राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य : मुआवजा, कभी नहीं!

राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य : मुआवजा, कभी नहीं!

मोदी, योगी, भागवत, आदि जी लोग गलत नहीं कहते हैं। उनके राज के बाद भी हिंदुत्व की राह आसान नहीं है। हिंदुत्व की राह में खतरे ही खतरे हैं। बल्कि उनके राज में हिंदुत्व के लिए खतरे जितने हो गए हैं, पहले कभी भी नहीं थे।

सब हिंदुत्व विरोधियों के षडयंत्रों के कारण है। उनके राज के खिलाफ षडयंत्र करने के लिए सब हिंदुत्व विरोधी एक जो हो गए हैं। और जाहिर है कि हिंदुत्व विरोधी भी एक हैं, सो सेफ हैं। बेचारे हिंदुत्ववादी जी ही लोगों की सारी कोशिशों के बाद भी, अब तक एक नहीं हो पाए हैं, सो पूरी तरह से सेफ भी नहीं हो पाए हैं।

वरना चार सौ पार के अभिलाषी मोदी को, नायडू-नीतीश और शिंदे की भी बैसाखियों का मोहताज नहीं होना पड़ता। और संभल की मस्जिद का जरा सा सर्वे कराते ही, ‘‘गहरा न खोदिए कोय’’ की वैधानिक चेतावनियां आनी शुरू नहीं हो जातीं। वैधानिक चेतावनी यानी वैसी ही चेतावनी जैसी सिगरेट के एक-एक पैकेट पर और बीड़ी के हरेक बंडल पर छपी रहती है। सिर्फ  शब्दों में ही नहीं, खतरे के निशान से ही नहीं, बाकायदा डराने वाली तस्वीरों के साथ चेतावनी – गहरा न खोदियो कोय।

अभी तो खुदाई शुरू भी नहीं हुई है। संभल में ही सर्वे पर ही झगड़ा पड़ा हुआ है। जरा-सा दंगा-फसाद क्या हो गया, पांच जानें क्या चली गयीं, सुप्रीम कोर्ट तक बीच में कूद पड़ा। सब कुछ रुकवा दिया। सर्वे की रिपोर्ट तक को सीलबंद लिफाफे में बंद करा दिया। खुदाई क्या खाक होगी! और अजमेर के दरगाह शरीफ के मामले में तो बेचारे विष्णु गुप्त जी सर्वे तक का आर्डर नहीं निकलवा पाए हैं। बस एक तारीख पड़ी है और तीन नोटिस जारी हुए हैं। पता नहीं, कब नौ मन तेल होगा और कब खुदाई की राधा नाचेगी!

सच पूछिए तो बेचारे हिंदुत्ववादियों की गाड़ी अब भी मस्जिदों के सर्वे के सिग्नल पर ही अटकी हुई है; काशी में भी और मथुरा में भी और धार के कमाल मौला मस्जिद-मकबरा परिसर में भी। बेचारों को अब तक खोदकर मंदिर निकालने का मौका मिला है, तो एक बाबरी मस्जिद में। हां! यहां-वहां दरगाहें वगैरह तोड़ने का मौका भी मिला है, लेकिन तोड़ने का ही। खोदकर मंदिर निकालने का मौका और कहीं भी नहीं मिला है।

1984 से हिसाब लगाएं तो, पूरे चालीस साल लगे हैं एक मस्जिद को खोदकर मंदिर निकालने में। इस हिसाब से मंदिरों पर बनी अठारह हजार मस्जिदें खोदकर मंदिर निकालने में कितने साल लगेंगे? पांच-सात लाख साल तो कहीं गए नहीं हैं। लेकिन, मस्जिद में खोदकर निकाले मंदिर, एक से दो भी नहीं हुए हैं, तब तक वैधानिक चेतावनी आनी शुरू हो गयी – गहरा न खादियो कोय!

पर गहरा खोदने में खतरा क्या है? चेतावनी देने वालों की मानें तो बेशक मस्जिद खोदने में भी हजार दिक्कतें हैं। तभी तो बाबरी मस्जिद खोदकर मंदिर निकालने में ही कम से कम चालीस साल तो लग ही गए। और चालीस साल तो तब हैं, जब गिनती आरएसएस-भाजपा-विहिप-बजरंग दल के मैदान में आने से की जाए। हिंदू महासभा से गिनेंगे, तो तीस-पैंतीस साल और पीछे जाना पड़ेगा। और उनके भी पुरखों से हिसाब लगाने बैठेंगे, तो और सौ साल पीछे।

मोदी-योगी जी वगैरह के डबल इंजनिया राज में जीडीपी के बदले में मस्जिद के नीचे मंदिर खोजो, विकास की रफ्तार तेज भी हो जाए, तब भी, मस्जिदों/ मकबरों/ दरगाहों के नीचे और गिरजों/ गुरुद्वारों के नीचे भी, मंदिर खोजने में टैम तो लगेगा। फिर भी चाहे जितना भी खोद लो। चाहे काशी खोदो, चाहे मथुरा खोदो। चाहे संभल खोदो, चाहे जौनपुर खोदो। चाहे धार खोदो। चाहे अजमेर खोदो, चाहे बुंदनगिरी खोदो। चाहे ताजमहल खोदो, चाहे लाल किला खोदो। चाहे एक-एक मस्जिद/ दरगाह/ मकबरा खोदो। चाहे उत्तर में खोदो, चाहे दक्षिण में खोदो। पूरब में खोदो, चाहे पश्चिम में खोदो। पूरे देश में खोदो। बस में हो तो, अखंड भारत के दूसरे देशों में आने वाले इलाकों में भी जाकर खोदो। बहाने से खोदो। न हो तो, किसी के सपने के बहाने से खोदो। वह भी न हो तो, बिना किसी बहाने के ही खोदो। बस खोदो। न हो तो, मंदिर खोजने के लिए ही नहीं, सिर्फ खोदने के लिए ही खोदो। यह बताने के लिए खोदो कि मुसलमानों का कुछ भी खोद सकते हैं। बस हिंदुत्ववादियों के लिए, गहरा खोदना मना है!

मगर क्यों? हिंदुत्ववादियों के लिए गहरा खोदना क्यों मना है? क्योंकि मस्जिद के नीचे/ दरगाह के नीचे मंदिर निकले-न निकले, कोई नहीं कह सकता। बेशक, नहीं भी निकले, तब भी झूठ-मूठ में निकलने की अफवाह फैला सकते हैं। मांसाहारियों द्वारा फेंकी गयी हड्डियां निकलें, तब भी मंदिर का परिसर निकला बता सकते हैं। सांप की रस्सी और रस्सी का सांप बना सकते हैं। राज अपना हो, तो कुछ भी कर सकते हैं, पर और नीचे नहीं जा सकते। क्यों? क्योंकि मस्जिद के नीचे मंदिर की कोई गारंटी नहीं है, पर हर पुराने मंदिर के नीचे बौद्ध मठ निकलने की पक्की गारंटी है। खुदाई का फावड़ा ज्यादा अंदर जाएगा, तो हरेक मंदिर के नीचे बौद्ध मठ निकल आएगा। फिर हिंदुत्ववादी क्या करेंगे? बौद्ध मठ को दोबारा दबा देंगे, जैसे उनके पर-पुरखों ने कभी बौद्ध धर्म को दबाया था? वाकई खतरा है। यह मस्जिदों को खोदने से ज्यादा मुश्किल होगा। बौद्ध इस बार न बंटेंगे और न कटेंगे।

गहरा खोदने में एक खतरा और है। पृथ्वी गोल है। मस्जिद के नीचे खोदा और कुछ नहीं मिला तो खुदाई कहां जाकर रुकेगी? दुनिया के दूसरे सिरे पर। हिंदुत्ववादी जिसे गहरा दबा बताएंगे, दूसरे क्या अपना हिस्सा नहीं बताएंगे। धार में खोदना शुरू करेंगे तो क्या गारंटी है कि न्यूयार्क में नहीं निकल आएंगे? विश्व गुरु किस-किस से झगड़ने जाएंगे। सो हिंदुत्ववादियों, ऊपर-ऊपर से चाहे पूरा देश खोद लेना, पर गहरा मत खोदना। जो तुम ऐसा जानते, गहराई में बौद्ध मठ होइ, जगत ढिंढोरा पीटते, गहरा न खोदियो कोय!

डेमोक्रेसी की यही प्राब्लम है। कितनी ही कमजोर हो जाए ; भले ही परमानेंट खटिया पकड़ ले ; भले ही रह-रह के बेहोश हो जाती हो ; पर जब तक सांस रहेगी, तब तक विपक्ष वालों की कुछ-न-कुछ किच-किच बनी ही रहेगी। अब बताइए, योगी जी को भी संभल के मामले की जांच करानी पड़ेगी। और जांच भी ऐसी नहीं कि पुलिस वालों की जांच पुलिस वालों से ही करा लें। सेवानिवृत्त ही सही, हाई कोर्ट के जज की अध्यक्षता में जांच करानी पड़ेगी। यानी जांच में कुछ हो न हो, भले ही जांच को एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन पर मिलता जाए और अनंतकाल तक चलती जाए, पर जांच का स्वांग पूरा होगा। बहुत जल्दी न सही, पर एक दिन जांच कमेटी संभल की मस्जिद देखने भी जाएगी और अधिकारियों को अपनी बात रखने के लिए बुलाएगी भी। गोली चलाने वालों की भी सुनेगी और गोली खाने वालों की भी। यानी और कुछ हो न हो, कुछ-न-कुछ होने का माहौल बना रहेगा। कागज का पेट भरता रहेगा। बेचारे पुलिसवालों के घावों को कुरेदा जाता रहेगा। ये अच्छी बात नहीं है।

हम तो कहते हैं कि जांच-वांच की जरूरत ही क्या थी? एकदम ओपन एंड शॅट केस है। हिंदुओं ने शिकायत की, उनका कोई मंदिर खो गया था, बहुत पहले। लगता है मस्जिद में बंद कर के रखा हुआ है। किडनैपिंग का केस बनता था, सो जिला अदालत ने मुस्तैदी दिखाई। हाथ के हाथ आर्डर दे दिया, मस्जिद में छान-बीन कर लो। छान-बीन के लिए टीम भी बना दी। केस सीरियस था, सो पुलिस-प्रशासन ने भी मुस्तैदी दिखाई। फटाफट छान-बीन टीम को लेकर मस्जिद में पहुंच गये। छान-बीन टीम ने छानबीन कर भी ली, पर शिकायत करने वाले का मन नहीं भरा। चार दिन बाद, छान-बीन टीम और ज्यादा लोगों के साथ दोबारा पहुंची। पर इस बार कानून के अपना काम करने में रोड़े अटकाने के लिए मुसलमान इकट्ठे हो गए। लगे जय श्रीराम के जवाब में जय श्रीराम की जगह, अल्लाह-ओ-अकबर के नारे लगाने। भीड़ को भगाने के लिए बेचारे पुलिस वालों ने लाठियां चलायीं, तो लगे ईंट-पत्थर चलाने। पुलिस वालों ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया, पर उनके पास हाथ कम पड़ गए। हार कर बेचारे पुलिस वालों को आत्मरक्षा के लिए गोलियां चलानी पड़ीं। उपद्रवी भागने के बजाए, गोलियों के रास्ते में आ गए ; कुछ मारे गए और कई घायल हो गए। इतना सिंपल तो मामला है, इसमें जांच क्या करनी है? मरने वाले, घायल होने वाले उपद्रवी, मारने वाले कानून के रक्षक! गोली क्यों चलायी? अव्वल तो पुलिस ने गोली चलायी ही नहीं, गोली चलायी भी, तो आत्मरक्षा के लिए चलायी और कानून के शासन की रक्षा के लिए भी। इसी के लिए तो उसे बंदूक दी है ; बंदूक सिर्फ दिखाने के लिए थोड़े ही दी है।

ऐसी जांच-वांच से तो पुलिस के हौसले ही कमजोर होंगे और उपद्रवियों के हौसले बढ़ जाएंगे। और ये जो समाजवादी पार्टी वालों ने मरने वालों के लिए पांच-पांच लाख रुपए की मदद देने का एलान किया है, उससे तो उपद्रवियों के हौसले और भी बढ़ जाएंगे। पुलिस की गोली यानी परिवार वालों को लखपति बनाने की गारंटी! इस तरह तो उपद्रवियों में पुलिस की गोलियों का भी डर नहीं रह जाएगा। पट्ठे समाजवादी, सरकार से और मांग कर रहे हैं कि वह भी मरने वालों के परिवारों के लिए लाखों रुपए के मुआवजे का एलान करे। यानी पुलिस की गोली का डर एकदम ही खत्म हो जाए! शुक्र है योगी जी ने अब तक किसी मुआवजे या सहायता का एलान नहीं किया है। देना ही होगा, तो पुलिस वालों को अच्छे निशाने के लिए इनाम देंगे, पर उपद्रवियों को मुआवजा कभी नहीं देेंगे!

इन सेकुलर वालों की बुद्धि क्या एकदम ही भ्रष्ट हो गई है। बताइए‚ सर्वेक्षण कराने तक में आपत्ति कर रहे हैं। बनारस और अयोध्या की मस्जिदों के सर्वे पर पहले ही कांय–कांय कर रहे थे। संभल की शाही मस्जिद के सर्वे पर हाय–हाय करने लगे। और अब अजमेर की दरगाह की जांच की जरा सी अर्जी क्या अदालत ने मंजूर की‚ लगे इसे सर्वनाश का रास्ता बताने। सर्वे तो ज्ञान की सीढ़ी है। बनते हैं बुद्धिजीवी और काम ज्ञान के विरोधियों का।

और ये लोग हर वक्त धार्मिक स्थल कानून की क्या दुहाई देते रहते हैंॽ ये क्या देश की सबसे बड़ी अदालत से ज्यादा कानून जानते हैंॽ चंद्रचूड़ जी ने आते–आते ही बता दिया था कि यह कानून सर्वे यानी ज्ञान का रास्ता नहीं रोकता है। धार्मिक स्थलों का सर्वे होगा, तभी तो लोगों को इसका ज्ञान प्राप्त होगा कि दूसरों के धार्मिक स्थलों पर कहां–कहां अपना दावा पेश कर सकते हैं। 

अब ज्ञान से विवाद होता हो तो हो‚ विवाद के डर से ज्ञान की यात्रा थोड़े ही रोक सकते हैं। और किसी कानून–वानून के रोकने से तो हर्गिज नहीं। ज्ञान की खोज ऐसी दीवारों से न कभी रुकी है और न रुक सकती है। ज्ञान तो पानी की तरह है‚ रोकने की कितनी भी कोशिश करो‚ पानी अपना रास्ता बना ही लेता है। जरूरत हुई तो सरकार के बाद‚ अदालतों का दिमाग भी फिरा देगा‚ पर ज्ञान अपना रास्ता बना लेगा। रही बात ऐसे सर्वे के फायदे की, तो जिसे ज्ञान की प्यास होती है‚ वह इससे नफा–नुकसान नहीं देखता है।

नफा–नुकसान देखते तो क्या ओपनहाइमर जी एटम बम बना पातेॽ अगले ने नुकसान की सोची भी तो, बम बनाने के बाद! जरूरी हुआ तो विष्णु शंकर जैन नुकसान की भी सोच लेंगे‚ पर पहले इसका ज्ञान तो प्राप्त कर लें कि किस–किस मस्जिद पर हिंदुओं की तरफ से दावा कर सकते हैं।

और ये जो जमीन के ऊपर के सर्वे पर ही इतनी हाय–हाय कर रहे हैं‚ तब क्या करेंगे जब जमीन के अंदर सर्वे होगा यानी खुदाई होगी। जरूर ये देश के गड्ढे में जाने का रोना रोएंगे। पर देश गड्ढे में नहीं जा रहा होगा‚ देश आगे बढ़ रहा होगा। न सही आगे की ओर‚ न सही आकाश की ओर‚ पाताल की ओर ही सही‚ पर देश आगे बढ़ रहा होगा। सो खोद भाई खोद।

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