मोदी राज में अडानी के साम्राज्य विस्तार की कहानी — 1
परंजॉय गुहा ठाकुरता और आयुष जोशी, अनुवाद : संजय पराते
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक कदमों ने उद्योगपति गौतम अडानी को बंदरगाहों, हवाई अड्डों, बिजली, कोयला खनन और हथियारों के क्षेत्र में अपने अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक हितों का विस्तार करने में मदद की है। 2015 की शुरुआत में, एक प्रमुख भारतीय अखबार ने रिपोर्टिंग की थी कि जहां भी मोदी गए, ‘अडानी भी निश्चित रूप से वहां गए।’ लेकिन, इस समर्थन ने हमेशा भारत की मदद नहीं की है। इसके विपरीत, कुलीन वर्ग की महत्वाकांक्षाओं को बेशर्मी से बढ़ावा देकर, मोदी ने कभी-कभी अपने पड़ोसी देशों के साथ-साथ अन्य देशों के साथ संबंधों को भी नुकसान पहुंचाया है।
पिछले एक दशक में भारत के बाहर अडानी समूह के प्रसार का मामला, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक प्रयासों से निकटता से जुड़ा हुआ है। अडानी के कई अंतर्राष्ट्रीय सौदे मोदी की कुछ देशों की आधिकारिक यात्राओं या विदेशी सरकारों के प्रमुखों के भारत दौरे के तुरंत बाद हुए हैं। इनमें से कुछ हस्तक्षेपों का बहुत बुरा असर पड़ा है।
इस आलेख में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचना स्रोतों पर आधारित तथ्यों को संकलित किया गया है, जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार अडानी समूह ने ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, ग्रीस, इंडोनेशिया, इजरायल, केन्या, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और तंजानिया में अपने उद्योगों का विस्तार किया है या करने का प्रयास किया है, तथा किस प्रकार इनमें से कुछ सौदे खराब हुए या विफल हो गए जिसका कहीं न कहीं भारत के हितों पर प्रायः नुकसानदायक प्रभाव पड़ा।
जनवरी 2023 में, जब अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि अडानी समूह ‘कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला कर रहा है’, तो समूह के प्रवक्ताओं ने इस रिपोर्ट को भारत की संप्रभुता पर हमला करने वाला बताया था। उन्होंने देश के हितों को अडानी के हितों के साथ एकमेक करने की कोशिश की थी और इसके लिए उन्होंने भारत के राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगे को सामने रखकर खुद के वीडियो क्लिप जारी किए थे।
इसलिए, यह विडम्बना से भी बड़ी बात है कि कुलीन पूंजीपति वर्ग के व्यवसायों को खुलेआम बढ़ावा देकर प्रधानमंत्री मोदी ने केन्या, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों के साथ भारत के संबंधों को नुकसान पहुंचाया है।
केन्या में अपारदर्शी हवाई अड्डा परियोजना
हाल ही में केन्या में विरोध प्रदर्शनों के केंद्र में अडानी समूह रहा है, क्योंकि यह देश के मुख्य हवाई अड्डे को पट्टे पर देने और उसका आधुनिकीकरण करने की परियोजना में शामिल था। कई नागरिक समाज संगठनों के नेतृत्व में केन्या के नागरिक बड़ी संख्या में राष्ट्रीय राजधानी नैरोबी में इस परियोजना का विरोध करने के लिए एकत्र हुए, जिसके बारे में उनका दावा था कि यह देश के हितों के खिलाफ है।
5 दिसंबर 2023 को, जब केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो प्रधानमंत्री मोदी से नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में मिले। यह भारत सरकार का एक आलीशान गेस्ट हाउस है। बैठक में दोनों देशों के सरकारी अधिकारी भी शामिल थे। तभी वहां अचानक एक अप्रत्याशित आगंतुक पहुंच गया। वह गौतम अडानी थे, जो भारत और दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं।
रूटो के साथ मोदी की कई विषयों पर चर्चा हुई, जिनमें से एक हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण के लिए भारतीय ‘विशेषज्ञता’ से संबंधित था। इस बैठक के बाद, तीन महीने से भी कम समय में, मार्च 2024 में, अडानी समूह ने केन्याई सरकार को नैरोबी के जोमो केन्याटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (जेकेआईए) के नवीनीकरण के लिए एक विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस प्रस्ताव में 30 साल के पट्टे के बदले में 1.85 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश और हवाई अड्डे को चलाने वाली कंपनी में इक्विटी हिस्सेदारी की रूपरेखा तैयार की गई थी।
इस प्रस्ताव का असामान्य पहलू यह था कि जून 2024 में, अडानी से प्रस्ताव प्राप्त करने के दो महीने बाद ही केन्याई सरकार ने जेकेआईए के आधुनिकीकरण के लिए बोलियाँ आमंत्रित करते हुए एक विज्ञापन जारी किया। अदालतों में दायर याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने अर्जेंटीना की एक कंपनी के प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव की अनदेखी करते हुए अडानी को तरजीह दी है। केन्या की एक अदालत ने अस्थायी रूप से परियोजना को आगे बढ़ने से रोक दिया है।
इस एयरपोर्ट डील का खुलासा व्हिसलब्लोअर नेल्सन अमेन्या ने किया था, जिन्होंने ट्वीट करके दावा किया था कि अडानी समूह पर स्विटजरलैंड, भारत और श्रीलंका सहित कई देशों में ‘भ्रष्टाचार, कर चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग’ का कथित आरोप लगाये गए है। बाद में उन्होंने दावा किया कि व्हिसलब्लोअर के तौर पर उनके कामों के कारण उन्हें जान से मारने की धमकियां मिली हैं। अमेन्या, जो वर्तमान में फ्रांस में रहते हैं, का मानना है कि उनके खुलासे की वजह से उनके कई शक्तिशाली दुश्मन पैदा हो गए हैं।
अडानी समूह के प्रवक्ता ने अमेन्या के आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि अमेन्या के दावे के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है।
एयरपोर्ट परियोजना पर विवाद शुरू होने से पहले, अडानी ने कथित तौर पर देश में हाई-वोल्टेज बिजली लाइनों के निर्माण के लिए 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर का ठेका हासिल किया था। केन्या इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन कंपनी (केट्राको) ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी के लिए अडानी समूह की एक कंपनी और अफ्रीकी विकास बैंक से संबद्ध एक बुनियादी ढांचा निवेश इकाई, अफ्रीका50, को शामिल करते हुए एक उद्यम को बिजली ट्रांसमिशन लाइनें बनाने के लिए रियायत दी थी। 11 अक्टूबर, 2024 को, अडानी ने 73.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर की संशोधित लागत के साथ इस सौदे पर हस्ताक्षर किए। अब अडानी समूह 30 वर्षों की अवधि के लिए ट्रांसमिशन लाइनों का वित्तपोषण, निर्माण, संचालन और रखरखाव करेगा।
बहरहाल, इस परियोजना को भी कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। 25 अक्टूबर 2024 को, यह बताया गया कि केन्या के उच्च न्यायालय ने केन्या की लॉ सोसाइटी द्वारा लाई गई चुनौती पर निर्णय होने तक इस सौदे को निलंबित कर दिया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि यह व्यवस्था असंवैधानिक है और ‘गोपनीयता से दूषित’ (पारदर्शिता का अभाव) है।
केन्या के पूर्व प्रधानमंत्री रैला ओडिंगा ने अडानी समूह को दिए गए विवादास्पद प्रोजेक्ट का बचाव किया है। हाल ही में राष्ट्रपति रुटो के मंत्रिमंडल में शामिल हुए ओडिंगा ने अपनी पार्टी की एक बैठक में खुलासा किया कि मोदी ने उन्हें अडानी समूह से मिलवाया था।
उन्होंने कहा “श्रीमान मोदी ने (अडानी) कंपनी की परियोजनाओं के लिए केन्याई प्रतिनिधिमंडल का एक दौरा आयोजित किया था, जिसमें एक बंदरगाह, एक बिजली संयंत्र, एक रेलवे लाइन और भारत सरकार द्वारा दान की गई दलदल में विकसित एक हवाई पट्टी शामिल थी। केन्या सरकार के प्रतिनिधिमंडल के वापस आने के बाद, कंपनी ने केन्या में निवेश करने में रुचि व्यक्त की।”
केन्या स्थित समाचार प्रकाशन ‘नेशन’ के अनुसार, अडानी को एपीरो लिमिटेड के माध्यम से 80.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर की यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) सूचना प्रणाली से जोड़ा गया है। स्वास्थ्य सेवा परियोजना तब विवादास्पद हो गई, जब यह पता चला कि प्रारंभिक अनुमान से लागत लगभग 41.4 करोड़ अमेरिकी डॉलर अधिक हो गई है।
सफ़ारीकॉम नामक कंपनी ने केन्या सरकार की सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा कवरेज (यूएचसी) योजना को लागू करने के लिए लगभग 35.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर की बोली लगाई थी, जिसमें डिजिटल स्वास्थ्य समाधान और डेटा-प्रबंधन प्रणाली की स्थापना भी शामिल थी। सफ़ारीकॉम द्वारा यूएई स्थित एपीरो लिमिटेड (जो अडानी से जुड़ी है) और कोनवर्जेन्ज़ नेटवर्क सॉल्यूशंस के साथ मिलकर काम करने की योजना (कंसोर्टियम) बनाने के बाद, परियोजना की लागत आसमान छू गई।
परियोजना के मुख्य घटक, जैसे डेटा सेंटर और सुरक्षा प्रणालियों की स्थापना, की कीमतों में सात गुना तक की वृद्धि देखी गई। सुरक्षा और समर्थन समाधान प्रदान करने की लागत लगभग 70 लाख अमेरिकी डॉलर से बढ़कर लगभग 3.85 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गई, जबकि प्रासंगिक क्लाउड-डेटा सेंटर स्थापित करने की लागत लगभग 58 लाख अमेरिकी डॉलर से बढ़कर लगभग 3.78 करोड़ अमेरिकी डॉलर हो गई।
सीनेटर ओकिया ओमताता द्वारा दायर किए गए अदालती दस्तावेजों में आरोप लगाया गया है कि संशोधित बोली में प्रारंभिक समझौतों की अनदेखी की गई है तथा स्वास्थ्य सेवा से संबंधित लेन-देन पर सेवा शुल्क लगाकर करदाताओं पर वित्तीय बोझ डाल दिया गया है, जिससे केन्या के सार्वजनिक बुनियादी ढांचे पर विदेशी हितों के प्रभाव के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं।
तंजानिया में अडानी : चीन से प्रतिस्पर्धा ?
बागामोयो बंदरगाह परियोजना की परिकल्पना वर्ष 2010 की शुरुआत में तंजानिया सरकार, चाइना मर्चेंट्स होल्डिंग्स इंटरनेशनल (सीएमएचआई) और ओमान के स्टेट जनरल रिजर्व फंड (एसजीआरएफ) को शामिल करते हुए एक त्रिपक्षीय संयुक्त उद्यम के रूप में की गई थी। 10 अरब अमेरिकी डॉलर का यह सौदा महाद्वीपों को जोड़ने के लिए चीन की प्रसिद्ध बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) का हिस्सा था और इसका उद्देश्य तंजानिया को पूर्वी अफ्रीका में एक प्रमुख व्यापार केंद्र में बदलना था।
2015 में, राष्ट्रपति जॉन मैगुफुली के नेतृत्व वाली तंजानिया सरकार ने बागामोयो बंदरगाह परियोजना के बारे में चिंता जताई थी कि इस परियोजना से उनके देश की संप्रभुता प्रभावित हो रही है। बताया गया कि मैगुफुली का प्रशासन कथित तौर पर परियोजना पर 99 साल के पट्टे और स्वामित्व नियंत्रण की चीन की मांगों से चिंतित था। बातचीत रुक गई और 2019 में चीन की कंपनी सीएमएचआई इस सौदे से बाहर हो गई। मैगुफुली ने असमान शर्तों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। परियोजना को रोक दिया गया।
2016 में, भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने तंजानिया का दौरा किया। उनकी यात्रा ने तंजानिया के बुनियादी ढांचे के विकास में भारत की बढ़ती रुचि को दर्शाया। 2021 में मैगुफुली की मृत्यु के बाद, उनके उत्तराधिकारी राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन ने बंदरगाह परियोजना के लिए विदेशी निवेश का स्वागत किया। अक्टूबर 2023 में, हसन ने भारत का दौरा किया, जहां उन्होंने और मोदी ने दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के उद्देश्य से कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
एक साल पहले, 2022 में, अदानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन लिमिटेड (एपीएसईज़ेड) ने तंजानिया में रणनीतिक निवेश के अवसरों को संयुक्त रूप से आगे बढ़ाने के लिए एडी पोर्ट्स (अबू धाबी पोर्ट्स) के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें कथित तौर पर ‘लगभग 1 अरब डॉलर के वित्तपोषण के साथ बागामोयो में एक प्रमुख बंदरगाह का निर्माण; ज़ांज़ीबार में मंगापवानी बहुउद्देशीय बंदरगाह के लिए 60 करोड़ डॉलर की योजना; और दार एस सलाम बंदरगाह में एक नए तेल जेटी में 30 करोड़ डॉलर का निवेश भी शामिल है।’
बागामोयो बंदरगाह के अलावा, तंजानिया में दार एस सलाम में एक और प्रमुख बंदरगाह है। मई 2024 में, एपीएसईज़ेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी अडानी इंटरनेशनल पोर्ट्स होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड (एआईपीएच) ने दार एस सलाम बंदरगाह पर एक कंटेनर टर्मिनल के संचालन और प्रबंधन के लिए तंजानिया पोर्ट्स अथॉरिटी के साथ 30 साल के रियायत समझौते पर हस्ताक्षर किए ।
3 अक्टूबर 2024 को ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में तंजानिया के एक अधिकारी के हवाले से कहा गया था कि तंजानिया सरकार हाई-वोल्टेज बिजली लाइनों के निर्माण के लिए 90 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजना के लिए अडानी समूह के साथ बातचीत कर रही है।
म्यांमार में बंदरगाह परियोजना विफल
2019 में, एपीएसईज़ेड ने घोषणा की थी कि उसने प्रतिस्पर्धी वैश्विक बोली के माध्यम से म्यांमार के सबसे बड़े शहर यांगून में बंदरगाह पर एक टर्मिनल विकसित करने के अधिकार हासिल कर लिए हैं। कंपनी ने इस बंदरगाह के निर्माण और संचालन के लिए 29 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निवेश की योजना बनाई। इसे दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा गया। वर्ष 2020 तक, इसने पहले ही लगभग 12.7 करोड़ डॉलर का निवेश कर दिया था, जिसमें भूमि को पट्टे पर देने के लिए 9 करोड़ अमेरिकी डॉलर का अग्रिम भुगतान शामिल था ।
जुलाई 2019 में, एपीएसईज़ेड के सीईओ और अडानी समूह के प्रमुख गौतम अडानी के बेटे करण अडानी ने म्यांमार के जनरल मिन आंग ह्लाइंग से मुलाकात की, जो सैन्य नेता थे और जिन्होंने बाद में देश में तख्तापलट का नेतृत्व किया था। जनरल ह्लाइंग ने पहले गुजरात, भारत में मुंद्रा बंदरगाह का दौरा किया था और कथित तौर पर अडानी समूह के अधिकारियों के साथ उपहारों का आदान-प्रदान किया था, (बाद में अदानी द्वारा इस खबर का खंडन किए जाने की रिपोर्ट है।)। उस समय, जनरल और म्यांमार की सेना 2017 में रोहिंग्या लोगों के खिलाफ नरसंहार सहित मानवाधिकारों के उल्लंघन और अत्याचारों के आरोपों का सामना कर रही थी।
अमेरिकी सरकार ने जनरल ह्लाइंग के नेतृत्व वाली सैन्य जुंटा पर प्रतिबंध लगाए, लेकिन अडानी ने अपने संचालन को जारी रखा और उन्हें वैध बताया। रिपोर्ट्स सामने आईं कि अडानी ने म्यांमार में जुंटा से जुड़ी एक संस्था म्यांमार इकोनॉमिक कॉरपोरेशन (एमईसी) को 3 करोड़ डॉलर का भुगतान किया था। अडानी ने किसी भी तरह का गलत काम होने से इनकार किया और जोर देकर कहा कि बंदरगाह परियोजना में उसका निवेश वैश्विक प्रतिबंधों के मौजूदा नियमों का अनुपालन करता है।
फरवरी 2021 में, म्यांमार की सेना ने एक हिंसक तख्तापलट में आंग सान सू की के नेतृत्व वाली निर्वाचित सरकार को उखाड़ फेंका। व्यापक विरोध प्रदर्शन में शामिल नागरिकों पर क्रूर कार्रवाई के परिणामस्वरूप 1000 से अधिक लोग मारे गए। इसके बाद अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने म्यांमार की सैन्य सरकार पर और प्रतिबंध लगा दिए। मानवाधिकार संगठनों और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे वकालती समूहों ने बंदरगाह के साथ जुंटा के जुड़ाव को लेकर चिंता जताई।
अप्रैल 2021 में तख्तापलट के बाद, अडानी पोर्ट्स को डॉव जोन्स सस्टेनेबिलिटी इंडेक्स से हटा दिया गया था । अगले महीने, अडानी ने प्रतिबंधों और सार्वजनिक प्रतिक्रिया के जोखिम का हवाला देते हुए बंदरगाह परियोजना से संभावित रूप से बाहर निकलने का संकेत दिया।
अगस्त 2021 में, अडानी ने घोषणा की कि वह म्यांमार परियोजना को आगे नहीं बढ़ाएंगे। मई 2022 में, बंदरगाह परियोजना से बाहर निकलने के लिए एमईसी के साथ एक शेयर खरीद समझौते (एसपीए) पर हस्ताक्षर किए गए। प्रारंभिक बिक्री मूल्य 26 करोड़ अमेरिकी डॉलर निर्धारित किया गया था। बहरहाल, विनियामक बाधाओं और अनुबंध की शर्तों को पूरा करने में आई दिक्कतों के कारण बिक्री में देरी हुई।
देरी 2023 तक जारी रही, जिससे अडानी को बिक्री की शर्तों पर फिर से बातचीत करने के लिए मजबूर होना पड़ा। मई 2023 में, एपीएसईज़ेड ने अपनी यांगून बंदरगाह परिसंपत्तियों की बिक्री केवल 3 करोड़ डॉलर में पूरी की, जो लगभग 19.5 करोड़ डॉलर के शुरुआती निवेश से बहुत कम थी। इस बिक्री से हुए वित्तीय नुकसान ने कंपनी के समग्र मुनाफे को प्रभावित किया, विशेष रूप से 2023 की चौथी तिमाही में, जिसके परिणामस्वरूप 12.73 अरब रुपए (15.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर) का ‘भारी नुकसान’ हुआ। (जारी)
(‘अडानी वॉच’ से साभार। लेखकद्वय स्वतंत्र पत्रकार हैं।अनुवादक अ. भा. किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।)