हिन्दू राष्ट्र यानि हिन्दुस्तान आप को मुबारक हो
आज-कल फिर चारों तरफ संसद से लेकर सड़क तक हिन्दू राष्ट्र की चर्चा चल रही है। पक्ष और विपक्ष में सोल मीडिया पर भी चर्चा सर्दी में गर्मी पैदा कर रही है। लेकिन अफसोस, हिन्दू राष्ट्र की बात छोड़िए, सही में, हकीकत में, आज की परिस्थितियों को देखते हुए, एक हिन्दू गांव बनाना मुश्किल है।
बहुत पहले दशहरे के मौके पर मोहन भागवत ने बचकाना हरकत करते हुए दुर्भाग्यपूर्ण सिगूफा छोड़ दिया था कि, भारत एक हिन्दू राष्ट्र हैं। ऐसा लगता है कि भागवत जी ने भारत का संविधान पढ़ा ही नहीं है या जानबूझकर शरारती, खुराफाती ऐसे बयान दिये थे। इसके बाद से बहुत से धर्मी पाखंडियों के द्वारा भी ऐसे ही अनर्गल बातें कहने सुनने को मिलती रहती हैं।
कश्मीर फाइल फिल्म रिलीज होने के बाद, सोसल मीडिया पर देखने सुनने को मिलता रहता है कि ब्राह्मणों के लिए अलग देश होना चाहिए। काश यही काम स्वतंत्रता के समय हिन्दू-मुसलमान पर बटवारा न होकर, ब्राह्मणों के लिए ही अलग देश बना दिया गया होता तो, आज भारत की स्थिति कुछ और ही होती। क्योकि भारत का बटवारा कर पाकिस्तान बनाने का आधार भी ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद का अत्याचार ही था।
थोड़ी अतीत का अवलोकन करते हैं, जिसका आज भी कुछ झलक दिखाई देती है. इन तथाकथित हिन्दुओं को शूद्रों की परछाई से परहेज़ रहता था, सवर्णों की बस्ती से अलग या थोड़ी दूरी पर, हवा की दिशा के विपरित दिसा में बसाया जाता था। ताकि हवा शूद्रों से सम्पर्क होते हुए सवर्ण बस्ती में न घुसने पाए। शूद्रों के लिए अपमान भरा, क्रूरतापूर्ण, अमानवीय सामाजिक व्यवस्था, जिस पर आज के वैज्ञानिक युग में तथाकथित पढ़े-लिखे विद्वान हिन्दू जानते हुए भी अंधा, गूंगा, बहरा बना हुआ है।
बाबासाहेब ने भी इसी अमानवीय आधार पर कहा था कि, जब सवर्णो को हमलोगों की परछाई से परहेज है। गांव के बाहर हवा के बिपरीत दिशा में बसने को मजबूर करते हो तो, अपने देश में ही क्यों रखते हो, हमारे शूद्रों के लिए भी अलग से शुद्रिस्तान दे दो। गांधी जी को दिन में तारे नजर आने लगे, हाथ-पैर जोड़कर कहने लगे कि हम 10 साल मे सभी भेदभाव मिटा देगें। बाबासाहेब के साथ साथ शूद्र समाज के साथ उस समय धोखा हुआ।
यह देश का दुर्भाग्य रहा कि ब्राह्मणवाद की बिमारी से छुटकारा न पाकर, उससे समझौता करते हुए देश का विभाजन हुआ।
अब थोड़ा-बहुत विषय पर बात करते हैं।
संविधान की प्रस्तावना की पहली शुरुआत लाईन ‘हम भारत के लोग’ सब कुछ बयां कर देती है। ‘लोग’ का तात्पर्य ही हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और जो भी अन्य धार्मिक या अधार्मिक सभी समुदाय के लोगों से है. भागवत के बयान पर सिख समुदाय के लोगों ने उस समय जबरदस्त तीखी टिप्पणी की थी और दूसरे समुदाय के लोगों नें भी काफी आक्रोश जाहिर किया था. इसी तरह आज के माहौल में भी दूसरे पाखंडियों के वक्तव्यों पर भी सोशल मीडिया पर लोग अपनी भड़ास निकालते रहते हैं।
मोहन भागवत तो समता-समानता और बन्धुत्व आधारित संविधान के विपरित, भारत के 85% शूद्रों को धार्मिक भावनाओं से हिन्दू नहीं समझते हैं। सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ से, चुनाव के दौरान मुसलमान और पाकिस्तान का डर दिखाकर शूद्रों को भी हिन्दू बनाने लग जाते है। सच मानिए तो किसी भी अवधारणा से शूद्र, हिन्दू हैं भी नहीं।
शूद्र को तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इन तीनों का सेवा करना ही धर्म है। सेवा करनेवाला और सेवा लेनेवाला दोनों का धर्म एक कैसे हो सकता है ? शोषित होने वाला और शोषण करनेवाला, दोनों हिंदू कैसे हो सकते है ? यही नहीं, एक इन्सान दूसरे इन्सान से छूत-अछूत जैसा व्यवहार करे, फिर दोनों का धर्म एक कैसे हो सकता है ? यदि कुछ लोग इसे ही धर्म मानते हैं तो उन्हें धर्म की अवधारणा को पहले समझना होगा।
आप किसी भी हिन्दू से, चाहें वह बच्चा हो या जवान, नर हो या नारी, धार्मिक पुजारी हो या शंकराचार्य, एक सवाल पूछिए कि आप हिन्दू धर्म में क्यों हो ? और यदि हो तो इसका पालन कैसे करते हो ? किसी से भी एक सही और समान उत्तर मिलना नामुमकिन है. लेकिन यही सवाल किसी भी मुसलमान से पूछिए, सभी का एक, सही और सटीक उत्तर होगा – मुझे मोहम्मद पैगंबर साहब में आस्था है और उनकेे बताए हुए धार्मिक पुस्तक कुरान के अनुसार अपना जीवन यापन करता हूं।
इसी तरह विश्व के सभी धर्मों का एक धर्म गुरु और एक धार्मिक पुस्तक होती है, जो सभी के लिए सामान्य रूप से मान्य होती है। लेकिन वही हिंदू धर्म का क्या है ? कौन धर्म गुरु है? और कौन सी धर्म पुस्तक है? कुछ भी नही है? किसी को कुछ पता भी नहीं है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि हिन्दू-धर्म कोई धर्म नहीं है, फिर भी जबर्दस्ती गर्व महसूस कराने की कोशिश की जाती हैं।
मोहन भागवत को आदर्श मानने वाले लोगों की सोच, सही दिशा में एक दम सही है, क्योंकि (हम भारत के लोग) यह शब्द भी आप को और आपके भक्तों को हर समय कचोटता रहता है, इसलिए मैं भी आपके पवित्र हिन्दू राष्ट्र और हिन्दुस्तान जहां पर इन शूद्रों की परछाई भी नहीं दिखाई देगी, ऐसी भावना का मैं सम्मान और समर्थन करता हूं. इसके साथ ही शूद्रों के लिए भारत तो है ही, लेकिन यदि आप लोगों को ऐतराज होगा तो हम लोग भी आप लोगों से सामाजिक व्यवस्था से बहुत दूर शुद्रिस्तान में रहकर संतोष कर लेंगे।
आपके हिन्दू शास्त्रों और प्रकृति का संयोग देखिए, आप लोगों का सौभाग्य भी है कि भारत का उत्तरीय भाग, जिसमें आपने जम्मू और लद्दाख अभी अभी बनाया है, आप लोगों का गौरव कारगिल, गंगोत्री, पवित्र शिवलिंग, मानसरोवर और यहां तक कि ऋषि-मुनी, साधू-सन्तों के लिए पूरा हिमालय पर्वत भी आप लोगों का स्वागत करेगा. सबसे ख़ुशी की बात यह होगी कि आपके हिन्दुस्तान में गंगा माई पवित्र बनीं रहेंगी. उसके बाद की गंगा यदि अपवित्र होती है तो शूद्रों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि शुद्रिस्तान में वह माई नहीं, एक नदी बन जाएगी।
15% पवित्र ज़मीन हिन्दू राष्ट्र के लिए आसानी से मिल जाएगी। बाक़ी सब तो आप के पोथी, पतरे, दिशा नक्षत्र के अनुकूल ही है। थोड़ॆ ख़तरे का अनुमान सिर्फ पगड़ी वाले सरदारों से हो सकता है, वह कोई बड़ी समस्या नहीं है. शूद्रिस्तान बनते ही उस समस्या का समाधान भी हो जाएगा. इसलिए मोहन भागवत जी हिन्दुस्तान के साथ-साथ शुद्रिस्तान बनवाकर सदा के लिए पवित्र हो जाईए।
यदि आपको पगड़ी और दाढ़ी से नफ़रत है तो इन्हें भी खलिस्तान दे दीजिए, क्योंकि, जहां तक मेरा अनुमान है कि ये खुद भी आपके हिन्दुस्तान में नहीं रहना चाहेंगे। अन्यथा इनके लिए भी शुद्रिस्तान का दिल बहुत बड़ा होगा, इसे वे सहर्ष स्वीकार भी कर लेगें।
रही बात मुसलमानों की तो ये पक्के धर्म निरपेक्ष, देशभक्त हैं. जब मुस्लिम धर्म के नाम पर पाकिस्तान को नहीं स्वीकारा तो आज भी मुझे संदेह है, लेकिन उनकी भी राय लेना अच्छा रहेगा क्योंकि, हिन्दुस्तान में तो आप अपने मुस्लिम दामादों के अलावा किसी और को लेंगे भी नहीं।
जहां तक ईसाइयों की बात है तो आप को पवित्र बनाएं रखने के लिए, शूद्र लोग ही ईसाई धर्म और मुस्लिम धर्म अपना लिए हैं। इनको भी अपनें लोगों के साथ शुद्रिस्तान में रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
इसलिए आपको और आपके भक्तों को हिन्दू राष्ट्र यानि हिन्दुस्तान की शुभकामना और हार्दिक सुवेच्छा! साथ-साथ शूद्रों के लिए भी शुद्रिस्तान !
एक फरवरी 1951 को चंदौली, उत्तर प्रदेश में जन्म। मंडल अभियंता एमटीएनएल मुम्बई से सेवा निवृत्त, वर्तमान में नायगांव वसई में निवास कर रहे हैं।
टेलीफोन विभाग में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए, आप को भारत सरकार से संचार श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। नौकरी के साथ साथ सामाजिक कार्यों में इनकी लगन और निष्ठा शुरू से रही है। 1982 से मान्यवर कांशीराम जी के साथ बामसेफ में भी इन्होंने काम किया।
2015 से मिशन गर्व से कहो हम शूद्र हैं, के सफल संचालन के लिए इन्होंने अपना नाम शिवशंकर रामकमल सिंह से बदलकर शूद्र शिवशंकर सिंह यादव रख लिया। इन्हीं सामाजिक विषयों पर, इन्होंने अब तक सात पुस्तकें लिखी हैं। इस समय इनकी चार पुस्तकें मानवीय चेतना, गर्व से कहो हम शूद्र हैं, ब्राह्मणवाद का विकल्प शूद्रवाद और यादगार लम्हे, अमाजॉन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।