हुआ आचरण धुआँ दीवानी होली में

प्रस्तुत ग़जलें होली के रंगों और उनके अर्थ को अद्वितीय रूप से व्यक्त करती है।
-एक-
धनिया ने क्या रंग जमाया होली में , रंगों का इक गाँव बसाया होली में।
आँखों से छूट रहे शराबी फव्वारे, होंठों ने उन्माद जगाया होली में।
फँसती गई देह की मछली मतिमारी, ज़ुल्फ़ों ने यूँ जाल बिछाया होली में।
सिर पे रखके पाँव निगोड़ी नाच रही, इस तौर लाज का ताज गिराया होली में।
टेसू के रंगों का फागुन हुआ हवा, कड़वाहट का रंग समाया होली में।
-दो-
वासंती ॠतु हुई शराबी होली में, खाकर भाँग सुबह इठलायी होली में। बटन खोल तहजीब नाचती सड़कों पर, हुआ आचरण धुआँ दीवानी होली में । सबके सिर पर राजनीति का रंग चढ़ा, सियासत ने यूँ धाक जमायी होली में । आदर्शवादिता और सभ्यता मानव की, सिर पे धरके पाँव नाचती होली में । धनवानों की होली बेशक होली है, भूखों ने पर खाक उड़ायी होली में । प्रेमचन्द की धनिया बैठी सिसक रही,जैसे - तैसे लाज बचायी होली में ।

वरिष्ठ कवि/लेखक/आलोचक तेजपाल सिंह तेज एक बैंकर रहे हैं। वे साहित्यिक क्षेत्र में एक प्रमुख लेखक, कवि और ग़ज़लकार के रूप ख्याति लब्ध हैं। उनके जीवन में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिन्होंने उनको जीना सिखाया। उनके जीवन में अनेक ऐसे यादगार पल थे, जिनको शब्द देने का उनका ये एक अनूठा प्रयास है। उन्होंने एक दलित के रूप में समाज में व्याप्त गैर-बराबरी और भेदभाव को भी महसूस किया और उसे अपने साहित्य में भी उकेरा है। वह अपनी प्रोफेशनल मान्यताओं और सामाजिक दायित्व के प्रति हमेशा सजग रहे हैं। इस लेख में उन्होंने अपने जीवन के कुछ उन खट्टे-मीठे अनुभवों का उल्लेख किया है, जो अलग-अलग समय की अलग-अलग घटनाओं पर आधारित हैं। अब तक उनकी विविध विधाओं में लगभग तीन दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी अकादमी (दिल्ली) द्वारा बाल साहित्य पुरस्कार (1995-96) तथा साहित्यकार सम्मान (2006-2007) से भी आप सम्मानित किए जा चुके हैं। अगस्त 2009 में भारतीय स्टेट बैंक से उपप्रबंधक पद से सेवा निवृत्त होकर आजकल स्वतंत्र लेखन में रत हैं।