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विष्णु नागर के तीन व्यंग्य

विष्णु नागर के तीन व्यंग्य

    मोदी-अडानी एक हैं, तो मोदी जी भी सेफ हैं और अडानी जी भी सेफ हैं। मोदी और अडानी सेफ हैं, तो अडानी को कर्ज पर कर्ज देने वाली बैंकें भी सेफ हैं।अडानी की कंपनी में पैसा लगाने वाली, तमाम इधर-उधर के धंधों में लिप्त सेबी प्रमुख माधवी पुरी बुच भी सेफ हैं। महाराष्ट्र की महायुति सरकार पहले भी सेफ थी। अब अडानी के सहयोग तथा हस्तक्षेप से और भी सेफ है।

    ये बंट जाते, तो इनके मुनाफे कट जाते। अडानी जी का कटता, तो मोदी जी का कद भी कटता और इन दोनों का नुक़सान होता, तो माधवी पुरी बुच भी नहीं बचतीं। ये एक हैं, तो सेफ हैं और सेफ हैं, तो एक हैं।

    इस बार कुंभ मेले में दुनिया के नक्शे से पाकिस्तान का नाम मिटाने का नारा देनेवाला नफरती रामभद्राचार्य जी भी सेफ हैं। “देश के गद्दारों को गोली मारो सालों को” कहने वाला दुर्जन भी सेफ हैं। सांपों का फन कुचल डालो, कहनेवाले सेफ हैं। इन आक्रमणकारियों को जला डालो, के नारे लगाने वाले सेफ हैं। घुसपैठियों के नाम पर राजनीति करने वाले नफरतिया बिग्रेड और उसके चरम परम नेता भी सेफ हैं। गोदी मीडिया सेफ है, भाजपा की आईटी सेल सेफ है। कांग्रेस का वध करने का आह्वान करनेवाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव सेफ हैं। दुनिया में प्रेस की स्वतंत्रता में भारत का नीचे खिसकाते रहना सेफ है।

    जनता अनसेफ है, तो क्या? जनता को तो अनसेफ होना ही नहीं चाहिए।

    मोदी-योगी एक हैं, तो बुलडोजर चलाना अभी भी काफी सेफ है। थूक जिहाद सेफ है। पेशाब जिहाद, लव जिहाद, ट्रेन जिहाद सेफ है। पापुलेशन जिहाद सेफ है। वोट जिहाद सेफ है। माइनर जिहाद सेफ है।और भी जितने जिहाद हैं और होनेवाले हैं, सब के सब सेफ हैं। फर्जी मुठभेड़ सेफ है। गुंडागर्दी सेफ है। मस्जिद के सामने डीजे बजाकर जयश्री राम के नारे लगाना सेफ है, मस्जिद पर भगवा फहराना सेफ है। और मोदी का यूपी आना-जाना सेफ है। नुपूर शर्मा सेफ है। सारे ढोंगी, सारे पाखंडी सेफ हैं। सारे राम-रहीम सेफ हैं। गोबर-गोमूत्र का सेवन सेफ है।

    एक हैं तो सेफ है। बंट जाते तो कट जाते! बंट जाते, तो मोदी जी के पर कट जाते, तो योगी जी के पंख भी कट जाते। लोकसभा चुनावों ने योगी के पर तो काट दिए थे, मगर फिर मोदी जी को समझ में आया कि बंटेंगे तो कटेंगे। एक हैं तो सेफ है। सेफ है, तो सारा का सारा फेक सेफ है। फेंका-फेंकी सेफ है।

    एक हैं, तो सारे सेठ सेफ हैं। जिनके स्विस बैंक एकाउंट हैं, वे सेफ हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी, चुनावी चंदा लेकर दोषियों को बचाने वाली मोदी सरकार सेफ है।

    मोदी-ट्रंप एक हैं, तो ट्रंप का तो पता नहीं, मगर मोदी जी सेफ हैं और मोदी जी सेफ हैं, तो सिख उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या के प्रयास का मुद्दा अब विवादों से सेफ है।

    वैसे जब तक कुर्सी सेफ है, तो सब कुछ सेफ है। जय शाह सेफ हैं। ब्रजभूषण शरण सिंह यौन उत्पीड़न के मामले में सेफ हैं। भाजपा के आपराधिक मामलों में फंसे 39 फीसदी सांसद और मंत्री भी सेफ हैं। लारेंस बिश्नोई और भाटी गैंग सेफ है।

    और जब अदालत-सरकार एक है, तो दोनों के दोनों सेफ हैं। बंट जाते, तो कट जाते।

    बीजेपी और आरएसएस एक हैं, तो आरएसएस भी सेफ है, मोदी भी सेफ है। चुनाव में बंटे, तो मोदी जी का कद कटा। अब मोदी जी सेफ हैं, तो संघ भी सेफ है। मोहन भागवत सबसे अधिक सेफ हैं।

    मोदी जी सेफ हैं, तो एन.बीरेन सिंह भी सेफ हैं और दोनों सेफ हैं, तो मणिपुर में डेढ़ साल से चल रही हिंसा भी सेफ है। सैकड़ों लोगों का मारा जाना और घायल होने पर भी सरकार सेफ है। घरों का जलना-जलाना सेफ है। मैतेई और कुकी की दुश्मनी सेफ है। बीरेंद्र सिंह और मोदी एक हैं, तो दोनों की गद्दी सेफ है। ये बंट जाते, तो मणिपुर सेफ हो जाता और इनका पत्ता कट जाता। इसलिए एक हैं तो सेफ हैं।

    क्या एक है और क्या सेफ है? गरीब की घटती आमदनी सेफ है। महंगाई सेफ है। महंगा पेट्रोल सेफ है। बेरोजगारी सेफ है। नफ़रत सेफ है। तिरंगा खतरे में है, संविधान खतरे में है, तो क्या हुआ? केसरिया तो सेफ है, नागपुर तो सेफ है।


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      आदरणीय ट्रंप भैया,

      सर्वप्रथम भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सादर नमन आपकी सेवा में पहुंचे। आप अभी भूले नहीं होंगे कि आपकी जीत की घोषणा होने से पहले ही, आपको बधाई देने वालों में आपका यह छोटा भाई, नरेन्द्र मोदी – भारत का प्रधानमंत्री – सबसे आगे था और हमेशा आगे रहेगा।

      आप इस नान बायोलॉजिकल के एकमात्र सच्चे बड़े भाई हो। दुनिया में अगर मैंने किसी को मन से सच्चे भाई का दर्जा दिया है, तो वह केवल आप और सिर्फ आप हो। मन तो हो रहा था कि तुरंत साढ़े आठ हजार करोड़ रुपए का हवाई जहाज लेकर केवल आधे घंटे के अंदर आपसे गले मिलने अमेरिका पहुंच जाता, मगर खेद है कि अभी वह तकनालाजी नहीं आई, वरना मैं फोन ‌से‌ बधाई देनेवालों में नहीं, आपसे मिलने आनेवालों में सबसे प्रथम होता!

      मैं अमेरिकी जनता के बहुमत का बहुत सम्मान करता हूं, जिसने आपके खिलाफ साबित हो चुके अपराधों, रंगरेलियों, पोर्न स्टार को गुपचुप धन देने, अमेरिकी संसद पर आपके समर्थकों द्वारा किए गए हमले और तोड़फोड़, दो-दो महाभियोगों आदि की परवाह नहीं की। आपने महिला विरोधी, नस्लवादी, असभ्य और अलोकतांत्रिक बातें चुनाव के दौरान कहीं, इससे आपका वोट बैंक कमजोर होने की बजाय और मजबूत हुआ, जैसा कि मेरे देश में भी मेरे साथ होता है। आपकी इस जीत से मेरा मनोबल बहुत बढ़ा है। इस मामले में दुनिया में अकेला न होकर भी मैं पिछले चार साल से अकेला जैसा था। अब आप आ गए हैं। आपका – मेरे सच्चे बड़े भाई का – हाथ मेरे कंधे पर है, तो फिर चिंता कैसी? आप और हम हजारों किलोमीटर दूर होकर भी मन, वचन और कर्म से एक जान हैं। भाई-भाई हैं। आपके आप्रवासी विरोधी अभियान का मैं तहेदिल से समर्थन करता हूं। आपने बिलकुल ठीक उन्हें कचरा बताया है, देश के रक्त को जहरीला बनाने का दोषी बताया है। पता चला है कि आप लगभग सवा करोड़ आप्रवासियों को बाहर करने जा रहे हैं। फौरन यह पुण्य कार्य कीजिए। मैं अपने यहां अभी तक उन्हें बांग्लादेशी, पाकिस्तानी बताकर धमकाने और तरह-तरह से परेशान करने से आगे नहीं बढ़ पाया हूं।आप कदम बढ़ाइए, फिर देखिए आपसे भी चार कदम आगे मैं और मेरी हिंदुत्व फौज बढ़कर दिखाती है। इसकी भूमिका तैयार है।

      पिछले 23 साल से ठीक आपकी तरह मैं भी मानवतावादी हूं। मानवता के नाते ही 2002 मैंने अपने राज्य में वह सब होने दिया था, जिस पर बीबीसी ने डाक्यूमेंट्री बना कर मुझे शर्मिंदा करने की कोशिश की थी। मगर मुझे और आपको दुनिया की कोई ताकत शर्मिंदा नहीं कर सकती! इन दस सालों में भी मुझे शर्मिंदा करने का हर संभव प्रयास किए गए, मगर मैंने गोदी मीडिया के सहारे एक-एक को ध्वस्त कर दिया।

      सबसे पहले तो मैं क्षमा मांग लूं कि मैं सितंबर में अमेरिका आया और आपकी आशा के विपरीत आपसे मिल न सका। इस बार ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’ का नारा न दे सका। इस बार मेरे हाथ-पैर बंधे हुए थे। वैसे आप जानते हैं कि मन से मैं हमेशा आपके साथ था और हूं और रहूंगा। भारत में मेरी नीति है कि जहां अडानी खड़ा है, वहां मैं हूं। उसे जो चाहिए, वह सब मैं दूंगा। उसने प्रधानमंत्री बनाने में मेरा उसी तरह सहयोग किया था, जिस तरह इलेन मस्क ने आपका किया है। आपका अडानी इलेन मस्क है। उसने आप पर एक हजार करोड़ डालर खर्च किए हैं, तो आप भी उसकी कम से कम एक लाख करोड़ की आमदनी तो करवाओगे ही। मेरा भी यही प्रयास रहा है। आज मेरी वजह से अडानी कहां से कहां पहुंच गया है। उस पर जितने अधिक आरोप लगे, उतनी ही ज्यादा मैंने उसकी मदद की। आगे अगर उस पर और मुझ पर अधिक आरोप लगे, तो उसकी और ज्यादा मदद करूंगा। यह मेरा एकमात्र संकल्प है। मुझसे मस्क भाई के लिए भी जो सहयोग बन पड़ेगा, दूंगा। भाई का हितचिंतक, मेरा भी तो हितचिंतक हुआ!

      आप जल्दी मुझे वहां बुलाइए। क्या मैं आपके शपथ ग्रहण समारोह में आ सकता हूं? दिली तमन्ना है कि अपने बड़े भाई को शपथ लेते समय अपनी आंखों से देख सकूं!बाकी जैसा आप चाहें। मुझे आप अपना लक्ष्मण समझो या भरत, मैं आपकी सेवा में हमेशा तत्पर रहूंंगा।आपके माध्यम से अमेरिका की सेवा करना भी भारत की ही सेवा करना ही तो है!

      कृपा बनाए रखें।


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        अब यार, ये तो मेरी-आपकी भाषा के पीछे भी पड़ गए हैं। अब इन्हें इनके हिंदू राष्ट्र में उर्दू रहित ‘शुद्ध हिंदी’ चाहिए यानी संस्कृतनिष्ठ हिंदी चाहिए। जो पिछले दस साल में गंगा और यमुना जैसी पवित्र मानी जानेवाली नदियों को शुद्ध नहीं कर पाए, वे अब भाषा को’ शुद्ध ‘ करने चले हैं! जिनके राज में हवा और पानी तक शुद्ध नहीं, दूध और घी में धड़ल्ले से मिलावट जारी है, दवा, डाक्टर और पीएमओ के अधिकारी तक जिस सरकार में जाली नसीब हो जाते हैं, दिवाली में मिठाई तक शुद्ध नहीं मिलती, जिनके राज में गिरफ्तार होकर भी गैंगस्टर लारेंस विश्नोई सारे देश में गदर मचाये हुए है, रोज उसके लोग हत्या की धमकियों दे रहे हैं, वहां ये एक भाषा को हिंदी-उर्दू में बांट कर ‘शुद्ध’ करने चले हैं! अरे इतनी अशुद्धताओं के बीच तुम ‘शुद्ध हिंदी’ में सांस नहीं ले पाओगे, भाऊ! भाषा को तो अशुद्ध ही रहने दो। हां, तुम चाहो, तो गंदी हो चुकी गंगा और यमुना में रोज नहाकर शुद्ध होते रहो। ऐसा करने से पहले लेकिन दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेव जी से एक बार पूछ लेना, बेचारे यमुना में नहा कर दिखाने की बहादुरी दिखाने गए थे, उन्हें लेने के देने पड़ गए थे! वो तो बाकी भाजपाई इतने समर्पित नहीं थे वरना उनकी जान के लाले पड़ जाते!

        इन ‘जागे हुए हिंदुओं ‘ को दिवाली की मिलावटी मिठाई तो अच्छी तरह से हजम हो जाती है, मगर ‘जश्न’ शब्द हजम नहीं हुआ, क्योंकि इनकी समझ से वह उर्दू का शब्द है और इनका अज्ञान इन्हें बताता है कि उर्दू, मुसलमानों की भाषा है। भाषा को भी इन्होंने हिंदुओं-मुसलमानों में बांट दिया है। कानपुर आईआईटी में दिवाली ‘जश्न-ए-रोशनी’ नाम से मन रही थी, तो इनके पेट में दर्द होने लगा। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में दिवाली ‘जश्न-ए-नूर’ नाम से मनाया जाने लगा, तो दर्द हो गया। क्षमा करें, इन्हें जो हुआ था, वह दर्द नहीं, पीड़ा थी! कुछ साल पहले ‘फैब इंडिया’ ने दिवाली के मौके पर अपने कपड़ों का विज्ञापन ‘जश्न-ए-रिवाज’ नाम से किया, तो इन्हें तकलीफ़ तो नहीं हुई, मगर पीड़ा होने लगी! मध्यप्रदेश की पुलिस ने तो अदालत, जुर्म, कत्ल, गिरफ्तार, गवाह, बयान जैसे 69 शब्दों को तड़ीपार कर दिया है और मुझे विश्वास है कि वर्ष के अंत में ऐसे शब्दों की संख्या कम-से-कम दो सौ तो हो ही जाएगी!

        ये सत्ता में नहीं थे, तो सत्ता में न होने की इन्हें तड़प थी। अब सत्ता में हैं, तो भी तकलीफ़ में हैं। मेरे लिखे में कहीं सही, कहीं गलत नुक्ता लग गया होगा, तो उससे भी ये तकलीफ में आ गए होंगे कि हिंदी में ये नुक्ता कहां से आ गया! यार तुम कभी तो तकलीफ़ों से बाहर आ जाया करो। रोना-सर पीटना हर वक्त अच्छा नहीं लगता! तुम तो उत्सव भी मनाते हो, तो दंगे करने से बाज नहीं आते, मुस्लिम बहुल मोहल्लों में घुस जाते हो, मस्जिद पर भगवा फहरा आते हो! ये क्या हो गया है तुम्हें? तबियत तो ठीक रहा करती है न आजकल!

        तुम्हें किसी शहर का, सड़क का, रेलवे स्टेशन का नाम मुस्लिम हो, तो तकलीफ़ हो जाती है। मुगलसराय नाम जाने कब से चला आ रहा था। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी तक को इससे तकलीफ़ नहीं हुई थी, मगर मोदी जी के बंदों को हो गई। इलाहाबाद नाम मुस्लिम है या हिन्दू , यह कभी दिमाग में नहीं आया था। इलाहाबाद, इलाहाबाद था हमारे लिए, उसे बदल दिया। तुम्हारी खुशियां भी कितनी घटिया होती हैं।इलाहाबाद के लोग भी आज तक उसे इलाहाबाद कहते हैं, तुम उनका क्या कर लोगे? जेल भेजोगे? अगले साल इलाहाबाद में कुंभ होने जा रहा है। अब इन्हें शाही स्नान शब्द से भी दिक्कत होने लगी है। पेशवाई शब्द से भी कठिनाई होने लगी है।

        एक तो तुम हो कौन, भाषा को शुद्ध करने वाले? हिंदी या हिंदुस्तानी न तुमने बनाई, न हम धर्मनिरपेक्षों ने बनाई है।भाषाएं रोज बनती और रोज बिगड़ती हैं और बिगड़कर भी बनती हैं और उन्हें करोड़ों लोग सैकड़ों सालों में अलग-अलग समय में बनाते रहते हैं। गरीब से गरीब भी बनाता है और हां उसे मुसलमान, हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी सब मिलकर बनाते हैं।

        अंग्रेजी हर साल गर्व के साथ हजारों विदेशी शब्दों से अपने को अशुद्ध बनाती है, जिसमें हिंदी के शब्द भी काफी होते हैं। आज अंग्रेजी कहां है और तुम इस हिंदी को कहां ले जा रहे हो? इसे मारना चाहते हो और शुद्ध करना ही है, तो हिंदी में अंग्रेजी जबर्दस्ती ठूंसने की कोशिश हो रही है, उसे रोको!? रोक पाओगे? पहले अपने बेटे-बेटियों से पूछ लेना!

        और भाषा पर ही क्यों जाते हो, बहुत सी चीजों पर जाओ। ये जो तुम घर में हलवा खाते हो, वह भी भाई साहब और बहन जी, इस्लामी है‌। गुलाब जामुन और जलेबी, हम-तुम चाव से खाते हैं, ये भी मूलरूप से इस्लामी है। इन्हें खाना छोड़ सकोगे! हिंदू नाम भी कहते हैं ईरान से आया है, अपने को हिंदू कहना और मानना बंद कर सकोगे!

        रामचरित मानस में सैकड़ों उर्दू शब्द हैं, उसे पढ़ना और घर में रखना छोड़ पाओगे! और भी बहुत सी बातें हैं, छोड़ो। तुम्हें समझ में नहीं आएगा। और तुम हिंदी पर ही यह कृपा क्यों कर रहे हो? हिंदी बोलने के साथ यह ‘खतरा’ हमेशा बना रहेगा कि उसमें उर्दू के तथाकथित शब्द आ ही जाएंगे! तो तुम संस्कृत बोलो, संस्कृत ही पढ़ो। उर्दू के खतरे से संपूर्ण रूप से बचो! उसे राष्ट्रभाषा बनाकर देखो! मोदी जी और शाह जी और मोहन भागवत जी से कहो न कि वे आज ही संस्कृत में भाषण देना शुरू करें! तब तो पता चलेगा कि वे और तुम कितने सच्चे हिंदू हो!

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