हुआ आचरण धुआँ दीवानी होली में

हुआ आचरण धुआँ दीवानी होली में

प्रस्तुत ग़जलें होली के रंगों और उनके अर्थ को अद्वितीय रूप से व्यक्त करती है।

                        -एक-

धनिया ने क्या रंग जमाया होली में , रंगों का इक गाँव बसाया होली में।

आँखों से छूट रहे शराबी फव्वारे, होंठों ने उन्माद जगाया होली में।
फँसती गई देह की मछली मतिमारी, ज़ुल्फ़ों ने यूँ जाल बिछाया होली में।

सिर पे रखके पाँव निगोड़ी नाच रही, इस तौर लाज का ताज गिराया होली में।
टेसू के रंगों का फागुन हुआ हवा, कड़वाहट का रंग समाया होली में।

        

                        -दो-

वासंती ॠतु हुई शराबी होली में, खाकर भाँग सुबह इठलायी होली में।

बटन खोल तहजीब नाचती सड़कों पर, हुआ आचरण धुआँ दीवानी होली में ।

सबके सिर पर राजनीति का रंग चढ़ा, सियासत ने यूँ धाक जमायी होली में ।

आदर्शवादिता और सभ्यता मानव की, सिर पे धरके पाँव नाचती होली में ।

धनवानों की होली बेशक होली है, भूखों ने पर खाक उड़ायी होली में ।
प्रेमचन्द की धनिया बैठी सिसक रही,जैसे - तैसे लाज बचायी होली में । 

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