इस बार का लोकसभा चुनाव, लोकतंत्र के कलेजे पर करारा प्रहार सिद्ध होगा

इस बार का लोकसभा चुनाव, लोकतंत्र के कलेजे पर करारा प्रहार सिद्ध होगा

 इस तथ्य का शुरूआत में ही उल्लेख कर देना शायद तर्कसंगत ही होगा कि आज के भारत में लगातार  समाज विरोधी नई-नई घटनाएं घट रही हैं। इस हालत में लेखक के सामने एक द्वंद्व पैदा हो गया कि न चाहकर भी अलग-अलग घटनाएं , सांकेतिक रूप से ही सही, किसी भी लेख में परिलक्षित हो जाती हैं। शायद पाठकों को इस लेख में भी ऐसा कुछ एहसास होना मुमकिन है। 

प्लेटो ने क्यों कहा था, लोकतंत्र से ही तानाशाही जन्म लेती है? टीम बीबीसी (1 मार्च 2021) के जरिए आदर्श राठौर ने बताया कि लोकतंत्र की पालक कहे जाने वाले एथेंस के दार्शनिक प्लेटो ने अब से 2400 साल पहले अपनी किताब ‘द रिपब्लिक’ के छठवें अध्याय में जो सवाल उठाया था वो ये है – “क्या ये बेहतर नहीं होगा कि चुनाव के माध्यम से नेता तय करने की जगह राज्य का नेतृत्व करने के लिए किसी अनुभवी व्यक्ति को तलाश किया जाए?” यहाँ यह देखने की बात है कि वर्तमान की दुनिया में लोकतंत्र के मुखिया तानाशाही की प्रवृति के शिकार होते जा रहे हैं। चीन और रूस इस तथ्य के प्रमाण हैं जहाँ ‘एक देश एक मुखिया’ की राजशाही विद्यमान है।

लगता है आज भारत भी इनकी राह पर चलती नजर आ रही है। तानाशाह अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए जनता को गुलाम बनाए रखने के लिए अनेकानेक समाज विरोधी प्रावधान करने का साजिश रचते ही रहते हैं। इस हेतु सबसे बड़ी विडंअबना है कि तानाशाह हमेशा चाहता है,“ जब भी सत्ता हाथ लगे तो सबसे पहले सरकार की धन संपत्ति, राज्यों की जमीन और जंगल पर अपने दो तोन विश्वसनीय धनी लोगों को सौंप दें. 95% जनता को भिखारी बना दें। लोकतंत्र की प्रशासनिक ईकाइयों जैसे देश के मीडिया, तमाम जाँच एजेंसियों, चुनावी व्यवस्था, और तो और न्यायिक संस्थाओं को निष्क्रिय कर दिया जाय और उसके बाद सात जन्मों तक सत्ता हाथ से नहीं जाएगी।

आज की भाजपा सरकार देश में सबकुछ बदल देना चाहती है, वह भी शिक्षा प्रणाली/विषयों के माध्यम से…सड़कों के नाम, इमारतों के नाम यानी कि इतिहास को बदलने की कवायद। पर ये सफल होने वाली कवायद नहीं है।…हिम्मत है तो बदलो…इंडिया गेट का नाम, तोड़ सकते हो तो तोडो…लाल किला, जामा मस्जिद, कुतुब मीनार, पुराना किला, तुगलक की मजार, मीर की मजार, गालिब की मजार, देश का सर्वोच्च भवन..’संसद भवन’, साथ ही राष्ट्रपति भवन जो भारतीय सम्पदा तो है किंतु देन तो मुगलों और अंग्रेजों की ही है।

भारत कुछ अपने द्वारा बनाई गई सम्पदा के नाम तो गिनाए?…भारत के नेताओं ने तो केवल धर्मिक और जातीय दुराव फैलाने के अलावा कभी कुछ किया ही नहीं। यहाँ तक कि गांधीजी द्वारा लिखित किताब ‘स्वराज हिन्द’ न केवल समाज विरोधी है अपितु देश के विकास में एक अवरोधक भी है। शायद भाजपा और गांधी जी के मनसूबों में सामाजिक हितों को साधने का कर्म शामिल ही नहीं है। मीडिया सत्ता की गोदी में बैठकर केवल हिन्दू-मुसलमान करने में लगा है। सत्ता से प्रश्न करने के बदले विपक्ष से सवाल करके अपने दायित्व की इतिश्री कर लेता है। जनता के सरोकार तो आजकल जैसे मीडिया के विषय नहीं रह गए हैं। राम मन्दिर के जिस अंकुर को कांग्रेस ने रोपित किया था भाजपा उसी के पालने पोसने में लगी हुई है। अब जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से राम मन्दिर का निर्माण और किसी चुनावी एजेंडे की तरह मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है तब  भाजपा और नए-नए एजेंडों की तलाश में लग गई दिखती है।

 कोरोना की आगत ने सत्ता को धन जुटाने और जनता को भूखों मरने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। प्रधानमंत्री ने आपदा में जिस अवसर की बात कही थी उसके वास्तविक सरोकार तब सामने आ  रहे हैं जब सुप्रीम कोर्ट के दबाव में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को इलेक्टोरल बॉन्ड की लिस्ट जारी करनी पड़ी है। सरकार नाना प्रकार से केवल और केवल धन जुटाने में लगी है। पी एम केयर फंड आपदा में अवसर का एक बड़ा जाल है पर अब तक उसका जिन बोतल में ही बंद है। ज्ञात रहे कि “प्रधान मंत्री राहत कोष” नामक खाते का पहले से ही प्रावधान है।

Screenshot 2024 03 26 123032

हैरत की बात तो ये है कि “पी एम केयर फंड” को चलाने वाले ट्रष्ट में केवल तीन ही सदस्य हैं…प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और वित्त मंत्री। इस ट्रस्ट में विपक्ष का एक भी सदस्‍य नहीं है। यह तीनों भी पद के रूप में सदस्य नहीं हैं बल्कि एक तरह से यह इन तीन लोगों द्वारा संचालित ट्रस्ट है।  ज्ञात हो कि “प्रधानमंत्री राहत कोष” के संचालन के लिए छ: सदस्य हैं जिनमें तीन सत्ता पक्ष के और तीन विपक्ष के। “प्रधानमंत्री राहत कोष” का कैग द्वारा आडिट किया जा सकता है किंतु “पी एम केयर फंड” का नहीं। “पी एम केयर फंड” के  जमा-खर्च का ब्यौरा देना तो दूर की कौड़ी है और इसे सरकार ने नियम बनाकर आर टी आई की परिधि से बाहर रखा है। जो संविधान संगत नहीं है।

यहाँ इस बात का खुलासा करना शायद विषयांतर पैदा नहीं करेगा कि 2018 से भारत एक ‘चुनावी तानाशाह’ राष्ट्र बना हुआ है।  वी-डेम रिपोर्ट  ‘डेमोक्रेसी विनिंग एंड लूज़िंग एट द बैलट (चुनाव में लोकतंत्र की जीत और हार)’ शीर्षक वाली रिपोर्ट वी-डेम इंस्टिट्यूट की डेमोक्रेसी रिपोर्ट-2024 में कहा गया है कि भारत 2023 में ऐसे शीर्ष 10 देशों में शामिल रहा जहां अपने आप में पूरी तरह से तानाशाही अथवा निरंकुश शासन व्यवस्था है।

आज देश में ताजा मसला इलेक्टोरल बॉन्ड्स का है। विदित हो कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स की वैधता पर सवाल उठाते हुए एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), कॉमन कॉज़ और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत पांच याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। जिस पर  सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार करते हुए स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए मिली धनराशि की जानकारी चुनाव आयोग को देनी पड़ी। ये जानकारी अब चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित की जा चुकी है। इस पर एडीआर के संस्थापक और ट्रस्टी प्रोफ़ेसर जगदीप छोकर कहते हैं, “ये फैसला क़ाबिल-ए तारीफ़ है इसका असर ये होगा कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम बंद हो जाएगी और जो कॉरपोरेट्स की तरफ से राजनीतिक दलों को पैसा दिया जाता था जिसके बारे में आम जनता को कुछ भी पता नहीं होता था, वो बंद हो जाएगा। इस मामले में जो पारदर्शिता इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम ने ख़त्म की थी वो वापस आ जाएगी।” इस जानकारी के सार्वजनिक होने पर ये साफ़ हो जाएगा कि किसने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा और किसे दिया।

स्टेट बैंक ने इस बाबत मामले को लटकाने का भरसक प्रयत्न किया किन्तु जब सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक की बाजुओं को जोर से मरोडा तो स्टेट बैंक ने चुनावी बाण्ड की तमाम जानकारी दिनांक 21 मार्च तक चुनाव आयुक्त को मुहैया कराई। इस स्कीम के तहत जनवरी 2018 और जनवरी 2024 के बीच 16,518 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे गए थे और इसमें से ज़्यादातर राशि राजनीतिक दलों को चुनावी फंडिंग के तौर पर दी गई थी।

 स्टेट बैंक द्वारा उपलब्ध आँकड़ों को जब चुनाव आयोग द्वारा जारी किया गया तो जो आँकड़े प्रकाश में आए, वह बहुत ही चौकाने वाले हैं। प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी को अप्रैल-2019 से जनवरी-2024 तक चुनावी बॉन्ड के ज़रिए ₹6,061 करोड़ का चंदा मिला। इस दौरान टीएमसी को ₹1,610 करोड़,कांग्रेस को ₹1,422 करोड़, बीआरएस को ₹1,215 करोड़ और बीजेडी को ₹776 करोड़ मिले। ‘आप को ₹65 करोड़, जेडीएस को ₹44 करोड़, एसएडी को ₹7 करोड़ और आरजेडी को ₹1करोड़ मिले। रिपोर्ट सामने आई तो पता चला कि इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को मिला है। ऐसे में उठता है कि इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का चुनावी फंडिंग पर क्या असर होगा?

Screenshot 2024 03 16 150121

विगत पर नजर डालें तो आपको याद होगा, मोदी जी भारत को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का वादा करके आय थे। लेकिन हालात ये हो गई है कि देश कर्ज के बोझ तले दबता ही जा रहा है। 67 साल तक 14 प्रधानमंत्रियों ने मिलाकर कुल जितना कर्ज लिया, मोदी सरकार ने उस कुल कर्ज का भी 3 गुना कर्ज लेकर अनोखा रिकॉर्ड बना दिया है। बी बी सी के अनुसार 2014 के बाद देश पर कर्ज तेजी से बढ़ा है। कर्ज का ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है। IMF ने भारत को चेतावनी दी है कि उसका सरकारी कर्ज मध्यम अवधि में उसके सकल घरेलू उत्पाद , यानि कि GDP के 100% से अधिक हो सकता है।

लगता है कि आज के राजनीतिक आचरण को समझने के लिए हमें पीछे मुड़कर देखना होगा। सब जानते हैं कि भारत में सरकार तो भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी की भी बनी थी…बेशक झटके खा-खाकर। किंतु अटल जी ने चुनावी भाषणों में कांग्रेस के कार्यकाल की निन्दा तो जरूर की थी जो चुनावी प्रचार का हिस्सा था किंतु सरकार बनने के बाद वाजपेई जी ने खुले मन से स्वीकार किया कि स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद कांग्रेस के शासनकाल में देश हित में जो भी काम किए, उन्हें भुलाया नहीं जा सकता।..उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए।

किंतु भाजपा के ही मोदी जी के आज के शासन में क्या हो रहा है? हिन्दू को मुसलमान से भिड़ाना/लड़ाना, किसानों के हक में भाषण तो करना,किंतु करना कुछ नहीं, नौकरियां देने की एवज पकौड़े तलने के सुझाव, अतार्किक रूप से अचानक नोटबन्दी लागू करना, देश के सबसे बड़े भ्रष्टाचारी माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी और चौकसी को बा-ईज्जत देश से बाहर चले जाना ही आज की भाजपा सरकार की उपलब्धियां हैं। …कमाल तो ये है जो शार्मनाक है, सब उसकी वकालत कर रहे हैं।

मोदी जी और अमित शाह के तानाशाही रवैये के आगे भाजपा के तमाम शीर्ष नेताओं का नतमस्तक हो जाना, भाजपा के लिए तो अंतिम यात्रा जैसा ही सिद्ध होगा। बेहतर है भाजपा के ये तथाकथित शीर्ष नेता राजनीतिक मैदान से बाहर ही हो जाएं, अन्यथा इनका नाम लेवा तक भी कोई नहीं बचेगा। यह बात मोदी सरकार के आज के आचरण से प्रमाणित होती नजर आ रही है। यह भी कि जसवंत सिन्हा हों, शत्रुघन सिन्हा हों, सिद्धु जी हों…न जाने और भी कितने ही भाजपाई हैं जो मोदी जी और शाह के रवैये से परेशान होकर भाजपा से बाहर निकले गए। अब वो सुविधाभोगी मानसिकता से परे होकर भाजपा का विरोध करने का साहस जुटा पाए हैं। और यही मानसिकता लोकतंत्र के लिए जरूरी भी है।

आज की भाजपा सरकार सब कुछ बदल देना चाहती है। वो ये सिद्ध करना चाहती है कि भारत में सबसे पहले ट्रेन लाने वाली भाजपा है, मोदी जी! की सरकार से पहले इस देश में हवाई जहाज भी नहीं दिखाई देते थे, वो तो मोदी जी के प्रधान सेवक बनने के बाद ही सम्भव हो पाया है…और महत्त्वपूर्ण तो ये है कि नेहरू के बाद केवल मोदी जी ही ऐसे शानो-शौकत वाले प्रधान मंत्री हुए है जो पिछ्ड़ी जाति के होते हुए भी नेहरू से भी बढ़तर शानो-शौकत वाली जिन्दगी जीने वाले भारतीय प्रधान सेवक जाने जाते रहेंगे। कहना अतिशयोक्ति न होगा कि अब तो ये लगने लगा है कि जिस व्यक्ति को अपने घर, अपने परगने, अपने जिले, अपने राज्य, अपने देश के हितों के इतर केवल अपनी और अपनी ही शानो-शौकत बनाए रखने की चिंता हो, तो ऐसा आदमी एक तानाशाह के अलावा कुछ और हो नहीं सकता। जो राजा शानो-शौकत के लिए दिन में चार-पाँच बार लाखों-करोड़ो के लिबास बदलता हो, वह देश का वफादार कैसे हो सकता है? मोदी जी की इस प्रकार हर मौके पर बार-बार नए लिबास बदलने की प्रवृत्ति के चलते माइकल नास्त्रेडाम्स (एक यूरोपियन दार्शनिक) की यह उक्ति याद आती है कि 

यदि किसी भी देश  का शासक अपनी जनता से ज्यादा अपने वस्त्रों पर ध्यान दे तो समझ लीजिए कि उस देश  की बागडोर एक बेहद कमजोर, सनकी और डरे हुए इंसान के हाथों में है।

            अब मैं अपनी बचपन की बात कर रहा हूँ कि जब मैं बचपन के दौर से गुजर रहा था तो गाँवों में होली-दीवाली पर अलग-अलग तरह के केलेंडर अथवा पोस्टर देखने को मिला करते थे…उसमें इंगित होता था कि  जो पर स्त्री गमन करेगा, उसे फांसी पर लटकाया जाएगा, जो अपने माँ-बाप का अपमान करेगा, उसे नर्क प्राप्त होगा, जो गरीबों को सताएगा, उसे पुत्र प्राप्ति नहीं होगी और जो राजा जनता पर अन्याय करेगा, उसका बीज ही नष्ट हो जाएगा।… क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इस प्रकार का डरावनी घोषणाएं केवल और केवल कमजोर वर्गों में  तथाकथित भगवान का डर बनाए रखने के लिए हैं।

ऐसा इसलिए कहा जा सकता है कि मोदीजी इस सब कथनों की परवाह किए बिना जैसे चाहें राजशाही का उपभोग कर रहे हैं। इस माने में, मोदी जी सच्चे ईश्वर विरोधी हैं। उनकी दिनचर्या, कार्यप्रणाली और जुल्मो-सितम भरी तानाशाही इसका प्रमाण है। यहाँ यह भी स्पष्ट होता है कि मोदी जी हिन्दुत्व की इस धारणा को भी नकारते हुए लगते हैं कि जो जैसे अपराध करेगा, उसे वैसा ही दंड मिलेगा। शायद मोदी जी को पुनर्जन्म वाली धारणा में कोई विश्वास नहीं है (…होना भी नहीं चाहिए) । तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी अच्छे-बुरे की परवाह किए बिना कुछ भी करने को तत्पर रहते हैं।

Screenshot 2024 03 26 124219

कहा तो यह भी जाता है कि मोदी जी बेशक तानाशाह बनते हों किंतु वो हैं तो आर एस एस के दम पर ही। वो केवल और केवल आर एस एस के मुखौटे भर हैं। किंतु मोदी की आज की असंवैधानिक गतिविधियों के चलते यह शंका होती है कि अब मोदी जी अपनी ही पैत्रिक संस्था आर एस एस को भी नकारने की मानसिकता से ओतप्रोत हैं।

यहाँ यह बताते चलें कि  वी-डेम (वेराइटीज ऑफ डेमोक्रेसी) इंस्टिट्यूट की डेमोक्रेसी रिपोर्ट-2024 के अनुसार, विभिन्न घटकों में गिरते स्कोर के साथ भारत अब भी एक चुनावी तानाशाही (Electoral Autocracy) वाला देश बना हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2023 में ऐसे शीर्ष 10 देशों में शामिल रहा, जहां अपने आप में पूरी तरह से तानाशाही अथवा निरंकुश शासन व्यवस्था है। आज न केवल केन्द्र में अपितु देश के 20-22 राज्यों में भाजपा का शासन है।…इस पर भाजपा इतरा रही है। भाजपा को याद रखना चाहिए कि इसके मान्यवरों की भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कोई भागीदारी नहीं रही है। सो वो ज्यादा इतराए नहीं। देश का वोटर इतना भी सुसुप्‍त नहीं है कि देर तक किसी को सहन कर पाए।

चलते-चलते बतादूँ कि सरकार की ई. डी. जैसी विभिन्न जांच एजेंसियां अब तक अलग-अलग मामलों में हेमंत सोरेन समेत कई राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को कर चुकी हैं। इनमें तमिलनाडु की पूर्व सीएम जे जयललिता, तमिलनाडु के पूर्व सीएम एम करुणानिधि और बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव शामिल हैं। शिबू सोरेन, चंद्रबाबू नायडू, मधु कोड़ा, ओपी चौटाला और बीएस येदियुरप्पा भी गिरफ्तार हो चुके हैं। अब चुनाव से ठीक पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया मोदी सरकार के इन कारनामों के विषय में, मैं समझता हूँ,, अधिकतर जनता को अच्छी तरह से मालूम है। इस लेख में उन सबका का उल्लेख करना मुझे प्रासंगिक नहीं लग रहा है, किसी और लेख में उनका विस्तार से उल्लेख करने का प्रयास करूँगा

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *