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बुलडोजर को इन्होंने निर्माण नहीं विध्वंस का प्रतीक बना दिया है- मुकुंद मुकद्दर

बुलडोजर को इन्होंने निर्माण नहीं विध्वंस का प्रतीक बना दिया है- मुकुंद मुकद्दर

राजघाट,वाराणसी। गांधी विरासत को बचाने के लिए वाराणसी स्थित राजघाट परिसर के सामने चल रहे सत्याग्रह का आज 73 वां दिन है। स्वतंत्रता आंदोलन में विकसित हुए लोकतांत्रिक भारत की विरासत और शासन की मार्गदर्शिका- संविधान को बचाने के लिए 11 सितंबर (विनोबा जयंती) से सर्व सेवा संघ के आह्वान पर “न्याय के दीप जलाएं -100 दिनी सत्याग्रह जारी है जो 19 दिसंबर 2024 को संपन्न होगा। सत्याग्रह आज सर्व धर्म प्रार्थना के साथ अपने 73 वें पायदान पर पहुँच गया है।

आज उपवास पर झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के मोहुलबोना गांव के निवासी और छात्र- युवा संघर्ष वाहिनी से जुड़े रहे मुकुंद मुकद्दर है।मुकुंद मुकद्दर का जन्म 16 अक्टूबर 1984 को एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव में हुई और पटमदा में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त किया।इसके बाद महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,वर्धा से उच्च शिक्षा ग्रहण किया।
जयप्रकाश नारायण के विचारों से प्रभावित हो कर वे छात्र जीवन से ही छात्र- युवा संघर्ष वाहिनी से जुड़ गए। छात्रों के बीच में जयप्रकाश नारायण, महात्मा गांधी और विनोबा भावे के विचारों का प्रचार करते हुए गांव में सामाजिक परिवर्तन का प्रयास शुरू किया। वे शिक्षा के बाजारीकरण के खिलाफ एवं गुणवत्तायुक्त समान शिक्षा के लिए जन चेतना बनाने के अभियान में शामिल रहे।

मुकुंद जिस इलाके में रहते हैं,वहां के गैर आदिवासी गांवों में चैतन्य महाप्रभु का प्रभाव रहा है। यहां बिना मूर्ति के पूजा के लिए कीर्तन करने का प्रचलन है जो एक गोल मंडप के नीचे संपन्न होता है। एक समय था, जब इन मंडपों में ग्रामीण दिनभर ताश खेला करते थे। जिस गांव में जाओ, झुंड के झुंड लोग हरि मंदिर में ताश खेलते नजर आते थे। यह वाहिनी के साथियों को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने इस प्रथा को बंद करने का अभियान चलाया। हरि मंदिर में ताश खेलना बंद करो के नारे दीवाल पर लिखे गए। पर्चे छाप कर बांटे गए। ताश खेलने वालों से कुछ नहीं कहा गया। कुछ दिनों बाद यह दिखा कि लोग मंदिर में ताश नहीं खेल रहे हैं। इस तरह एक मौन सत्याग्रह सफल हो गया जिसमें अन्य साथियों के साथ मुकुंद भी शामिल थे।

उन्होंने 2008 में अपनी छोटी बहन कलावती का विवाह संघर्ष वाहिनी के साथी संजय के साथ बिना कर्मकांड, दहेज के कराने में भूमिका निभाई।
उन्होंने खुद भी 2015 में संघर्ष वाहिनी के साथी सुभद्रा के साथ बिना कर्मकांड और दहेज के विवाह किया।

मुकुंद मुकद्दर ने कहा कि न्याय के दीप जलाएं- 100 दिन का सत्याग्रह का आज 73 वां दिन पूरा हो रहा है। 11 सितंबर 2024 से प्रारंभ सत्याग्रह में अबतक 329 लोग उपवास पर रहे और हजारों लोगों ने अपना समर्थन दिया। परंतु अफसोस है कि राज्य में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद उपवास का सुध तक नहीं लिया गया है। यह इंजन नहीं है, बुलडोजर है और बुलडोजर को इन्होंने निर्माण नहीं विध्वंस का प्रतीक बना दिया है। महात्मा गांधी के विचारों की प्रेरणा से आचार्य विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण ने इस परिसर को विश्व शांति और अध्ययन केंद्र के रूप में विकसित किया था। लेकिन बुलडोजर वाली सरकार को न शांति चाहिए, न ज्ञान। इसलिए पुस्तकालय की किताबों को उठाकर बाहर फेंक दिया, सर्व सेवा संघ प्रकाशन को नष्ट कर दिया। जब सर्व सेवा संघ को नष्ट करने की कवायद चल रही थी, उसी समय गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार से नवाजा जा रहा था जबकि गीता प्रेस का गांधी विचार के प्रचार -प्रसार में कोई योगदान नहीं है।

हम जनता से अपील करना चाहते हैं कि ऐसी सरकार को असहयोग कर नकारें। हमें यह ख्याल रखना चाहिए कि सरकार हमारे समर्थन पर टिकी रहती है। अगर हम अपना समर्थन वापस ले लेंगे कोई भी दमनकारी सरकार भरभरा कर गिर जाएगी।

उपवासकर्ता मुकुंद मुकद्दर के अलावा सत्याग्रह में रामधीरज, सुरेंद्र नारायण सिंह, शक्ति कुमार, सुरेंद्र नारायण सिंह, विद्याधर, नंदलाल मास्टर, जोखन सिंह यादव, राजेंद्र यादव, फ्लोरिन, विश्वनाथ, माणिक बेसरा, राजेंद्र सिंह यादव, प्रवीण वर्मा, डब्लू गोंड, प्रियंका,संजय कुमार,निहाल गांधी एवं कुमार दिलीप आदि उपस्थित रहे।

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