आज के सवालों को समझने में मददगार हो सकती है प्रेमचन्द के विचारों की रोशनी
बनारस। दिशा छात्र संगठन की ओर से प्रेमचन्द के जन्मदिवस की पूर्व सन्ध्या पर बीएचयू के डीएसडब्ल्यू हॉल में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। विचार गोष्ठी में हिन्दी विभाग के असिस्टेण्ट प्रोफ़ेसर डॉ. रविशंकर सोनकर और मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान पत्रिका के सम्पादक प्रसेन ने बात रखी।
वक्ताओं ने कहा कि प्रेमचंद की 300 से अधिक कहानियों में से कम से कम 20 तो ऐसी हैं ही, जिनकी गणना विश्व की श्रेष्ठतम कहानियों में की जा सकती है और जिनकी बदौलत उनका स्थान मोपासां, चेखव आदि श्रेष्ठतम कथाकारों की पाँत में सुरक्षित हो जाता है। ‘कफ़न’, ‘पूस की रात’, ‘ईदगाह’, ‘सवा सेर गेहूँ’, ‘रामलीला’, ‘गुल्लीडंडा’, ‘बड़े भाईसाहब’ जैसी कहानियाँ कभी भुलायी नहीं जा सकतीं। महत्वपूर्ण बात यह है कि सामन्ती उत्पीड़न के शिकार पिछड़े समाज के ग्रामीण जीवन के जो यथार्थवादी चित्र प्रेमचन्द की कहानियों में मिलते हैं, वे विश्व के श्रेष्ठतम कथाकारों के यहाँ भी दुर्लभ हैं।
उन्होंने कहा कि प्रेमचन्द अपने लेखन में गाँधीवाद की वैचारिक सीमाओं को तोड़कर आगे निकल जाते हैं। यही वजह है कि उनके लेखन में ऐसे तमाम पात्रों की आलोचना और उनपर कटाक्ष और व्यंग्य भी मिलते हैं जो कांग्रेसी नेताओं और तमाम रायबहादुरों आदि के रूपक या चरित्र होते हैं।
आज के दौर में शोषण-उत्पीड़न आदि तमाम बदले हुए रुपों में बरकरार है। सांप्रदायिकता, जातिवाद आदि का ज़हर समाज में बना हुआ है। ऐसे में प्रेमचन्द के विचारों की रोशनी आज के सवालों को समझने में मददगार हो सकती है।
कार्यक्रम के उपरान्त श्रोताओं ने प्रश्न भी किये और एक सार्थक विचार-विमर्श हुआ। कार्यक्रम का संचालन अमित ने किया।
कार्यक्रम में शिवम, अभिषेक, आलोक और वरुण आदि ने भी बातचीत रखी। कार्यक्रम में ज्ञान, मुकुल, ध्रुव, नीशू, अनुराग, अदिति, बीरू समेत सैकड़ों छात्र शामिल हुए।
‘न्याय तक’ सामाजिक न्याय का पक्षधर मीडिया पोर्टल है। हमारी पत्रकारिता का सरोकार मुख्यधारा से वंचित समाज (दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक) तथा महिला उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाना है।