बेनीपुर में मुन्नी लाल मौर्य की हत्या – आजादी के अमृतकाल में भी ब्राह्मण की ताड़ना का शिकार हो रहा है बहुजन समाज

बेनीपुर में मुन्नी लाल मौर्य की हत्या – आजादी के अमृतकाल में भी ब्राह्मण की ताड़ना का शिकार हो रहा है बहुजन समाज

 

देश को आजादी मिले 75 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है पर जाति की खाइयाँ आज भी पुरअसर तौर पर मौजूद हैं। गर्व से कहो हम हिन्दू हैं के भीतर दलित और पिछड़ा समाज के हिस्से गर्व करने के लिए कहीं कुछ भी नहीं दिखता। जीस जाति का व्यक्ति आज प्रदेश में उपमुख्यमंत्री  बना बैठा है उस जाति के व्यक्ति को भी समाज में अपनी उच्चता की डुग-डुगी पीटने वाले ब्राह्मण समाज का एक व्यक्ति पुलिस की मौजूदगी में पीट-पीट कर मार देता है। पिछड़ों को वोट के लिए हिन्दुत्व की भट्ठी में पकाने वाली राज्य की भाजपा सरकार इस मौत पर न खेद व्यक्ति करती है ना अपने ‘बुलडोजर न्याय’ का ढिंढोरा पीटने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर इस घटना पर अपनी जगह से टस से मस होता है।

12 जून वाराणसी जनपद यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र, के थाना मिर्जामुराद  के गाँव बेनीपुर महेशपट्टी में मुन्नीलाल मौर्य के घर के एक पुराने हिस्से को गाँव के कथित रूप से दबंग व्यक्ति गोविंद दुबे, राजा दुबे दर्जन भर बाहरी लोगों के साथ कब्जा करने की नियत से पहुँच जाते हैं। मुन्नी लाल के परिवार के लोग भयभीत होकर योगी सरकार की पुलिस से सुरक्षा की उम्मीद करते हुए 112 पर फोन करते हैं। बिना ज़्याद देर किए पुलिस मौके पर आ जाती है। पुलिस के आ जाने से मुन्नी लाल मौर्या खुद को और परिवार को सुरक्षित महसूस करते हुए बाहर आते हैं और पुलिस को स्थिति से अवगत कराते हैं। जल्द ही मुन्नी लाल और उनके परिवार को यह समझ में आ जाता है कि जिस पुलिस से वह अपनी सुरक्षा महसूस कर रहे थे वह पहले से ही कब्जा करने की नियत से खड़े आपराधिक किस्म के लोगों की समर्थक बनकर आई हुई है। पुलिस तात्कालिक रूप से मामले को शांत कराने के बजाय मुन्नी लाल मौर्या पर ही दबाव बनाने लगी। पुलिस के मांगने पर मुन्नी लाल जमीन का कागज लेने के लिए चले  गए। इस बीच दबंग लोगों ने मुन्नी लाल के मौर्य के परिवार के युवाओं के साथ मारपीट शुरू कर दी।

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मुन्नी लाल मौर्य और परिवार की महिलाएं बीच बचाव के लिए बाहर निकल आई। इतने में गोविंद के पक्ष से भी दर्जन भर लोग जिन्होंने गमछे को नकाब की तरह लपेटकर चेहरे को छिपा रखा था सब मौर्य परिवार पर टूट पड़े। हमलावर पूरी तैयारी के साथ आए थे उनके हाथ में लाठी, डंडे, रॉड और लोहे से बने अन्य असलहे थे। परिवार का जो भी सदस्य हमलावरों के सामने पड़ा उसे उन्होंने बुरी तरह से पीटा पर मुख्य रूप से मुन्नी लाल मौर्य को निशाना बनाया गया। उनके शरीर में कई जगह लोहे की छड़ें घुसा दी गई। सर में गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। हमलावरों को जब यह विश्वास हो गया कि मुन्नी लाल मौर्य की मौत हो चुकी है तब वह आराम से वहाँ से चले गए। उत्तर प्रदेश पुलिस के बीर सिपाही इस पूरी घटना को वीरोचित भाव से देख रहे थे। पुलिस को तो जैसे हत्या का लाइव टेलीकास्ट देखने का मौका मिल गया था।

मुन्नी लाल को मृत समझकर गुंडे घटनास्थल से जा चुके थे, हर तरफ चीख थी और घायल हुए लोगों की कराह थी। तमाशाआई पुलिस भी अब मौके से खिसकना चाह रही थी पर गाँव के वह तमाम लोग, मौर्य परिवार के साथ अब खड़े हो गए थे जो अब तक गोविंद और राजा दुबे के परिवार से डरा करते थे।  इसी भीड़ के दबाव में पुलिस को घायलों को अपनी गाड़ी में लेकर स्थानीय चिकित्सक के पास जाना पड़ा। मुन्नी लाल की गंभीर स्थित देखते हुए जहां स्थानीय चिकित्सक ने उन्हें किसी बड़े अस्पताल ले जाने के लिए कह दिया वहीं इस दौरान पुलिस भी मौका देखकर वहाँ से चली गई।

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घटना का वीडियो से लिया गया स्क्रीनशाट

चूंकि पुलिस मौके पर मौजूद थी इससे यह तो तय था कि पूरे प्रशासन को खबर मिल गई रही होगी। फिलहाल प्रशासन को मौर्य परिवार से कोई हमदर्दी नहीं थी पर जब गाँव के लोग मुन्नी लाल के परिवार की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानकर उनके साथ खड़े होने लगे थे तब प्रशासन के जेहन में  शायद देवरिया की घटना की याद जरूर आई रही होगी जहाँ एक यादव की हत्या से आक्रोशित गाँव ने एक पंडित के परिवार को ही खत्म कर दिया था। अब बेनीपुर महेश पट्टी में क्रिया की किसी गंभीर प्रतिक्रिया से डरे हुए प्रशासन ने बिना देर किए वहाँ पर पुलिस की एक टुकड़ी खड़ी कर दी थी।

उत्तर प्रदेश जातीय राजनीति के केंद्र स्थल बन चुका है। जातीय समानता की बात सामाजिक ताने-बाने में ही नहीं बल्कि संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री बने व्यक्ति में भी दिखती है। शायद यही वजह है कि पूर्व के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री आवास खाली करने के बाद नए मुख्यमंत्री उस आवास को एक पिछड़ी जाति के व्यक्ति के स्पर्श की अपवित्रता को पवित्रता में बदलने के लिए पूरे आवास को गंगा जल से धुलवाने का काम किया था। ऐसे में उसी सरकार की मातहती में चल रहा प्रशासन भला कैसे एक पिछड़ी जाति के आम आदमी की पीड़ा को शिद्दत से महसूस कर सकता है। यही वजह रही कि पीड़ित पक्ष के खिलाफ जहाँ बिना देर किए मुकदमा दर्ज हो गया वहीं पीड़ित पक्ष की रिपोर्ट दर्ज करने में प्रशासन को लगभग 12 घंटे लग गए।

12 जून सुबह 10 बजे की इस घटना की एफ आई आर जहां रात के 10 बजे के बाद दर्ज हुई वहीं पुलिस को गिरफ़्तारी के लिए अब तक कोई जल्दी नहीं थी। चार दिनों तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद आखिरकार 15 जून को मुन्नी लाल मौर्य ने दम तोड़ दिया। मुन्नी लाल मौर्य का घर जिस बेनीपुर गाँव में है वह गाँव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गाँव नागेपुर के बेहद करीब है।  अगले दो दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी आने वाले थे। प्रशासन पीड़ित पक्ष द्वारा किसी तरह का व्यवधान नहीं चाहता था और मृतक के समर्थक मृतक के पक्ष में न्याय की गुहार लगा रहे थे। पीड़ित पक्ष की जुबान पर जल्द से जल्द ताला लगाने की नियत से प्रशासन ने तेज कार्रवाई करते हुए दोषियों की गिरफ़्तारी शुरू कर दी। सात अभियुक्त गिरफ्तार हुए और पीड़ित पक्ष के आक्रोश को तात्कालिक तौर पर दबा दिया गया।

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घटनास्थल पर पहुंचा सपा का प्रतिनिधि मण्डल

15 जून के बाद जांच की आंच ठंडी पड़ने लगी थी और प्रशासन इस मामले को चुपके से खत्म करने की कोशिश कर रहा था। पीड़ित परिवार को अब यह समझ में आ रहा था कि जिस तरह से दोनों पक्षों के साथ प्रशासन व्यवहार कर रहा है उसमें एक बड़ा फैक्टर जाति का है। इसी जातीय फैक्टर की वजह से उन्हें अपनी जमीन को अपनी साबित करने में 2 साल से ज्यादा का समय लग गया था। फिलहाल जब पीड़ित पक्ष के लोगों को यतः समझ में आ गया कि हत्या व्यक्ति मात्र की नहीं हुई है बल्कि हमला एक जाति पर हुआ है तब जाति के तमामं लोग पीड़ित के साथ खड़े होने के लिए एकत्रित होने लगे। 19 जून को ही समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर पूर्व मंत्री सुरेन्द्र पटेल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मण्डल जांच के लिए भेजा जिसमें एमएलसी लाल बिहारी यादव, एमएलसी आशुतोष सिन्हा,  पूर्व विधायक उदय लाल मौर्या , सपा जिलाध्यक्ष सुजीत यादव लक्कड़, जिला महासचिव आनंद मौर्य, अधिवक्ता हृदय मौर्या, और प्रदीप मौर्या के साथ बड़ी संख्या में सपा समर्थक भी मृतक के परिजनों से पिलाने पहुंचे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भी मौके पर पहुंचे और पीड़ित पक्ष को हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

जहां तमाम पार्टियों के नेता पीड़ित पक्ष का आँसू पोंछने का प्रयास कर रहे थे उन्हें हर संभव न्याय दिलाने की बात कर रहे थे वहीं पीड़ित पक्ष के लोगों को सजातीय नेता और सूबे के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की इस मामले  को लेकर छाई चुप्पी चुभ रही थी। लोगों को उम्मीद थी की उप मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता में उनके समाज की सम्मानजनक हिस्सेदारी है, पर केशव प्रसाद मौर्य ने इस मामले को लेकर जब एक शब्द भी नहीं बोला तो मौर्य समाज को सहज ही यह समझ में आ गया कि सत्ता में अब तक वह अपनी जिस हिस्सेदारी को मानकर बैठे थे वह केवल आभासी थी।

19 जून को जमा लोगों ने यहाँ तक कह दिया कि “भाजपा में पिछड़ी जाति के नेता सिर्फ दिखावे और पिछड़ी जाति का वोट बटोरने के लिए रखे जाते हैं वहाँ न उनकी कोई निर्णायक भूमिका होती है ना ही अपने लोगों के हक और इंसाफ की बात करने की जगह होती है। लोकसभा चुनाव के पहले से ही भाजपा से पिछड़ी जाति के लोग दूर होने लगे थे पर अब मेरी जाति के व्यक्ति की पीट-पीट कर की गई इस हत्या पर केशव प्रसाद मौर्य की चुप्पी भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनाव में गहरा सदमा देगी।”

पिछले साल अक्टूबर माह में इसी तरह की घटना देवरिया में घटी थी जहां ब्राह्मण परिवार ने यादव जाति के एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी। उक्त घटना में तुरंत ही एक बड़ी प्रतिक्रिया सामने आई थी जिसमे यादव परिवार के समर्थक लोगों ने आक्रोश में तुरंत ही ब्राह्मण परिवार के तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उस मांले में भी जातीय राजनीति खुलकार सामने आई थी और पिछड़ी जाति के लोग इस तरह से खुलकर सामने आ गए थे कि सरकार को अपना बुलडोजर वापस बुलाने के लिए मजबूर होना पद गया था। उसी तरह से इस घटना में भी धीरे-धीरे जातीय सरोकार बढ़ता जा रहा है। मौर्य समाज के वह तमाम नेता जो सत्ता से अलग राजनीति कर रहे हैं अब खुलकार सामने आ रहे हैं। जगन्नाथ कुशवाहा, हृदय लाल मौर्य, आर पी मौर्या से लेकर समाजवादी पार्टी के नव निर्वाचित सांसद बाबू सिंह कुशवाहा तक इस घटना के समर्थन में सामने आ चुके हैं ।

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शोक सभा में शामिल सपा सांसद बाबू सिह कुशवाहा और सपा के पूर्व मंत्री सुरेन्द्र पटेल

अब तक मौर्या जाति के नायकत्व का दंभ भरने वाले दोनों नेता केशव प्रसाद मौर्या और स्वामी प्रसाद मौर्या की इस मांले पर उदासीनता ने सपा के बाबू सिंह कुशवाहा को मौर्य समाज में बड़ा स्पेश दे दिया है। मौर्य समाज के लोग अब बाबू सिंह कुशवाहा को अपने जातीय नायक का तमगा देने को आतुर दिख रहे हैं। 23 जून को मृतक मुन्नी लाल मौर्य के सम्मान में आयोजित शोक सभा में बाबू सिंह कुशवाहा के प्रति जिस तरह से जातीय समर्पण दिखा उससे यह तो ते हो गया कि इस हत्या से मौर्या जाति की राजनीतिक उपस्थिति इस घटना से नया प्रस्थान विंदु तय करेगी। पाखंड विरोध में खड़ा मौर्या समाज और उसका अर्जक संघ इस घटना के बाद खुद को कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी के ज्यादा करीब देख रहा है।

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मृतक की पुत्री मनीषा पुत्र कमलेश तथा परिवार की अन्य महिलायें

फिलहाल इस घटना से पुरुष ही नहीं महिलायें भी आक्रोश से भरी हुई दिख रही हैं। मृतक की बेटी मनीषा मौर्या जो अपने परिवार और समर्थकों के साथ 23 जून से शास्त्री घाट पर धरणे पर बैठी हैं वह अब तक की पुलिसिया कार्यवाई से काफी नाराज दिख रही हैं। उनका कहना है कि प्रशासन उनके साथ भेदभाव कर रहा है अब तक सभी अपराधियों को पुलिस गिरफ्तार भी नहीं कर सकी है । घटनास्थल पर उपास्थित रहे पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी अभी तक उपयुक्त कार्यवाही नहीं हुई है। घटना में मौर्य परिवार की दो महिलाओं को भी गंभीर चोट आई है। गाँव की अन्य महिलायें भी गुस्से से भरी हुई हैं उनका कहना है कि, गोविंदा गुंडा (आरोपी गोविंद दुबे) और उसके भाई राजा(राजा राम दुबे) के घर पर बुलडोजर चलाया जाए और उसे फांसी की सजा हो।

पीड़ित पक्ष हत्या का आरोप मुख्य रूपं से गोविंद दुबे, राजाराम दुबे उसकी माँ, बहन और राजाराम दुबे की पत्नी जूही दुबे (एफआईआर में नहीं है नाम) और अन्य दर्जन भर समर्थकों पर लगा रहा है। अब तक सात आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं। गोविंद दुबे पहले से ही वांछित आपराधी है जिसके ऊपर मिर्जामुराद और वाराणसी के कैंट थाने में पहले से कई मामेल दर्ज हैं।

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मुख्य आरोपी गोविंद दुबे और राजाराम दुबे

कुछ अपराधों में उसके नाम गैर जमानती वारंट भी जारी हुआ है। गाँव के लोगों का कहना है कि आए दिन गोविंदा पुलिस के साथ दिखता था पर पुलिस उसकी गिरफ़्तारी नहीं करती थी।

पीड़ित पारिवार उक्त लोगों से पहले भी अपने परिवार की जान माल की असुरक्षा की आशंका जता चुका है। मार्च 2024 में ही इस आशंका की रिपोर्ट भी दर्ज कराई गई थी।

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यदि पीड़ित की आशंका को पुलिस प्रशासन ने गंभीरता से लिया होता तो निस्देह इतनी क्रूर घटना ना घटती।

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