सामाजिक न्याय के लिए हमेशा याद किए जाएंगे छत्रपति शाहू जी महराज
आदर्श यादव
आज शाहू जी महाराज जी कि 151 वीं जयंती है। आज देश का पूरा शोषित, वंचित समाज उन्हे याद कर रहा है, याद करना भी चाहिए क्योंकि शाहू जी महराज ही उन प्रारम्भिक लोगों में से थे जिन्होंने सामाजिक न्याय के लिए बुनियादी कदम उठाए और अपने सक्रिय जीवन के दौरान ही न्याय को धरातल पर उतारा।
आज जब भी आरक्षण के मुद्दे पर बहस होती है तब आरक्षण के समर्थक कहते हैं कि जब तक जातिवाद खत्म नहीं होगा तब तक आरक्षण जरूरी है। वहीं विपक्ष में बोल रहे लोगों का तर्क होता है कि अब इसकी जरूरत नहीं हैं और जातिवाद खत्म हो चुका है। लेकिन लोग भूल जाते हैं कि आरक्षण का ध्येय जातिवाद (छुआछूत) से ज्यादा भागीदारी-हिस्सेदारी से है। कार्यक्षेत्र से लेकर शासन तक सभी को समतामूलक अवसर प्रदान करना लक्ष्य हैं। इस बात को समझने के लिए हमें भारतीय इतिहास में पहली बार सरकारी नौकरीयों में आरक्षण व्यवस्था लागू करने वाले महान नायक छत्रपती शाहू जी महराज को जानना होगा।
शाहू जी महाराज का जन्म कोल्हापुर जिले के कागल गाँव के घाटगे शाही मराठा परिवार में 26 जून, 1874 में जयश्रीराव और राधाबाई के रूप में यशवन्तराव घाटगे के रूप में हुआ था। जयसिंहराव घाटगे गाँव के प्रमुख थे, जबकि उनकी पत्नी राधाभाई मुधोल के शाही परिवार से सम्मानित थीं। नौजवान यशवन्तराव (शाहू जी) जब केवल तीन साल के थे तभी अपनी माँ को खो दिया। उन्हें कोल्हापुर की रियासत के राजा शिवाजी चतुर्थ की विधवा रानी आनन्दबाई ने गोद ले लिया। राजकुमार कॉलेज, राजकोट में शाहू जी की औपचारिक शिक्षा पूरी हुई और भारतीय सिविल सेवा के प्रतिनिधि सर स्टुअर्ट फ्रेज़र से उन्होंने प्रशासनिक मामलों के सबक लिए। 1894 में 20 वर्ष कि उम्र में उनका राज्याभिषेक हुआ।
शाहू जी महाराज ने शासन संभाला तो देखा कि शासन व व्यवस्था के पदों पर ब्राह्मणों कि बहुलता एक सामाजिक भेदभाव को जन्म दे रही है, उन्होंने ध्यान दिया कि वो एक बड़ी जनसंख्या को व्यवस्था का हिस्सा बनाए बिना शासन कर रहे है। कोल्हापूर के शासन व्यवस्था के 71 पदों में 60 पर ब्राह्मणों का कब्जा था वहीं लिपिक के 500 पदों में से मात्र 10 पर गैर-ब्राह्मण कार्यरत थे।
शाहू जी महराज ये देखकर चिंतित हुए कि इतनी कम जनसंख्या वाले वर्ग का लगभग व्यवस्था पर एकाधिकार था। उन्होंने इस स्थिति को पलट देने पर जोर दिया। इस समस्या के इलाज के रूप में आरक्षण व्यवस्था का जन्म हुआ। 26 जुलाई, 1902 को कोल्हापूर रियासत में शिक्षा व नौकरीयों में पिछड़ों व दलितों के लिए 50% फीसदी आरक्षण का प्रावधान लागू कर दिया गया। ये कदम ऐतिहासिक था, पहली बार ऐसा हुआ कि पिछड़ों, दलितों और कमेरा जातियों से आने वाले मेहनती लोग अब कानून के संरक्षण में व्यवस्था व शासन के पदों पर काम करने लगे। ये ऐतिहासिक इस लिए भी था क्योंकि अब तक सामाजिक न्याय के लिए कोई विधिवत कानून नहीं बना था। ये कानून बना भी और धरातल पर लागू भी हुआ।
शाहू जी महराज के योगदान कानून बनाने तक सीमित नहीं रहे वो जानते थे कि जब तक शिक्षा व स्वास्थ्य की ठीक व्यवस्था पिछड़े और दलित समाज तक नहीं पहुंचेगी तब तक वो इस आरक्षण का भी लाभ नहीं ले पाएंगे। राजर्षि शाहू महाराज के सक्रिय जीवन का सबसे बड़ा हिस्सा उनके शैक्षिक सुधारों से भरा है। उन्होंने कोल्हापुर में जातिवार छात्रावास खोले ताकि सभी जातियों के लड़के-लड़कियों को शिक्षा मिल सके। 1901 में उन्होंने विक्टोरिया मराठा बोर्डिंग की स्थापना की। 1906 में, उन्होंने मुसलमानों की शिक्षा के लिए एक शैक्षणिक संस्थान, किंग एडवर्ड मोहम्मडन एजुकेशन सोसाइटी भी शुरू की और इसके अध्यक्ष बने। 1908 में उन्होंने अछूत समझी जाने वाली जाति के छात्रों के लिए एक छात्रावास की स्थापना की। इस प्रकार कोल्हापुर में अनेक जाति आधारित संस्थाएँ स्थापित की गईं। उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की फीस माफ करने का फैसला किया था। शाहू महाराज ने पिछड़ी जाति के विद्यार्थियों के लिए भी फीस माफ़ करने का निर्णय लागू किया था। उन्होंने पाटिल समाज को शिक्षित करने के लिए दिल्ली दरबार मेमोरियल पाटिल स्कूल की स्थापना की। वर्ष 1912 में धार्मिक अनुष्ठानों का प्रशिक्षण देने के लिए सत्यशोधक विद्यालय की शुरुआत की गई। इसके साथ ही उन्होंने देश के कई संस्थानों, हॉस्टलों, बच्चों को मदद और दान दिया था।
इसके अलावा उन्हे पता था कि इतनी बड़ी जनसंख्या को मुख्यधारा में लाने के लिए रोजगार संबंधित बड़े बदलाव करने पड़ेंगे। रोजगार सृजन के लिए शाहू छत्रपति कताई और बुनाई मिल की स्थापना, शाहूपुरी बाजार की स्थापना, गुड़ बाजार की स्थापना, किसानों की सहकारी समितियों की स्थापना, किसानों को ऋण प्रदान करना जैसी गतिविधियों को उन्होंने अपनी संस्था में लागू किया और उन्हें बेहद सफल बनाया। राजर्षि ने कृषि, उद्योग एवं सहकारिता के क्षेत्र में नये प्रयोग किये। उन्होंने कृषि को आधुनिक बनाने के लिए अनुसंधान का समर्थन किया, नकदी फसलों और प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाने के लिए ‘किंग एडवर्ड एग्रीकल्चरल इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की। उस समय पानी की महत्ता को देखते हुए राजाओं ने राधानगरी नामक बांध का निर्माण कराया ताकि भविष्य में रैयतों को सूखे का सामना न करना पड़े।
शाहू जी महराज का दलितों पिछड़ों के नायक डा. भीमराव अंबेडकर से भी सुखद संबंध रहा। महाराजा युवा अंबेडकर की बुद्धिमत्ता और अस्पृश्यता के बारे में उनके विचारों से बहुत प्रभावित हुए। 1917-1921 के दौरान दोनों ने कई बार मुलाकात की और चयनित लोगों को “जाति-आधारित आरक्षण” प्रदान करके जातिगत अलगाव के नकारात्मक पहलुओं को खत्म करने के संभावित तरीकों पर चर्चा की। उन्होंने 21-22 मार्च 1920 के दौरान अछूतों की बेहतरी के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया और शाहू ने अंबेडकर को अध्यक्ष बनाया क्योंकि उनका मानना था कि अंबेडकर ही वह नेता हैं जो समाज के अलग-थलग वर्गों के सुधार के लिए काम करेंगे। उन्होंने अंबेडकर को 2,500 रुपये का दान भी दिया, जब बाद में 31 जनवरी 1921 को उन्होंने अपना समाचार पत्र ‘मूकनायक’ शुरू किया, और बाद में उसी उद्देश्य के लिए और अधिक योगदान दिया। उनका साथ 1922 में शाहू की मृत्यु तक चला।
सामाजिक न्याय के बदलाव की दिशा में उनका अविस्मरणीय योगदान हमेशा याद किया जाएगा। सामाजिक न्याय के इस नायक की जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि।
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