गांधी से प्रभावित होकर चार्ली ने बनाई थी ‘टाइम मशीन’

गांधी से प्रभावित होकर चार्ली ने बनाई थी ‘टाइम मशीन’

कला को प्रतिरोध का हथियार बना देने का मन्त्र किसी को लेना हो तो उसे चार्ली चैप्लिन की ओर देखना चाहिये। चार्ली चैप्लिन ने  सिनेमा के पर्दे पर अपनी मौन अभियक्ति से जहां एक ओर लोगों को बेशुमार हंसी सौंपी है वहीं दुनिया भर की फासीवादी ताकतों से मुकाबला  करने के लिये हास्य को बेहद कारगर हथियार भी बनाया है। सिनेमा के पर्दे पर चार्ली ज्यादातर मजदूर, कामगार, बेरोजगार युवक आदि की भूमिका में होते थे और उस तपके की त्रासदी को पूरी शिद्दत से दुनिया के सामने पेश करते थे। वह व्यवस्था की विद्रूपत्ता को उसकी पूरी नगन्ता के साथ लगभग अपनी हर  फ़िल्म के माध्यम से दिखाते रहे हैं।  सबसे महत्वपूर्ण यह है कि, चार्ली ने दर्द को दिखाने के लिये करुणा और आंसू का सहारा नहीं लिया बल्कि उन्होने हास्य का सहारा लिया। वह साम्राज्यवादी ताकतों का उपहास उड़ाते थे, वह चाहते थे कि लोग व्यवस्था की विद्रूपत्ता पर हँसे और इसी हँसी में चार्ली प्रतिकार का नया मुहाबरा रच देते थे।

चार्ली चैप्लिन का पूरा नाम ‘सर चार्ल्स स्पेन्सर चैप्लिन’ था और उनका जन्म 16 अप्रैल, 1889 को लंदन में एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। चार्ली चैप्लिन मूक सिनेमा दौर के सबसे बड़े कलाकारों में से एक थे ।

सन 1925 में टाइम मैग्जीन के कवर पर आने वाले वह पहले एक्टर बने थे। १९५० -६० के दशक में हालीवुड में चार्ली चैपलिन की तूती बोलती थी । यही वह समय था जब द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूरी दुनिया लगभग दो खेमों में बंट चुकी थी, एक समूह का नेतृत्व पूंजीवाद समर्थक अमेरिका के हाँथ  में था तो दूसरी तरफ साम्यवादी विचारधारा का नेतृत्व सोवियत संघ रूस कर रहा था। अमेरिका पूरी शिद्दत के साथ साम्यवाद को दुनिया से ख़त्म कर देने की पुरजोर कोशिश कर रहा था। 

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फिल्म द ग्रेट डिक्टेटर का एक दृश्य

अमेरिका को शक था कि चार्ली चैपलिन साम्यवादी विचारधारा से प्रेरित हैं और वे समाज में लोगों को इससे जोड़ने की कोशिश करते हैं। यह बात अमेरिका को चुभ रही थी, उसने अपनी खुफिया एजेंसी एफबीआई को चार्ली चैपलिन की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारी जुटाने के काम में लगा दिया। अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी इस बात का अहसास था की अमेरिका सहित पूरी दुनिया  में चार्ली चैपलिन को पसंद करने वाले लोग भारी मात्रा में हैं जिसकी वजह से वह भी चार्ली को सीधे गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था । चार्ली चैपलिन काम अमेरिका में करते थे पर ज्यादातर वह लन्दन में रहते थे और अमेरिकी सोच से इत्तफाक रखते हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद चार्ली अपने काम को भी लन्दन में केन्द्रित करने की कोशिश कर रहे थे । इस वजह से एफबीआई ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने का जिम्मा ‘एमआई 5’ को सौंप दिया। हालांकि एमआई 5 चार्ली चैपलिन के खिलाफ वैसा कोई सबूत जुटाने में नाकाम रही, जो यह साबित कर सके कि यह हास्य कलाकार अमेरिका के लिए खतरा पैदा कर सकता है। एफबीआई का मानना था कि चार्ली का असली नाम इजरायल थोर्नस्टेन था पर एमआई-5 की खुफिया जांच में इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई थी।

ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी एमआई-5 द्वारा आश्वस्त करने के बाद भी चार्ली चैपलिन के प्रति अमेरिकी खुफिया एजेंसी का शक दूर नहीं हुआ। 1953 में चार्ली चैपलिन अमेरिका से बाहर गए तो उन्हें वापस अमेरिका नहीं लौटने दिया गया। इस वजह से वह स्विट्जर लैंड में ही बस गए।

चार्ली चैपलिन और महात्मा गांधी की मुलाकात चैप्लिन की जिंदगी के अहम पड़ावों में से एक है। लंदन में महात्मा गांधी से मुलाकात के पहले चैप्लिन ने अपनी डायरी में लिखा था कि वो इस सोच में पड़ गए थे कि राजनीति के ऐसे महान व्यक्तित्व  से किस मुद्दे पर बात की जाए। मुलाकात के वक्त चैप्लिन ने महात्मा गांधी से पूछा कि,’आधुनिक समय में उनका मशीनों के प्रति विरोधी व्यवहार कितना जायज है?’  इसके जवाब में गांधी जी ने कहा कि,’वो मशीनों के नहीं,बल्कि इस बात के विरोधी हैं कि मशीनों की मदद से इंसान ही इंसान का शोषण कर रहा है’। इस बात से चैप्लिन इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस मुद्दे पर ‘टाइम मशीन’ नाम की एक फिल्म बना डाली।

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फिल्म टाइम मशीन का एक दृश्य

वैसे तो चार्ली चैपलिन मूलतः मूक फिल्मों के ही पक्षधर थे पर बाद में उन्होंने ‘द मार्डन टाइम्स’ और  ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ जैसी कई बेहतरीन वाक फिल्मों का भी निर्माण किया ।  द ग्रेट डिक्टेटर उस दौर में बनाई गई थी जब ब्रिटेन के नाजी जर्मनी के साथ अच्छे संबंध थे और एडोल्फ हिटलर अपनी तानाशाही और क्रूरता लिए पूरी दुनिया में चर्चित हो चुका था। उस  फिल्म में चार्ली ने कला को उसका सर्वश्रेष्ठ सौपने की शानादार कोशिश की है।  चार्ली चैप्लिन ने उस फिल्म के माध्यम से दुनिया को एक महान सन्देश दिया है उन्होंने मनुष्यता को बेशकीमती मानते हुए युद्ध मुक्त दुनिया की पक्षधरता की है। द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म के साथ चार्ली चैपलिन की यह स्पीच भी हमारे समाज, सिनेमा और कला के लिए एक महत्वपूर्ण धरोहर की तरह है –

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कला के माध्यम से फासीवाद को चुनौती देने वाले अभिनेता चार्ली चैपलिन

मुझे मांफ़ कीजियेगा…किन्तु मैं कोई सम्राट नहीं बनना चाहता… यह मेरा काम नहीं… मैं किसी पर शासन करना या किसी को जीतना नहीं चाहता… मैं हर किसी की सहायता करना चाहता हूं… हर संभव- यहूदी… जेंटाइल… काले… सफ़ेद …सबकी…!

हम सब एक –दूसरे की सहायता करना चाहते हैं… आदमी ऐसा ही होता है… हम एक –दूसरे की खुशियों के सहारे जीवन चाहते हैं, दुखों के नहीं… हम आपस में नफ़रत या अपमान नहीं चाहते… इस दुनिया में हर किसी के लिये जगह है… यह प्यारी पृथ्वी पर्याप्त संपन्न है और हर किसी को दे सकती है… !

ज़िन्दगी का रास्ता आज़ाद और खूबसूरत हो सकता है… पर हम वो रास्ता भटक गये हैं… लोभ ने मनुष्य की आत्मा को विषैला कर दिया है… दुनिया को नफ़रत की बाड़ से घेर दिया है… हमें तेज़ कदमों से पीड़ा और खून-खराबे के बीच झटक दिया गया है… हमने गति का विकास कर लिया है… लेकिन खुद को बन्द कर लिया है… ! इफ़रात पैदा करने वाली मशीनों ने हमें अनंत इच्छाओं के समन्दर में तिरा दिया है… हमारे ज्ञान ने हमें सनकी, आत्महन्ता बना दिया है…हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम… हम सोचते बहुत ज़्यादा और महसूस बहुत कम करते हैं… मशीनों से ज़्यादा हमें ज़रूरत है इंसानियत की , चतुराई से ज़्यादा ज़रूरत है दया और सज्जनता की… इन गुणों के बिना दुनिया खूंखार हो जायेगी और सबकुछ खो जायेगा… !

हवाई जहाज़ और रेडियो ने हमें और करीब ला दिया है… इन चीज़ों का मूल स्वभाव मनुष्य में अच्छाई लाने के लिये चीख रहा है-सार्वभौमिक बंधुत्व के लिये चीख–हम सबकी एकता के लिये… यहां तक कि इस वक्त हमारी आवाज़ दुनिया के दसियों लाख लोगों तक पहुंच रही है… दसियों लाख हताश पुरुषों,स्त्रियों और बच्चों तक –एक ऐसी व्यवस्था के शिकार लोगों तक जो आदमी को,निरपराध मासूम लोगों को, कैद करने और यातना देने की सबक पढाती है… जो लोग मुझे सुन रहे हैं, मैं उनसे कहूंगा निराश मत हों,पीड़ा का यह दौर जो गुजर रहा है, लोभ की यात्रा है… –उस आदमी की कड़ुवाहट है जो मानवीय उन्नति से घबराता है… इंसान की नफ़रते खत्म हो जायेंगी और तानाशाह मर जायेंगे…. और जिस सत्ता को उन्होंने जनता से छीना है, वो सत्ता जनता को मिल जायेगी…. और जब तक लोग मरते रहेंगे , आज़ादी पुख्ता नहीं हो पायेगी… !

सैनिको…! अपने आप को इन धोखेबाजों के हवाले मत करो, जो तुम्हारा अपमान करते हैं- जो तुम्हें गुलाम बनाते हैं… जो तुम्हारी ज़िन्दगी को संचालित करते हैं… तुम्हें बताते हैं कि क्या करना है… क्या सोचना है…और क्या महसूस करना है…! जो तुम्हारी कवायत करवाते हैं… तुम्हें खिलाते हैं…जानवरों सा व्यवहार करते हैं…और अपनी तोपों का चारा बनाते हैं… खुद को इन अप्राकृतिक लोगों के हवाले मत करो…. मशीनी दिमाग और मशीनी दिलों वाले मशीनी आदमियों के ….! तुम इंसान हो… तुम्हारे दिलों में इंसानियत है… घृणा मत करो…करनी ही है तो बिना प्रेम वाली नफ़रत से करो- बिना प्रेम की , अनैसर्गिक…!

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महात्मा गांधी के साथ चार्ली चैप्लिन

सैनिको… ! गुलामी के लिये मत लड़ो…आज़ादी के लिये लड़ो… सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में लिखा है कि ईश्वर का राज्य आदमी के भीतर होता है….किसी एक आदमी या किसी एक समुदाय के आदमी के भीतर नहीं,बल्कि हर आदमी के भीतर ! तुममें—आप सब लोगों – जनता के पास ताकत है, इस ज़िन्दगी को आज़ाद और खूबसूरत बनाने की …इस दुनिया को एक अद्भुत साहस में तब्दील करने की… तो लोकतंत्र के नाम पर हम उस ताकत का इस्तेमाल करें…आओ हम सब एक हो जायें…हम एक नई दुनिया के लिये संघर्ष करें… एक ऐसी सभ्य दुनिया …जो हर आदमी को काम करने का मौका दे…तरुणों को भविष्य और बुजुर्गों को सुरक्षा दे… !

इन्हीं चीज़ों का वादा करके इन घोखेबाजों ने सत्ता हथिया ली… लेकिन वे झूठे हैं… वे अपना वादा पूरा नहीं करते …वे कभी नहीं करेंगे … तानाशाह खुद को आज़ाद कर लेते हैं… लेकिन जनता को गुलाम बना देते हैं… हम दुनिया को आज़ाद करने की लड़ाई लड़ें… राष्ट्रीय बाड़ों को हटा देने की …लोभ… नफ़रत व असहिष्णुता को उखाड़ फ़ेंकने की लड़ाई… एक ऐसी दुनिया के लिये लड़े …जहां विज्ञान और उन्नति हम सब के लिये खुशियां लेकर आये… सैनिकों…! लोकतंत्र के नाम पर हम सब एक हो जायें…!

हाना, क्या तुम मुझे सुन सकती हो…? तुम जहां कहीं भी हो, देखो यहां… देखो यहां हाना…! ये बादल छंट रहे हैं… पौ फ़ट रही है…हम अन्धेरे से निकल कर उजाले में आ रहे हैं… हम एक नई दुनिया में आ रहे हैं… एक ज्यादा रहमदिल दुनिया में… जहां आदमी अपने लालच,घृणा और नृशंसता से ऊपर उठेगा, देखो हाना, मनुष्य की आत्मा को पंख मिल गये हैं… और अंतत: उसने उड़ने की शुरुआत कर दी है… वह इन्द्रधनुष में उड़ रहा है… उम्मीदों की रौशनी में – देखो हाना देखो….!”

चार्ली चैपलिन जिन्हें पूरे सम्मान के साथ “प्रतिरोध का मसख़रा” कहा जा सकता है । उन्होंने अभिनय करने के साथ निर्देशक, संगीतकार, लेखक और निर्माता के रूप में सिनेमा को जीवन के लगभग ७५  साल  दिए और २५ दिसम्बर १९७७ को इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। आज भी चार्ली का सिनेमा किसी स्कूल की तरह आने वाली पीढी को कला की उपादेयता से परिचित कराता है।

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