लंबे समय बाद ज्यादा लोकतान्त्रिक दिखा सदन
पहले ही दिन खूब चला अखिलेश यादव का तीर, चुभा भी नहीं और टीस भी दे गया
नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी ने आज सदन में एक नए राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। सत्ता हासिल न कर पाने की उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखी। बल्कि एक दिन पूर्व जिस आत्मविश्वास के साथ उन्होंने सांसद के रूप में शपथ ली थी नेता प्रतिपक्ष के रूप में वह आत्मविश्वास औटर सघन दिखा। स्पीकर पद को बिना प्रतिरोध के सत्ता को ने देना यह बताने के लिए काफी था कि अगले पाँच साल सत्ता को सब कुछ बहुत आसानी से हासिल होने वाला नहीं है। राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बीच इस लोकसभा चुनाव में जिस तरह का साझा पनपा है वह सदन में भी साफ दिखा। राहुल गांधी और अखिलेश यादव की युगलबंदी कहीं न कहीं अगले पाँच साल तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सदन में किसी दुःस्वपन की तरह परेशान करती रहेगी
सदन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ओम बिरला को लोकसभा अध्यक्ष के रूप में फिर से चुने जाने पर बधाई दी। अपने भाषण में राहुल गांधी ने कहा कि मैं आपको दूसरी बार निर्वाचित होने के लिए बधाई देना चाहता हूं। मैं आपको पूरे विपक्ष और इंडिया गठबंधन की ओर से बधाई देना चाहता हूं। यह सदन भारत के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है और आप उस आवाज के अंतिम निर्णायक हैं।
उन्होंने आगे कहा कि सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है लेकिन विपक्ष भी भारत के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है और इस बार विपक्ष ने पिछली बार की तुलना में भारतीय लोगों की आवाज का काफी अधिक प्रतिनिधित्व किया है। विपक्ष आपके काम करने में आपकी सहायता करना चाहेगा। हम चाहते हैं कि सदन अक्सर और अच्छी तरह से काम करे। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सहयोग विश्वास के आधार पर हो। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि विपक्ष की आवाज को इस सदन में प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जाए। सवाल ये नहीं है कि सदन कितनी सफलतापूर्वक चलता है, बल्कि सवाल ये है कि भारत की कितनी आवाजें यहां सुनी जाएंगी। अगर आप विपक्ष की आवाज को खामोश करके सदन को चलाते हैं तो यह अलोकतांत्रिक होगा। देश की जनता उम्मीद करती है कि विपक्ष संविधान की रक्षा करे। हमें भरोसा है कि विपक्ष को जनता की आवाज उठाने की इजाजत देकर आप संविधान की रक्षा का धर्म निभाएंगे।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी सदन में नेता प्रतिपक्ष के रूप में होंगे। यह पद उन्हें कई तरह के अधिकार देता है साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी राहुल गांधी अब तमाम मोर्चों पर चुनौती के रूप में मौजूद रहेंगे। नरेंद्र मोदी के पिछले दस साल इस मामले में निःसंदेह अच्छे थे कि उन्हें कभी नेता प्रतिपक्ष के साथ काम नहीं करना पड़ा। इस बार प्रधानमंत्री को बहुत से फैसलों के लिए राहुल गांधी की सहमति का इंतजार करना पड़ेगा।
राहुल गांधी के बाद सदन में तीसरे सबसे बड़े नेता के रूप में अखिलेश यादव ने भाषण दिया। इस संक्षिप्त भाषण से अखिलेश यादव ने दिखा दिया कि अब वह केंद्र में एक गंभीर राजनीतिक पारी के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
अखिलेश यादव का यह भाषण सुनते हुए बरबस एक ठुमरी याद आ रही थी ‘फुलगेंदवा नाही मारो घनश्याम’। अखिलेश सदन में आज कुछ-कुछ घनश्याम ही हुए थे, धीमी मुस्कुराहट के साथ जहां वह दुबारा स्पीकर चुने गए ओम बिरला को शुभकामना दे रहे थे वहीं कटाक्ष भी कर रहे थे। अखिलेश ने कहा कि मैं चाहता हूँ की सभापति का आसान बहुत ऊंचा हो। उनका मन्तव्य सीधे तौर पर पद की गरिमा से था। उन्होंने यह भी कहा कि इस बार सदन में ऐसा न हो कि सदस्यों को निलंबित किया जाए। उन्होंने मधुर अंदाज में तीखी बात कही कि सदन आपके इशारे पर चले पर इसका उल्टा ना हो। अखिलेश यादव अपनी बातों में रूपक का प्रयोग पहले भी करत रहे हैं पर आज सदन में उन्होंने जिस तरह से प्रतीकों का सहारा लेकर अपनी बात कही है वह सत्ता और स्पीकर दोनों को हर समय यह अहसास कराती रहेगी कि कुछ भी अब आवेग में करना सत्ता के लिए ठीक नहीं होगा।
इस बार सदन में प्रधानमंत्री के लिए इन दोनों युवाओं के सामने कैमरा अटेन्शन हाशिल करना भी किसी चुनौती से काम नहीं होगा। इस सबसे भी ज्यादा कठिन काम प्रधानमंत्री के लिए इन दोनों युवाओं की विनम्रता और सादगी को पराजित करना होगा। फिलहाल सदन के पहले दिन की कार्यवाई में प्रधानमंत्री कि भव्यता इन दोनों से बीस थी पर बॉडीलैंग्वेज से साफ था कि सहजता और लोगों को आकर्षित करने में वह चूक गए हैं। फिलहाल आज शुरुआत हुई है यह किस रूप में आगे बढ़ेगी यह भविष्य का विषय होगा पर आज सदन लंबे समय बाद ज्यादा लोकतान्त्रिक दिखा।
दो दशक से पत्रकारिता, रंगमंच, साहित्य और सिनेमा से सम्बद्ध। न्याय तक के संपादक हैं।
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