मीडिया ही नहीं गेम के माध्यम से भी ठगा जा रहा है देश
सोशल मीडिया और यूट्यूब चैनल्स से इतना क्यों घबराती है सरकार
बड़े ही दुख की बात है कि सिनेमाई दुनिया के तथाकथित हीरो/ बड़े-बड़े लोग जुआ जैसी समाज विरोधी गतिविधियों को जोर-शोर से प्रमोट कर रहे हैं।….. यूट्यूब पर विज्ञापनों के जरिए मोटी-मोटी राशि वसूल रहे हैं। इनके खिलाफ कोई कैसा ही भी वीडियो नहीं बना रहा और न ही ऐसे लुभावने विज्ञापनों पर सरकार ही कोई ध्यान देती है। परिणामत: मोबाइल पर रोज किसी भीं समय जुआ खेलना शुरू हो जाता है। बड़ों से लेकर बच्चों तक में यूट्यूब पर जुआ खेलने की ऐसी लत लग जाती है कि जुआ की दुनिया के जुआरी कर्ज में डूब जाते हैं।
वे लोग क्रेडिट कार्ड का अधिक प्रयोग करते हैं। … एक क्रेडिट कार्ड का बिल दूसरे क्रेडिट कार्ड से भरते हैं और दूसरे का बिल तीसरे क्रेडिट कार्ड से। इसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा… इस बुराई के खिलाफ कोई कार्य नहीं किया जा रहा। उल्टे इसे प्रमोट कर रहे हैं। हाँ! इतना जरूर है कि सिगरेट और शराब की बोतलों पर लिखी चेतावनी “ सिगरेट/शराब सेहत के लिए हानिकारक है” जैसी चेतावनी देकर अपने कर्तव्य की खानापूरी जरूर पूरी कर दी जाती है। बच्चों/बड़ों को …”जुआ खेलने की आदत लग जाती है इसमें आर्थिक जोख़िम भी शामिल है”। लेकिन इस पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती? मेरी उन सभी लोगों से जिनकी बात लोग सुनते हैं…मानते हैं और जुआ खेलने के इस खेल को/ बुराई को इस देश में बहुत बड़े इशू के रूप में देखते हैं और उनके पास अगर ऑडियंस है तो उनसे मेरी रिक्वेस्ट है कि वे जुआरियों की लत में पड़े लोगों से उन बातों पर भी आप बात करें जिससे एक अच्छा पॉजिटिव मैसेज जाए। आपको पता है कि देश में रोजगार का सबसे बड़ा मुद्दा है। लोगों के पास रोजगार नहीं है। किंतु तंबाकू की दारू की ऐड खुलेआम चल रही है। इलायची के नाम पर जाने क्या-क्या बेचा जा रहा है और इसका विज्ञापन बड़े जोरों से किया जाता है। पूरा का पूरा पंजाब, पूरा का पूरा हिमाचल प्रदेश और बहुत बड़े दो तीन स्टेट पूरे के पूरे ड्रग्स की चपेट में हैं।
याद रहे कि जुआ खेलने का विकार एक दीर्घकालिक मानसिक बीमारी की स्थिति है जो जुआरी के जीवन को कई स्तरों पर प्रभावित कर सकती है। यह एक व्यवहारिक लत है जो तब होती है जब आप अपने जुए के व्यवहार पर नियंत्रण खो देते हैं। क्या आपने कभी लॉटरी की टिकट खरीदा है? क्या आपने अपनी पसंदीदा टीम पर कुछ पैसों की शर्त लगाई है? वास्तव में इन आदतों को जुआ कहते हैं। यह एक ऐसा काम है जिसमें अधिकतर लोग किसी न किसी तरह संलिप्त हैं। वास्तव में यह लत एक ऐसा वायरस है जो आपको धीरे-धीरे खोखला बना देती है। इससे आदमी कर्जदार बन सकता है और उस व्यक्ति की लाइफ बर्बाद हो सकती है। जुआ ऐसी कुछ चीज है जो आपको कुछ चीजों को हासिल करने के लिए मजबूर करता है और आखिर में आपको खतरे में डाल सकता है। परंपरागत जुआ गतिविधियों में लॉटरी, घुड़दौड़, सट्टेबाजी और कार्ड गेम शामिल रहे हैं। यह एक व्यापक गतिविधि है और कम से कम 86 फीसदी युवक जुए की किसी ना किसी गतिविधि में शामिल हैं जबकि 52 फीसदी वयस्क लॉटरी में भाग लेते हैं। ऐसा लगता है जैसे देश की बहुत बड़ी आबादी जुआ खेलने के आदी हैं।
लोग जुआ क्यों खेलते हैं? इस बारे में वंद्रेवाला फाउंडेशन में साइकेट्रिस्ट डॉक्टर अरुण जॉन के अनुसार, ‘यह जोखिम का रोमांच है, जो लोगों को जुए के लिए खींचता है।’ शुरुआती भाग्य के मिथक को खारिज करते हुए डॉक्टर जॉन कहते हैं कि पहली बार जुआरी दांव बढ़ाकर, वे पहले कुछ समय के लिए जीतते हैं। जब आप शुरुआत में जीतते रहते हैं, तो आपको विश्वास हो जाता है और उसके बाद आप हारना शुरू कर देते हैं। अपनी हार को जीत में बदलने के लिए फिर और ज्यादा बड़ी शर्त लगाते हैं। लॉटरी के मामले में छोटी जीत भी आत्मविश्वास पैदा करती है। यहां तक कि पुरस्कार राशि के रूप में मिलने वाले रुपये भी आपके दिल में भविष्य में बड़ी जीत हासिल करने की उम्मीद पैदा कर देते हैं। और जुआरी को जुए की लत पड़ जाती है।
जुआ की लत किसी को भी नहीं छोड़ती है। आदत को रोकने के लिए दोहराए गए प्रयास विफल होने लगते हैं। आमतौर पर उन लोगों को जुए में रत देखा जाता है जो कि 18-35 आयु वर्ग के होते हैं। यह वह उम्र है जब पैसा महत्वपूर्ण हो जाता है। जुआरी जुआ का विरोध करने की कोशिश करते वक्त बेचैन या चिड़चिड़ा महसूस करता है। और जुआ पलायनवाद का एक रूप बन जाता है। यह भी माना जाता है कि लोग असहायता, चिंता, अपराध या अवसाद की भावनाओं को भूल जाने के लिए जुआ खेलते हैं। जुए की लत के चलते जुआरी आदत को बढ़ावा देने के लिए धोखाधड़ी, धोखाधड़ी या गबन जैसे आपराधिक व्यवहार में शामिल हो जाता है। जुआ के लिए नौकरी या रिश्तों को खतरे में डालना। आदत को बढ़ावा देने के लिए दूसरों से धन उधार लेना। जुआ जुआरी के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। जुआरी जीतने के उत्साह, हताशा, अवसाद, चिंता के बीच घिरा रहता है। जुआ खेलने की लत का कोई सफल इलाज भी हो सकता है, यह गफलत की बात है।
आज के तकनीकी युग में जुए ने भी नया रूप ले लिया है जिसे अक्सर ऑनलाइन गैम्बलिंग (Online Gambling) या ऑनलाइन गेमिंग के रूप में जाना जाता है। अक्सर लोगों के मन में Online Gambling और Betting Apps को लेकर कई भ्रम होते हैं और जानकारी के अभाव के कारण लोग वित्तिय जोखिम में पड़ जाते हैं। यहाँ यह समझने की बात है कि भारत में online betting को लेकर कानून क्या कहता है और ये कहां वैध है … कहां अवैध। भारत में Online Gambling और Betting Apps को लेकर भ्रम बना रहता है। कई लोगों के जहन में सवाल रहता है कि क्या ये एप्स India में लीगल हैं। क्या इन्हें इस्तेमाल करना सुरक्षित है? इन सवालों का कोई सीधा जवाब खोज पाना थोड़ा मुश्किल है। एक ओर तो भारत सरकार है जो लगातार इन एप्स के खिलाफ एडवाइजरी जारी कर रही है, तो वहीं कुछ राज्य सरकारें हैं, जिनके द्वारा इन online gaming and gambling को लीगल बताया गया है। ऐसे में ये एक उलझन भरा मसला है। भारत में ऑनलाइन गैंबलिंग को लेकर तो कोई एक कानून नहीं है, जो पूरे देश में इसे रेगुलेट करता हो। लेकिन कुछ राज्य ऐसे जरूर हैं, जिनके द्वारा खुद कुछ कानून बनाकर बैटिंग लीगल की गई है।
बताया तो ये जाता है कि भारत में, ऑनलाइन गेम खेलना गैरकानूनी नहीं है। ऑनलाइन गेम, ऐसा गेम है जो इंटरनेट पर पेश किया जाता है और जिसे उपयोगकर्ता कंप्यूटर या मोबाइल के माध्यम से एक्सेस कर सकता है। इंटरनेट तक पहुंच और दूरदराज के गांवों में स्मार्टफोन का उपयोग करने की प्रवृत्ति ने गेमिंग उद्योग में एक अलग स्तर पर बदलाव ला दिया है। केपीएमजी इंडिया द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों के अनुसार, यह सुझाव दिया गया है कि भारतीय ऑनलाइन गेमिंग उद्योग 2024 तक 25।3 बिलियन रुपये का उद्योग बनने के लिए तैयार है।
अजीब बात है कि यह समाज विरोधी खेल, उभरते हुए उद्योग के बाद बाजार को तेजी से बढ़ा रहा है, हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए भी आवश्यक माना जा रहा है। भारत में गेमिंग उद्योग में पैदा होने वाले भ्रम से बचने के लिए भारत में ऑनलाइन गेमिंग को विनियमित करने के लिए व्यापक कानून नहीं है। इस विषय में तर्क दिया जाता है कि ऑनलाइन गेम मानव बुद्धि यानी कौशल का उपयोग करके और ‘कौशल का खेल’ के कारण खेला जाता है, जो भारत में कानूनी है। इसके विपरीत, मौका का उपयोग करके खेले जाने वाले ऑनलाइन गेम जहां मानव बुद्धि का उपयोग किए बिना संयोग से परिणाम प्राप्त किए जाते हैं, वह ‘मौका का खेल’ है जो भारत में कानूनी नहीं है।
यही कारण है कि भारतीय राज्यों में जुआ और सट्टेबाजी कानूनी नहीं है। दूसरी ओर online and offline betting, gambling संबंधित कानून कहीं न कहीं लोगों को वित्तीय नुकसान, लत और मानसिक आघात से बचाने की कोशिश कर रहे हैं और खिलाड़ियों के लिए बिना किसी तनाव या डर के खेलने के लिए एक सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। किंतु क्या यह संभव है? वैसे अप्रैल 2023 में, इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने ऑनलाइन गेमिंग पर राज्य कानूनों की खामियों को देखने के बाद, ऑनलाइन गेमर्स को लत और हानिकारक परिणामों से बचाने के लिए नए नियमों की घोषणा की है इन विनियमों को शामिल करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (“आईटी नियम”) में संशोधन किया गया है। यह मुख्य रूप से ऑनलाइन रियल मनी गेम्स पर गौर करेगा। कई राज्य ऐसे भी हैं जिन्होंने ऑनलाइन जुए पर प्रतिबंध लगाया है। तब यह सभी के ध्यान में लाया गया कि प्रतिबंध को पूरी तरह से लागू करने के लिए, सरकार को जुआ वेबसाइटों और पोर्टलों को ब्लॉक करने की आवश्यकता है।
सर्वे में शामिल लोगों से पहला सवाल पूछा गया था कि वे कौन सा ऑनलाइन गेम सबसे ज्यादा खेलते हैं? जिसके जवाब में 61.9% ने पबजी खेलने की बात मानी थी जबकि दूसरे नंबर पर 21.7% के साथ फ्री फायर और 8.5% के साथ फोर्टनाइट तीसरे नंबर पर था। आजकल क्रिकेट से जुड़ा गेम “अपनी टीम” (My Team) जैसे कई खेल सुर्खियों में हैं। आजकल तो यह गेमिंग बच्चों में ज्यादा प्रचलित हो गया है। ऑनलाइन गेमिंग से बच्चों की पढ़ाई पर भी असर पड़ता है। कई बार चोरी की लत लग सकती है। इससे बच्चों की सोशल स्किल्स खराब होती हैं। गेमिंग के चक्कर में बच्चे परिवार से दूर हो जाते हैं। स्कूल की परफॉर्मेंस खराब हो जाती है। इतना ही नहीं बच्चे आत्महत्या का रुख भी अपनाने लगे है। खबर है कि एक बच्चे ने आत्महत्या से पहले एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था जिसमें उसने अपनी माँ से माफ़ी मांगी है। उसमें लिखा है कि गेम के चक्कर में उसने 40 हज़ार रुपए बर्बाद कर दिए। अंग्रेजी और हिंदी में लिखे सुसाइड नोट में उसने यह भी लिखा है कि अवसाद के कारण वह आत्महत्या कर रहा है। स्मार्ट फोन के आने के बाद अक्सर ऑनलाइन गैम्बलिंग (Online Gambling) या ऑनलाइन गेमिंग का दायरा इतना बढ़ गया है कि यूट्यूब पर आने वाले विज्ञापन धड़ाधाड़ आ रहे हैं और सरकार की ओर से ऑनलाइन गैम्बलिंग (Online Gambling) या ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े विज्ञापनों पर रोक लगाने की मंशा दिखाई नहीं देती। सरकार ने कहा है कि स्टार्टअप्स के लिए ऑनलाइन गेमिंग बड़े अवसर के रूप में सामने आया है। सरकार ने सट्टेबाजी और गैंबलिंग से जुड़े विज्ञापनों को लेकर भी चेतावनी जारी की है। इसमें कहा गया है कि सट्टेबाजी से जुड़े प्लेटफॉर्म्स को बढ़ावा न दिया जाए। किंतु सरकार इस काम को करने में गंभीर दिखाई नहीं देती।
Apr 12, 2024 : जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, मोदी जी को अपनी छवि की काफी चिंता सताने लगी है। क्योंकि ज़मीन पर जो खास मुद्दे हैं, वो हैं महंगाई, बेरोज़गारी, नौकरी, भ्रष्टाचार, चुनावी बांड। ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जिनके बारे में लोग ज़मीन पर तो बात कर रहे हैं लेकिन मोदी जी हर दिन कुछ न कुछ नई बातें करके मौजूदा मसलों के इतर अपनी नई छवि दिखाते हैं। वहीं हाल में मोदी जी ने देश के मशहूर गेमर्स यानी गेमिंग इंडस्ट्री के मशहूर लोगों से बातचीत की है। और आज इसका एक छोटा सा ट्रेलर सामने आया है जिसमें सभी गेमर्स मोदी जी को देखकर काफी खुश हो रहे हैं। और इस तरह के ट्वीट आ रहे हैं कि मोदी जी का इसे अपना मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं। दूसरे ट्वीट पर नजर डालें तो पता चलता है कि पीएम ने शीर्ष भारतीय गेमर्स यानी गेमिंग इंडस्ट्री के शीर्ष लोगों से बातचीत ही नहीं की अपितु मोदी जी ने उनके साथ गेम भी खेला यानि उन्होंने गेमिंग इंडस्ट्री में वर्चुअल रियलिटी गेम्स पर अपना हाथ रख दिया है। और उन्हें एक नाम भी दिया गया है, नमो ओपी, नमो प्रबल। गेमिंग इंडस्ट्री में हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग नाम हैं, इसलिए उन्हें नमो ओपी का एक नया नाम भी मिल गया है, यानी नमो ओवरपावर्ड।
जाहिर सी बात है कि चुनाव के दौरान मोदी की छाया को बढ़ाना… उनकी जनसंपर्क टीम का कर्तव्य है। ताकि लोगों को लगे कि वे इतने बूढ़े हो गए हैं, लेकिन हमारे पीएम नरेंद्र मोदी आज भी युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। तो पीएम मोदी की गेमर्स से इस बातचीत का चुनाव में क्या फायदा होगा? वह देश के प्रधानमंत्री हैं, वह हर वर्ग के लोगों से मिलते हैं। लेकिन जब देश के सामने गेमर्स को लेकर गंभीर मुद्दे हैं तो इसके पीछे का तर्क क्या है? पीएम की टीम में चाहे सलाहकार हों, ट्रोलर हों, आईटी के लोग हों, उनके मन में क्या चल रहा है? क्या उन्हें लगता है कि लोग अब जनता से कट गये हैं? वहीं मशहूर यूट्यूबर ध्रुव राठी लगातार मोदी सरकार के बारे में एक ही बात कह रहे हैं कि अब समय आ गया है जब देश की जनता को मोदी जी को हटाना होगा। ध्रुव राठी का यह बहुत छोटा वीडियो है, एक मिनट से भी कम। अंत में ध्रुव राठी कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को वोट देना जरूरी है जो शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार को बढ़ाए।
इस चुनाव में पैसा कहां से आ रहा है? इसे कैसे खर्च किया जा रहा है? यह सब गलत है तो ये भी एक पहलू है। वह पैसा भी इन गेमर्स से लिया जा रहा है। हमें यह सोचना ही होगा कि क्या यह गेम देश के लिए उपयुक्त है। क्या यह युवाओं के लिए बहुत अच्छा है? क्या युवाओं का भविष्य मजबूत होगा? हमारे देश में ये चिंता का विषय है। ऐसे वर्चुअल गेम खेलने से, जो कहीं से भी स्वास्थ्य में सुधार नहीं करता, हमारी बुद्धि में सुधार नहीं करता, तरह-तरह के विकार पैदा करता है। बच्चे लगातार ऐसे खेलों से जुड़ रहे हैं। ये हर परिवार के लिए चिंता का विषय है। बच्चे अपने अभिभावकों से छिपते हैं और रात भर गेम खेलते हैं। और दिन भर मन ऐसा ही रहता है। इसलिए ऐसे गेमिंग को हतोत्साहित करने की जरूरत है न कि इसे प्रोत्साहित करने की। अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए किसी भी अनैतिक बात को बढ़ावा देना ठीक नहीं है। एक और बात आपको याद होगी। जब चुनावी बांड खुल रहे थे। गेमिंग क्षेत्र से जुड़ी कंपनी ने कई सौ करोड़ का दान दिया। 400 करोड़ से ज्यादा की रकम बताई जा रही है। दान देने वाले ने टैक्स चोरी भी की। उन्होंने सैकड़ों करोड़ टैक्स का पैसा बचाया।
आनलाइन गेमिंग से बच्चे बर्बाद हो रहे हैं। जिससे अभिभावक की चिंता बढ़ गयी है। किंतु प्रधानमंत्री की वीडियो गेमर्स के साथ बातचीत से तो यही लगता है कि सरकारी स्तर पर इसे रोकने के बजाय बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है। जाहिर है कि यदिआप फुटबॉल को बढ़ावा देते हैं तो इससे वोट नहीं मिलेगा। यदि आप कबड्डी और हॉकी को बढ़ावा देते हैं तो इससे भी राजनेताओं को वोट नहीं मिलेगा। फिर कोई कबड्डी , तीरंदाजी जैसे खेलों को प्रोत्साहित क्यों करे? होना तो ये चाहि़ए कि युवकों में खेल भावना पैदा की जाए। ऐसे सभी खेलों को प्रमोट किया जाए जिनसे युवकों के बीच दोस्ती और भाईचारे को बढ़ावा मिले। सत्य है कि मिलजुल कर रहने की कला ऐसे शारिरिक श्रम के खेलों से ही प्राप्त होती है। किंतु आनलाइन गेमिंग हमें हर स्तर पर नष्ट कर रही है। किंतु नेताओं को क्या? जब यह गोदी मीडिया द्वारा संचालित चुनाव है। फिर चुनाव के प्रचार में नमक-मिर्च लगाना एक आवश्यक अवयव बन गया है। ताबड़तोड़ बंद होने लगे यूट्यूब चैनल से यह तो सिद्ध होता ही है कि सोशल मीडिया की ताकत से तानाशाह डर गया है? जिसका डर था वही हुआ। कई महीनों, कहें तो सालों से जिस बात का डर था, वो होने लगा है। हमें अभी खबर मिली है कि कई यूट्यूब चैनल गायब हो गए हैं जो सवाल करते थे, जो जूते पॉलिश नहीं करते थे, जो आंखें दिखाकर सवाल करते थे। इन सभी को समय-समय पर हटाया जा रहा है। किसी का मुद्रीकरण समाप्त किया जा रहा है। ईवीएम से जुड़े मसलों पर सवाल उठाने वाले सोशल मीडिया का भी मुद्रीकरण खत्म कर दिया गया है। सरकार का मानना है कि यूट्यूब चैनलस/सोशल मीडिया पर झगड़े व दंगे दिखाए जाते हैं; गालियां दी जाती हैं; ये झूठ परोसते हैं। बहाना कुछ भी हो सरकार मेन स्ट्रीम के गोदी मीडिया की तरह ही सोशल मीडिया पर भी अंकुश लगाना चाहती है।
सोशल मीडिया को तमाशाई कहा जाता है। देश में सैकड़ों चैनल हैं, सैकड़ों गुंडे हैं जो दिन-रात नफरत उगलते हैं। दस साल में क्या आपने सुना है कि किसी चैनल पर प्रतिबंध लगाया गया हो? क्या आपको पता चला कि किसी गुंडे के मुंह पर ताला लगा हो, जो दिन-रात जहर उगलता है, जो दिन-रात हिंदू-मुसलमान करता है, जो दंगे भड़काते हैं। गोदी मीडिया सत्ता के लिए काम करते हैं, सोशल मीडिया ऐसा नहीं करते। वे सवाल करते हैं। इसीलिए चुनाव से पहले आप देख रहे हैं कि विपक्ष के नेताओं को जेल में डाला जा रहा है और जो स्वतंत्र आवाजें हैं, जो स्वतंत्र पत्रकार सत्ता से सवाल करते हैं, उनके चैनलों को इस तरह से निशाना बनाया जा रहा है।
पिछले दिनों आर्टिकल 19, नेशनल दस्तक सहित कई अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर प्रतिबंध लगाने का काम किया जा रहा है। ताजा खबर आई है कि बोलता हिंदुस्तान नाम के यूट्यूब चैनल को तो हटा दिया ही गया है और लोकहित इंडिया चैनल का मोनेटाइजेशन हटा दिया गया है। संभव है कि अगले एक-दो दिन में कई और चैनल गायब ही कर दिया जायें। यूट्यूब जैसी बड़ी कंपनी भी सरकार के दबाव में काम कर रही है। इसे कोई देखने वाला नहीं है।
आप इसे लोकतंत्र कैसे कह सकते हैं? किसान आंदोलन के दौरान लगातार सभी ट्विटर हैंडल बंद कर दिए गए। उन्हें निलंबित कर दिया गया। जो भी सवाल उठ रहे थे, उन पर लगातार निशाना साधा जा रहा था। कहीं खुलेआम तो कहीं छुपकर। किसी को जेल में डालो। किसी का चैनल बंद करो। किसी चैनल का मुद्रीकरण हटाएँ। कुछ नहीं मिला तो बस आर्थिक झटका मारो। आप कुछ भी करें आवाज बंद होनी चाहिए। लेकिन स्वतंत्र आवाजें चुप नहीं होने वाली हैं। कुछ साल पहले देश के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने कहा था कि जब चैनल पर प्रतिबंध लगेगा तो हम सड़कों पर खड़े होकर खबरें पढ़ेंगे। सड़कों पर खड़े होकर लोगों को जानकारी देंगे और सड़कों पर उतरने से पहले हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे और अपने अधिकारों का इस्तेमाल करेंगे। हम उन सभी दरवाजों पर दस्तक देंगे जहां से हमें न्याय की उम्मीद है। आखिरी उम्मीद अब भी सुप्रीम कोर्ट ही बची है। हम भी वहां जाएंगे। जाहिर है कि हानिकारक का मतलब हानिकारक होता है। यह किसके लिए हानिकारक है? आप मेरे सभी वीडियो देख सकते हैं। यूट्यूब पर हजारों वीडियो हैं। मतलब साफ है कि अगर यूट्यूब को लगता है कि कंटेंट हानिकारक है तो यह सत्ता के लिए हानिकारक है। और अगर यूट्यूब पावर के लिए काम करता है तो हमारे वीडियो निश्चित रूप से हानिकारक हैं। क्योंकि हमारा काम जनता के लिए बोलना है, सत्ता के लिए नहीं। विदित है कि मंत्रालय ने जिन 22 यूट्यूब चैनल्स को ब्लॉक किया है। उनकी कुल व्यूअरशिप 260 करोड़ से अधिक बताई जाती थी। पिछले साल फरवरी में आईटी रूल्स, 2021 के आने के बाद से यह पहली बार है जब भारतीय यूट्यूब न्यूज चैनलों पर कार्रवाई की गई है। इन्हें मिलाकर दिसंबर 2021 से अब तक सूचना प्रसारण मंत्रालय कुल 78 यूट्यूब आधारित न्यूज चैनलों और दूसरे कई सोशल मीडिया एकाउंट्स को ब्लॉक करने के आदेश जारी कर चुका है।
अभी तक यूट्यूब ने कुछ भी गलत नहीं देखा है। जैसे ही लोकसभा का चुनाव आया, जैसे ही कायर राजा साहब को लगा कि पोल खुल रही है, सब बहुत-बहुत बातें कर रहे हैं, इलेक्टोरल बॉन्ड खुल रहा है, मेरी संपत्ति, मेरी रंगदारी, मेरी रिश्वतखोरी, सब खुल रही है। तब तानाशाह साहब घबरा गये। और वो इतना डर गए कि अब यूट्यूब चैनल एक-एक करके गायब होते जा रहे हैं। उनका मुद्रीकरण ख़त्म किया जा रहा है। इससे अधिक कायरतापूर्ण बात और क्या हो सकती है? 10-12 साल से जिन लोगों ने पूरे देश की मीडिया पर कब्ज़ा कर रखा है, जो चाहे वो कहलवाते हैं, जितना चाहे जहर फैलाते हैं, वो लोग सोशल मीडिया से भी इतना डरते हैं। प्रचार तंत्र ये जानकारी भी मिल रही है कि दरबारी मीडिया चैनलों के दर्शक निरंतर कम हो रहे हैं।
वरिष्ठ कवि/लेखक/आलोचक तेजपाल सिंह तेज एक बैंकर रहे हैं। वे साहित्यिक क्षेत्र में एक प्रमुख लेखक, कवि और ग़ज़लकार के रूप ख्यातिलब्ध है। उनके जीवन में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिन्होंने उनको जीना सिखाया। उनके जीवन में अनेक यादगार पल थे, जिनको शब्द देने का उनका ये एक अनूठा प्रयास है। उन्होंने एक दलित के रूप में समाज में व्याप्त गैर-बराबरी और भेदभाव को भी महसूस किया और उसे अपने साहित्य में भी उकेरा है। वह अपनी प्रोफेशनल मान्यताओं और सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा सजग रहे हैं। इस लेख में उन्होंने अपने जीवन के कुछ उन दिनों को याद किया है, जब वो दिल्ली में नौकरी के लिए संघर्षरत थे। अब तक उनकी दो दर्जन से भी ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार (1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से भी आप सम्मानित किए जा चुके हैं। अगस्त 2009 में भारतीय स्टेट बैंक से उपप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर आजकल स्वतंत्र लेखन में रत हैं।