बुद्ध के मार्ग पर चलकर ही मानव जाति का विकास हो सकता है- भन्ते श्रेयस्कर
वाराणसी। भारतीय बौद्धमहासभा वाराणसी की ओर से आज बनकट में बौद्ध संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में मौजूद वक्ताओं ने भगवान बुद्ध के विचारों को आत्मसात करते हुए उस पर चलने की सलाह दी ।
कार्यक्रम में बोलते हुए भन्ते श्रेयस्कर ने कहा कि बुद्ध के मार्ग पर चलकर ही मानव जाति का विकास हो सकता है। भगवान बुद्ध का प्रभाव भारत, श्रीलंका,नेपाल, अफगानिस्तान ही नहीं यूरोप तक फैला हुआ था। इस बात का प्रमाण अशोक के शिलालेखोें में देखने और पढने को मिल जाएगा कि यूनान में बीमारी की स्थिति में वहां पर चिकित्सा उपलब्ध करावाई। श्रेयस्कर ने सवाल पूछने वाले अंदाज में कहा ये सारे, अनुयायी कहां गए ? शायद बाबा भीमराव अम्बेडकर इस बात को अच्छी तरह समझते थे। तभी तो बाबा साहब अम्बेडकर जी ने कहा कि यहां के जो मूल निवासी है वे नागवंशी कौन हैं। भन्ते श्रेयस्कर ने कहा समाज में जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्ति का जब नैतिक आचरण गिरता है तो समाज का आचरण गिरता है । जब समाज का आचरण गिरता है तो देश पतन की ओर जाता है । इसलिए आज हमारे समाज को बुद्ध के विचारों की बहुत जरूरत है।
मुख्य अतिथि चंद्रबोधि पाटिल ने बताया कि बाबा साहब ने संविधान लिखने के साथ बड़े पैमाने पर लोगों को दीक्षा दी आऊर धम्मा का प्रचार प्रसार किया। उन्होनें कहा कि बाबा साहब के आंदोलन को भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में लोग जानें इसलिए हम लोगों ने महाबोधि की एडवायाजरी में न्यूजीलैंड, कनाडा, जर्मनी और इंग्लैंड के लोगों को भी शामिल किया है।
शोभनाथ प्रधानाचार्य ने कहा कि बुद्ध के रास्ते पर चलकर ही विश्व को बदला जा सकता है। शांति का संदेश बुद्ध ने ही दिया। बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर जी भी भगवान बुद्ध से बहुत प्रभावित थे। बाबा साहब के संविधान के आर्टिकिल 51 खण्ड ए में लिखा है कि वैज्ञानिक शिक्षा ही संसार को बदल सकती है । आज लोग देखेंगे भी कि जिन देशों ने वैज्ञानिक शिक्षा को अपनाया आज वे हमारे मुकाबले बहुत आगे हैं जबकि हम अंधविश्वास और अशिक्षा के कारण बहुत दूर रह गए । इसलिए हमें शिक्षित होने की बहुत जरूरत है। शोभनाथ प्रधानाचार्य ने आगे बताया कि भगवान बुद्ध का बचपन का नाम सुकिति था। जब वे घर से शांति की खोज के लिए निकले तो उनका नाम सिद्धार्थ पड़ा। इन्होंने आगे कहा कि छठ पर्व जो मनाया जाता है उस पर भी बौद्ध धर्म का ही प्रभाव है। यह पर्व बिना ब्राम्हणों के किया जाता है जो किसी न किसी रूप में बौद्ध धर्म की ही देन है। इसलिए मैं आप सबसे फिर कह रहा हूं कि शिक्षित बनिए और अपने अन्दर वैज्ञानिक सोच पैदा करिए नहीं तो हमेशा पिछड़े रहेंगे और आगे नहीं बढ़ पायेंगे।
कार्यक्रम में बोलते हुए वाराणसी के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रेम प्रकाश यादव ने कहा, इस देश में दो तरह की विचारधाराएं चल रही हैं। एक भगवान बुद्ध की विचारधारा है जो तर्क एवं वैज्ञानिक सोच पर आधारित है तो दूसरी ओर मनुवादी विचारधारा जो अंधविश्वास एवं पाखंड पर आधारित है। हमारी देश की जो मनुवादी विचारधारा थी उसने सदैव हमारे समाज के लोगों का शोषण किया और समाज पर अपना वर्चस्व बनाए रखा। हमें शिक्षा से दूर रखा । 1920 में प्रिबी काउंसिल ने एक आदेश दिया कि बा्रम्हण न्यायप्रिय नहीं होते हैं इसलिए वे अदालतों में न्यायाधीश नहीं होंगे। इसी कारण 1920 से 1950 तक देश की अदालतों में ब्राम्हण न्यायाधीश नहीं थे लेकिन आजादी के बाद से देश की अदालतों में फिर से इन्हीं का बोलबाला हो गया। वर्तमान सरकार हमारी नौकरियों पर डाका डालने का काम कर रही है। दलितों पिछड़ों का तमाम प्रकार से शोषण हो रहा है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि चन्द्रबोधि पाटिल, विशिष्ट अतिथि शंकर राव ढ़ेगरे और एस.बी भास्कर रहे। अन्य अतिथियों में रामचन्द्र बौद्ध और अनिल कुमार गौतम, रहे। कार्यक्रम का संचालन भारतीय बौद्ध महासभा के मण्डल अध्यक्ष अवधेश कुमार ने किया ।
कार्यक्रम में विजय बहादुर यादव(राष्ट्रीय अध्यक्ष पशु पालक संघ ) ,अजय कुमार, राधेश्याम कुमार पटेल, शिवपूजन,श्रवण कुमार,दिनेश कुमार, अरविन्द कुमार,राजेश कुमार,सुक्खू, रामलखन सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।
डॉ राहुल यादव न्याय तक के सह संपादक हैं। पिछले 20 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं । दलित, पिछड़े और वंचित समाज की आवाज को मुख्यधारा में शामिल कराने के लिए, पत्रकारिता के माध्यम से सतत सक्रिय रहे हैं।