वाराणसी के नट-मुसहर समाज द्वारा अधिकारों के लिए एक साझी पहल
बतौर एक देश आज हम आजादी के 78 वें वर्ष में भले ही प्रवेश कर चुके हैं पर यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी भारत का एक बड़ा हिस्सा अपने हक, सम्मान और समानता के लिए संघर्ष कर रहा है। आर्थिक असमानता की खांई इतनी बड़ी हो चुकी है कि अब वह किसी अंतहीन सुरंग में बदल गई सी दिखती है। आज 140 करोड़ से ज्यादा आवादी वाले देश की सकल पूंजी का 22 प्रतिशत हिस्सा महज पाँच व्यक्तियों के पास है। बावजूद इस अंतराल के हमारी सरकार दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की हुंकार भर रही है।
इस तथाकथित बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था में इस देश का आम आदमी कहाँ है? जहां 80 करोड़ लोग आज भी सरकारी अन्न के भरोसे जीवन यापन करने का अभिशाप झेल रहे हैं और देश की सरकार हाथ में कटोरा लिए खड़े देश का पूरी वेशर्मी से महिमा मंडन कर रही है। आराक्षण पर लगातार गिद्ध दृष्टि लगाकर बैठी सरकार में देश को यह बताने की हिम्मत नही है कि आज भी कितने दलित आदिवासी परिवार ऐसे हैं जिनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है।
यह स्थिति किसी जंगल में रहने वाले समाज की ही नहीं है बल्कि यह स्थिति देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की है। वाराणसी के दलित समाज की नट जाति के प्रेम कुमार ने कल अपने समाज की एक व्यथा-कथा बताई तो जहां यह अच्छा लगा कि आज नहीं तो कल इन लोगों का कुछ भला हो जाएगा क्योंकि अब उनका अपना कोई उनके हक की पैरवी करने के लिए खड़ा हो गया है किन्तु इस खुशी से ज्यादा इस बात का दुख भी हुआ कि आखिर अभी कितने वर्ष बाद इन लोगों को समानता और सम्मान का हक मिलेगा जो आजाद भारत में भी सम्पूर्ण आजादी कभी महसूस ही नहीं कर पाए।
फिलहाल मैं न्याय तक के पाठकों को प्रेम कुमार नट की वह पोस्ट पढ़वाना चाहता हूँ जिसमें दलित समाज का एक कठिन जीवन तो दिखता है पर उससे भी ज्यादा जो बात प्रभावित करती है वह है उस समाज के भीतर अपने हक के लिए संघर्ष का हौसला पैदा हो जाना।
प्रेम कुमार नट की पोस्ट
साथियों हम जानते है की काफ़ी लम्बा पोस्ट सब कोई नहीं पढ़ता है, लेकिन कुछ खास बातो के साथ यह पोस्ट कर रहा हु,साथियों यह है की हम संगठन के सभी साथियों के साथ जून माह 2024 से ही लगातार गांव गांव ख़ासकर विमुक्त समाज के साथ बैठकों का सिलसिला जारी रखे थे, बैठकों के बाद लगातर नट,मुसहर व अन्य विमुक्त समुदायों से लगातार शिकायतों का अम्बार निकल रहा था, कई शिकायते सामूहिक रूप से और कई व्यक्तिगत आ रही थी, हम सभी साथियों के साथ मिलकर ज्यादातर शिकायतों को गांव मे ही बैठकर 1076 मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर समाज से दर्ज करवा देते थे।
लेकिन ज्यादातर शिकायतों मे कोई कार्यवाही न होना और बाकी शिकायतों मे फर्जी रिपोर्ट लगा देना बिना शिकायतकर्ता को सुने, समाज के लोग बार बार कहते थे, भाई कोई सुनवाई नहीं हो रहा है,हमने के ले चला बड़का अधिकारी के पास हमने सब उनसे बताइब, फिर मेरे द्वारा व साथियों के द्वारा यह सुझाव दिया गया की क्यों न हम सब सम्पूर्ण समाधान दिवस पर अपने अपने तहसील पर चले वहीं पर DM साहब से मिलकर अपनी सभी शिकायत बताएँगे, समाज का कहना था की बस आप लोग हमने के अर्जी लिखें मे और तहसील मे कहाँ देवे के पड़ी वह जगह दिखा देना हम लोग साहब से बात कर लेगे।
इसी क्रम मे आज हमने अपने साथियो को दो जगहों पर उपस्थित रहने के लिए बोला जिसमे कुछ साथी राजातालाब तहसील पर और कुछ साथी पिंडरा तहसील पर क्योंकि सभी गांव इन तहसीलो से ताल्लुक रखते है, आगे आज तीन गांव जोगियापुर नट बस्ती, सजोई मुसहर बस्ती, गोसाईपुर मुसहर बस्ती के लोगों के साथ राजातालाब तहसील पर पहुंचे ख़ासकर विमुक्त समाज के सभी लोगों के हाथ मे 5,5,एकड़ जमीन की मांग का आवेदन था, उनका कहना था की मांगने मे कौन सा सरम अपना हक अधिकार तो ही मांग रहे है अब देना तो साहब के हाथ मे है लेकिन 5एकड़ से हमने के आजीविका यानी जिए के स्तर मे सुधार हो जाइ।
तहसील पर जैसे ही आवेदन को देखा गया एकदम खड़बड़ी मच गई कह रहे हैं यह समाधान दिवस के स्लिप पर दर्ज नहीं होगा एसडीएम साहब मना किये है की जमीन की मांग का आवेदन बिना स्लिप के डाइरेक्ट भेज दो मेरे पास, खैर स्लिप तो नहीं मिला लेकिन आवेदन ले लिया गया और कहा गया इन सब की जांच कराओ कही ये इसी समुदाय से है या कोई और, इस तरह से समाज के लोगों ने साहब से अपनी अपनी शिकायते खूब सुनाई और वह सब कह रही थी की अगर सुनवाई न होई त हमने के DM साहब के जगह बता दिह ओहु जगह चलेंगे आज इहा आकर बहुत कुछ समझ मे आ गइल अब हम सब चुप नहीं बैठेंगे अब हम अपना हक अधिकार ले के रहेंगे, जमीन का पट्टा, खेती लायक जमीन, आवास, घरूनी, पेंशन, अच्छा शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, स्थयित्व, विमुक्ति जात का प्रमाण, बस तू संस्था वाले हमने के साथे रहिए, हमें लिखने पढ़ने मे मदद देते रहिएगा इसी क्रम मे आज दोनों तहसीलों पर कुल 155 आवेदन जमा कराया गया।
सच ही किसी ने कहा है की गुलाम को बस उसकी गुलामी का एहसास दिला तो वह गुलामी की जंजीरो को तोड़ देता है और आजाद ख्याल से संघर्ष करता है, समाज से होने के नाते यह मुझे बहुत अच्छा लगता है की अब लोग बाहर निकल रहे है,तो,अब अंधेरा जीत लेगे लोग मेरे गांव के, ले मसाले चल पड़े है, लोग मेरे गांव के, साथियों इसी क्रम मे आज जो आवेदन पड़े सभी मुद्दों की मांग को लेकर वो इस प्रकार से है-
कहाँ से कितने आवेदन
155 आवेदन 5, 5 एकर जमीन की मांग को लेकर दोनों तहसील पर,राजातालाब तहसील और पिंडरा तहसील जोगियापुर नट बस्ती से 13 आवेदन, सजोई मुसहर बस्ती से 84 आवेदन, गोसाईपुर मुसहर बस्ती से 23 आवेदन, पिंडरा तहसील मे डीएनटी समुदाय की जमीन की मांग को लेकर आवेदन, चक्का मुसहर बस्ती से 22 आवेदन, गोकुलपुर मुसहर बस्ती से 13 आवेदन
विमुक्त समुदाय के लिए जमीन की मांग को लेकर कुल 155 आवेदन आज समाधान दिवस पर दिए गए
नोट-समाज ने अपने हक अधिकारों की मांग को लेकर और कई मुद्दों पे जैसे,पानी के लिए हैंडपम्प, आवास, पेंशन, घरूनी, बसें हुए जगहों के जमीनों का पट्टा आदि मुद्दों को भी दर्ज कराया
“साथियों संघर्ष जारी है, मरने के बाद शमशान /कब्रिस्तान नहीं, रहने के लिए घर नहीं, जीने खाने के लिए, रोजगार, जमीन नहीं, मालिकाना हक नहीं, पेंशन नहीं, शिक्षा नहीं कमाई, दवाई, पढ़ाई, रोजी रोटी आदि इन सब को हासिल करने के लिए सघर्ष जारी है “
परिचय प्रेम कुमार नट
एक तरफ प्रेम कुमार नट का यह पत्र मिलता है और दूसरी तरफ ठीक उसी वक्त एक खबर फ़्लैश होती है कि उत्तर प्रदेश में आरक्षण घोटाले के तहत नियुक्त किए गए 69 हजार शिक्षकों की भर्ती रद्द कर दी गई है। आखिर देश के दबे, शोषित, वंचित दलित-पिछड़े समाज को आखिर अभी कितना और छला जाएगा? फिलहाल जब राजशाही नहीं कायम रह सकी तो तानाशाही भी बहुत दिन कायम नहीं रह पाएगी।
दो दशक से पत्रकारिता, रंगमंच, साहित्य और सिनेमा से सम्बद्ध। न्याय तक के संपादक हैं।
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