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सांप्रदायिकता और सामाजिक न्याय विरोधी राजनीति पर लगातार हमले की जरूरत

सांप्रदायिकता और सामाजिक न्याय विरोधी राजनीति पर  लगातार हमले की जरूरत

बिहार में नए आरक्षण पर रोक को सुप्रीम कोर्ट ने भी उम्मीद के अनुरूप ही,अभी बरकरार रखा है….

हालांकि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट आगे सुनवाई के लिए तैयार है,पर सुप्रीम कोर्ट का ट्रैक रिकॉर्ड तो ठीक नही है…

संसद का हाल ये है कि अनुराग ठाकुर जैसे बीजेपी नेता, नेता प्रतिपक्ष की जाति का ही नही जाति जनगणना का भी मज़ाक़ उड़ाते हैं,और सत्ता पक्ष जमकर ताली बजाता है… मोदी खुद समर्थन में उतर आते है, और अपने समर्थकों को उनके भाषण को ठीक से सुनने की अपील कर बैठते हैं,यानि अनुराग का बयान अब अनुराग ठाकुर का नही,मोदी का बयान बन जाता है…

बिहार सरकार के बार-बार कहने के बाद भी केंद्र सरकार, बिहार में बढ़े आरक्षण को 9 वीं अनुसूची में डालने के लिए भी तैयार नही है…

ऐसे में समूचे विपक्ष को सड़क पर उतरने, जाति जनगणना और आरक्षण के लिए जनता के बीच में जाने के अलावे रास्ता ही क्या है….पर केवल बयानों तक सीमित क्यों है विपक्ष…वो कौन सा वैचारिक और राजनीतिक संकट है जो सामाजिक न्याय के बुनियादी मसलों पर खुलकर,पूरी ताकत के साथ, मैदान में उतरने से रोकता है..

और एक स्तर तक जब जनता का बड़ा हिस्सा बीजेपी की नकारात्मक राजनीति को ठीक से समझने लगा है,तब भी केवल बयानों तक सीमित क्यों है विपक्ष…वो कौन सा वैचारिक व राजनीतिक संकट है जो सामाजिक न्याय के बुनियादी मसलों पर विपक्ष को खुलकर,पूरी ताकत के साथ, मैदान में उतरने से रोकता है,इसकी अब ठीक-ठीक और बार-बार शिनाख्त की जानी चाहिए..

अब जबकि चुनाव बीत गया है, और अब शायद वो समय आ गया है,कि विपक्ष की कुछ बड़ी कमजोरियों पर भी भविष्य को ध्यान में रखते हुए,प्रहार करने से परहेज़ न किया जाए..

इसे बहस मुद्दा बनाया जाए, खासकर नागरिक आंदोलनों, सामाजिक न्याय की ताकतों,व जनांदोलनों को, जिन्होंने इस लोकसभा चुनाव में बड़ी भूमिका अख्तियार की थी,उन्हें फिर से अपनी पहलकदमियों को और तेज कर देना चाहिए….

अगर ये नही किया गया, यानि संघ-भाजपा के कोर मुद्दे, सांप्रदायिकता और सामाजिक न्याय विरोधी राजनीति पर जमकर व बार-बार हमला नही किया गया,तो पुनर्वापसी की संभावना लगातार बनी रहेगी..तब वो समय और ज्यादा ख़तरनाक होगा, और जिसका मुकाबला करना और चुनौतीपूर्ण होगा..

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लेखक सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं

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