राजेंद्र शर्मा के तीन व्यंग्य : दाग अच्छे हैं…!
1. सनातनी घूस, घूस न भवति!
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं, मोदी जी के ‘एक रहोगे तो सेफ रहोगे’ के सूत्र में बंटवारा खोजने वाले। अब तो महाराष्ट्र में जनता ने भी मोदी जी के सूत्र को फॉलो कर के दिखा दिया है। देखा नहीं कैसे सेफ रहने के लिए ही करीब-करीब सारी सीटें मोदी जी की पार्टी की झोली में डाल दी हैं। सीटें बंट जातीं, तो योगी जी का सूत्र लागू नहीं हो जाता — बंटोगे तो कटोगे। अब भैया बंटने का इतना शौक तो किसी को नहीं है कि उसके चक्कर में कटने को तैयार हो जाए। बस एक जगह आ गया सारा वोट। क्या फर्क पड़ता है कि सारा वोट एक जगह कैसे आया। छल से आया, बल से आया या दिल बदल से आया। मुराद तो एक रहने से है। कटने से बचने से है। सेफ होने से है। हो गए सब सेठ सेफ। हो गयी उनकी धारावी सेफ। राष्ट्र सेठ सेफ, तो राष्ट्र से लेकर प्रथम सेवक तक सब सेफ।
पर हिंदुस्तान, बल्कि भारत में तो मोदी जी के सूत्र पर चलकर, राष्ट्र और राष्ट्र सेठ, सब सेफ हैं, मगर बाकी दुनिया में नहीं। बाकी दुनिया अब भी मोदी जी के सूत्र को पूरी तरह से फॉलो करने को तैयार नहीं है। सच पूछिए तो मोदी जी इसीलिए तो भारत को एक बार फिर विश्व गुरु के आसन पर आरूढ़ करने में जुटे रहते हैं। एक बार अगर बाकी दुनिया ने विश्व गुरु मान लिया, फिर विश्व गुरु के सूत्रों को भी फॉलो करने लगेगी। लेकिन, लगता है वह मंजिल अभी दूर है, पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की तरह। बल्कि अमरीका में तो उल्टी ही गंगा बह रही है। अपने राष्ट्र सेठ चले थे विश्व सेठ बनने, रह गए भ्रष्टाचार के मुकद्दमे के आरोपी बनकर। विडंबना यह है कि भ्रष्टाचार का अरोपी बनकर भी अगले ने मोदी जी से याराना निभा दिया और उनके सूत्र के पक्ष में, एक और साक्ष्य जुटा दिया।
पता है, हमारे राष्ट्र सेठ के खिलाफ अमरीकियों को साक्ष्य कहां से मिले? जाहिर है कि मोदी जी के राज ने तो नहीं दिए। वो तो हमेशा से उसके बचाव में एक रहे, तभी तो राष्ट्र सेठ अब तक सब से सेफ रहे। देश में सारे आरोपों, जांचों से सेफ रहे। सेबी-वेबी से भी सेफ रहे। हिंडनबर्ग के हमलों से भी सेफ रहे। विपक्ष के हल्ले-गुल्ले से भी सेफ रहे। कोर्ट-वोर्ट के शिकंजे से भी सेफ रहे। जब तक मोदी जी के पीछे एक रहे, पक्की तरह से सेफ रहे। पर परदेस में एकता में जरा सी दरार पड़ी और सेठजी की गर्दन पर रस्सी कसी।
हुआ यह कि अगले ने देश में सोलर बिजली की बिक्री का पचासों हजार करोड़ रुपये का धंधा जमाया। और इस धंधे के लिए अमरीकी बाजारों से दसियों हजार करोड़ रुपये का कर्जा उठाया। पर बीच में एक दिक्कत आ गयी। अगले की बिजली ज्यादा ही महंगी पड़ रही थी। मोदी जी ने अपनी पार्टी की सरकारों से तो एक कर के सेफ करा दिया, पर दूसरी पार्टियों की सरकारों ने धंधे को अनसेफ कर दिया। बेचारे सेठ जी को इस हिचक को मिटाने के लिए 2,212 करोड़ रुपये का मक्खन लगाना पड़ा। यहां सब सेफ था, पर अमरीकियों को किसी तरह इसकी खबर लग गयी। बस अगलों ने धंधे के लिए घूसखोरी का शोर मचा दिया और अपने यहां निवेशकों के साथ धोखाधड़ी का मामला बना दिया।
बात सिर्फ मामले-आरोप-वारोप तक ही रहती, तो फिर भी गनीमत थी, वहां की जांच एजेंसियां कूद पड़ीं। सेठ जी के भतीजे और कंपनी के मंझले अफसरों से वहां की जांच एजेंसियों ने पूछताछ कर डाली। फोन-वोन जब्त कर लिए, तरह-तरह की जानकारियां निकलवा लीं। सेठ जी के अपने ही एक नहीं रह पाए। जब एक ही नहीं रहे, तो सेफ कैसे रहते! यह दूसरी बात है कि सेठ जी भले ही अनसेफ हो गए, पर मोदी जी का सूत्र सही साबित हो गया। अमरीका में सेठ जी के अपने एक रहते, तो सेठ जी कैसे अनसेफ होते। देखा नहीं, देश में कैसे मोदी जी का राज उसके पीछे पूरी तरह से एक है, राष्ट्र सेठ हर तरह से सेफ है।
वैसे विडंबनाएं इस मामले में और भी कई हैं। सबसे बड़ी विडंबना तो यही कि अमरीकी इस मामले में खामखां में फूफा बन रहे हैं। यानी तेली का तेल जले और मशालची की छाती फटे वाला मामला है। सेठ हमारा। सेठ का धंधा हमारे यहां का। बिजली बेचने वाला हमारा। बिजली खरीदने वाला हमारा। पैसा खिलाने वाला हमारा। पैसा खाने वाला भी हमारा। पैसा खिलाया भी गया हमारे यहां। यहां तक कि रिश्वत समेत, महंगी बिजली का बोझ उठाने वाली पब्लिक भी हमारी। फिर भी हमारे राष्ट्र सेठ पर मामला बना दिया अमरीकियों ने और वह भी अमरीकियों के साथ धोखा-धड़ी के इल्जाम में। सुना है, वारंट तक निकाल दिए हैं। और कुछ हो न हो, पूंछ जरूर कट जाएगी।
वैसे एक बात हमारी समझ में नहीं आयी। राष्ट्र सेठ की अमरीका में हिफाजत के लिए मोदी जी कुछ कर क्यों नहीं रहे हैं? यानी देश में जो एक होकर राष्ट्र सेठ को सेफ कर रहे हैं, वह तो खैर कर ही रहे हैं, पर अमरीका में सेफ करने के लिए क्या कर रहे हैं? मोदी जी क्या देश की तरफ से संसद से एक सिंपल सा संकल्प पारित नहीं करा सकते हैं — राष्ट्र सेठ की दी घूस को घूस, राष्ट्र सेठ के घूस देने को घूस देना और जाहिर है कि राष्ट्र सेठ से घूस खाने को घूस खाना, नहीं कहते हैं। सनातनी घूस, घूस ना भवित। या सिंपली इतना कि सौर बिजली खपाने के लिए खिलायी रिश्वत, रिश्वत नहीं होती है, वह तो पर्यावरण रक्षा की तपस्या है।
2. ना बंटे ना कटे
कोई कुछ भी कहे, योगी जी की बात सही साबित हो गयी। यूपी में वोट नहीं बंटे। सब के सब एक ही फूल निशान पर पड़े। और वोट नहीं बंटे, तो योगी जी के कब्जे से सीटें क्यों कटतीं? सीटें कटना तो दूर रहा, ना बंटने से कुंदरकी जैसे चमत्कार हो गए। वोट किसी का और सीट किसी की? जो योगी जी के ‘बंटोगे तो कटोगे’ को मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक नारा बताते हैं, क्या उनके पास कुंदरकी चमत्कार का कोई जवाब है? योगी जी का नारा अगर सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ होता, तो क्या कुंदरकी चमत्कार हो सकता था। सिर्फ हिंदुओं के नहीं बंटने से तो कुंदरकी चमत्कार हो नहीं सकता था। कुंदरकी में, जहां मुसलमानों का वोट 60 फीसद से ज्यादा है, सिर्फ हिंदुओं के नहीं बंटने से तो ऐसा चमत्कार हो नहीं सकता था। यह दूसरी बात है कि योगी जी की पार्टी के उम्मीदवार के एक लाख से ज्यादा वोट से जीतने का चमत्कार सिर्फ मुसलमानों के वोट बंटने से भी नहीं हो सकता था। माना कि मुसलमानों के वोट बंटे और समाजवादी वालों के वोट कटे, पर इतने से भी कुंदरकी वाला चमत्कार नहीं हो सकता था। कुंदरकी वाला और दूसरी कई जगहों का चमत्कार इसलिए हुआ कि वोट बंटे ही नहीं। जब इकतरफा वोट पड़े, तो योगी जी की लिस्ट से विधायक बनने वालों के नाम कैसे कटते। और अब जब विपक्ष वालों के साथ उपचुनाव में ज्यादा आसन बंटे ही नहीं हैं, तो योगी जी के पत्ते क्यों कटेंगे। योगी जी सेफ हैं, जैसाकि मोदी जी का मंत्र है — वोट इकतरफा पड़े हैं, तो सेफ हैं!
अब प्लीज कोई बाल की खाल मत निकालने लगना कि वोट इकतरफा हुआ कैसे? वोट इकतरफा पड़ा है या जोर-जबर्दस्ती से इकतरफा पड़वाया गया है? सिर्फ पुलिस के डंडों से कुंदरकी के लेवल का चमत्कार संभव नहीं है। उसके लिए मशीन का सहयोग भी जरूरी है। खैर! क्या फर्क पड़ता है कि वोट राजी-राजी इकतरफा पड़ा है, या डंडे से लेकर मशीन तक के सहारे इकतरफा कराया गया है। मकसद तो वोट के एक रहने से है। वोटर एक हों न हों, उनके वोट का एक रहना जरूरी था। बल्कि वोटर तो बंटे रहें, तो ही बेहतर है। वोटर बंटे रहेंगे, तभी तो ‘कटेंगे’ का डर काम करेगा ; पर वोट एक रहने चाहिए। वोट एक रहेंगे, तभी तो योगी जी सेफ चाहेंगे। और हां मोदी जी भी। योगी जी यूपी में सेफ और मोदी जी दिल्ली में सेफ, महाराष्ट्र में कुंदरकी की टक्कर के चमत्कार के जरिए। हमें पता है कि अर्बन नक्सल कहेंगे कि यह तो डैमोक्रेसी नहीं है। यह सिंपल डैमोक्रेसी नहीं है, जैसी डैमोक्रेसी अंगरेजी में पढ़ाई-सिखाई जाती है। यह डैमोक्रेसी की मदर है। सिंपल डैमोक्रेसी बांटती है, इलाकों में, पार्टियों में, वोटरों में । पर मदर तो मदर है, वह अपने बच्चों को बंटते नहीं देख सकती है। बच्चे बंटना चाहेंगे, तब भी उन्हें बंटने नहीं देगी। जरूरत पड़ी तो सख्ती भी दिखाएगी, छड़ी भी चलाएगी, पर बंटने नहीं देगी। डैमोक्रेसी का क्या है, बच्चे सेफ रहने चाहिए। एक रहेेंगे, तभी तो सेफ रहेंगे।
कुंदरकी मॉडल असल में डैमोक्रेसी की मदर के आंचल के तले ही आ सकता है। यह डैमोक्रेसी की उच्चतर अवस्था है, जहां सारे वोट एक जगह डलवा दिए जाते हैं। पर मदर जी की डेमोक्रेसी की उच्चतम अवस्था वह है, जहां चुनाव की, वोट की, किसी की जरूरत ही नहीं रह जाए। सब की तरफ से सिर्फ और सिर्फ एक राय ही आने दी जाए। वोटर सौ टका एक रहेंगे, तभी तो योगी जी, मोदी जी, युगों-युगों तक सेफ रहेगे।
3. दाग अच्छे हैं…!
ये अमरीकी बिल्कुल ही पगला गए हैं क्या? बताइए, कह रहे हैं कि हमारे गौतम भाई पर मुकद्दमा चलाएंगे। और मुकद्दमा काहे का? मुकद्दमा, घूसखोरी और धोखाधड़ी का! पूछिए, घूस किस को दी है? कहते हैं कि घूस भारतीय अधिकारियों को दी है। घूस कहां दी है? घूस भारत में दी है। घूस क्या डालर में दी है? नहीं, घूस तो रुपयों में दी है। घूस क्या अमरीका में ठेके के लिए दी है? नहीं, घूस भारत में ठेके के लिए दी है। यानी घूस लेने वाला भारत का, घूस देने वाला भारत का, घूस के लेन-देन का ठेका भारत का, घूस भारत में ली और दी गयी, घूस भारतीय रुपयों में ली और दी गयी; और अपराध हो गया अमरीका में? यह सरासर नाइंसाफी नहीं, तो और क्या है?
हम ये नहीं कह रहे हैं कि भारत में घूस देना-लेना अपराध नहीं है। है जी, जरूर अपराध है। बड्डा वाला अपराध है। सत्तर साल जितना बड़ा नहीं था, अब उससे बड़ा अपराध है। मोदी जी की पॉलिसी जीरो टॉलरेंस की है। सारी दुनिया को पहले ही बता दिया है — ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा! पर इसका मतलब यह थोड़े ही है कि दूसरे किसी के कहने भर से हम घूस लेने-देने को अपराध मानने लग जाएंगे। अमरीका कहेगा, तब भी नहीं। यारी-दोस्ती की बात दूसरी है। तू-तड़ाक अपनी जगह है। पर मोदी जी, अमरीका से दबने वाले थोड़े ही हैं। बिना कहे ही साफ कर देंगे कि अमरीका वाले मानते होंगे अपराध, हम अडानी जी की करनी में कुछ गलत नहीं मानते हैं। बल्कि हम तो कहेंगे कि अमरीका वालों को भी नहीं मानना चाहिए। आखिर, देने वाले ने किसलिए घूस दी है? राज्यों से कोयले वगैरह की बिजली की जगह, सूरज की रौशनी से बनी बिजली खरिदवाने के लिए। यही तो पर्यावरण रक्षा का प्रोग्राम है। जिस घूसखोरी से पर्यावरण की रक्षा होती हो, वह घूसखोरी बांझ ईमानदारी से हजार गुनी अच्छी है। दाग अच्छे हैं…!
और ये दाग चूंकि अच्छे वाले दाग हैं, भारत में अडानी जी की जांच से लेकर गिरफ्तारी तक की मांग करने वाले या तो नासमझ हैं या एंटीनेशनल। और मोदी जी पर अडानी जी को बचाने का इल्जाम लगाने वाले भी। मोदी जी तो अपने राष्ट्र को बचा रहे हैं और अपनी गद्दी को भी। और अपने दागों को भी। दाग अच्छे हैं…!
व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।