यह व्यवस्था दागी सांसदों/विधायकों पर क्यों लागू नहीं जाती। माननीय सुप्रीम कोर्ट को क्या इस दिशा में स्वत: संज्ञान नहीं लेना चाहिए?
जानी बाबू को लेकर जो काम हुआ है, उसका हम स्वागत करते हैं, आईबी मिनिस्टर को सलाम करते हैं. लेकिन फिर सवाल हमारा भी है कि बाकी लोगों के लिए अलग चश्मा क्यों? क्या हमारे देश में ऐसी स्थिति आएगी कि हम सबको एक ही चश्मे से देखेंगे? सिर्फ महिलाओं को 33% आरक्षण का बिल ला रहे हैं, पता नहीं ये कब लागू होगा. क्या हम अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? क्या हम उनके खाते में कुछ पैसे ट्रांसफर करके अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? क्या हम स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल देकर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? क्या हम बेटियों को बढ़ाने और बेटियों को पढ़ाने की अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? क्या हम कई तरह की योजनाएं लागू करके अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? सरकार की पहली जिम्मेदारी महिलाओं की सुरक्षा है। क्या हमारी महिलाएं सुरक्षित हैं? और अगर सुरक्षित हैं, तो इतनी विसंगतियां क्यों हैं? यह नहिं भूला जा सकता कि इस देश की जिन महिलाओं ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम ऊंचा करने की कोशिश की, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम ऊंचा करने की कोशिश की, एक विसंगतिपूर्ण नेता ने उन्हें जूतों के नीचे रेत डाला। वो चिल्लाते रहे, उनकी FIR दर्ज नहीं हुई, थी। सुप्रीम कोर्ट से FIR दर्ज करवानी पड़ी। ये मोदी सरकार थी। इनमें से एक, इतना भेदभाव सहने के बाद, इतनी बदनामी और बदनामी सहने के बाद जब ओलंपिक में गोल्ड मेडलिस्ट तक पहुंचती है, तो खेल खत्म हो जाता है। खेद की बात तो ये है कि सरकार किसी न किसी तरह इससे राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करेंगे। राजनीति में धर्म के बारे में क्या बोला जाए? हमारे देश में राजनेताओं नें राजनीति का हथियार बना लिया है।
वरिष्ठ कवि/लेखक/आलोचक तेजपाल सिंह तेज एक बैंकर रहे हैं। वे साहित्यिक क्षेत्र में एक प्रमुख लेखक, कवि और ग़ज़लकार के रूप ख्यातिलब्ध है। उनके जीवन में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिन्होंने उनको जीना सिखाया। उनके जीवन में अनेक यादगार पल थे, जिनको शब्द देने का उनका ये एक अनूठा प्रयास है। उन्होंने एक दलित के रूप में समाज में व्याप्त गैर-बराबरी और भेदभाव को भी महसूस किया और उसे अपने साहित्य में भी उकेरा है। वह अपनी प्रोफेशनल मान्यताओं और सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा सजग रहे हैं। इस लेख में उन्होंने अपने जीवन के कुछ उन दिनों को याद किया है, जब वो दिल्ली में नौकरी के लिए संघर्षरत थे। अब तक उनकी दो दर्जन से भी ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार (1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से भी आप सम्मानित किए जा चुके हैं। अगस्त 2009 में भारतीय स्टेट बैंक से उपप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर आजकल स्वतंत्र लेखन में रत हैं।